• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

Raktanchal जैसी वेब सीरीज़ का आंचल सजाने के लिए सेक्स, ब्लड-शेड और गालियां जरूरी हैं?

    • अनु रॉय
    • Updated: 31 मई, 2020 08:10 PM
  • 31 मई, 2020 08:10 PM
offline
सेक्स, हिंसा, ब्लड-शेड और गालियों के बिना क्या नहीं बन सकती हिंदी वेबसीरिज़? रक्तांचल (Raktanchal) देखते हुए पहला ख़्याल या कह लीजिए पहला सवाल यही मन में आया. क्या अच्छी कहानियां , जानदार स्क्रिप्ट, उम्दा ऐक्टिंग काफ़ी नहीं है हिंदी वेब सीरिज़ के लिए?

बाक़ियों का नहीं पता लेकिन मैंने जितनी भी हिंदी में वेब-सीरिज़ (Hindi Web देखीं हैं, उन सब में जो बातें कॉमन रहीं हैं वो हैं ज़ूम इन करके देर तक दिखाया जाने वाला सेक्स-सीन, गोली लगने या गला कटने के बाद छूटता हुआ ख़ून का फ़व्वारा, क़िस्म-क़िस्म की मां-बहन वाली गालियां और सड़ी हुई लाशों के बीच बजबजाते कीड़े-मकोड़े. आप उठाइए सक्रेड-ग़ेम्स (Sacred Games) या मिर्ज़ापुर (Mirzapur) या पाताललोक (Paatal lok) या बेताल (Betaal) या असुर (Asur) या सबसे ताजा रक्तांचल (Raktanchal). इन सब में यही कॉमन थ्रेड आपको दिखेगा. एक पंचायत (Panchayat) ही ऐसी सीरिज़ आयी है पिछले दिनों जो इस ढर्रे को नहीं फ़ॉलो करती नज़र आयी है. पंचायत में न तो सेक्स है न हिंसा और नहीं गालियां. और फिर भी पंचायत ने सिर्फ़ अपनी दमदार कहानी और ऐक्टिंग के दम पर सफलता के नए कीर्तिमान बनाए हैं. वैसे यहां देखने वाली बात ये भी है कि चाहे सक्रेड-ग़ेम्स हो या पाताल लोक या मिर्ज़ापुर इन सब की भी कहानियां जानदार हैं. ऐक्टिंग भी हिंदी सिनेमा के जो स्टार करते हैं अपनी पांच सौ करोड़ वाली फ़िल्मों में, उससे कई गुना बेहतरीन ऐक्टिंग इन सीरिज़ में इनके अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने की है. डायलॉग ऐसे धांसू की सीरिज़ देखने के महीनों बाद भी आपको याद रह जाएंगे फिर ऐसे में क्यों निर्देशक और लेखकों को बेवजह गालियां और ब्लड-शेड दिखाना होता है.

रक्तांचल देखते हुए महसूस होता है कि इसमें कहानी से ज्यादा गालियों और हिंसा का इस्तेमाल किया गया है

इसके कई जवाब और कारण हो सकते हैं लेकिन जो सबसे अहम वजह मुझे लगती है वो है भारतीय दर्शक. अगर दर्शक कोई चीज़ नहीं देखना चाहेगा तो निर्देशक वैसी चीजें बनाएगा ही नहीं. जो बिकता है उसी को बेचने की...

बाक़ियों का नहीं पता लेकिन मैंने जितनी भी हिंदी में वेब-सीरिज़ (Hindi Web देखीं हैं, उन सब में जो बातें कॉमन रहीं हैं वो हैं ज़ूम इन करके देर तक दिखाया जाने वाला सेक्स-सीन, गोली लगने या गला कटने के बाद छूटता हुआ ख़ून का फ़व्वारा, क़िस्म-क़िस्म की मां-बहन वाली गालियां और सड़ी हुई लाशों के बीच बजबजाते कीड़े-मकोड़े. आप उठाइए सक्रेड-ग़ेम्स (Sacred Games) या मिर्ज़ापुर (Mirzapur) या पाताललोक (Paatal lok) या बेताल (Betaal) या असुर (Asur) या सबसे ताजा रक्तांचल (Raktanchal). इन सब में यही कॉमन थ्रेड आपको दिखेगा. एक पंचायत (Panchayat) ही ऐसी सीरिज़ आयी है पिछले दिनों जो इस ढर्रे को नहीं फ़ॉलो करती नज़र आयी है. पंचायत में न तो सेक्स है न हिंसा और नहीं गालियां. और फिर भी पंचायत ने सिर्फ़ अपनी दमदार कहानी और ऐक्टिंग के दम पर सफलता के नए कीर्तिमान बनाए हैं. वैसे यहां देखने वाली बात ये भी है कि चाहे सक्रेड-ग़ेम्स हो या पाताल लोक या मिर्ज़ापुर इन सब की भी कहानियां जानदार हैं. ऐक्टिंग भी हिंदी सिनेमा के जो स्टार करते हैं अपनी पांच सौ करोड़ वाली फ़िल्मों में, उससे कई गुना बेहतरीन ऐक्टिंग इन सीरिज़ में इनके अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने की है. डायलॉग ऐसे धांसू की सीरिज़ देखने के महीनों बाद भी आपको याद रह जाएंगे फिर ऐसे में क्यों निर्देशक और लेखकों को बेवजह गालियां और ब्लड-शेड दिखाना होता है.

रक्तांचल देखते हुए महसूस होता है कि इसमें कहानी से ज्यादा गालियों और हिंसा का इस्तेमाल किया गया है

इसके कई जवाब और कारण हो सकते हैं लेकिन जो सबसे अहम वजह मुझे लगती है वो है भारतीय दर्शक. अगर दर्शक कोई चीज़ नहीं देखना चाहेगा तो निर्देशक वैसी चीजें बनाएगा ही नहीं. जो बिकता है उसी को बेचने की कोशिश की जाएगी न. भारत में जो युवा दर्शक वर्ग है, जिसने पिछले कुछ सालों से यानि Netflix या अमेजन के आने के बाद सीरिज़ देखना शुरू किया है उनके लिए ये सब कुछ नया है.

इंटरनेट पर वेब सीरिज़ के स्ट्रीमिंग से पहले इनके पास देखने के नाम पर हिंदी फ़िल्में और टीवी पर आ रहे वही घिसे-पीटे सास-बहू वाले सीरियल थे. सिनेमा में और टीवी दोनों जगहों पर सेंसर अपनी कैंची चला देता था. अब जब इंटरनेट पर सीरिज़ रिलीज़ होती है तो कोई सेन्सरशीप नहीं होती.

निर्देशक अपनी मर्ज़ी से भर-भर कर गालियां, सेक्स और हिंसा परोस रहा होता है. अक्सर युवा वर्ग ही दर्शक होता है इन सीरिज़ का और उसने पहले कभी ये सब ऐसे खुले में देखा नहीं है तो उसे यही अद्भुत और रोमांचकारी लगता है.

गैंग्स ऑफ़ वासेपुर और सक्रेड ग़ेम्स ने एक ट्रेंड सेट कर दिया कि बिहार या यूपी को बैकग्राउंड में लीजिए, जम कर गालियां लिखिए और खुलमखुल्ला सेक्स परोसिए और वल्लाह आपकी सीरिज़ रेडी हो गयी है. और ये सिलसिला निकट भविष्य में कहीं टूटता भी नज़र नहीं आ रहा क्योंकि दर्शकों को यही चाहिए

जब तक दर्शक इसे देखना बंद नहीं करेंगे निर्देशक या लेखक कुछ नया ले कर नहीं आएंगे. और दर्शक कुछ नया देखने की चाह तब करेंगे न जब उनका एक्सपोज़र दुनिया के सिनेमा और सीरिज़ से हो. इन नए नवेले इंटरनेट पर सीरिज़ देखने वाले कूल-दर्शकों को पता ही नहीं है हो सक्रेड ग़ेम्स या पाताल लोक या मिर्ज़ापुर में दिखा रहे हॉलीवुड ने अपने अस्सी और नब्बे के दशक में बिलकुल इसी ट्रीटमेंट पर फ़िल्में और सीरियल बना चुका है.

भारत में जो नए के नाम पर परोसा जा रहा है वो बासी हॉलीवुड का ट्रीटमेंट है. आप चाहे आज से दस साल पहले आइ डार्क सीरिज़ डेक्स्टर को उठा कर देख लीजिए या रोम या स्पार्टाकस सब में ऐसा ही गहरा ख़ून का रंग, सेक्स और हिंसा दिखेगा.

तो अगर आपने रक्तांचल नहीं भी देखा तो कुछ ख़ास मिस नहीं किया है. रक्तांचल की कहानी भी बिलकुल सादी है. एक लड़का जो आईएएस बनना चाहता है उसके पिता को कोई मार डालता है. वो पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर बदला लेने के लिए निकल पड़ता है. फिर वही वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो जाती है. गाली-गलौज, गोली-बारी, सेक्स और हल्के कॉनफ़्लीक्ट बाद ख़त्म. रक्तांचल देख कर आपको हथौड़ा त्यागी और कालिन भईया यही सब याद आएंगे. तो आप इसे नहीं देख कर भी कुछ ग्रेट मिस नहीं कर रहें हैं.

ये भी पढ़ें -

Raktanchal Review: शक्ति, प्रतिशोध और रक्तपात का महाकाव्य है 'रक्तांचल'

Betaal Review: शाहरुख़ ख़ान करें दर्शकों की ज़िंदगी के वो 180 मिनट्स वापिस

Paatal Lok Review: पाताल लोक में आखिर मिल ही गया रोचक मनोरंजन 



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲