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Shiv Shastri Balboa Public Review: जानिए कैसी है अनुपम खेर और नीना गुप्ता की फिल्म?

    • आईचौक
    • Updated: 12 फरवरी, 2023 04:42 PM
  • 12 फरवरी, 2023 04:42 PM
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Shiv Shastri Balboa Movie Public Review in Hindi: अनुपम खेर और नीना गुप्ता की फिल्म 'शिव शास्त्री बलबोआ' को सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है. बिना किसी बड़े सितारे के बनी ये फिल्म लोगों को बहुत पसंद आ रही है. इसकी कहानी और इसमें काम करने वाले कलाकारों की एक्टिंग ने लोगों का दिल जीत लिया है.

पिछले कुछ वर्षों से हिंदी सिनेमा के कंटेंट में तेजी से बदलाव आया है. एक वक्त केवल रोमांटिक और एक्शन फिल्मे बनाने वाले बॉलीवुड में अब कई सामाजिक विषयों पर भी फिल्में बनने लगी हैं. इस कड़ी में सीनियर सिटीजन की जिंदगी पर भी कई फिल्में बनाई जा चुकी हैं. 'सारांश', 'आंखों देखी', 'पीकू', 'मुक्ति भवन', 'चीनी कम', 'पा', '102 नॉटआउट' और 'ऊंचाई' जैसी फिल्में इसकी प्रमुख उदाहरण हैं. इन फिल्मों में बुजुर्गों के जीवन से जुड़ी अलग-अलग कहानियां दिखाई गई हैं. इस फेहरिस्त में एक नई फिल्म 'शिव शास्त्री बलबोआ' 10 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. अजय वेणुगोपालन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अनुपम खेर, नीना गुप्ता, शारिब हाशमी, जुगल हंसराज और नरगिस फाखरी अहम किरदारों में हैं.

"आज से पहले मैं सिर्फ जिंदा था अब मैं जिंदगी जीने लगा हूं"...फिल्म 'शिव शास्त्री बलबोआ' का ये डायलॉग इसकी कहानी का सार बता रहा है. इस फिल्म के जरिए अजय वेणुगोपालन ने ये बताने की कोशिश की है जिंदगी कभी खत्म नहीं होती है. हमें जब भी लगता है कि सबकुछ खत्म हो गया, तो समझिए कि वहां से एक नई शुरूआत होने वाली है. जरूर बस एक नजरिए की होती है. मायने ये रखता है कि हम अपनी जिंदगी को किस नजरिए से देखते हैं. कैसे खुद को री-डिस्कवर करते हैं. इतना ही नहीं इसमें अकेलेपन, रंगभेद, सांस्कृतिक बिखराव, विदेशों में घरेलू सहायकों की स्थिति और उम्र के उत्तरार्ध में समाज के बनाए नियमों के मुताबिक जीवन जीने का दबाव, जैसे कई अहम मुद्दों को बहुत बारीकी से पेश किया गया है.

एक वक्त था जब फिल्में स्टार पावर की वजह से चलती थी. कोई सपने भी नहीं सोच सकता था कि चरित्र अभिनेता कभी लीड रोल कर सकता है. लेकिन बदलते वक्त के साथ सिनेमा बदला है, तो फिल्म मेकर्स की सोच भी बदली है. यही वजह है कि इस फिल्म में अनुपम खेर और...

पिछले कुछ वर्षों से हिंदी सिनेमा के कंटेंट में तेजी से बदलाव आया है. एक वक्त केवल रोमांटिक और एक्शन फिल्मे बनाने वाले बॉलीवुड में अब कई सामाजिक विषयों पर भी फिल्में बनने लगी हैं. इस कड़ी में सीनियर सिटीजन की जिंदगी पर भी कई फिल्में बनाई जा चुकी हैं. 'सारांश', 'आंखों देखी', 'पीकू', 'मुक्ति भवन', 'चीनी कम', 'पा', '102 नॉटआउट' और 'ऊंचाई' जैसी फिल्में इसकी प्रमुख उदाहरण हैं. इन फिल्मों में बुजुर्गों के जीवन से जुड़ी अलग-अलग कहानियां दिखाई गई हैं. इस फेहरिस्त में एक नई फिल्म 'शिव शास्त्री बलबोआ' 10 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. अजय वेणुगोपालन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अनुपम खेर, नीना गुप्ता, शारिब हाशमी, जुगल हंसराज और नरगिस फाखरी अहम किरदारों में हैं.

"आज से पहले मैं सिर्फ जिंदा था अब मैं जिंदगी जीने लगा हूं"...फिल्म 'शिव शास्त्री बलबोआ' का ये डायलॉग इसकी कहानी का सार बता रहा है. इस फिल्म के जरिए अजय वेणुगोपालन ने ये बताने की कोशिश की है जिंदगी कभी खत्म नहीं होती है. हमें जब भी लगता है कि सबकुछ खत्म हो गया, तो समझिए कि वहां से एक नई शुरूआत होने वाली है. जरूर बस एक नजरिए की होती है. मायने ये रखता है कि हम अपनी जिंदगी को किस नजरिए से देखते हैं. कैसे खुद को री-डिस्कवर करते हैं. इतना ही नहीं इसमें अकेलेपन, रंगभेद, सांस्कृतिक बिखराव, विदेशों में घरेलू सहायकों की स्थिति और उम्र के उत्तरार्ध में समाज के बनाए नियमों के मुताबिक जीवन जीने का दबाव, जैसे कई अहम मुद्दों को बहुत बारीकी से पेश किया गया है.

एक वक्त था जब फिल्में स्टार पावर की वजह से चलती थी. कोई सपने भी नहीं सोच सकता था कि चरित्र अभिनेता कभी लीड रोल कर सकता है. लेकिन बदलते वक्त के साथ सिनेमा बदला है, तो फिल्म मेकर्स की सोच भी बदली है. यही वजह है कि इस फिल्म में अनुपम खेर और नीना गुप्ता को लीड रोल में लिया गया है. उससे भी बड़ी बात इस फिल्म को ओटीटी की बजाए सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है. अनुपम खेर और नीना गुप्ता ने भी फिल्म के मेकर्स के साथ दर्शकों को निराश नहीं किया है. अपनी दमदार अदाकारी के जरिए उन्होंने फिल्म की बेहतरीन कहानी में चार चांद लगा दिए हैं. अनुपम खेर ने साबित कर दिया है कि वो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. फिल्म में किरदार जैसा भी हो वो उसमें जान डालने का मादा रखते हैं.

फिल्म समीक्षक और दर्शक 'शिव शास्त्री बलबोआ' की तारीफ कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि निर्देशक अजय वेणुगोपालन ने एक बहुत ही गंभीर विषय को बहुत हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया है, ताकि लोगों को बोझिल भी ना लगे और मैसेज भी मिल जाए. ट्विटर पर एक यूजर मोनिका रावल ने लिखा है, ''मैं शिव शास्त्री बलबोआ फिल्म देख ली है. ये आत्म-प्रेम के बारे में बहुत खूबसूरत और मासूम फिल्म है. अनुपम खेर और नीना गुप्ता जैसे बेहतरीन अभिनेताओं को ऑनस्क्रीन देखना हमेशा सुखद होता है. वे हर चीज को इतना सहज बना देते हैं कि लोगों को देखकर आनंद आ जाता है. शारिब हाशमी भी बहुत प्यारे लगे हैं.'' अक्षय राठी लिखते हैं, ''ये एक ऐसी फिल्में हैं जो आपको हंसाती हैं, सोचने पर मजबूर करती है और फिर रुलाती है. इसके बाद आत्मनिरीक्षण करने के लिए बाध्य करती है. इसे सिनेमाघरों में जाकर जरूर देखें, यकीन कीजिए कि ये फिल्म आपके चेहरे पर मुस्कान लाकर दम लेगी.''

एनबीटी के लिए रेखा खान ने लिखा है, ''निर्देशक अजय वेणुगोपालन एक फीलगुड फिल्म के साथ आए हैं, जो एक उम्मीद देती है. इसमें दिखाया गया है कि जिंदगी हर हाल में खूबसूरत है और जब भी हम सोचते हैं जीवन में अब कुछ बचा नहीं है, तब हम एक बार फिर अपनी जिजीविषा से खुद को री डिस्कवर कर सकते हैं. फिल्म का पेस थोड़ा धीमा है, मंथर गति से आगे बढ़ने वाली यह फिल्म धीरे-धीरे किरदारों को डेवलप करती है और एक मजेदार दुनिया में ले जाती है, जहां जीवन की कुसंगतियां भी हैं, तो मानवीय संवेदानाओं का ताना-बाना भी है. अनुपम खेर हर तरह से उत्कृष्ट साबित हुए हैं. किरदारों को अपनी विशिष्ट शैली में जीने का अंदाज उनके किरदार को मजेदार बनाता है. नीना गुप्ता के साथ उनकी केमेस्ट्री काफी इनोसेंट है. सिनमोन सिंह के रूप में शारिब हाशमी खूब मजे करवाते हैं. वे अपने समर्थ अभिनेता होने का परिचय देते हैं. पारिवारिक और मनोरंजक फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं.''

जागरण में अपनी समीक्षा में प्रियंका सिंह ने लिखा है, ''एक उम्र पार करने के बाद जिंदगी खत्म नहीं होती है. एक नई इनिंग की शुरुआत होती है. इस जज्बे के आसपास निर्देशक अजयन वेणुगोपालन अपनी पहली हिंदी फिल्म शिव शास्त्री बाल्बोआ लेकर आए हैं. इस कहानी तो जबरदस्त है ही, सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है. अनुपम खेर अभिनय में माहिर हैं. फिल्म की जिम्मेदारी बखूबी अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. उम्र से जुड़ी बीमारी के साथ, अंदर राकी की फिलॉसफी लिए, वह उम्र की सीमा को तोड़ते हैं. इसमें उनका साथ नीना गुप्ता देती हैं. विदेश में कम पैसों में काम कर रही घरेलू सहायक के दर्द और घर लौटने की चाह को वह महसूस करवाती हैं. लंबे समय बाद जुगल हंसराज को पर्दे पर देखना दिलचस्प है. एक सुलझे हुए बेटे की भूमिका में जंचते हैं. शारिब हाशमी अपनी कामिक टाइमिंग से हंसाते हैं. नरगिस के पात्र पर खास मेहनत नहीं की गई है, ऐसे में वह सीमित दायरे में प्रयास करती हैं.''

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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