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Khuda Haafiz Review: विद्युत जामवाल के फैंस के लिए सब्र की सौगात

    • आईचौक
    • Updated: 16 अगस्त, 2020 01:02 PM
  • 16 अगस्त, 2020 01:02 PM
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विद्युत जामवाल (Vidyut Jammwal) की फ़िल्म खुदा हाफिज (Khuda Haafiz) डिज्नी हॉटस्टार (Disney Hotstar) पर रिलीज हो गई है. सच्ची घटनाओं से प्रेरित फारुक कबीर (Faruk Kabir) की फ़िल्म खुदा हाफिज में देखने लायक सिर्फ विद्युत जामवाल और अनु कपूर ही हैं, बाकी फ़िल्म स्लो है. पढ़ें खुदा हाफिज का रिव्यू.

विद्युत जामवाल की फ़िल्म खुदा हाफिज डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है. फारुक कबीर द्वारा लिखी और निर्देशित खुदा हाफिज सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और यह फ़िल्म सही मायने में विद्युत जामवाल के चाहने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है. यूं तो इस फ़िल्म में खामियां भी हैं, लेकिन एक बेहद सच्ची और खूबसूरत कहानी को फारुक कबीर ने विद्युत जामवाल की अब तक की सबसे अच्छी अदाकारी, शिवालिका ओबेरॉय की क्यूटनेस और अनु कपूर के बेहतरीन स्क्रीन प्रजेंस ने देखने लायक बना दिया है. खुदा हाजिफ थोड़ी स्लो फ़िल्म जरूर है, लेकिन इतनी खूबसूरत तरीके से बनाई गई है कि आपको ज्यादा बोरियत नहीं होती और आप इसके बैकग्राउंड स्कोर के साथ ही कर्णप्रिय संगीत में खो से जाते हैं. इस फ़िल्म में दर्शक विद्युत जामवाल को देखकर यकीन नहीं कर पाते हैं कि एक एक्शन स्टार इमोशमल दृश्यों को भी कितनी आसानी से निभा देता है कि समीर चौधरी आपके मन में बस जाता है.

विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय, अन्नु कपूर, शिव पंडित, आहाना कुमरा, नवाब शाह, विपीन शर्मा और आराध्या मान जैसे कलाकारों द्वारा अभिनीत और अल्लाह के बंदे जैसी फ़िल्म बनाने वाले मशहूर डायरेक्टर फारुक कबीर की फ़िल्म खुदा हाफिज 2 घंटे 14 मिनट की है. लखनऊ के साथ ही उज्बेकिस्तान के खूबसूरत लोकेशंस पर शूट यह ‌फ़िल्म बेहद इमोशनल है, जिसमें आप एक बेबस पति को देखेंगे, जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे अहम मुद्दे को ध्यान में रखकर लिखी गई इस फ़िल्म में एक्शन, इमोशन और रोमांस सबकुछ है. इस फ़िल्म की खामियों की बात करें तो शिव पंडित, अहाना कुमरा और नवाब शाह बेहद कमजोर लगे हैं और उन्हें देखना बोझिल लगता है. फ़िल्म में चेज सीन बहुत निम्न स्तर के हैं और एजेंट विनोद, टाइगर जिंदा है समेत कई हिंदी फ़िल्मों से इसकी तुलना कर आप खुदा हाफिज को कमतर मानने लगते हैं. अगर फ़िल्म 20 मिनट छोटी होती तो यह दर्शकों के दिलों पर और असर करती. फिलहाल खुदा हाफिज में देखने लायक विद्युत जामवाल, शिवालिका और अनु कपूर ही लगते हैं.

विद्युत जामवाल की फ़िल्म खुदा हाफिज डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है. फारुक कबीर द्वारा लिखी और निर्देशित खुदा हाफिज सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और यह फ़िल्म सही मायने में विद्युत जामवाल के चाहने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है. यूं तो इस फ़िल्म में खामियां भी हैं, लेकिन एक बेहद सच्ची और खूबसूरत कहानी को फारुक कबीर ने विद्युत जामवाल की अब तक की सबसे अच्छी अदाकारी, शिवालिका ओबेरॉय की क्यूटनेस और अनु कपूर के बेहतरीन स्क्रीन प्रजेंस ने देखने लायक बना दिया है. खुदा हाजिफ थोड़ी स्लो फ़िल्म जरूर है, लेकिन इतनी खूबसूरत तरीके से बनाई गई है कि आपको ज्यादा बोरियत नहीं होती और आप इसके बैकग्राउंड स्कोर के साथ ही कर्णप्रिय संगीत में खो से जाते हैं. इस फ़िल्म में दर्शक विद्युत जामवाल को देखकर यकीन नहीं कर पाते हैं कि एक एक्शन स्टार इमोशमल दृश्यों को भी कितनी आसानी से निभा देता है कि समीर चौधरी आपके मन में बस जाता है.

विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय, अन्नु कपूर, शिव पंडित, आहाना कुमरा, नवाब शाह, विपीन शर्मा और आराध्या मान जैसे कलाकारों द्वारा अभिनीत और अल्लाह के बंदे जैसी फ़िल्म बनाने वाले मशहूर डायरेक्टर फारुक कबीर की फ़िल्म खुदा हाफिज 2 घंटे 14 मिनट की है. लखनऊ के साथ ही उज्बेकिस्तान के खूबसूरत लोकेशंस पर शूट यह ‌फ़िल्म बेहद इमोशनल है, जिसमें आप एक बेबस पति को देखेंगे, जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे अहम मुद्दे को ध्यान में रखकर लिखी गई इस फ़िल्म में एक्शन, इमोशन और रोमांस सबकुछ है. इस फ़िल्म की खामियों की बात करें तो शिव पंडित, अहाना कुमरा और नवाब शाह बेहद कमजोर लगे हैं और उन्हें देखना बोझिल लगता है. फ़िल्म में चेज सीन बहुत निम्न स्तर के हैं और एजेंट विनोद, टाइगर जिंदा है समेत कई हिंदी फ़िल्मों से इसकी तुलना कर आप खुदा हाफिज को कमतर मानने लगते हैं. अगर फ़िल्म 20 मिनट छोटी होती तो यह दर्शकों के दिलों पर और असर करती. फिलहाल खुदा हाफिज में देखने लायक विद्युत जामवाल, शिवालिका और अनु कपूर ही लगते हैं.

फ़िल्म की कहानी नई नहीं

फारुक कबीर द्वारा लिखी फ़िल्म खुदा हाफिज की कहानी लखनऊ के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर चौधरी की है, जिसकी मुस्लिम समुदाय की लड़की नरगिश से शादी होती है. दोनों हंसी-खुशी अपनी शादीशुदी जिंदगी जी रहे होते हैं. साल 2008 में आर्थिक मंदी आती है और दोनों की नौकरी चली जाती है. समीर और नरगिश 3 महीने तक नौकरी की तलाश करते हैं, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिलती. अंत में थक-हारकर वे जॉब एजेंसी के जरिये खाड़ी देश में नौकरी ढूंढते हैं. चूंकि नरगिश को पहले कॉल आ जाता है, इसलिए नरगिश पहले ओमान चली जाती है. ओमान पहुंचते ही उसकता किडनैप हो जाता है. 2 दिन बाद वह समीर को कॉल कर बताती है कि उसके साथ क्या हुआ. समीर यह खबर सुनकर परेशान हो जाता है और अगली फ्लाइट से ओमान जाता है, जहां उसकी मुलाकात पाकिस्तान के टैक्सी ड्राइवर उस्मान भाई (अनु कपूर) से होती है.

समीर को वहां पता चलता है कि उसकी बीवी की अगवा कर जिस्मफरोशी के धंधे में उतार दिया गया है. समीर इंडियन अंबेसी से मदद मांगता है, लेकिन ज्यादा मदद मिल नहीं पाती. ऐसे में वह खुद नरगिश को ढूंढने लगता है और एक ब्रोथल में उसी नरगिश मिलती है. वह नरगिश को वहां से निकालना चाहता है, लेकिन कामयाब नहीं होता है और अंत में ओमान पुलिस के हाथ लग जाता है. इसके बाद ओमान की इंटर्नल सिक्युरिटी एजेंसी (आईएसए) के पास यह केस जाता है और फिर एंट्री होती है फैज (शिव पंडित) और तमीना (अहाना कुमरा) की. दोनों आईएसए अधिकारी होते हैं, जो समीर की नरगिश को ढूंढने में मदद करते हैं. क्या समीर नरगिश को बचाने में कामयाब होता है और फ़िल्म का अंजाम क्या होता है, ये जानने के लिए आपको डिज्नी हॉटस्टार पर खुदा हाफिज देखनी होगी.

एक्टिंग और निर्देशन

खुदा हाफिज फ़िल्म की जान सिर्फ और सिर्फ समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) है. विद्युत पूरी फिल्म को अपने कंधे पर ढोते दिखते हैं. विद्युत इस फिल्म में एक्शन कम और इमोशन में ज्यादा दिखते हैं, जो कि उनके फैंस के लिए कुछ नया देखने को है. अनु कपूर भी इस फ़िल्म में अच्छे लगे हैं. हालांकि, उनके पास करने को कुछ ज्यादा था नहीं. नरगिश के किरदार में शिवालिया ओबेरॉय प्यारी ज्यादा लगी है और एक्टिंग उनका औसत ही है. खुदा हाफिज में शिव पंडित और अहाना कुमरा निराश करते हैं. नवाब शाह की एक्टिंग भी औसत दर्जे की है. वहीं निर्देशन की बात करें तो फारुक कबीर ने एक अच्छे मुद्दे को पकड़ने की कोशिश तो की, लेकिन धीमी कहानी उनके मंसूबे को सफल होने में अवरोध पैदा करती है. फ़िल्म अगर और तेज भागती तो दर्शक शायद ज्यादा जुड़ाव महसूस करते. फ़िल्म की कहानी नई नहीं है, लेकिन प्रजेंटेशन ठीक-ठाक है, ऐसे में खुदा हाफिज बहुत ज्यादा निराश नहीं करती. फारुक कबीर ने अगर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मुद्दे को उठाया ही तो थोड़ा और रिसर्च कर लेते और आंकड़ों में भी इसे पेश कर सकते थे, जिससे लोगों को ह्यूमन ट्रैफिकिंग, खासकर सेक्स स्लेव बनाने के लिए हजारों भारतीयों को खाड़ी देशों में बेचने की इस कुव्यवस्था के बारे में दुनिया और अच्छे से जान पाती. कुल मिलाकर फारुक कबीर की कहानी और निर्देशन औसत है.

खुदा हाफिज देखें या नहीं?

अगर आप विद्युत जामवाल के फैंस हैं तो यकीनन खुदा हाफिज देखें, क्योंकि इस फ़िल्म में आपको बिल्कुल अलग विद्युत दिखेंगे. जो हीरो ऐक्शन करते दिखता है, उसे रोते और इमोशनल होते देखना अलग ही एहसास होता है. फारुक कबीर की फ़िल्म खुदा हाफिज स्लो है और कई बार आपको लगता है कि इसे और बेहतर बनाने की गुंजाइश थी. अगर फ़िल्म में थोड़ा और पैसा लगाया जाता तो इसके चेज सीन को काफी अच्छा किया जा सकता था. फारुक कबीर ने शायद पैसे बचाने के लिए ही ऐसे-ऐसे लोकेशंस पर फिल्म शूट किए हैं कि जिसमें आदमी कम और मकान ज्यादा दिखते हैं. खुदा हाफिज देखने लायक है, जिसमें मिथुन के म्यूजिक वाले अच्छे गाने हैं. अच्छा बैकग्राउंड स्कोर है और फ़िल्म के कुछ दृश्य बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं. आपके पास समय है तो आप खुदा हाफिज देख सकते हैं, क्योंकि इस हफ्ते जान्ह्वी कपूर की फ़िल्म गुंजन सक्सेना के बाद यही बड़ी रिलीज है.






इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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