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'वीरे दी वेडिंग' हर आधुनिक भारतीय महिला के कंफ्यूजन को दिखाती है

    • दीपिका भारद्वाज
    • Updated: 06 जून, 2018 04:06 PM
  • 06 जून, 2018 04:06 PM
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वीरे दी वेडिंग में कंफ्यूज्ड मॉर्डन महिलाओं के जीवन को दिखाया गया है, जो अपनी शर्तों पर जिंदगी का आनंद लेना चाहती हैं. वो समाज के नियमों का पालन नहीं करना चाहती है. लेकिन अपने विद्रोह और हर फैसले को उसी समाज द्वारा अपनाए जाने की भी अपेक्षा रखती हैं.

सीन 1: तीन आंटियां वॉशरुम में साक्षी के बारे में बात कर रही हैं. साक्षी उनकी एक सहेली की बेटी है. उनके बीच बात हो रही है कि कैसे साक्षी का तलाक होने वाला है. रात को वो घर से ज्यादा नाइट क्लबों मिलती है और अगर अफवाहों की मानें तो उसका एक्स्ट्रा मैराइटल अफेयर भी चल रहा है. एक टॉयलेट में बैठी साक्षी ये सब सुन रही है और गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींच रही है. वो उन आंटियों को एक मुक्का मारना चाहती है. स्वरा भास्कर ने साक्षी का रोल किया है.

सीन 2: फिल्म के क्लाइमेक्स में, परेशान सी दिख रही अवनी शर्मा अपनी मां की गोद में लेटी है. वो अपनी मां को बता रही है कि उसे अरेंज मैरिज नहीं करनी. वो ऐसी ही है. अवनी की मां तुरंत जवाब देती है- वो भी उसके लिए लड़के ढूंढती रहेगी क्योंकि वह ऐसी ही है! सोनम कपूर ने अवनी का रोल किया है.

ये दोनों ही सीन उस फिल्म के हैं जो आज चर्चा का विषय बना हुआ है. ये फिल्म चार महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है तो इसलिए महिला सशक्तिकरण, नारीवाद, पैसे वाली बिगडैल औरतों के चित्रण को लेकर चर्चाएं उचित हैं.

फिल्म में आज की कंफ्यूज्ड महिलाओं का चित्रण है

मेरी राय में, वीरे दी वेडिंग एक बहुत ही औसत फिल्म के अलावा कुछ भी नहीं है, जिसमें बहुत अधिक दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसमें कंफ्यूज्ड मॉर्डन महिलाओं के जीवन को दिखाया गया है, जो अपनी शर्तों पर जिंदगी का आनंद लेना चाहती हैं. वो समाज के नियमों का पालन नहीं करना चाहती है. लेकिन अपने विद्रोह और हर फैसले को उसी समाज द्वारा अपनाए जाने की भी अपेक्षा रखती हैं.

वीरे दी वेडिंग शिक्षित, वित्तीय रूप से स्वतंत्र, मुक्त, सशक्त, शहरी भारतीय महिलाएं जो धूम्रपान करती है, नाचती है, शराब पीती है, यौन संबंध बनाती है, मस्ती करती...

सीन 1: तीन आंटियां वॉशरुम में साक्षी के बारे में बात कर रही हैं. साक्षी उनकी एक सहेली की बेटी है. उनके बीच बात हो रही है कि कैसे साक्षी का तलाक होने वाला है. रात को वो घर से ज्यादा नाइट क्लबों मिलती है और अगर अफवाहों की मानें तो उसका एक्स्ट्रा मैराइटल अफेयर भी चल रहा है. एक टॉयलेट में बैठी साक्षी ये सब सुन रही है और गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींच रही है. वो उन आंटियों को एक मुक्का मारना चाहती है. स्वरा भास्कर ने साक्षी का रोल किया है.

सीन 2: फिल्म के क्लाइमेक्स में, परेशान सी दिख रही अवनी शर्मा अपनी मां की गोद में लेटी है. वो अपनी मां को बता रही है कि उसे अरेंज मैरिज नहीं करनी. वो ऐसी ही है. अवनी की मां तुरंत जवाब देती है- वो भी उसके लिए लड़के ढूंढती रहेगी क्योंकि वह ऐसी ही है! सोनम कपूर ने अवनी का रोल किया है.

ये दोनों ही सीन उस फिल्म के हैं जो आज चर्चा का विषय बना हुआ है. ये फिल्म चार महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है तो इसलिए महिला सशक्तिकरण, नारीवाद, पैसे वाली बिगडैल औरतों के चित्रण को लेकर चर्चाएं उचित हैं.

फिल्म में आज की कंफ्यूज्ड महिलाओं का चित्रण है

मेरी राय में, वीरे दी वेडिंग एक बहुत ही औसत फिल्म के अलावा कुछ भी नहीं है, जिसमें बहुत अधिक दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसमें कंफ्यूज्ड मॉर्डन महिलाओं के जीवन को दिखाया गया है, जो अपनी शर्तों पर जिंदगी का आनंद लेना चाहती हैं. वो समाज के नियमों का पालन नहीं करना चाहती है. लेकिन अपने विद्रोह और हर फैसले को उसी समाज द्वारा अपनाए जाने की भी अपेक्षा रखती हैं.

वीरे दी वेडिंग शिक्षित, वित्तीय रूप से स्वतंत्र, मुक्त, सशक्त, शहरी भारतीय महिलाएं जो धूम्रपान करती है, नाचती है, शराब पीती है, यौन संबंध बनाती है, मस्ती करती है, अपने जीवन का आनंद लेती हैं, पारंपरिक पारिवारिक संस्कृति से नफरत करती हैं और शादी को अपने लिए एक झटके के रूप में देखती हैं, ऐसी महिलाओं का सजीव चित्रण करती है. महिलाएं जो एक परफेक्ट फैमिली न मिलने का रोना तो रोती हैं, लेकिन परफेक्ट फैमिली बनाना नहीं चाहतीं. वे महिलाएं जो अपने ससुराल वालों के खिलाफ तो विद्रोह करना चाहती हैं लेकिन अपने परिवारों के साथ नहीं. महिलाएं अपने पति को तो चाहती हैं लेकिन उसके साथ आने वाली पारिवारिक जिम्मेदारियों को नहीं उठाना चाहतीं. जो खुद तो दुर्व्यवहार करती हैं, लेकिन अगर कोई उनके साथ दुर्व्यवहार कर दे तो गुस्सा हो जाती हैं. महिलाएं जो अपने पिता को तो जी जान से चाहती हैं, लेकिन अपनी मां से प्यार करने वाला आदमी उन्हें अपने जीवन में नहीं चाहिए.

फिर चाहे वो अवनी है, जो अरेंज मैरिज से नफरत करती है लेकिन फिर भी अपनी मां की भावनाओं में बह जाती है. या साक्षी है, जो अपनी शादी पर माता पिता से पानी की तरह पैसा बहाने को मजबूर करती है और बाद में इसका अफसोस भी करती है, क्योंकि उसकी शादी सही नहीं चल रही होती. चाहे वो मीरा है, जो अपनी पसंद से शादी करती है, लेकिन अपने माता-पिता के लिए बुरा महसूस करती है. या फिर कलिंदी हो, जो अपने प्रेमी से प्यार करती है, लेकिन उसे पारिवार वाला वो कल्चर नहीं पसंद. यह फिल्म, आधुनिक और पारंपरिक के बीच की उलझन की कहानी है जिससे हर युवा महिला आज लड़ रही है.

इमोशनल महिलाएं जो प्रैक्टिकल बनना चाहती हैं

महिलाएं, जो बहुत इमोशनल हैं, लेकिन प्रैक्टिकल बनना चाहती हैं. पर जब वो ऐसा करती हैं तो फिर उन्हें अपराध बोध होता है और आखिरकार वही करती हैं जो नियम कहता है क्योंकि हम सभी समाज के द्वारा खुद को स्वीकार कराना चाहते हैं. संक्षेप में कहें तो जो महिलाएं पूरी तरह कंफ्यूज्ड हैं और समाज उन्हें कैसा बनना चाहता है और वो खुद कैसी बनना चाहती हैं के बीच में उलझी हुई हैं. साथ ही वो पुरुषों की बराबरी में खुद को देखना चाहती हैं. इन सबके बीच, वो हर उन्हें हर बात पता करने की भी जिज्ञासा है क्योंकि पुरुषों को ऐसा करने की स्वतंत्रता है!

यह फिल्म कोई ट्रेंड नहीं सेट कर रही है. बल्कि ये सिर्फ चार लड़कियों का जीवन दिखा रही है जो सबसे अच्छे दोस्त हैं और अपने अपने जीवन की उलझनों से निपट रही हैं. ये इतना ही सिंपल है! ये फिल्म सिर्फ आधुनिक भारतीय महिला की नजरों से आज के शहरी जीवन की वास्तविकता का चित्रण है. हालांकि, भारतीय संस्कृति की तुलना में इसकी प्रेरणा पश्चिमी संस्कृति से ज्यादा ली गई है. जब शादी, काम और जिम्मेदारियों के बोझ में उलझ जाते हैं तो अक्सर अपने पुराने दोस्तों के साथ मिलना भूल जाते हैं. यह सिर्फ चार महिलाओं की एक कहानी है जो एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए एक साथ दोबारा मिलीं और उसी समय अपने जीवन को साझा किया. और फिर से जीवन का वही मजा लिया जिसे जिंदगी की भागदौड़ में वो भूल चुकी थीं. लेकिन क्या असल में हर रियूनियन की यही कहानी नहीं है?

फिल्म के कुछ हिस्से वास्तव में बहुत मजाकिया हैं और आपका मनोरंजन करते हैं. इसके अलावा, कहानी घिसीपिटी, टूटी हुई है. हालांकि मुझे सुमित व्यास और करीना कपूर बहुत अच्छे लगे. एक कपल के बीच का बहुत प्यारा चित्रण किया गया है जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन फिर जीवन की वास्तविकताओं इसे मुश्किल बना देती है. प्यार कहीं गायब हो जाता है और बाकी सब कुछ बीच में आ जाता है. ऐसा कुछ जो आज बहुत सारे कपल्स के साथ होता है.

जो भी ये सोचता है कि वीरे दी वेडिंग बढ़ाचढ़ा कर बनाई गई है. उन्हें एक बार सच्चाई का सामना करने की जरुरत है. या फिर ये स्वीकार करने की जरुरत है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं. आप अपने चारों तरफ अवनी, साक्षी, मीरा और कालिंदी को पा सकते हैं. फर्क बस इतना है कि कुछ खुलेतौर पर सामने दिखती हैं और कई बंद दरवाजे के पीछे हैं.

मुझे लगता है कि लोगों को फिल्म को थोड़ा हल्के ढंग से देखने की जरुरत है. और अगर वे चाहें तो इसे एक फिल्म की तरह भी देख लें. संस्कार और बॉलीवुड का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है...

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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