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Tandav Controversy: 'सुप्रीम कमेंट' के बाद पोर्नोग्राफी पर नई बहस शुरू

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 05 मार्च, 2021 12:45 PM
  • 05 मार्च, 2021 12:45 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्में देखने का ट्रेडिशनल तरीका अब पुराना हो चुका है. लोगों का इंटरनेट पर फिल्में देखना अब कॉमन है. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट प्रसारित किया जा रहा है. इसकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए क्योंकि कुछ प्लेटफॉर्म्स पर तो पोर्नोग्राफी भी दिखाई जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की तरह उसके कमेंट्स भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. अक्सर कई केसेज में ऐसा देखा गया है कि फैसले से ज्यादा कोर्ट के कमेंट पर चर्चा हुई है. उस पर बहस हुई है. एक तरफ फैसले नजीर बने, तो दूसरी तरफ कमेंट बहस का विषय. इस बार सुप्रीम कोर्ट ने तांडव वेब सीरीज विवाद पर सुनवाई के दौरान ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाए जाने वाले कंटेंट पर ऐसा कमेंट किया, जिसके बाद एक नई बहस शुरू हो गई है. कोर्ट ने साफ कहा कि कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर पोर्नोग्राफी दिखाई जा रही है. यहां दिखाए जाने वाले हर कंटेंट की सख्त स्क्रीनिंग होनी चाहिए.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट अमेजन की क्रिएटिव हेड अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहा था. वेब सीरीज तांडव पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मेकर्स, राइटर, डायरेक्टर और एक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. गिरफ्तारी से बचने के लिए अपर्णा पुरोहित, निर्माता हिमांशु कृष्ण मेहरा, लेखक गौरव सोलंकी और एक्टर जीशान अयूब सुप्रीम कोर्ट की शरण में है. इलाहाबाद हाईकोर्ट अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत अर्जी पहले ही खारिज कर चुका है. इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है.

सैफ अली खान की वेब सीरीज तांडव पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप है.

अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनाई आगामी शुक्रवार को टालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्में देखने का ट्रेडिशनल तरीका अब पुराना हो चुका है. लोगों का इंटरनेट पर फिल्में देखना अब कॉमन है. कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट प्रसारित किया जा रहा है. इसकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए क्योंकि कुछ प्लेटफॉर्म्स पर तो पोर्नोग्राफी भी दिखाई जा रही है. संतुलन बनाने की जरूरत है. इतना ही नहीं कोर्ट ने...

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की तरह उसके कमेंट्स भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. अक्सर कई केसेज में ऐसा देखा गया है कि फैसले से ज्यादा कोर्ट के कमेंट पर चर्चा हुई है. उस पर बहस हुई है. एक तरफ फैसले नजीर बने, तो दूसरी तरफ कमेंट बहस का विषय. इस बार सुप्रीम कोर्ट ने तांडव वेब सीरीज विवाद पर सुनवाई के दौरान ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाए जाने वाले कंटेंट पर ऐसा कमेंट किया, जिसके बाद एक नई बहस शुरू हो गई है. कोर्ट ने साफ कहा कि कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर पोर्नोग्राफी दिखाई जा रही है. यहां दिखाए जाने वाले हर कंटेंट की सख्त स्क्रीनिंग होनी चाहिए.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट अमेजन की क्रिएटिव हेड अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहा था. वेब सीरीज तांडव पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मेकर्स, राइटर, डायरेक्टर और एक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. गिरफ्तारी से बचने के लिए अपर्णा पुरोहित, निर्माता हिमांशु कृष्ण मेहरा, लेखक गौरव सोलंकी और एक्टर जीशान अयूब सुप्रीम कोर्ट की शरण में है. इलाहाबाद हाईकोर्ट अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत अर्जी पहले ही खारिज कर चुका है. इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है.

सैफ अली खान की वेब सीरीज तांडव पर हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप है.

अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनाई आगामी शुक्रवार को टालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्में देखने का ट्रेडिशनल तरीका अब पुराना हो चुका है. लोगों का इंटरनेट पर फिल्में देखना अब कॉमन है. कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट प्रसारित किया जा रहा है. इसकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए क्योंकि कुछ प्लेटफॉर्म्स पर तो पोर्नोग्राफी भी दिखाई जा रही है. संतुलन बनाने की जरूरत है. इतना ही नहीं कोर्ट ने केंद्र सरकार से सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करने के लिए बनी नई गाइडलाइन भी सौंपने को कहा है. कोर्ट के कमेंट के साथ ही पोर्नोग्राफी पर बहस शुरू हो गई.

दो दल: एक सेंसरशिप समर्थक, दूसरा विरोधी

दो दल बन चुके हैं. एक दल आक्रामक है. दूसरा बचाव की मुद्रा में अपनी बात रख रहा है. बिना किसी सेंसरशिप के दिखाए जा रहे कंटेंट से खिन्न पहले दल को लगता है कि इससे भारतीय संस्कृति और समाज का नुकसान हो रहा है. वे परंपरा, जीवन मूल्य, संस्कार, संबंध और धार्मिक आस्था का तर्क देते हुए चाहते हैं कि इन पर पाबंदी लगाई जाए. दूसरा दल क्रिएटिव आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष रखता है. वह दलील भी देता है कि उसकी ये स्वतंत्रता बनाई रखी जानी चाहिए. उनका कहना है कि इंटरनेट पर हर तरह का अश्लील और हिंसक कंटेंट तो पहले से ही मौजूद है, जिसे देखना हो वह आसानी से देख सकता है. उनका आरोप है कि समाज के कुछ नैतिक 'पहरु' ओटीटी प्लेटफार्म को दूरदर्शन बनाने पर आमादा हैं.

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एडल्ट कंटेंट की खपत

नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी के निर्देशन में आई 'सेक्रेड गेम्स' के जरिए लोग ओटीटी प्लेटफॉर्म से परिचित हुए थे. इसके बाद लॉकडाउन ने ओटीटी प्लेटफॉर्म का चलन तेजी से बढ़ा दिया. इस दौरान करीब 1.2 करोड़ लोगों ने वेब सीरीज देखने के लिए लॉग इन किया. भारत दुनिया में इस समय सर्वाधिक प्रति मोबाइल डेटा यूज करने वाला देश है. वर्तमान में औसतन 9.8 जीबी डेटा प्रतिमाह उपयोग किया जा रहा है जिसके वर्ष 2024 तक 18 जीबी तक पहुंचने की संभावना है. इस वक्त ओटीटी पर सबसे ज्यादा एडल्ट कंटेंट की खपत हो रही है. पिछले साल एक एडल्ट कॉमेडी शो के लिए सर्वाधिक स्ट्रीमिंग एक दिन में MAX प्लेयर पर की गई. एक दिन नें करीब 1.1 करोड़ लोगों ने देखा. सबसे ज्यादा एडल्ट कंटेंट परोसने वाली अल्ट बालाजी की व्युअरशिप में पिछले साल की तुलना में 60 फीसदी इजाफा हुआ है. उसके मंथली एक्टिव यूजर्स भी 21 फीसदी बढ़े हैं.

ऐसे रचे जा रहे हैं हिंसा और सेक्स के दृश्य

ये आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि तमाम विरोध के बीच ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट की खपत ज्यादा हो रही है. यही वजह है कि मेकर्स इस तरह के वेब सीरीज ज्यादा बना रहे हैं. हिट होने और व्युअरशिप बढ़ाने के इस अंध दौड़ में गालियों के छिड़काव के साथ हिंसा और सेक्स के दृश्य रचे जा रहे हैं. जबरन गालियां ठूंसी जा रही है. उत्तेजक दृश्य दिखाए जा रहे हैं. वेब सीरीज़ की दुनिया में क्रांति तो हो रही है, लेकिन यह क्रांति कंटेंट की कम सेक्स की ज़्यादा हो रही है. दर्शकों को सॉफ्ट पोर्न दिखा कर उसका मानसिक स्खलन किया जा रहा है. 'मिर्ज़ापुर', 'इनसाइड ऐज', 'गंदी बात', 'कौशिकी' और ‘बारकोड’ जैसे वेब सीरीज इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. इनके कुछ एपिसोड देख लीजिए, उन्हें देखते हुए आपको लगेगा कि यह सब तो नहीं आना चाहिए.

'बड़ी शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी आती है'

हॉलीवुड फिल्म 'स्पाइडर मैन' का एक डायलॉग है, 'बड़ी शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी आती है'. ये भी सही है कि दर्शक पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं. वे पूरी दुनिया के शो देख रहे हैं. इसलिए ओटीटी प्लेटफार्म का दुरुपयोग करने की बजाए उसकी खूबियों का फायदा उठाया जाना चाहिए. 'जरूरत' और 'जबरदस्ती' में बहुत बड़ा अंतर है. जहां जिस तरह के संवाद और दृश्य की जरूरत है, उसे जरूर दिखाया जाना चाहिए, जैसे यौनिकता, समानता या शादी में आप वास्तविकता दिखाते हैं तो दर्शक ज़रूर देखेंगे. लेकिन जबरदस्ती ठूंसे गए दृश्य और संवाद प्रभावहीन होते हैं. दर्शकों में अरुचि पैदा करते हैं. इसलिए सेंसरशिप की जगह सेल्फ-रेगुलेशन ज्यादा सही होगा. इससे क्रिएटिव आजादी के साथ ही ओरिजनल कंटेंट पेश करने में आसानी रहेगी.

सेल्फ रेगुलेशन का 'कोड ऑफ एथिक्स'

केंद्र सरकार की नई गाइड लाइन में भी ओटीटी प्लेटफॉर्म के सेल्फ रेगुलेशन की बात कही गई है. उसके लिए कोड ऑफ एथिक्स बनाया गया है. इसका पालन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया कंपनियों को करना होगा. कंटेंट को पांच कैटेगरी में बांटना होगा. उसे हर कैटेगरी के कंटेंट पर दिखाना होगा कि वह किस उम्र वाले लोगों के लिए है. हालांकि, अमेजन प्राइम वीडियो, डिज्नी हॉटस्टार सहित ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स ने यह नियम पहले से ही लागू कर रखा है. दर्शक को पता होता है कि वह किस तरह का कंटेंट देखने जा रहे हैं. यदि किसी दर्शक को ओटीटी प्लेटफॉर्म से शिकायत है, तो उसकी तीन स्तरों पर सुनवाई की जाएगी. शिकायतों के लिए तीन-स्तरीय व्यवस्था से अब सिर्फ सीरियस कंपनियां ही इस क्षेत्र में रह सकेंगी.

क्या है तांडव विवाद की वजह?

14 जनवरी को अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'तांडव' में बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान, जीशान अयूब, गौहर खान मुख्य भूमिकाओं में हैं. इसका डायरेक्शन अली अब्बास जफर ने किया है. फिल्म में एक प्ले के दौरान जीशान अयूब ने भगवान शिव की भूमिका निभाई है. एक दृश्य में वह मजाक करते और गाली देते हुए नजर आ रहे हैं. यह सीन देखने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने अपना आक्रोश जाहिर किया. देश भर में कई जगह मेकर्स के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है. आरोप है कि वेब सीरीज में जातियों को छोटा बड़ा दिखाकर उनमें विभाजन करने की कोशिश की गई है. इतना ही नहीं वेब सीरिज में महिलाओं को अपमानित करने वाले दृश्य भी हैं. प्रधानमंत्री जैसे गरिमामय पद को ग्रहण करने वाले व्यक्ति का चित्रण भी बेहद अशोभनीय ढंग से किया गया है. वेब सीरीज शासकीय व्यवस्था को भी क्षति पहुंचा रही है.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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