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The Elephant Whisperers: ऑस्कर अवॉर्ड जीतने वाली डॉक्यूमेंट्री के बनने की कहानी भी दिलचस्प है

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 14 मार्च, 2023 12:41 PM
  • 14 मार्च, 2023 12:41 PM
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95th Academy Awards के ओरिजिनल शॉर्ट फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट हुई डॉक्यूमेंट्री 'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' ने ऑस्कर अवॉर्ड जीत लिया है. इस डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन कार्तिकी गोंजालवेज ने किया है. पेशे से फोटोग्राफर कार्तिकी ने इस डॉक्यूमेंट्री को बनाने के लिए बहुत मेहनत की है. उनको 39 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री को बनाने में 5 साल लग गए. इसमें कई साल तो वो खुद जंगल में हाथियों के साथ रही हैं. आइए इस डॉक्यूमेंट्री के बनने की कहानी जानते हैं.

एकेडमी अवॉर्ड में इस साल भारतीय सिनेमा का खाता खुल गया है. एक नहीं दो भारतीय फिल्मों को ऑस्कर अवॉर्ड मिला है. इसमें एसएस राजामौली की फिल्म 'आरआरआर' के गाने 'नाटू-नाटू' को बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला है, जबकि कार्तिकी गोंजाल्विस की डॉक्यूमेंट्री 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का ऑस्कर अवॉर्ड जीता है. 'नाटू-नाटू' सॉन्ग के ऑस्कर जीतने की प्रबल संभावना पहले से ही थी, क्योंकि इस फिल्म को पहले ही कई इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं. लेकिन 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' के ऑस्कर जीतने पर लोग जितने खुश हो रहे हैं, उतने ज्यादा हैरान भी दिख रहे हैं. बहुत से लोगों ने तो पहली बार इसका तब नाम सुना, जब इसे शॉर्टलिस्ट करके ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया था. इसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने इसे नेटफ्लिक्स पर देखा. अब इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की हर तरफ चर्चा है.

'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' महज 39 मिनट की डॉक्यूमेंट्री है, लेकिन इस बनाने में मेकर्स को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी और लंबा समय देना पड़ा है. इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की निर्देशिका कार्तिकी गोंजालवेज ने अपनी जिंदगी के अहम पांच साल इसे बनाने में लगा दिए. वो करीब डेढ़ साल तक खुद जंगल में रही हैं, ताकि हाथियों के बारे में जानकारी एकत्र कर सकें और उनकी भावनाओं को समझ सकें. इस डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग तमिलनाडू के मुदुमलाई नेशनल पार्क में हुई है. इसके लिए कार्तिकी गोंजालवेज साल 2017 में अपनी टीम के साथ वहां पहुंची थी. उसके बाद ऑर्गैनिकली अलग-अलग शॉट और फोटोग्राफ लिए गए. कार्तिकी का मुख्य मकसद था कि वो अपनी फिल्म में पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति और वन्यजीव को खूबसूरती से पेश कर सकें. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने रघु और अम्मू नामक दोनों हाथियों और आदिवासी कपल बोमन और बेली के साथ रहना शुरू कर दिया.

एकेडमी अवॉर्ड में इस साल भारतीय सिनेमा का खाता खुल गया है. एक नहीं दो भारतीय फिल्मों को ऑस्कर अवॉर्ड मिला है. इसमें एसएस राजामौली की फिल्म 'आरआरआर' के गाने 'नाटू-नाटू' को बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला है, जबकि कार्तिकी गोंजाल्विस की डॉक्यूमेंट्री 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का ऑस्कर अवॉर्ड जीता है. 'नाटू-नाटू' सॉन्ग के ऑस्कर जीतने की प्रबल संभावना पहले से ही थी, क्योंकि इस फिल्म को पहले ही कई इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं. लेकिन 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' के ऑस्कर जीतने पर लोग जितने खुश हो रहे हैं, उतने ज्यादा हैरान भी दिख रहे हैं. बहुत से लोगों ने तो पहली बार इसका तब नाम सुना, जब इसे शॉर्टलिस्ट करके ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया था. इसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने इसे नेटफ्लिक्स पर देखा. अब इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की हर तरफ चर्चा है.

'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' महज 39 मिनट की डॉक्यूमेंट्री है, लेकिन इस बनाने में मेकर्स को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी और लंबा समय देना पड़ा है. इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की निर्देशिका कार्तिकी गोंजालवेज ने अपनी जिंदगी के अहम पांच साल इसे बनाने में लगा दिए. वो करीब डेढ़ साल तक खुद जंगल में रही हैं, ताकि हाथियों के बारे में जानकारी एकत्र कर सकें और उनकी भावनाओं को समझ सकें. इस डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग तमिलनाडू के मुदुमलाई नेशनल पार्क में हुई है. इसके लिए कार्तिकी गोंजालवेज साल 2017 में अपनी टीम के साथ वहां पहुंची थी. उसके बाद ऑर्गैनिकली अलग-अलग शॉट और फोटोग्राफ लिए गए. कार्तिकी का मुख्य मकसद था कि वो अपनी फिल्म में पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति और वन्यजीव को खूबसूरती से पेश कर सकें. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने रघु और अम्मू नामक दोनों हाथियों और आदिवासी कपल बोमन और बेली के साथ रहना शुरू कर दिया.

कार्तिकी गोंजाल्विस की डॉक्यूमेंट्री 'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' ने ऑस्कर अवॉर्ड जीत लिया है.

डॉक्यूमेंट्री फिल्म के बारे में निर्देशिका कार्तिकी गोंजालवेज बताती हैं, "वाइल्ड लाइफ पर आधारित ज्यादातर फिल्मों में मनुष्यों और जानवरों के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला जाता है. इस तरह की फिल्मों में ये दिखाया जाता है कि कैसे इंसानों द्वारा जंगल और जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. कैसे जानवार अपने क्षेत्र में मानव के विस्तारवादी नीति से पीड़ित और परेशान हैं, लेकिन दी एलिफेंट व्हिस्परर्स में इंसान और जानवार दोनों की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इसमें हाथियों और आदिवासी लोगों, जो सदियों से उनके साथ रहकर उनकी देखभाल कर रहे हैं, की कहानी दिखाई गई है.'' कार्तिकी के लिए इस डॉक्यूमेंट्री का फोकस मनुष्य और प्रकृति के बीच के बंधन को पेश करना था. ऑस्कर अवॉर्ड मिलने के बाद उन्होंने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ''मैं आज यहां हमारे और हमारी प्राकृतिक दुनिया के बीच के पवित्र बंधन पर बोलने के लिए खड़ी हूं. आदिवासी समुदायों के सम्मान के लिए. अन्य जीवित प्राणियों के प्रति अस्तित्व के लिए और अंत में सह-अस्तित्व के लिए. मैं इसके लिए ऑस्कर को धन्यवाद करना चाहती हूं.''

इस डॉक्यूमेंट्री में कोई लिखित कहानी नहीं है, बल्कि बोमन और बेली के साथ रघु और अम्मू के वास्तविक संबंधों को दिखाया गया है. बोमन और बेली दोनों हाथियों को अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे. उनका देखभाल करते थे. उनका ख्याल रखते थे. दोनों हाथी भी उनको अपना अभिभावक समझ कर उन्हें प्यार करते थे. इसमें किसी तरह कोई ट्रेनिंग दोनों हाथियों या कपल को नहीं दी गई थी. वो जिस तरह से नेचुरल आपस में रहते थे, उनकी फुटेज कार्तिकी की टीम बना लेती थी. कई बार तो उनको पता भी नहीं चलता था कि उनकी वीडियो बनाई जा रही है. रघु जब बोमन परिवार में आया तो महज तीन महीने का था. उस समय वो अपने कुनबे से बिछड़ गया था. इसके बाद नेशनल पार्क के अधिकारियों ने बोमन को बुलाकर उसे रघु को सौंप दिया. रघु के बारे में कार्तिकी कहती हैं, ''मैं जब रघु से मिली तो वो बहुत छोटा था, शायद तीन महीने का था. उसके साथ करीब डेढ़ साल तक रही थी.''

आदिवासी कपल और दोनों हाथियों के संबंधों के बारे में कार्तिकी ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा है, ''बमन, बेली और रघु के बीच मुझे कमाल का फैमिली डायनामिक महसूस हुआ. वो दोनों रघु को अपने बेटे के समान मानकर चल रहे थे. उन चीजों से मुझे स्ट्राइक हुआ कि ये तो कमाल की कहानी है. इसके बाद मैंने कुछ फुटेज कैमरे में शूट किए, तो कुछ फोन में रिकॉर्ड किए थे. मैं बोमन, बेली और रघु की हर सिंगल चीज को बस कैमरे में कैद करती गई.'' कार्तिकी और जंगल रिश्ता बहुत पुराना है. उनकी मां वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर रही हैं. उनकी दादी नेचुरल रिजर्व्स में रही हैं. यही वजह है कि पैदा होने के बाद से उनका जंगलों में आना-जाना रहा है. इस वजह से वो प्रकृति को बहुत अच्छे समझती हैं. उन्होंने लंबे समय तक डिस्कवरी चैनल के लिए फोटो-वीडियोग्राफी काम भी किया है. इसकी वजह से भी उनको प्रकृति के बहुत करीब रहने का लगातार मौका मिला है.

बताते चलें कि 'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' इंडियन-अमेरिकन शॉर्ट फिल्म है, जिसे मूल रूप से तमिल भाषा में बनाया गया है. बाद में इसे अंग्रेजी और हिंदी सहित कई भाषाओं में डब करके ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर पिछले साल 8 दिसंबर को रिलीज किया गया था. इसे डगलस ब्लश, कार्तिकी गोंजाल्विस, गुनीत मोंगा और अचिन जैन ने मिलकर प्रोड्यूस किया है. इसकी सिनेमैटोग्राफी करण थपलियाल, कृष मखीजा, आनंद बंसल और कार्तिकी गोंजाल्विस ने किया है. इसे ऑस्कर से पहले आईडीए डॉक्यूमेंट्री, हॉलीवुड म्यूजिक इन मीडिया अवॉर्ड और डीओसी एनआईसी जैसे इंटरनेशनल अवॉर्ड में भी शॉर्टलिस्ट किया गया था. इस डॉक्यूमेंट्री की एक प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा को साल 2019 में भी ऑस्कर मिल चुका है. उनकी डॉक्यूमेंट्री 'पीरियड. एंड ऑफ सेंटेंस' ने ऑस्कर इसी कैटेगरी में अवॉर्ड जीता था, जिसमें 'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' को अवॉर्ड मिला है.

'दी एलिफेंट व्हिस्परर्स' का ट्रेलर देखिए...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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