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The Family Man 2 में श्रीकांत ने बॉस को मारा! सीन मैनेजमेंट की बेहतरीन केस स्टडी है...

    • नवीन चौधरी
    • Updated: 17 जून, 2021 06:00 PM
  • 17 जून, 2021 06:00 PM
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तमाम मैनेजमेंट प्रोफेशनल हैं जो इस बात को स्वीकार करते हैं कि The Family Man Season 2 का वो सीन जब श्रीकांत तिवारी अपने बॉस की पिटाई करता है मैनेजमेंट की एक बेहतरीन केस स्टडी है. आइये नजर डालें इसके कारणों पर और समझें कि क्यों ये सीन पूरी सीरीज को एक जबरदस्त सीरीज में परिवर्तित करता है.

सोशल मीडिया और मीम की दुनिया में ये हफ्ता द फॅमिली मैन सीजन 2 के नाम रहा. एक तरफ चेलम सर गूगल से तेज निकले तो दूसरी ओर कहानी के मुख्य पात्र श्रीकांत तिवारी (मनोज वाजपेयी) द्वारा अपने बॉस की पिटाई से जनता ऐसे खुश है, जैसे भारत ने वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को धो दिया हो. काफी लोगों के पोस्ट इस आशय के साथ थे कि काश वह भी अपने बॉस को ऐसे पीट पाते. इन विचारों के पीछे चाहे जो कारण हैं आज उसकी चर्चा नही करूंगा लेकिन एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल के रूप में श्रीकांत तिवारी और उसके बॉस का एपिसोड मुझे मैनेजमेंट की एक बेहतरीन केस स्टडी दिखती है. श्रीकांत और उसके बॉस की समस्या का एक बड़ा कारण उनकी उम्र है जहां बॉस छोटा है और कर्मचारी बड़ा. मैं अपने प्रोफेशनल करिअर में दोनों स्थितियों में रहा हूं - जहां मैंने अपने से छोटी उम्र के व्यक्ति को रिपोर्ट किया और जहां मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति ने मुझे रिपोर्ट किया.

The Family Man 2 में श्रीकांत ने मैनेजमेंट वालों को बड़ा सबक दिया है

यदि श्रीकांत और बॉस की कहानी को हम वास्तविक दफ़तर की कहानी के रूप में देखें तो अपने अनुभव के आधार मैं श्रीकांत और उसके बॉस दोनों को कुछ चीजें बदलने को कहूंगा.

हर व्यक्ति अलग है

श्रीकांत के बॉस ने इस बात को नहीं समझा कि हर कर्मचारी एक सा नही हो सकता. श्रीकांत का बॉस बार-बार अपना उदाहरण देता रहा कि वह किस तरीके से काम करता है. सब की योग्यताएं अलग हैं, काम का तरीका अलग है. सचिन तेंडुलकर बेहतरीन बैट्समैन हैं और धोनी बेहतरीन कप्तान. द्रविड़ भी बेहतरीन बैट्समैन हैं लेकिन उनका खेल सचिन से अलग है.

धोनी, द्रविड़ या सचिन को एक ही तरीके से नही खिलाया जा सकता. श्रीकांत अपने मैनेजर के मुकाबले एक अच्छा कोडर या ऐनलिस्ट हो सकता है. उसके मैनेजर को उसी हिसाब से उसे काम में...

सोशल मीडिया और मीम की दुनिया में ये हफ्ता द फॅमिली मैन सीजन 2 के नाम रहा. एक तरफ चेलम सर गूगल से तेज निकले तो दूसरी ओर कहानी के मुख्य पात्र श्रीकांत तिवारी (मनोज वाजपेयी) द्वारा अपने बॉस की पिटाई से जनता ऐसे खुश है, जैसे भारत ने वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को धो दिया हो. काफी लोगों के पोस्ट इस आशय के साथ थे कि काश वह भी अपने बॉस को ऐसे पीट पाते. इन विचारों के पीछे चाहे जो कारण हैं आज उसकी चर्चा नही करूंगा लेकिन एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल के रूप में श्रीकांत तिवारी और उसके बॉस का एपिसोड मुझे मैनेजमेंट की एक बेहतरीन केस स्टडी दिखती है. श्रीकांत और उसके बॉस की समस्या का एक बड़ा कारण उनकी उम्र है जहां बॉस छोटा है और कर्मचारी बड़ा. मैं अपने प्रोफेशनल करिअर में दोनों स्थितियों में रहा हूं - जहां मैंने अपने से छोटी उम्र के व्यक्ति को रिपोर्ट किया और जहां मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति ने मुझे रिपोर्ट किया.

The Family Man 2 में श्रीकांत ने मैनेजमेंट वालों को बड़ा सबक दिया है

यदि श्रीकांत और बॉस की कहानी को हम वास्तविक दफ़तर की कहानी के रूप में देखें तो अपने अनुभव के आधार मैं श्रीकांत और उसके बॉस दोनों को कुछ चीजें बदलने को कहूंगा.

हर व्यक्ति अलग है

श्रीकांत के बॉस ने इस बात को नहीं समझा कि हर कर्मचारी एक सा नही हो सकता. श्रीकांत का बॉस बार-बार अपना उदाहरण देता रहा कि वह किस तरीके से काम करता है. सब की योग्यताएं अलग हैं, काम का तरीका अलग है. सचिन तेंडुलकर बेहतरीन बैट्समैन हैं और धोनी बेहतरीन कप्तान. द्रविड़ भी बेहतरीन बैट्समैन हैं लेकिन उनका खेल सचिन से अलग है.

धोनी, द्रविड़ या सचिन को एक ही तरीके से नही खिलाया जा सकता. श्रीकांत अपने मैनेजर के मुकाबले एक अच्छा कोडर या ऐनलिस्ट हो सकता है. उसके मैनेजर को उसी हिसाब से उसे काम में लेना चाहिये.

अपेक्षाएं एवं गोल स्पष्ट करें

श्रीकांत के मैनेजर ने कई बार श्रीकांत को अपनी अपेक्षाएं बताई और प्रोत्साहित करने का प्रयास किया किन्तु इस प्रक्रिया में वह बार-बार इस बात का जिक्र करता रहा कि कैसे वह 28 की उम्र में सीईओ बना. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह 28 में सीईओ बना और श्रीकांत 45 में कोडर. यह समझना आवश्यक है कि अधिक उम्र के कर्मचारी को आप उसी तरीके से प्रोत्साहित नही कर सकते जैसे कि एक युवा को क्योंकि हर उम्र की अपनी एक जिम्मेदारी, अपेक्षाएं और सोच होती है.

एक मैनेजर के रूप में फर्ज होता है कर्मचारी से बेहतरीन काम समयसीमा में करवाना. इसलिए कर्मचारी को अपने जैसा बनाने की कोशिश छोड़ उसे स्पष्ट रूप से उसके काम को लेकर अपेक्षाएं बताएं और पूरा करने में मदद करें.

ह्यूमन टच

प्रायः युवा मानते हैं कि अधिक उम्र के कर्मचारी सुस्त होते हैं, वहीं युवाओं को गंभीर नही माना जाता. एक सफल मैनेजर इस प्रचलित धारणा की जगह अपने कर्मचारियों को जानने की कोशिश करता है. क्या आप अपने कर्मचारी को एक व्यक्ति के रूप में जानते हैं? क्या आप उससे काम के अलावा कभी यूं भी गपशप करते हैं? एक ह्यूमन टच हमेशा कर्मचारी की खूबियों, खामियों और सोचने के तरीके को दर्शाता है और मैनेजर को कर्मचारी की उपयोगिता बढ़ाने में मदद करता है.

क्षमताओं का सही दोहन करें

यदि आपके पास एक अधिक अनुभव और उम्र का कर्मचारी है तो आप उसकी क्षमताओं और अनुभव का सही दोहन करें. मैंने एक संगठन में मार्केटिंग हेड के तौर पर जॉइन किया तो वहाँ एक कर्मचारी मुझसे लगभग 7 वर्ष अधिक उम्र की थी और अनुभव भी ज्यादा था. मेरा आना उन्हें पसंद नही आया क्योंकि वह मानती थी कि उन्हें मार्केटिंग हेड बनाया जाना चाहिये था.

अब उन्हें क्यों नहीं बनाया इसपर चर्चा नही करूंगा, लेकिन ये तथ्य था कि मैं उनका मैनेजर था. मैंने इस कर्मचारी को समझने की कोशिश की तो पता चला 20 साल से संगठन में होने के कारण उन्हें यहाँ के सभी सिस्टम पता हैं, वह सभी डिपार्ट्मेंट में लोगों को जानती हैं और सबसे उनकी अच्छी बातचीत है.

मैंने उन्हें जो काम सौंपा जिसमें सभी विभागों से समन्वयन करना था और आंतरिक सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए काम करना था. संगठन में अपने काम को महत्व मिलते देख उनकी टीस कुछ हद तक कम हुई और मुझे भी अपना काम करवाने में सफलता मिली.

लचीलापन

संगठन आजकल काम की परिस्थिति को बेहतर बनाने के लिये कुछ लचीलापन नियमों में रखते हैं. ऑफिस का समय 9.30 होने के बावजूद सीरीज में श्रीकांत तिवारी को 9.20 पर आने पर भी उसके मैनेजर द्वारा उसे टोकना क्योंकि वह जल्दी आया अनुचित है. यदि कर्मचारी नियमों के अंदर है, काम कर रहा है तो उसे लचीलेपन का लाभ देना चाहिये, इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है.

श्रीकांत के मैनेजर की खामियों पर हम चर्चा कर चुके लेकिन श्रीकांत द्वारा भी इस परिस्थिति को सुधारा जा सकता था. श्रीकांत ने अपने काम से लेकर व्यवहार में कई दोष रखे.

नियम पालन

श्रीकांत करिअर में कुछ और करना चाहता था लेकिन पारिवारिक मजबूरियों की वजह से यह नौकरी कर रहा था. यदि आप किसी भी संगठन में काम करते हैं तो आपको उसके नियम मानने होंगे, आपको काम पूरा करना होगा.

सीखने की ललक

अपने से छोटी उम्र के मैनेजर से खफा होने की जगह सीखिए. निश्चित तौर पर वह कुछ चीजें आपसे बेहतर जानता है और उन चीजों को सीखने में हर्ज नही. आप अपने अनुभव का लाभ मैनेजर को दें और मैनेजर के अनुभव का लाभ लेकर एक टीम की तरह काम करें. श्रीकांत अपने मैनेजर और अपने सहयोगियों सभी से अपने को वरिष्ठ मानते हुए एक दूरी बनाए हुए था जिसकी वजह से उसकी स्वीकार्यता नही थी.

खुल कर बात करें

जब भी किसी आप मैनेजर से फीडबैक पाए तो उस पर अपने विचार और अपनी अपेक्षाएं खुल कर रखें. श्रीकांत को जब भी फीडबैक मिला तब उसकी बॉडी लैंग्वेज फीडबैक को खारिज करने वाली थी. उसकी नजरों में बॉस को बच्चा समझ खारिज करना साफ दिखता था. आप काम कर रहे हैं तो फीडबैक स्वीकारें और असहमत होने पर तर्कों से बॉस को मनाएं.

अपडेट करें खुद को

दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और उससे ज्यादा तेजी से काम करने के तरीके. यदि कोई नया आता है तो वह नए तरीकों को लेकर आता है. आप भी नया सीखें, खुद को अपडेट करें. मैं जब अपने से युवा मैनेजर को रिपोर्ट कर रहा था तो मैंने देखा कि वह डिजिटल मार्केटिंग में बहुत अच्छा है. मैं एक पारंपरिक मार्केटिंग बैकग्राउंड से था.

कंपनी अब डिजिटल मार्केटिंग की तरफ बढ़ रही थी और मेरा मैनेजर उसे उस दिशा में ले जा सकता था. मैंने इसके बाद डिजिटल मार्केटिंग सीखी, युवा मैनेजर से सहायता ली जिसका फल मुझे उस कंपनी में ही नही अगली नौकरी पाने में भी हुआ.

हमारे करिअर में हममें से कई लोग कभी श्रीकांत तो कभी उसके बॉस की परिस्थिति में होंगे. सफल वह होगा जो इसे समस्या नही मौका समझ कर इस अनुभव का लाभ लेगा.

मेरे युवा मैनेजर ने हर चीज ठीक नही की लेकिन मैंने उससे भी यह सीख कि क्या नही करना है. हो सकता है मैंने भी कुछ गलतियाँ की हों और मेरे साथ काम किए उस अधिक उम्र के कर्मचारी ने भी उससे सबक लिया होगा.

श्रीकांत जब सीक्रेट एजेंट के रूप में काम करते हैं तब अपने सहयोगी को कहते हैं कि हमारा काम देश और प्रधानमंत्री पद की रक्षा करना है. इस बात से फर्क नही पड़ता कि उस पर कौन बैठा है. यही बात हम सब पर भी लागू होती है. हम एक संस्था के लिये काम कर रहे हैं और किसी को जवाबदेह हैं. सफल होने के लिये जो दायित्व है उसे पूरा करें और एक टीम की तरह काम करें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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