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Maharashtra Political Crisis: इन विवादों के लिए याद रखी जाएगी उद्धव ठाकरे सरकार!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 30 जून, 2022 12:08 AM
  • 30 जून, 2022 12:08 AM
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महाराष्ट्र में चल रहा सियासी संकट आखिरी पड़ाव पर है. सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश देने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया है. यहां तक कि उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी है. महाराष्ट्र की इस महाविकास अघाडी सरकार को उपलब्धियों से ज्यादा विवादों के लिए जाना जाएगा.

''बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले''...गालिब की ये पंक्तियां इस वक्त शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर बहुत सटीक बैठ रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो हफ्ते से चल रहा सियासी संग्राम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही शिवसेना की दलील खारिज करते हुए महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट की इजाजत दी, वैसे ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यहां तक कि उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी है. उनका कहना है कि वो अब अपनी पार्टी को नए सिरे से खड़ा करेंगे. उन्होंने बागी विधायकों को शुभकामनाएं भी दी हैं.

साल 2019 में महाविकास अघाडी के बैनर तले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी. 28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन जब उनकी सरकार बनी उनको लगातार विवादों में रहना पड़ा. सरकार बनते ही सुशांत सिंह राजपूत के केस में उनके बेटे आदित्य ठाकरे का नाम आया. उसके बाद उनकी सरकार पर सुशांत के मौत के जिम्मेदार लोगों को बचाने का आरोप लगा. इतना ही नहीं उनकी ही सरकार में गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उनके द्वारा न्यूक्त किए गए मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने देशमुख पर 100 करोड़ रुपए की वसूली का आरोप लगाया था.

तमाम संगीन विवादों और आरोपों को झेलते हुए उद्धव ठाकरे की सरकार डगमगाती हुई चलती रही. लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उनके सबसे विश्वास पात्र और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे 36 विधायकों के साथ बागी हो गए. वो सूरत होते हुए गुवाहाटी में जाकर बैठ गए. वहां जाकर उन्होंने अपने साथ 50 विधायकों के होने का दावा किया था. उस वक्त शिवसेना और उनके नेताओं ने साम, दाम, दंड और भेद की नीति को अपनाते हुए बागियों को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई. इसका परिणाम आज सबके सामने है. तमाम कोशिशों के बावजूद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा...

''बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले''...गालिब की ये पंक्तियां इस वक्त शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर बहुत सटीक बैठ रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो हफ्ते से चल रहा सियासी संग्राम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही शिवसेना की दलील खारिज करते हुए महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट की इजाजत दी, वैसे ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यहां तक कि उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी है. उनका कहना है कि वो अब अपनी पार्टी को नए सिरे से खड़ा करेंगे. उन्होंने बागी विधायकों को शुभकामनाएं भी दी हैं.

साल 2019 में महाविकास अघाडी के बैनर तले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी. 28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन जब उनकी सरकार बनी उनको लगातार विवादों में रहना पड़ा. सरकार बनते ही सुशांत सिंह राजपूत के केस में उनके बेटे आदित्य ठाकरे का नाम आया. उसके बाद उनकी सरकार पर सुशांत के मौत के जिम्मेदार लोगों को बचाने का आरोप लगा. इतना ही नहीं उनकी ही सरकार में गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उनके द्वारा न्यूक्त किए गए मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने देशमुख पर 100 करोड़ रुपए की वसूली का आरोप लगाया था.

तमाम संगीन विवादों और आरोपों को झेलते हुए उद्धव ठाकरे की सरकार डगमगाती हुई चलती रही. लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उनके सबसे विश्वास पात्र और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे 36 विधायकों के साथ बागी हो गए. वो सूरत होते हुए गुवाहाटी में जाकर बैठ गए. वहां जाकर उन्होंने अपने साथ 50 विधायकों के होने का दावा किया था. उस वक्त शिवसेना और उनके नेताओं ने साम, दाम, दंड और भेद की नीति को अपनाते हुए बागियों को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई. इसका परिणाम आज सबके सामने है. तमाम कोशिशों के बावजूद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है.

आइए जानते हैं कि किन विवादों के लिए याद रखी जाएगी उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार...

1. सुशांत सिंह राजपूत केस

महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी सरकार बनने के बाद उद्धव ठाकरे जिस सबसे बड़े विवाद का सामना करना पड़ा, वो सुशांत सिंह राजपूत केस था. 14 जून 2020 को सुशांत की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी. उनसे पहले उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की भी संदिग्ध मौत हुई थी. सुशांत की मौत के बाद आरोप लगा कि उद्धव ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे ने ही दिशा की हत्या कराई है. उसके बाद सुशांत को भी मरवा दिया है. इतना ही नहीं सुशांत केस को दबाने का भी उद्धव ठाकरे पर आरोप लगा था. इस मामले की वजह से ठाकरे परिवार की रातों की नींद हराम हो गई थी. बहुत मुश्किलों और लंबे समय के बाद ये मामला शांत हुआ था.

2. कंगना रनौत से विवाद

सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत सबसे ज्यादा मुखर थीं. उन्होंने उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे का नाम लेकर उन पर निशाना साधा था. महाराष्ट्र में चाहे किसी भी तरह की घटना हो, कंगना उसे लेकर उद्धव को घेरने से कभी पीछे नहीं रहती थीं. यही वजह है कि शिवसेना भी उनके खिलाफ आक्रामक हो गई थी. मुंबई नगर निगम ने उनका दफ्तर तोड़ दिया. इसकी वजह से उनका करोड़ों का नुकसान हुआ था. उस वक्त कंगना ने कहा था, ''उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है तूने फिल्म माफिया के साथ मिलकर मेरा घर तोड़कर मुझसे बदला ले लिया है. आज मेरा घर टूटा है कल तेरा घमंड टूटेगा. ये वक्त का पहिया है याद रखना, हमेशा एक जैसा नहीं रहता."

3. अर्नब गोस्वामी से विवाद

सुशांत सिंह राजपूत केस की वजह से ही उद्धव सरकार और अर्नब गोस्वामी के बीच विवाद हुआ था. उस वक्त अर्नब का कहना था कि सुशांत की हत्या हुई है. इसमें उद्धव ठाकरे का परिवार शामिल है. सरकार कातिलों को बचा रही है. इसे लेकर वो अपने चैनल पर लगातार प्रोग्राम कर रहे थे. सीधे उद्धव ठाकरे और उस वक्त के मुंबई पुलिस कमीश्नर परबीर सिंह का नाम लेकर उनको चुनौती दिया करते थे. इसके बाद अचानक मुंबई पुलिस ने 53 साल के एक इंटीरियर डिज़ाइनर की आत्महत्या के मामले में अर्नब गोस्वामी को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. इस मामले को लेकर पूरे देश में बहुत हंगामा हुआ था. सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा जमकर फूटा था. हालांकि, बाद में अर्नब को जमानत मिल गई थी.

4. पालघर में साधुओं की हत्या

साल 2019 में महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं समेत तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई थी. तीनों एक साथी के अंतिम संस्कार में शामिल होने कांदिवली से सूरत जा रहे थे. रास्ते में गड़चिनचले के पास वन विभाग के एक गार्ड ने उन्हें रोक दिया. इसके बाद वह गांव के रास्ते गुजरात जाने की कोशिश कर रहे थे. इसी दौरान गांव में अफवाह फैला दी गई कि ये लोग चोर हैं. भीड़ ने इन्हें पीटना शुरू कर दिया था. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पूरे देश में ये मामला तूल पकड़ लिया था. इसमें वारदात के दौरान कुछ पुलिसवाले भी वहां खड़े हुए नजर आए थे. ऐसे में कहा गया कि पुलिस की मिलीभगत की वजह से जानबूझकर साधुओं की हत्या कराई गई है.

5. अनिल देशमुख-परमबीर सिंह विवाद

उद्वव सरकार में गृहमंत्री रहे अनिल देशमुख और मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के बीच हुआ विवाद भी बहुत चर्चित रहा था. परमबीर ने देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि देशमुख ने कुछ चुनिंदा पुलिस अधिकारियों से रेस्टोरेंट और बार से प्रति महीने 100 करोड़ रुपये लेने को कहा था. देशमुख ने इन आरोपों के गलत बताया था लेकिन बाद में उन्हें अपने पद से हटना पड़ा था. इसके बाद प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में देशमुख को गिरफ्तार कर लिया था. इस केस के तार बाद में एंटीलिया कांड से भी जुड़े थे. इसके मुख्य किरदारों में अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन बझे का नाम सामने आया था. सचिन बझे को उद्धव का खास माना जाता था.

6. एंटीलिया कांड और मनसुख मर्डर

25 फरवरी, 2021 को दक्षिण मुंबई के पैडर रोड स्थित मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया से 300 मीटर की दूरी पर विस्फोटक से भरी एक स्कॉर्पियो गाड़ी खड़ी मिली थी. इसमें 20 जिलेटिन की छड़ें और एक धमकी भरा लेटर बरामद हुआ था. लेटर जैश-उल-हिंद नामक आतंकी संगठन की तरफ से था, जिसमें अंबानी परिवार का जान से मारने की धमकी दी गई ती. इस तरह अंबानी परिवार को भयभीत करके उनसे पैसों उगाही करने की कोशिश की गई थी. 5 मार्च, 2021 को इसके मालिक मनसुख हिरेन का शव रेती बंदर की खाड़ी से बरामद हुआ था. इस मामले की साजिश रचने के आरोप में बाद में मुंबई पुलिस के अफसर सचिन वझे, प्रदीप शर्मा और सुनील माने का नाम सामने आया था. केस एनआईए को सौंपा गया था. एनआईए ने अपनी जांच के बाद इन अफसरों को दोषी पाया, जिसके बाद इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. सचिन बझे को उद्धव सरकार बनने के बाद बहाल किया गया था.

7. आर्यन खान क्रूज ड्रग्स केस

बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को अक्तूबर, 2021 में मुंबई क्रूज ड्रग्स केस में गिरफ्तार किया गया था. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अफसर समीर वानखेड़े की अगुवाई में एनसीबी की टीम ने क्रूज पर छापा मारकर आर्यन खान सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया था. इस मामले में कहा गया था कि आर्यन के पास से ड्रग्स मिला था. उन्होंने क्रूज पर ड्रग्स का सेवन भी किया था. कई अदालती सुनवाई, बहुत सारे ड्रामे और लंबी हिरासत के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें 25 दिन बाद जमानत दी थी. उसके 7 महीनों बाद उनको क्लीन चिट भी मिली गई. इस मामले में भी उद्धव ठाकरे सरकार को लोगों ने घेरा था. उनके सरकार के ही एक मंत्री ने आर्यन के बचाव में कई प्रेस कॉन्फेंस की थी.

8. नवाब मलिक का अंडरवर्ल्ड कनेक्शन

महाराष्ट्र के कैबिनेट मिनिस्टर नवाब मलिक को अंडरवर्ल्ड के साथ कनेक्शन की वजह से ईडी ने गिरफ्तार किया था. नवाब मलिक पर आरोप था कि साल 1993 बम धमाकों के दो आरोपियों से मुंबई के कुर्ला इलाके में तीन एकड़ जमीन खरीदा था. यह जमीन कौड़ियों के दाम पर खरीदी गई थी. ईडी ने उसी दौरान दाउद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर को महाराष्ट्र की ठाणे जेल से गिरफ्तार किया था. पूछताछ के दौरान कासकर ने भी नवाब मलिक का नाम लिया था. इसके बाद ईडी की टीम मलिक से लंबी पूछताछ की थी, जिसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया था. नवाब मलिका उद्धव सरकार के कद्दावर मंत्री माने जाते थे. उनकी गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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