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Ram Setu Movie Review: उम्मीदें जगाकर निराश कर गए अक्षय कुमार

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 25 अक्टूबर, 2022 11:36 PM
  • 25 अक्टूबर, 2022 11:36 PM
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Ram Setu Movie Review in Hindi: इस साल लगातार तीन फ्लॉप फिल्में दे चुके अभिनेता अक्षय कुमार की नई फिल्म 'राम सेतु' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. पौराणिक मान्यताओं और तथ्यों पर बुनी गई इस आधुनिक कहानी में विज्ञान बनाम आस्था की जंग दिखाई गई है. बहुत दिनों बाद किसी किरदार में अक्षय कुमार गंभीर दिख रहे हैं.

श्रीराम का नाम हिंदुस्तान में करोड़ों लोगों की आस्था में केंद्र है. यही वजह है की राम नाम सियासत से लेकर सिनेमा तक का प्रिय विषय रहा है. श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई है, ''हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥'' इसका मतलब ये हुआ कि जिस प्रकार श्री हरि विष्णु अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी कथा भी अनंत है. लोग उनकी कहानी को अलग-अलग तरीके से सुनते और सुनाते हैं. कुछ ऐसे ही जैसे कई हिंदी फिल्मों में श्रीराम की कहानियां अलग एंगल से पेश की गई हैं. इनमें 'चंद्रसेन', 'भरत मिलाप', 'राम राज्य', 'रामबाण', 'रामायण', 'संपूर्ण रामायण', 'राम राज्य', और 'लव कुश' जैसी फिल्मों का नाम प्रमुख है. श्रीराम पर कई फिल्में बनी हैं, लेकिन हिंदूओं के आस्था के प्रतीक रामसेतु पर पहली बार फिल्म बनाई गई है. इसका नाम 'राम सेतु' है, जो सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है.

अभिषेक शर्मा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अक्षय कुमार, जैकलीन फर्नांडीज, नुसरत भरूचा, सत्य देव और नासिर अहम भूमिका में हैं. पौराणिक मान्यताओं और तथ्यों पर बुनी गई इस आधुनिक कहानी में विज्ञान बनाम आस्था की जंग दिखाई गई है. विज्ञान कहता है कि राम सेतु कोई मानव निर्मित पुल नहीं है, बल्कि प्रवाल भित्ति (समुद्र के भीतर स्थित चट्टान) के जरिए प्राकृतिक रूप से बना है. आस्था कहती है कि सात हजार साल पहले श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता की खोज के दौरान श्रीलंका पर चढ़ाई के लिए इस पुल का निर्माण कराया था. इसके पत्थर आज भी पानी में तैरते हैं. फिल्म बिना किसी ऑफिशियल क्लेम के सच्चाई पता लगाती है. इसमें अक्षय कुमार एक पुरातत्वज्ञ (Archaeologist) की भूमिका है, जो कि नास्तिक है. बहुत दिनों बाद अक्षय अलग तरह का अभिनय करते नजर आए हैं.

'राम सेतु' फिल्म की कहानी

2005 में भारत सरकार ने सेतु समुद्रम...

श्रीराम का नाम हिंदुस्तान में करोड़ों लोगों की आस्था में केंद्र है. यही वजह है की राम नाम सियासत से लेकर सिनेमा तक का प्रिय विषय रहा है. श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई है, ''हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥'' इसका मतलब ये हुआ कि जिस प्रकार श्री हरि विष्णु अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी कथा भी अनंत है. लोग उनकी कहानी को अलग-अलग तरीके से सुनते और सुनाते हैं. कुछ ऐसे ही जैसे कई हिंदी फिल्मों में श्रीराम की कहानियां अलग एंगल से पेश की गई हैं. इनमें 'चंद्रसेन', 'भरत मिलाप', 'राम राज्य', 'रामबाण', 'रामायण', 'संपूर्ण रामायण', 'राम राज्य', और 'लव कुश' जैसी फिल्मों का नाम प्रमुख है. श्रीराम पर कई फिल्में बनी हैं, लेकिन हिंदूओं के आस्था के प्रतीक रामसेतु पर पहली बार फिल्म बनाई गई है. इसका नाम 'राम सेतु' है, जो सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है.

अभिषेक शर्मा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अक्षय कुमार, जैकलीन फर्नांडीज, नुसरत भरूचा, सत्य देव और नासिर अहम भूमिका में हैं. पौराणिक मान्यताओं और तथ्यों पर बुनी गई इस आधुनिक कहानी में विज्ञान बनाम आस्था की जंग दिखाई गई है. विज्ञान कहता है कि राम सेतु कोई मानव निर्मित पुल नहीं है, बल्कि प्रवाल भित्ति (समुद्र के भीतर स्थित चट्टान) के जरिए प्राकृतिक रूप से बना है. आस्था कहती है कि सात हजार साल पहले श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता की खोज के दौरान श्रीलंका पर चढ़ाई के लिए इस पुल का निर्माण कराया था. इसके पत्थर आज भी पानी में तैरते हैं. फिल्म बिना किसी ऑफिशियल क्लेम के सच्चाई पता लगाती है. इसमें अक्षय कुमार एक पुरातत्वज्ञ (Archaeologist) की भूमिका है, जो कि नास्तिक है. बहुत दिनों बाद अक्षय अलग तरह का अभिनय करते नजर आए हैं.

'राम सेतु' फिल्म की कहानी

2005 में भारत सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना का ऐलान किया था. इसके तहत राम सेतु को तोड़कर नया समुद्री मार्ग बनाने की योजना थी. यदि ये मार्ग बन जाता तो समुद्री मालवाहक जहाजों को श्रीलंका का चक्कर लगाकर जाने की बजाए सीधे रास्ता मिल जाता. ऐसे में उनको 400 समुद्री मील यात्रा कम करनी होती, जिससे करीब 36 घंटे समय की बचत होती. इतना ही नहीं बड़ी मात्रा में ईंधन की भी बचत होती. लेकिन इस परियोजना को व्यापक जनविरोध और बाद में सुप्रीम कोर्ट में केस जाने की वजह से होल्ड कर दिया गया है. फिल्म की कहानी इस विषय पर आधारित है. कहानी के केंद्र में अक्षय कुमार का किरदार डॉ. आर्यन कुलश्रेष्ठ है, जो कि एक पुरातत्वज्ञ है. फिल्म की शुरूआत में दिखाया जाता है कि आर्यन अफगानिस्तान में तालिबान के साए में जाकर अपना एक मिशन सफलतापूर्वक पूरा करता है. इसकी सफलता को देखकर उसका प्रमोशन कर दिया जाता है.

नई जिम्मेदारी मिलते ही आर्यन को सरकार के हित में एक रिपोर्ट बनाने के लिए कहा जाता है. सीनियर के कहने पर रिपोर्ट में वो लिखता है कि राम सेतु मानव निर्मित नहीं है. इतना ही नहीं वो रामायण जैसे महान धार्मिक ग्रंथ पर भी सवाल खड़े कर देता है. रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाती है. इसकी वजह से लोग सरकार से नाराज हो जाते हैं. हर तरफ विरोध प्रदर्शन होने लगता है. उधर कोर्ट भी सरकार को फटकार लगाती है. सरकार आर्यन को बलि का बकरा बनाकर उसे सस्पेंड कर देती है. आर्यन घर बैठ जाता है. लेकिन सेतु समुद्रम परियोजना जिस प्राइवेट शिप कंपनी के पास होती है, उसका मालिक इंद्रकांत (नासिर) आर्यन से मिलता है. उसे कंपनी के पैसे पर रिसर्च करने के लिए कहता है. इसमें वैज्ञानिक सबूतों के जरिए ये साबित करने के लिए कहा जाता है कि राम सेतु प्राकृतिक है, उसका श्रीराम से कुछ भी लेना देना नहीं है. आर्यन मिशन पर जुट जाता है.

नए मिशन के लिए डॉ. आर्यन रामेश्वरम पहुंचता है. आर्यन को उसके मिशन में मदद करने के लिए प्रोजेक्ट मैनेजर बाली (प्रवेश राणा), पर्यावरणविद् डॉ. सैंड्रा रेबेलो (जैकलीन फर्नांडीज) और डॉ. गैब्रिएल (जेनिफर पिकिनाटो) को भी शामिल किया जाता है. कुछ शोधों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम का जन्म 7000 साल पहले हुआ था. ये भी कहा जाता है कि उनके जीवनकाल में राम सेतु का निर्माण किया गया था. इस तरह राम सेतु के पत्थरों की उम्र भी 7000 साल के आसपास ही होगी. ऐसे में डॉ. आर्यन को अब यह साबित करना है कि राम सेतु श्रीराम के जन्म से पहले का है. वो जैसे ही वह अपना शोध शुरू करता है, उसे पता चलता है कि वह अपने विश्वास में गलत हो सकता है और राम सेतु वास्तव में भगवान श्रीराम और वानर सेना द्वारा बनाया गया था. इस हकीकत को जानने के बाद आगे क्या होता है, इसे जानने के लिए फिल्म देखनी चाहिए.

'राम सेतु' फिल्म की समीक्षा

सिनेमा को बेहतर बनाने में कई तत्व अहम भूमिका निभाते हैं. इनमें रहस्य, रोमांच, एक्शन और एडवेंचर प्रमुख हैं. फिल्म 'राम सेतु' में ये सारे तत्व मौजूद हैं. वीएफएक्स और स्पेशल विजुअल इफेक्ट्स का भी खूब इस्तेमाल किया गया है. लेकिन इसे जितनी सफाई से इस्तेमाल किया जाना चाहिए था, वो नहीं हो पाया है. फिल्म में एक महत्वपूर्ण सीन है, जिसमें अभिनेता सत्य देव का किरदार एपी जंगल में दुश्मनों की गोलियों से बचकर हेलीकॉप्टर की तरफ दौड़ता हुआ आता है. अचानक 10 फीट से दूरी से ही छलांग लगाकर सीधे उड़ते हुए हेलीकॉप्टर में दाखिल हो जाता है. यह सीन देखकर सीधा समझ आ रहा है कि वास्तविक नहीं है. यहां एडिटिंग को भी दोष दिया जा सकता है. फिल्म के एडिटर रामेश्वर एस भगत ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया है. हालांकि, बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी ने फिल्म को भव्य बनाने की पूरी कोशिश की है. अंडर वॉटर शूट शानदार लग रहा है.

फिल्म के निर्देशक अभिषेक शर्मा ने ही इसकी कहानी लिखी है. इसमें वो सारे तत्व शामिल किए गए हैं, जो किसी फिल्म को ब्लॉकबस्टर बना सकते हैं. लेकिन पटकथा में वो चूक गए हैं. फिल्म के कई सीन ऐसे हैं, जो हैरान कर देते हैं, लेकिन कई सीन ऐसे भी हैं, जिसे देखकर कोफ्त होती है. इतनी अच्छी फिल्म में ऐसी गलती कोई कैसे कर सकता है. अभिषेक शर्मा और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी के संवाद सरल और तीखे हैं. निर्देशन भी ठीक है. जिस तरह से डॉ. आर्यन राम सेतु पर जाता है, वहां रिसर्च करता है, उसे देखना सुखद लगता है. एक सीन में वो खोज के लिए श्रीलंका जाता है, उसे देखना भी अभूतपूर्व लगता है. ऐसा बॉलीवुड फिल्मों में कम देखने को मिलता है. ये सारी चीजें फिल्म के पक्ष में जाती हैं, लेकिन फिल्म का तकनीकी पक्ष बहुत निराश करता है. खासकर 150 करोड़ रुपए के बजट में बनी एक बड़ी फिल्म के लिए. फिल्म का सेकेंड हॉफ भी कमजोर है.

जहां तक फिल्म के कलाकारों के अभिनय प्रदर्शन की बात है, तो बहुत दिनों बाद अक्षय कुमार एक अलग तरह के किरदार में दिखे हैं. लगातार फ्लॉप हो रही फिल्मों से परेशान अभिनेता ने इस बार अपने किरदार के लिए बहुत मेहनत की है. उनका लुक, बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलिवरी, सबकुछ हर बार से अलग लग रहा है. वरना अक्षय के बारे में ये तक कहा जाने लगा था कि वो हर फिल्म में एक जैसी एक्टिंग करते हैं, बस किसी में मूंछ लगा लेते हैं, तो किसी में बाल बढ़ा लेते हैं. डॉ. आर्यन के किरदार में सही मायने में उनको अभिनय करते हुए देखा जा सकता है. उनके अलावा साउथ के कलाकार सत्य देव और बिग बॉस फेम प्रवेश राणा ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. महिला कलाकारों के किरदारों के साथ न्याय नहीं किया गया है. जैकलीन फर्नांडीज और नुसरत भरूचा बस चेहरा भर हैं. कुल मिलाकर, 'राम सेतु' को औसत दर्जे की फिल्म कहा जा सकता है. फिल्म के पहले हॉफ को देखकर जो उम्मीद जगती है, इंटरवल के बाद उस पर पानी फिर जाता है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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