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झूठी कहानियों के द्वारा ठग कर आंखों को भिगो देने वाला धोखा नहीं है The Elephant Whisperers

    • ट्विंकल तोमर सिंह
    • Updated: 13 मार्च, 2023 10:25 PM
  • 13 मार्च, 2023 10:23 PM
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The Elephant Whisperers डॉक्यूमेंट्री है तो डॉक्यूमेंट्री की तरह ही देखना होगा. साधारण मनोरंजन ढूंढने वाले को शायद रस न मिले. पर जब पता है डॉक्यूमेंट्री है, सत्य घटनाओं को दर्शा रही है, तब उसमें कहीं पर आंसू फूट पड़े, तो वे आंसू परम सच्चे हैं. ये झूठी कहानियों के द्वारा ठग कर आंखों को भिगो देने वाला धोखा नहीं है.

'द एलीफैंट व्हिसपरर्स' ऑस्कर के लिये चुनी गई फ़िल्मों में से एक है. इसे बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शार्ट फ़िल्म की श्रेणी में शार्ट लिस्ट किया गया है. फ़िल्म की अवधि इकतालीस मिनट है. ऑस्कर में चयन होने की घोषणा इसे देखने की उत्सुकता जगाने के पर्याप्त थी, तो ये देखी गयी. और देखी गयी...तो बस...अतृप्त मन...तृप्त हुआ, रोया, उसने खेद धारण किया, विवशता अनुभव की... प्रार्थना की कि हमारा ग्रह और इसके सब प्राणी सुरक्षित रहें.

रघु और अम्मू बड़े नटखट हैं, बहुत छोटे हैं अपने परिवार से बिछड़ गए हैं. उन्हें उनका परिवार तो वापस नहीं मिला पर बदले में मिले कुछ अनोखे माता पिता 'बमन' और 'बेली'.

इंसान और जानवर के बीच के बॉन्ड को बड़ी ही खूबसूरती से दर्शाती है The Elephant Whisperers

माता पिता मनुष्य हैं और बच्चे गज हैं!

कितनी खूबसूरती से मानव और पशु के बीच में एक संबंध, एक अनुबंध, ऐक्य, समरसता, सदभाव को दर्शाया गया है. साधारण से दिखने वाले बमन और बेली जिनके पास अपना कोई परिवार नहीं हैं, उनके लिये वन-विभाग द्वारा संरक्षण के लिये दिए गए ये झुंड से बिछड़े हाथी के बच्चे ही जीवन जीने का आधार बन जाते हैं. उनकी वे अपनी संतान की तरह देखभाल करते हैं.

बेली के हृदय में अपनी मृत बेटी का शूल गड़ा हुआ था, जिसे अम्मू ने अपने दुलार से इतनी आसानी से निकाल दिया कि उसका सारा दर्द जाता रहा. बमन और बेली को रघु और अम्मू ने न केवल माता-पिता बना दिया, वरन उन्हें आपस में एक पकी हुई उम्र में पति-पत्नी भी बना दिया.

डॉक्यूमेंट्री है तो डॉक्यूमेंट्री की तरह ही देखना होगा. साधारण मनोरंजन ढूंढने वाले को शायद रस न मिले. पर जब पता है डॉक्यूमेंट्री है, सत्य घटनाओं को दर्शा रही है, तब उसमें कहीं पर आंसू फूट पड़े, तो वे आंसू परम सच्चे हैं. ये झूठी...

'द एलीफैंट व्हिसपरर्स' ऑस्कर के लिये चुनी गई फ़िल्मों में से एक है. इसे बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शार्ट फ़िल्म की श्रेणी में शार्ट लिस्ट किया गया है. फ़िल्म की अवधि इकतालीस मिनट है. ऑस्कर में चयन होने की घोषणा इसे देखने की उत्सुकता जगाने के पर्याप्त थी, तो ये देखी गयी. और देखी गयी...तो बस...अतृप्त मन...तृप्त हुआ, रोया, उसने खेद धारण किया, विवशता अनुभव की... प्रार्थना की कि हमारा ग्रह और इसके सब प्राणी सुरक्षित रहें.

रघु और अम्मू बड़े नटखट हैं, बहुत छोटे हैं अपने परिवार से बिछड़ गए हैं. उन्हें उनका परिवार तो वापस नहीं मिला पर बदले में मिले कुछ अनोखे माता पिता 'बमन' और 'बेली'.

इंसान और जानवर के बीच के बॉन्ड को बड़ी ही खूबसूरती से दर्शाती है The Elephant Whisperers

माता पिता मनुष्य हैं और बच्चे गज हैं!

कितनी खूबसूरती से मानव और पशु के बीच में एक संबंध, एक अनुबंध, ऐक्य, समरसता, सदभाव को दर्शाया गया है. साधारण से दिखने वाले बमन और बेली जिनके पास अपना कोई परिवार नहीं हैं, उनके लिये वन-विभाग द्वारा संरक्षण के लिये दिए गए ये झुंड से बिछड़े हाथी के बच्चे ही जीवन जीने का आधार बन जाते हैं. उनकी वे अपनी संतान की तरह देखभाल करते हैं.

बेली के हृदय में अपनी मृत बेटी का शूल गड़ा हुआ था, जिसे अम्मू ने अपने दुलार से इतनी आसानी से निकाल दिया कि उसका सारा दर्द जाता रहा. बमन और बेली को रघु और अम्मू ने न केवल माता-पिता बना दिया, वरन उन्हें आपस में एक पकी हुई उम्र में पति-पत्नी भी बना दिया.

डॉक्यूमेंट्री है तो डॉक्यूमेंट्री की तरह ही देखना होगा. साधारण मनोरंजन ढूंढने वाले को शायद रस न मिले. पर जब पता है डॉक्यूमेंट्री है, सत्य घटनाओं को दर्शा रही है, तब उसमें कहीं पर आंसू फूट पड़े, तो वे आंसू परम सच्चे हैं. ये झूठी कहानियों के द्वारा ठग कर आंखों  को भिगो देने वाला धोखा नहीं है.

सबसे अधिक सुखद है इसकी फोटोग्राफ़ी-एक एक दृश्य एक लार्ज कैनवस पर बने चित्र के समान है. फोटोग्राफ़ी में रुचि रखने वालों के लिये तो यहां  'फीस्ट' है, प्रशिक्षण है, अभिरंजना है. दक्षिण भारत की धरती का एक कोना हरियाली में इतना समृद्ध और पवित्र है, यह भी नयनाभिराम है.

नीलगिरि की पहाड़ियों के बीच थेप्पाकडु एलिफैंट कैम्प एक अलग ही स्तर पर जंगल सफारी का सुख देता है, जिसे देखकर आप प्रसन्न तो होते हैं, पर उसकी पवित्रता में विघ्न डालना नहीं चाहेंगे. आप प्रार्थना करेंगे कि यह हिस्सा ऐसे ही अछूता रहे, बमन और बेली जैसे लोग इसके संरक्षक बने रहें.

इसकी निर्देशिका कार्तिकी गोनसेल्वज़ मात्र 36 वर्ष की हैं. इन्होंने विजुवल कम्युनिकेशन में बीएससी और प्रोफेशनल फोटोग्राफ़ी में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रखा है. इसीलिए फोटोग्राफ़ी में इनकी महारत स्पष्ट दिखती है. ऑस्कर जीते या न जीते, इतनी सुंदर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिये ये निश्चित तौर पर बधाई की पात्र हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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