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अखबारी रिपोर्टिंग पर भी तंज़ कसती है हिरानी की 'संजू'

    • मनीष जैसल
    • Updated: 30 जून, 2018 06:34 PM
  • 30 जून, 2018 06:34 PM
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राजकुमार हिरानी की फिल्म संजू देखते हुए महसूस होता है कि इसके जरिये निर्देशक ने संजय दत्त की इमेग बिल्डिंग का काम किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि संजय के बुरे दिनों को मीडिया ने खूब मिर्च मसाला लगाकर परोसा था.

फिल्म ‘संजू’ आज कई सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है. फिल्म को संजय दत्त की इमेज मेकिंग टूल्स के तौर पर भी देखा जा रहा है. राजकुमार हिरानी निर्देशित फिल्म ‘संजू’कहने को तो ऑटोबायोग्राफी है लेकिन उसके साथ कई लक्ष्यों को एक साथ साधती हुई दिखती है. संजय दत्त, सुनील दत्त, नर्गिस, अंजु, प्रिया और संजय के इर्द गिर्द रहने वाले दोस्तों और तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक सम्बन्धों पर संजू एक साथ आगे बढ़ती है. फिल्म में संजय दत्त का बचपन तो स्थापित नहीं किया गया लेकिन संजय कैसे ड्रग्स का शिकार हुए फिर अराजक माहौल में कैसे संजय की ज़िंदगी लिपट जाती है फिल्म बखूबी दिखाती है. पारिवारिक और पर्सनल ज़िंदगी को लेकर संजय कितना सफल हुए यह भी फिल्म आसानी से बता देती है.

फिल्म संजू में sanjay दत्त की जिंदगी से जुड़े कई अनछुए पहलुओं को छुआ गया है

 

राजकुमार हिरानी संजय दत्त को लेकर अब तक तीन फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं. मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई के साथ आज ही प्रदर्शित हुई फिल्म संजू में हिरानी संजय दत्त की सकारात्मक छवि का निर्माण कर रहे हैं. कई जानकार मानते हैं कि लगे रहो मुन्ना भाई फिल्म ने कहीं न कहीं संजय दत्त के केस की न्यायिक प्रक्रिया में भी महती भूमिका निभाई थी. संजय दत्त द्वारा फिल्म में गांधीवादी विचारों की तरफ झुकाव से काफी दर्शकों के मन में संजय के प्रति एक अलग छवि बन सकी थी.

मनोरंजन के साथ सामाजिक मुद्दों को लेकर फिल्में बनाने वाले हिरानी ने फिल्मों के प्रभाव को काफी गहनता से समझा है. हम देखते हैं कि किस तरह मुंबई हमले के बाद देश भर की मीडिया ने रिपोर्टिंग से संजय दत्त के खिलाफ छापा था. उन्हीं में से एक अख़बारी रिपोर्टिंग को लेकर राजकुमार संजय दत्त की यात्रा को फिल्म के दूसरे भाग में खड़ा करते हैं....

फिल्म ‘संजू’ आज कई सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है. फिल्म को संजय दत्त की इमेज मेकिंग टूल्स के तौर पर भी देखा जा रहा है. राजकुमार हिरानी निर्देशित फिल्म ‘संजू’कहने को तो ऑटोबायोग्राफी है लेकिन उसके साथ कई लक्ष्यों को एक साथ साधती हुई दिखती है. संजय दत्त, सुनील दत्त, नर्गिस, अंजु, प्रिया और संजय के इर्द गिर्द रहने वाले दोस्तों और तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक सम्बन्धों पर संजू एक साथ आगे बढ़ती है. फिल्म में संजय दत्त का बचपन तो स्थापित नहीं किया गया लेकिन संजय कैसे ड्रग्स का शिकार हुए फिर अराजक माहौल में कैसे संजय की ज़िंदगी लिपट जाती है फिल्म बखूबी दिखाती है. पारिवारिक और पर्सनल ज़िंदगी को लेकर संजय कितना सफल हुए यह भी फिल्म आसानी से बता देती है.

फिल्म संजू में sanjay दत्त की जिंदगी से जुड़े कई अनछुए पहलुओं को छुआ गया है

 

राजकुमार हिरानी संजय दत्त को लेकर अब तक तीन फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं. मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई के साथ आज ही प्रदर्शित हुई फिल्म संजू में हिरानी संजय दत्त की सकारात्मक छवि का निर्माण कर रहे हैं. कई जानकार मानते हैं कि लगे रहो मुन्ना भाई फिल्म ने कहीं न कहीं संजय दत्त के केस की न्यायिक प्रक्रिया में भी महती भूमिका निभाई थी. संजय दत्त द्वारा फिल्म में गांधीवादी विचारों की तरफ झुकाव से काफी दर्शकों के मन में संजय के प्रति एक अलग छवि बन सकी थी.

मनोरंजन के साथ सामाजिक मुद्दों को लेकर फिल्में बनाने वाले हिरानी ने फिल्मों के प्रभाव को काफी गहनता से समझा है. हम देखते हैं कि किस तरह मुंबई हमले के बाद देश भर की मीडिया ने रिपोर्टिंग से संजय दत्त के खिलाफ छापा था. उन्हीं में से एक अख़बारी रिपोर्टिंग को लेकर राजकुमार संजय दत्त की यात्रा को फिल्म के दूसरे भाग में खड़ा करते हैं. यहीं यात्रा संजय के दोस्त का भरोसा भी बढ़ाती हैं. क्योकि वह भी उसी अख़बारी रिपोर्टिंग के जाल में फंस अपने दोस्त से दूर हो चुका था.

फिल्म एक सशक्त और विशाल माध्यम है ऐसे में संजय दत्त की पुरानी ज़िंदगी पर से धूल को सिर्फ साफ करते हुए ही नहीं बल्कि उसी धूल में शामिल कई राज को राजकुमार हिरानी दिखाते हैं. संजय दत्त के जीवन में आए उतार चढ़ाव में सबसे अहम उनका पारिवारिक जीवन ही रहा. फिल्म में उसे ध्यान से रखा गया.

फिल्म में निर्देशक की समझदारी को देखकर लग रहा है कि वो फिल्म के साथ न्याय करने में कामयाब हुए

 

विवादित मुद्दों को हिरानी सिर्फ नाम मात्र और जरूरी तौर पर ही प्रयोग में लाए. चाहते तो बाबरी मस्जिद और मुंबई बम धमाकों के दृश्यों से दर्शकों में एक अलग पहचान बना सकते थे. यही हिरानी की पहचान है जिसमें वें फिल्म में क्या और कितना जरूरी है उस पर ध्यान देते हैं. फिल्म का संगीत पक्ष उतना मजबूत तो नहीं पर जितना है वह फिल्म देख रहे दर्शकों के अनुसार ठीक है. फिल्मों में गीतों के न होने से दर्शकों के मन में अजीब सी अकुलाहट होती है जिसको निर्देशक दूर करते हैं.

फिल्म की कास्टिंग पर काफी बारीकी से ध्यान दिया गया हैं. रणवीर कपूर संजय दत्त के काफी करीब लगते हैं वहीं परेश रावल सुनील दत्त के किरदार में एकदम फिट. नर्गिस की यादों में दर्शकों को खो जाने पर मनीषा कोइराला मजबूर करती हैं. पत्नी मान्यता के किरदार में दिया मिर्जा फबती हैं.

अनुष्का शर्मा द्वारा निभाया गया लेखिका का किरदार उन्हें भविष्य में ऐसे किरदार करने पर मजबूर करेगा. संजू के दोस्त कमलेश कापसी बने विक्की कौशल दर्शकों को खूब हसाते हैं लेखक ने संवादों से दर्शकों का खूब मनोरंजन भी किया है जिससे उनके मन में बनी संजय दत्त की खलनायक वाली छवि दूर होती है.

फिल्म के हर एक किरदार ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से फिल्म में जान फूंकी है

पूरा का पूरा परिदृश्य तत्कालीन समय के साथ समझे तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि संजय दत्त की निजी ज़िंदगी में मीडिया माध्यमों का बड़ा हस्तक्षेप रहा है. वह भले ही चर्चा के केंद्र में मुंबई बम धमाकों के बाद आए लेकिन उनकी ज़िंदगी में धमाका उनकी पहली फिल्म रॉकी की रिलीज से पहले ही हो चुका था.

उनकी मां नर्गिस उन्हें अभिनेता के तौर पर पर्दे पर देखना चाहती थी और इसके पहले ही दुनिया से रुखसत कर गई थी. लेकिन मीडिया को मसाला और टीआरपी उन पर लगे टाडा केस के बाद मिला. अमूमन फिल्मी स्टार्स से जुड़ी खबरों पर मीडिया का हस्तक्षेप और मामलों से ज्यादा रहता हैं. किसी भी स्टार्स को कब सर्दी लगी उससे मीडिया घराना चौकन्ना हो जाता हैं. ऐसे में संजय दत्त से जुड़ी खबरों पर कितना मसाला लगा होगा यह फिल्म के संदेश के सहारे समझा जा सकता हैं.

हिरानी की इस ऑटोबायोग्राफी में इस बात के कई तथ्य मौजूद हैं जिसमें यह कहा जा सकता है कि अख़बारी रिपोर्टिंग में जिस तरह की अराजकता होती रहती है वह किसी भी व्यक्ति के सामाजिक, पारिवारिक माहौल को बदल देता है. वहीं फिल्म माध्यम अपनी सशक्तता वाली खूबी से उन गहरे घावों को कहीं न कहीं दूर जरूर करता दिखता है. हिरानी की संजय दत्त के साथ शुरू हुई फिल्मी यात्रा का अंतिम पड़ाव भी शायद संजू ही हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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