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क्या पठान को फायदा पहुंचाने के लिए मिशन मजनू की वाजिब चर्चा नहीं हुई, चीजों का इशारा तो यही है!

    • आईचौक
    • Updated: 19 जनवरी, 2023 08:57 PM
  • 19 जनवरी, 2023 08:57 PM
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देशभक्ति की पिच पर जासूसी की दो कहानियां- मिशन मजनूं और पठान रिपब्लिक डे के माहौल में रिलीज हो रही हैं. मगर ऐसा लग रहा है कि पठान को श्रेष्ठ बनाने के लिए मिशन मजनूं पर बातचीत नहीं होने दिया जा रहा. तमाम चीजों का इशारा तो यही है.

इस बार रिपब्लिक डे के माहौल में तमाम फ़िल्में रिलीज होने के लिए तैयार हैं. इनमें पठान की बड़ी चर्चा है और उसे देशभक्ति की कहानी पर आधारित बताया जा रहा है. अब देशभक्ति इस तरह और कहां के लिए है- यह व्यापक बहस का एक अलग विषय है. पठान को लेकर तमाम तरह के विवाद देखने को मिले हैं अबतक. और शायद यह यूं ही नहीं है. क्योंकि फ़िल्में और भी रिलीज हो रही हैं. लेकिन माहौल कुछ यूं बन गया है कि जैसे और फिल्मों पर लोग बात ही नहीं करना चाहते. जैसे कुछ लोग चाहते ही नहीं कि पठान के सामने किसी और फिल्म की चर्चा हो. खासकर उस फिल्म पर चर्चा हो जो असल में पठान के घोषित पहाड़ और खोखली कहानी को भोथरा कर सकती है. जो पठान के कॉन्टेंट पर सवाल उठाती है और आइना दिखाती है. जबकि कमाल बात यह है कि दोनों फिल्मों के केंद्र में जासूस और भारत ही है. बावजूद दोनों फिल्मों में जमीन आसमान का अंतर पहली नजर देखने से ही समझ में आ जाता है.

पठान की कहानी एक जासूस की है. जासूस देशभक्त है. नए किस्म का देशभक्त है शायद. वंदे मातरम कहने में संकोच करता है. शायद. उसकी जुबान पर जय हिंद ज्यादा चढ़ा हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे तमाम बड़े अल्पसंख्यक पत्रकार, राजनेता और बुद्धिजीवी अपने धार्मिक कट्टरपंथ की वजह से- जयश्री राम कहने बोलने लिखने की बजाय JSR या फिर गणपति बप्पा मोरया के लिए GBM और हर हर महादेव के HHM का इस्तेमाल करते हैं. खैर. वंदे मातरम और जय हिंद में कोई फर्क नहीं है. ठीक वैसे ही जैसे जयश्रीराम या JSR एक जैसे अर्थ के लिए इस्तेमाल होता है. बस दोनों बहुमत के सिद्धांत को खारिजकर अल्पमत को बहुमत बनाने की जिद पकड़े नजर आते हैं. और यह सरासर गलत है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा रॉ जासूस की भूमिका में हैं.

किस भारत को लेकर पठान में चिंताएं और समाधान परोसा गया है?

पठान की...

इस बार रिपब्लिक डे के माहौल में तमाम फ़िल्में रिलीज होने के लिए तैयार हैं. इनमें पठान की बड़ी चर्चा है और उसे देशभक्ति की कहानी पर आधारित बताया जा रहा है. अब देशभक्ति इस तरह और कहां के लिए है- यह व्यापक बहस का एक अलग विषय है. पठान को लेकर तमाम तरह के विवाद देखने को मिले हैं अबतक. और शायद यह यूं ही नहीं है. क्योंकि फ़िल्में और भी रिलीज हो रही हैं. लेकिन माहौल कुछ यूं बन गया है कि जैसे और फिल्मों पर लोग बात ही नहीं करना चाहते. जैसे कुछ लोग चाहते ही नहीं कि पठान के सामने किसी और फिल्म की चर्चा हो. खासकर उस फिल्म पर चर्चा हो जो असल में पठान के घोषित पहाड़ और खोखली कहानी को भोथरा कर सकती है. जो पठान के कॉन्टेंट पर सवाल उठाती है और आइना दिखाती है. जबकि कमाल बात यह है कि दोनों फिल्मों के केंद्र में जासूस और भारत ही है. बावजूद दोनों फिल्मों में जमीन आसमान का अंतर पहली नजर देखने से ही समझ में आ जाता है.

पठान की कहानी एक जासूस की है. जासूस देशभक्त है. नए किस्म का देशभक्त है शायद. वंदे मातरम कहने में संकोच करता है. शायद. उसकी जुबान पर जय हिंद ज्यादा चढ़ा हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे तमाम बड़े अल्पसंख्यक पत्रकार, राजनेता और बुद्धिजीवी अपने धार्मिक कट्टरपंथ की वजह से- जयश्री राम कहने बोलने लिखने की बजाय JSR या फिर गणपति बप्पा मोरया के लिए GBM और हर हर महादेव के HHM का इस्तेमाल करते हैं. खैर. वंदे मातरम और जय हिंद में कोई फर्क नहीं है. ठीक वैसे ही जैसे जयश्रीराम या JSR एक जैसे अर्थ के लिए इस्तेमाल होता है. बस दोनों बहुमत के सिद्धांत को खारिजकर अल्पमत को बहुमत बनाने की जिद पकड़े नजर आते हैं. और यह सरासर गलत है.

सिद्धार्थ मल्होत्रा रॉ जासूस की भूमिका में हैं.

किस भारत को लेकर पठान में चिंताएं और समाधान परोसा गया है?

पठान की जासूसी दुनिया में जो भारत है और उसकी जो चिंताएं हैं- वह पता नहीं किस भारत की चिंताएं हैं. पठान में भारत है, रॉ है, संसद है, आतंकी है, देशभक्त हैं देश द्रोही हैं- लेकिन यह साफ़ नहीं हो पाता कि भारत के दुश्मन कौन हैं और भारत को खतरा किससे है? पठान का विषय केंद्र जो है उसके हिसाब से भारत का दुश्मन तो पाकिस्तान या चीन को होना चाहिए. दुर्भाग्य से नहीं है. इस्लामिक आतंकवाद पर होना चाहिए, दुर्भाग्य से वह भी नहीं है. बल्कि रूस को किसी भी तरह से भारत की देशभक्ति वाली तमाम कहानियों में निगेटिव नहीं होना चाहिए था लेकिन कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो वह है.

अब मिशन मजनूं को देखिए. यह भी एक जासूस की कहानी है. रॉ का जासूस है जो एक ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान में घुसता है. इस्लाम स्वीकार करता है. वहां प्यार करता है. शादी करता है. और अनेकों सूचनाएं निकालता है. उस जासूस के जोखिम और साहस का अनुमान लगाया जा सकता है. यहां भारत के दुश्मन वही हैं जो हकीकत में है. आतंकवाद वही है- जो हकीकत में है. भारत की वही चिंताएं और वही संघर्ष दिखाया गया है जो असल में है और भारत उसे भोगता रहा. लेकिन आप देखिए कि मिशन मजनूं की चर्चा तक नहीं की जा रही है.

मिशन मजनूं का ट्रेलर यहां देखें:-

बावजूद मिशन मजनूं का जादू पठान के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया है

जबकि बिना प्रचार के बावजूद मिशन मजनूं का जादू दर्शकों के सिर पर बोल रहा है. पठान के साथ-साथ ट्रेलर रिलीज हुआ. मिशन मजनूं पर अभी तक 35 मिलियन व्यू आया है. यह कमाल का व्यू है. एक ऐसी फिल्म के लिए जिसपर बज नहीं है. यूट्यूब पर मिशन मजनूं को लेकर आए कमेन्ट देखिए. दर्शक मिशन मजनूं की तारीफ़ कर रहे हैं कि बॉलीवुड लाख बुरा हो, लेकिन वह जब देशभक्ति कहानियां बनाता है- तो बेहतरीन बनाता है. थ्रिल रोमांच से भर देता है. और पठान जिसकी ऐतिहासिक चर्चा की है और उसका आक्रामक पीआर देखिए. बावजूद पठान के ट्रेलर पर अब तक महज 50 मिलियन व्यूज आए हैं. दोनों फिल्मों के ट्रेलर का सर समझा जा सकता है.

पठान दी ग्रेट शाहरुख खान की फिल्म है. दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम जैसे दिग्गज एक्टर फिल्म का हिस्सा हैं. यशराज फिल्म्स जैसे बड़े बैनर ने बनाया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैम्पेन चलाया जा रहा है बावजूद 35 मिलयन और 50 मिलियन व्यूज के फर्क से चीजों को समझना मुश्किल नहीं. मिशन मजनूं, पठान के कॉन्टेंट का आइना है. दो जासूसों की कहानियां- जनता की कसौटी पर होंगी. लाश कोशिश कर लीजिए. पर बात तो निकलेगी और दूर तक जाएगी. मिशन मजनूं 20 जनवरी के दिन नेटफ्लिक्स के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आएगी. जबकि पठान 25 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

अब दर्शक तय करेंगे कि दोनों में भारत की असली कहानी कौन सी है. 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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