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Uniform Civil Code मुस्लिम महिलाओं के लिए सम्मानजनक कानून है!

    • डॉ. सौरभ मालवीय
    • Updated: 18 मई, 2022 01:44 PM
  • 18 मई, 2022 01:44 PM
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भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कई बार उठी है, लेकिन इस पर विवाद होने के बाद यह मामला दबकर रह जाता है. लेकिन इस बार यूपी में जबसे बीजेपी दोबारा सत्ता में लौटी है, इसकी चर्चा चरम पर है. केंद्र की मोदी सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती है, जिसकी शुरूआत उत्तराखंड से होना तय हो चुका है.

समान नागरिक संहिता को लेकर देशभर में एक बार फिर से बहस जारी है. देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात बार-बार उठती रही है, परन्तु इस पर विवाद होने के पश्चात यह मामला दबकर रह जाता है. किन्तु जब से उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी हुई है, तब से यह मामला फिर से चर्चा में है. जहां भाजपा इसे देशभर में लागू करना चाहती है, वहीं मुस्लिम संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समाज में विवाह कानूनों को लेकर ब्रिटिश शासनकाल से ही विवाद होता रहा है, क्योंकि मुसलमानों में बहु पत्नी प्रथा का चलन है. शरीयत के अनुसार पुरुषों को चार विवाह करने का अधिकार है. ऐसी स्थिति में मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय होगी, यह सर्वविदित है. पति जब चाहे पत्नी को तीन तलाक कहकर घर से निकाल देता है. ऐसी स्थिति में महिला का जीवन नारकीय बन जाता है. शाह बानो प्रकरण ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचा था.

वर्ष 1978 में शाह बानो नाम की वृद्धा को उसके पति ने तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था. उसके पांच बच्चे थे. पीड़ित महिला के पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. उसके पति ने उसे गुजारा भत्ता देने से स्पष्ट इनकार कर दिया था. इस पर महिला ने न्यायालय का द्वार खटखटाया. इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने में सात वर्ष लग गए. वर्ष 1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने उसके पति को निर्देश दिया कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए मासिक भत्ता दे.

मुस्लिम समाज में विवाह कानूनों को लेकर ब्रिटिश शासनकाल से ही विवाद होता रहा है.

न्यायालय ने यह निर्णय अपराध दंड संहिता की धारा-125 के अंतर्गत लिया था. विदित रहे कि अपराध दंड संहिता की यह धारा सब लोगों पर लागू होती है चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से संबंध रखते...

समान नागरिक संहिता को लेकर देशभर में एक बार फिर से बहस जारी है. देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात बार-बार उठती रही है, परन्तु इस पर विवाद होने के पश्चात यह मामला दबकर रह जाता है. किन्तु जब से उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी हुई है, तब से यह मामला फिर से चर्चा में है. जहां भाजपा इसे देशभर में लागू करना चाहती है, वहीं मुस्लिम संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समाज में विवाह कानूनों को लेकर ब्रिटिश शासनकाल से ही विवाद होता रहा है, क्योंकि मुसलमानों में बहु पत्नी प्रथा का चलन है. शरीयत के अनुसार पुरुषों को चार विवाह करने का अधिकार है. ऐसी स्थिति में मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति कितनी दयनीय होगी, यह सर्वविदित है. पति जब चाहे पत्नी को तीन तलाक कहकर घर से निकाल देता है. ऐसी स्थिति में महिला का जीवन नारकीय बन जाता है. शाह बानो प्रकरण ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचा था.

वर्ष 1978 में शाह बानो नाम की वृद्धा को उसके पति ने तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था. उसके पांच बच्चे थे. पीड़ित महिला के पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. उसके पति ने उसे गुजारा भत्ता देने से स्पष्ट इनकार कर दिया था. इस पर महिला ने न्यायालय का द्वार खटखटाया. इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने में सात वर्ष लग गए. वर्ष 1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने उसके पति को निर्देश दिया कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए मासिक भत्ता दे.

मुस्लिम समाज में विवाह कानूनों को लेकर ब्रिटिश शासनकाल से ही विवाद होता रहा है.

न्यायालय ने यह निर्णय अपराध दंड संहिता की धारा-125 के अंतर्गत लिया था. विदित रहे कि अपराध दंड संहिता की यह धारा सब लोगों पर लागू होती है चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से संबंध रखते हों. सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर हो जाती, परन्तु कट्टरपंथियों को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का कड़ा विरोध किया. उन्होंने ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड नाम की एक संस्था का गठन किया तथा सरकार को देशभर में आन्दोलन करने की चेतावनी दे डाली.

परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी कट्टरपंथियों के आगे झुक गए था तथा उनकी सरकार ने 1986 में संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया. इससे शाह बानो के सामने जीविकोपार्जन का संकट खड़ा हो गया. मानवता के नाते जिस समाज को वृद्धा की सहायता करनी चाहिए थी, वही उसका शत्रु बन गया. आज भी यही स्थिति है. मुस्लिम समाज में शाह बानो जैसी महिलाओं की कमी नहीं है. मुस्लिम समाज में ऐसे मामले सामने आते रहते हैं कि पति ने तीन तलाक कहकर पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया.

ऐसी स्थिति में पीड़ित महिला का कोई साथ नहीं देता. मुस्लिम समाज की महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहले भाजपा सरकार ने तीन तलाक को रोकने का कानून बनाया और अब समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रयासरत है. भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आती है, तो देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी. वर्ष 1998 में भी भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा किया था.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि भाजपा शासित राज्यों में सामान नागरिक संहिता कानून लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले हमने समान नागरिक संहिता कानून लाने की घोषणा की थी. अब इसे विधानसभा से पारित करके कानून बना लिया जाएगा. इसी प्रकार अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी इसे लागू कर दिया जाएगा. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए शीघ्र ही एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा और राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को किसी भी कीमत पर बाधित नहीं होने दिया जाएगा.

वहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि इसे देश-प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए, ऐसा करना अत्यंत आवश्यक है. उनका यह भी कहना है कि प्रदेश सरकार समान नागरिक संहिता कानून लागू करने पर विचार कर रही है. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा है कि प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में सरकार गंभीरता से विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए एक सम्मान का विषय है.

उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता के अंतर्गत देश में निवास करने वाले सभी लोगों के लिए एक समान कानून का प्रावधान किया गया है. धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा. इसके लागू होने की स्थिति में देश में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर एक ही कानून लागू होगा, अर्थात कानून का किसी धर्म विशेष से कोई संबंध नहीं रह जाएगा. ऐसी स्थिति में अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ समाप्त हो जाएंगे. वर्तमान में देश में कई निजी कानून लागू हैं, उदाहरण के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ, इसाई पर्सनल लॉ एवं पारसी पर्सनल लॉ. इसी प्रकार हिंदू सिविल लॉ के अंतर्गत हिंदू, सिख एवं जैन समुदाय के लोग आते हैं.

समान नागरिक संहिता लागू होने से इनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तथा विवाह, तलाक एवं संपत्ति के मामले में सबके लिए एक ही कानून होगा. इसके दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए सरकार से इसे लागू न करने की अपील है. बोर्ड का कहना कि भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार जीवन जीने की अनुमति दी है. इसे मौलिक अधिकारों में सम्मिलित किया गया है.

नि:संदेह देश में समान नागरिक संहिता लागू होने से मुस्लिम समाज की महिलाओं का जीवन स्तर बेहतर हो जाएगा. यह कानून मुस्लिम समाज से बहुपत्नी प्रथा का उन्मूलन करने में प्रभावी सिद्ध हो सकेगा, क्योंकि इस समाज के पुरुष अपनी पत्नी के जीवित रहते दूसरा, तीसरा एवं चौथा विवाह नहीं कर पाएंगे. इतना ही नहीं, संपत्ति में भी पुत्रियों को पुत्रों के समान ही भाग मिलेगा. इसमें दो मत नहीं है कि समान नागरिक संहिता मुस्लिम महिलाओं के लिए सम्मानजनक कानून है, जो उन्हें सम्मान से जीवन जीने का अधिकार देगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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