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The Kashmir Files का लोग टिकट नहीं खरीद रहे हैं, बल्कि विवेक अग्निहोत्री को चंदा दे रहे हैं!

    • आईचौक
    • Updated: 21 मार्च, 2022 03:57 PM
  • 21 मार्च, 2022 03:56 PM
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द कश्मीर फाइल्स की कमाई बॉक्स ऑफिस के इतिहास में आम कलेक्शन नहीं है. उसके पीछे 'अंशदान' की वजहें काम कर रही हैं उससे बच्चन पांडे पर असर पड़ता दिख रहा है और आरआरआर के मेकर्स को भी परेशान होना चाहिए.

कश्मीरी हिंदुओं-सिखों के नरसंहार और पलायन पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स का हर रोज बढ़ता कलेक्शन फ़िल्मी दुनिया के कारोबारी सर्किल में आठवां अजूबा साबित हो रहा है. फिल्म दूसरे वीकएंड में ही 170 करोड़ रुपये के बेंचमार्क को पार कर चुकी है. बॉक्स ऑफिस पर 3.55 करोड़ से शुरुआत करने वाली फिल्म के अब तक के कारोबारी आंकड़े कई मायनों में ख़ास नजर आते हैं. कोरोना महामारी के बाद के हालात में अब तक कोई फिल्म इस तरह कमाती नहीं दिखती है. वहीं कोरोना से पहले भी कोई फिल्म दिन ब दिन 'द कश्मीर फाइल्स' की तरह रफ़्तार से भागती नजर नहीं आई थी. वह भी ऐसी फिल्म जो मसालेदार मनोरंजन का वादा नहीं करती.  

निश्चित ही द कश्मीर फाइल्स लोगों के लिए एक भावुक और राजनीतिक फिल्म बन चुकी है. इससे पहले भावनाओं का ऐसा ज्वार बॉलीवुड की तीन फिल्मों के लिए देखने को मिला था जो थीं- जय संतोषी मां, बॉर्डर और गदर: एक प्रेमकथा. ये तीनों बॉलीवुड के इतिहास की ब्लॉकबस्टर फ़िल्में हैं. हालांकि तीनों फिल्मों के पीछे जिन भावनाओं ने काम किया वो धार्मिक-राष्ट्रवादी भावनाएं थीं. लेकिन द कश्मीर फाइल्स की तरह राजनीतिक तो नहीं कहा जा सकता. दर्शकों के लिए तीनों फिल्मों को देखने का मकसद भी असल में मनोरंजन ज्यादा था. जबकि द कश्मीर फाइल्स देखने वाले दर्शकों का मकसद मनोरंजन तो बिल्कुल नजर नहीं आता है.

घरेलू बॉक्स ऑफिस पर द कश्मीर फाइल्स की कमाई को ग्राफ से समझ सकते हैं.

गिल्ट और गुस्से की वजह से टिकट खरीदकर 'चंदा' दे रहे लोग

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म को दर्शक एक ऐसे आंदोलन के रूप में ले रहे हैं, जिसका मकसद किसी भी रूप से ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को दिखाना है. इसके लिए लोग दूसरों के टिकट फाइनेंस कर रहे हैं, कई कारोबारी द कश्मीर फाइल्स के टिकट के बदले भारी भरकम...

कश्मीरी हिंदुओं-सिखों के नरसंहार और पलायन पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स का हर रोज बढ़ता कलेक्शन फ़िल्मी दुनिया के कारोबारी सर्किल में आठवां अजूबा साबित हो रहा है. फिल्म दूसरे वीकएंड में ही 170 करोड़ रुपये के बेंचमार्क को पार कर चुकी है. बॉक्स ऑफिस पर 3.55 करोड़ से शुरुआत करने वाली फिल्म के अब तक के कारोबारी आंकड़े कई मायनों में ख़ास नजर आते हैं. कोरोना महामारी के बाद के हालात में अब तक कोई फिल्म इस तरह कमाती नहीं दिखती है. वहीं कोरोना से पहले भी कोई फिल्म दिन ब दिन 'द कश्मीर फाइल्स' की तरह रफ़्तार से भागती नजर नहीं आई थी. वह भी ऐसी फिल्म जो मसालेदार मनोरंजन का वादा नहीं करती.  

निश्चित ही द कश्मीर फाइल्स लोगों के लिए एक भावुक और राजनीतिक फिल्म बन चुकी है. इससे पहले भावनाओं का ऐसा ज्वार बॉलीवुड की तीन फिल्मों के लिए देखने को मिला था जो थीं- जय संतोषी मां, बॉर्डर और गदर: एक प्रेमकथा. ये तीनों बॉलीवुड के इतिहास की ब्लॉकबस्टर फ़िल्में हैं. हालांकि तीनों फिल्मों के पीछे जिन भावनाओं ने काम किया वो धार्मिक-राष्ट्रवादी भावनाएं थीं. लेकिन द कश्मीर फाइल्स की तरह राजनीतिक तो नहीं कहा जा सकता. दर्शकों के लिए तीनों फिल्मों को देखने का मकसद भी असल में मनोरंजन ज्यादा था. जबकि द कश्मीर फाइल्स देखने वाले दर्शकों का मकसद मनोरंजन तो बिल्कुल नजर नहीं आता है.

घरेलू बॉक्स ऑफिस पर द कश्मीर फाइल्स की कमाई को ग्राफ से समझ सकते हैं.

गिल्ट और गुस्से की वजह से टिकट खरीदकर 'चंदा' दे रहे लोग

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म को दर्शक एक ऐसे आंदोलन के रूप में ले रहे हैं, जिसका मकसद किसी भी रूप से ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को दिखाना है. इसके लिए लोग दूसरों के टिकट फाइनेंस कर रहे हैं, कई कारोबारी द कश्मीर फाइल्स के टिकट के बदले भारी भरकम गिफ्ट दे रहे हैं और तमाम दर्शक भी सिनेमाघर जाकर फिल्म देखने के लिए टिकट उसी तरह खरीद रहे जैसे किसी बड़े अभियान में आर्थिक सहयोग कर रहे हों. गुजरात से तो ऐसी खबरें भी आईं कि द कश्मीर फाइल्स के लिए कुछ निर्माताओं ने अपना सिनेमा स्क्रीन से उतार लिया.

दर्शकों की भावनाएं आतंकवाद की विभीषिका झेलने वालों से जुड़ रही हैं. फिल्म का टिकट खरीदकर दर्शक तमाम चीजों पर अपना गुस्सा भी जाहिर करते दिख रहे हैं. किसी ने फिल्म के बॉक्स ऑफिस को लेकर कहा भी है कि इसकी कमाई में भारतीयों का 'गिल्ट' नजर आता है. कमाई असल में उसी गिल्ट और गुस्से का नतीजा है जो हाल फिलहाल कम होता नहीं दिख रहा. लोगों के गिल्ट और उनके अंशदान की भावना को समझना भी मुश्किल नहीं.

असल में फिल्म की पाइरेटेड कॉपी रिलीज के बाद से ही लोगों तक पहुंच चुकी है. बावजूद लोग कश्मीरी विक्टिम के दुख में साथ खड़ा होने के लिए सिनेमाघर जाकर फिल्म देख रहे. ऐसे लोगों की भरमार है जो सालों से सिनेमाघर नहीं पहुंचे मगर द कश्मीर फाइल्स को वहां जाकर देख रहे हैं. फिल्म की कमाई लोगों के उस गिल्ट का नतीजा है जिसे निश्चित ही राजनीतिक वजहों ने बड़ी आवाज दी है. भाजपा शासित राज्यों में फिल्म का टैक्स फ्री किया जाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे बड़े भाजपा नेताओं का फिल्म के पक्ष में बात करना भी इसे जनआंदोलन की शक्ल देने में कामयाब रहा. यहां तक कि कश्मीर पंडितों के पक्ष में भाजपा विरोधी दलों खासकर कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयान ने भी सकारात्मक माहौल ही दिया है.

भला अक्षय कुमार की बच्चन पांडे भावना की सुनामी को कहां रोक पाती

अब जिस फिल्म का टिकट 'अंशदान' यानी चंदे के रूप में खरीदा जा रहा हो भला उसे अक्षय कुमार की बच्चन पांडे या कोई फिल्म क्या ही टक्कर दे सकती है. द कश्मीर फाइल्स की अब तक की यात्रा में फिल्म की कमाई सिर्फ एक दिन नीचे जाती दिखी है- बच्चन पांडे की रिलीज से ठीक एक दिन पहले.  एक बारगी लगा कि बच्चन पांडे शायद द कश्मीर फाइल्स पर भारी पड़े. लेकिन अक्षय की फिल्म के आने के दिन से ही द कश्मीर फाइल्स का कलेक्शन और आगे निकलता जा रहा है. होली पर आधे दिन की कमाई से अक्षय मुकाबला करते दिखे थे. उनकी फिल्म ने 13 करोड़ से ज्यादा की कमाई की. मगर दूसरे और तीसरे दिन द कश्मीर फाइल्स बच्चन पांडे पर पूरी तरह हावी हो चुकी है.

शनिवार और रविवार को अक्षय की फिल्म ने महज 12-12 करोड़ रुपये की कमाई की. ओपनिंग दे के आधार पर कमाई को बहुत कम माना जा सकता है. बच्चन पांडे ने वीकएंड पर कुल 37.25 करोड़ कमाए हैं जिसे खराब तो नहीं कहा जा सकता. आंकड़े घरेलू टिकट खिड़की के हैं. अक्षय की असल चुनौती वीकएंड के बाद नजर आएगी. यानी सोमवार से गुरुवार तक अगर फिल्म वीकएंड का पचास प्रतिशत से ज्यादा कारोबार कर जाती है तो उसे सफल माना जा सकता है. हालांकि बच्चन पांडे को दूसरे हफ्ते में सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा क्योंकि तब उसके सामने एक और बड़ी फिल्म टिकट खिड़की पर खड़ी नजर आएगी- एसएसएस राजमौली की आरआरआर.  

आरआरआर 25 मार्च को रिलीज होगी.

बच्चन पांडे अभी तक नुकसान में नहीं दिख रही, आरआरआर का क्या होगा?

25 मार्च को आरआरआर रिलीज हो रही है. द कश्मीर फाइल्स ने भारी डिमांड की वजह से ज्यादातर स्क्रीन्स पर कब्जा जमा लिया है. यह फिल्म पहले दिन दुनियाबहर में मात्र 630 स्क्रीन पर थी. लेकिन दूसरे हफ्ते में यह करीब 4000 हजार स्क्रीन्स पर दिखाई जा रही है. बच्चन पांडे को कम स्क्रीन मिले हैं. अगले हफ्ते बॉक्स ऑफिस के सीन में आरआरआर के आ जाने के बाद यह और मुश्किल होगा. द कश्मीर फाइल्स की रफ़्तार को देखते हुए कम से कम इतना तो कहा जा सकता है कि हिंदी बेल्ट में आरआरआर को मनमाफिक स्क्रीन्स नहीं मिलेंगे जिसकी उन्होंने उम्मीद की होगी. और यह उम्मीद भी कम है कि विवेक अग्निहोत्री की फिल्म के स्क्रीन्स कम होंगे.

यानी बच्चन पांडे को बहुत मुश्किल से गुजरना होगा. आरआरआर के लिए सबसे अच्छी बात पैन इंडिया रिलीज है. पीरियड ड्रामा का सब्जेक्ट भी राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत है. मेकर्स के लिए राहत की बात यह है कि साउथ में आरआरआर को लेकर जो बज बनेगा वह उत्तर में भी क्लिक करे. ऐसी स्थिति भी बच्चन पांडे के लिए नुकसानदेह है. सबसे अच्छी बात यह है कि लोग सिनेमाघर आ रहे और बॉक्स ऑफिस रोजाना 30 से 40 करोड़ के बीच कलेक्शन जुटाता दिख रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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