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सिनेमा हॉल में जाकर पता चला कि ट्यूबलाइट क्यों नहीं चल रही

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 26 जून, 2017 10:21 PM
  • 26 जून, 2017 10:21 PM
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किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि सलमान खान की ट्यूबलाइफ फ्यूज हो गई है. सलमान फैन होने के नाते सिनेमा हॉल तो पहुंच गया, लेकिन वहां जाकर भरोसा टूट गया.

सलमान खान के एक्शन से लेकर उनकी बॉडी तक हर कोई उनका दीवाना है. मैं भी हूं, वो भी ऐसा-वैसा नहीं बोले तो डाय हार्ड फैन. उनका डांस करने का अलग अंदाज... विलेन को पीटने का स्टाइल. यानी भाई की फिल्म इंटरटेनमेंट का कम्पलीट डोज होती हैं. इसी 'यकीन' के साथ मैं इस बार भी भाई की फिल्म ट्यूबलाइट देखने नोएडा के जीआईपी मॉल के बिग सिनेमा में गया. बावजूद इसके कि सारे रिव्‍यू ट्यूबलाइट को फ्यूज बता रहे थे.

आमतौर पर सलमान जैसे सितारे की फिल्‍म के पहले संडे के लिए तो टिकट एडवांस में ही बुक करा लेना होता है, लेकिन ट्यूबलाइट के साथ ऐसा नहीं था. कुछ आशंका तो लग रही थी, जो सिनेमा हॉल पहुंचते ही सच साबित हो गई. सिनेप्लेक्स में काम करने वाले स्टाफ भी सलमान की बुराई करते नजर आए. फैन होते हुए मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने सहन कर लिया.

खाली सीटें देखकर 'यकीन' हुआ चकनाचूर

फिल्म देखने हॉल में पहुंचा तो मैं दंग रह गया. देखा कि आधी से ज्‍यादा सीटें खाली पड़ी हैं. लेकिन शो शुरू होने में 15 मिनट बचे थे. सोचा थोड़ी देर में हॉल पैक हो जाएगा. लेकिन मेरा ये यकीन भी चकनाचूर हो गया. लगभग 20 लोग होंगे और उनके लिए शो शुरू किया गया. क्योंकि फिल्म का रिव्यू में ही बता दिया था कि फिल्म की स्टोरी काफी स्लो है और बहुत ज्यादा इमोशनल बनाई गई है. पहले ही सुन रखा था कि फिल्म काफी इमोश्नल है. 1962 के भारत-चीन युद्ध पर बनी है. और दो भाईयों के बीच की कहानी है. पोस्‍टर या प्रोमो में भले सलमान को सीधे-सीधे युवक के तौर पर दिखाया गया था, लेकिन मुझे कहीं न कहीं लग रहा था कि फिल्म में वे उसी (जैसे दबंग में चुलबुल पांडे, किक में देवी लाल) एक्शन करते दिखेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

तरण आदर्श का ट्वीट जिसमें उन्होंने सलमान की पिछली फिल्मों से कंपेयर...

सलमान खान के एक्शन से लेकर उनकी बॉडी तक हर कोई उनका दीवाना है. मैं भी हूं, वो भी ऐसा-वैसा नहीं बोले तो डाय हार्ड फैन. उनका डांस करने का अलग अंदाज... विलेन को पीटने का स्टाइल. यानी भाई की फिल्म इंटरटेनमेंट का कम्पलीट डोज होती हैं. इसी 'यकीन' के साथ मैं इस बार भी भाई की फिल्म ट्यूबलाइट देखने नोएडा के जीआईपी मॉल के बिग सिनेमा में गया. बावजूद इसके कि सारे रिव्‍यू ट्यूबलाइट को फ्यूज बता रहे थे.

आमतौर पर सलमान जैसे सितारे की फिल्‍म के पहले संडे के लिए तो टिकट एडवांस में ही बुक करा लेना होता है, लेकिन ट्यूबलाइट के साथ ऐसा नहीं था. कुछ आशंका तो लग रही थी, जो सिनेमा हॉल पहुंचते ही सच साबित हो गई. सिनेप्लेक्स में काम करने वाले स्टाफ भी सलमान की बुराई करते नजर आए. फैन होते हुए मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने सहन कर लिया.

खाली सीटें देखकर 'यकीन' हुआ चकनाचूर

फिल्म देखने हॉल में पहुंचा तो मैं दंग रह गया. देखा कि आधी से ज्‍यादा सीटें खाली पड़ी हैं. लेकिन शो शुरू होने में 15 मिनट बचे थे. सोचा थोड़ी देर में हॉल पैक हो जाएगा. लेकिन मेरा ये यकीन भी चकनाचूर हो गया. लगभग 20 लोग होंगे और उनके लिए शो शुरू किया गया. क्योंकि फिल्म का रिव्यू में ही बता दिया था कि फिल्म की स्टोरी काफी स्लो है और बहुत ज्यादा इमोशनल बनाई गई है. पहले ही सुन रखा था कि फिल्म काफी इमोश्नल है. 1962 के भारत-चीन युद्ध पर बनी है. और दो भाईयों के बीच की कहानी है. पोस्‍टर या प्रोमो में भले सलमान को सीधे-सीधे युवक के तौर पर दिखाया गया था, लेकिन मुझे कहीं न कहीं लग रहा था कि फिल्म में वे उसी (जैसे दबंग में चुलबुल पांडे, किक में देवी लाल) एक्शन करते दिखेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

तरण आदर्श का ट्वीट जिसमें उन्होंने सलमान की पिछली फिल्मों से कंपेयर किया.

जहां ईद पर सलमान की फिल्म पहले वीकेंड में ही करोड़ों पार कर जाती है वहीं ट्यूबलाइट पहले वीकेंड में शुक्रवार को 21 करोड़ और शनिवार को भी 64 करोड़ की ही कमाई कर पाई.

फिल्म के पहले पार्ट में डायरेक्टर से हुई बड़ी चूक.

डायरेक्टर ने 'सलमान-फैक्‍टर' को नजरअंदाज किया

फिल्म में सलमान खान (लक्ष्मण) और सोहेल खान (भरत) का भाईचारा देखने को मिला. ये शुरुआत अच्छी लगी, क्‍योंकि दोनों असल जिंदगी में भी भाई हैं. शाहरुख की स्पेशल एन्ट्री ने तो कमाल ही कर दिया. लेकिन इन सब अच्‍छी बातों के बावजूद फिल्‍म ने दम नहीं पकड़ा. सलमान ने एक नासमझ युवक का किरदार निभाया है. जिसके कारण सभी लोग ट्यूबलाइट (कम समझने वाला) बुला रहे हैं. और सलमान का ये किरदार शुरू से आखिर तक एक जैसा ही चला है.

कबीर खान एक मंझे हुए निर्देशक हैं, लेकिन ट्यूबलाइट में लगता है कि उनकी बत्‍ती नहीं जली. सलमान के फैन अपने सुपरस्‍टार का जलवा देखने ही सिनेमा हॉल में जाते हैं. वे 'तेरे नाम' वाला छिछोरा किरदार भी पचा लेते हैं, यदि सलमान ने फिल्‍म के दूसरे हॉफ में कमाल का संवेदनशील रोल निभाया हो तो. सलमान खान अपनी सबसे हिट फिल्‍मों में से एक 'दबंग' में अरबाज खान को बार-बार मंदबुद्धि कहते हैं. फिल्‍म में पंच वहां से आता है, जब वे आखिर में अपने छोटे भाई की मदद करते हैं. लेकिन ट्यूबलाइट में इसका उलटा है. फिल्‍म में सोहेल हर तरीके से सलमान की मदद करते हैं. हमेशा उनके साथ रहते हैं. एक फैन के बतौर आखिर तक मैं इसी इंतजार में रहा कि वे कुछ तो कमाल करेंगे और अपने भाई को चीन की कैद से आजाद करा लाएंगे. लेकिन, जब ऐसा स्क्रिप्‍ट में था ही नहीं तो होता कैसे. कबीर खान ने हॉलीवुड फिल्म लिटिल बॉय को भले कॉपी किया हो लेकिन वे उसमें सलमान वाला मसाला डालना भूल गए.

फिल्म में सलमान की इतनी पिटाई हजम नहीं हुई.

सलमान की पिटाई नहीं हुई हजम

उसके बाद सलमान के साथ पूरी फिल्‍म में जो हुआ, वो कोई फैन नहीं देख सकता. देखा कि सलमान को नारायण (तनू वेड्स मनू वाले चिंटू जी) छोटी से छोटी बात पर थप्पड़ मार रहे हैं. नारायण ने इस पूरी फिल्म में सलमान को इतने थप्पड़ जड़े होंगे शायद ही सलमान ने अपने करिअर में नहीं खाए होंगे. पिछली फिल्मों की बात करें तो सलमान पर कोई हाथ भी उठा दे तो उसका बचना मुश्किल ही नहीं नामुकिन हो जाता था. वो छेद-वेद करने की बात करने लग जाते थे. फिल्म की चीनी एक्ट्रेस जू-जू और बाल कलाकार माटिन (गुओ) की बात भी की जाना जरूरी है. ये बच्‍चा सलमान का दोस्‍त है, जिसे नारायण चीनी समझकर मारने दौड़ता है. यहां लगा कि सलमान जोश में आ जाएंगे और वे सारा हिसाब बराबर कर देंगे. लेकिन फिल्‍म में यहां भी ढीलापन बरकरार रहा. भाई फिर पिट गए. पता नहीं, क्‍या सोचकर यह सलमान का यह किरदार बनाया गया.

फिल्म को इतना खींचा गया कि ऑडियंस बोर हो गई.

फिल्म को इतना खींचने की क्या जरूरत

जिसके बाद सलमान खान फिल्‍म में शाहरुख जैसा जादू करने की कोशिश करते हैं. उसी समय धरती हिलने लगती है. लेकिन बाद में पता चलता है कि कोई जादू वादू नहीं था, उसी वक्त भूकंप आया था. लेकिन गांव में सलमान को इज्जत मिलना शुरू हो जाती है. लगता है कि जैसे अब सलमान कुछ हीरो के रोल में आएंगे, तभी बताया जाता है कि उनका भाई सुहैल (भरत) शहीद हो चुका है. विलाप, अस्थि-विसर्जन सब बता दिया. फिल्म इतनी धीमी हो जाती है कि हॉल में मौजदू कुछ लोग तो मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देते हैं. मुझे भी लगा कि फिल्म बस खत्म ही होने वाली है. महान फिल्म बनाने के चक्कर में कबीर खान से बड़ी चूक हो गई है. भाई को मार दिया. हिरोइन और बच्‍चे को दूसरे शहर भेज दिया. आखिर कबीर खान करना क्‍या चाहते थे.

लोगों को लगा कि खत्म हो गई मूवी. लेकिन फिल्म आधे घंटे और चली.

जब ऑडियंस को बीच में ही लगा कि फिल्म खत्म हो गई

सुहेल की मौत की खबर वाले सीन के बाद तो सिनेमा हॉल के भीतर अजीब ही सीन सामने आया. कुछ लोग सीट छोड़कर जाने लगे. ये मानकर कि फिल्म में भरत की एन्ट्री अब नहीं होगी और सलमान अब अकेला ही रहेगा. जो हॉल से चले गए उनका तो नहीं कह सकता, ल‍ेकिन मुझे पूरा यकीन था. सलमान की फिल्‍म में ऐसा अन्‍याय नहीं हो सकता. मैं बैठा रहा. तभी देखा कि गांव में आर्मी का मेजर आता है और बताता है कि उसका भाई भरत अभी भी जिंदा है. इतना देखकर मुझे उन लोगों के लिए दुख हुआ जो इसी गम में सोएंगे कि भरत मर चुका है और लक्ष्मण हमेशा के लिए अकेला पड़ गया. जिसके बाद हमेशा की तरह बॉलीवुड जैसी एन्डिंग होती है. लक्ष्मण भरत से मिल जाता है और फिर साथ में रहने लगते हैं.

लेकिन, यह दुनिया का सबसे बकवास भरत-मिलाप था. सलमान बॉलीवुड के सूरज हैं, उनको ट्यूबलाइट जैसा किरदार अपने आप में बड़ी रिस्‍क है. और उसके बाद यदि फिल्‍म की कहानी में आगे कोई स्‍पार्क न हो तो बॉक्‍स ऑफिस पर अंधेरा होना ही है. सलमान खान पूरे फिल्‍म में रोते रहे हैं, लेकिन इस फिल्‍म को देखकर निकले मेरी तरह कई लोग गुस्‍से में हैं.

खैर, उम्मीद अभी बाकी है, क्‍योंकि 'टाइगर अभी जिंदा' है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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