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Rajinikanth Birthday: सिनेमा में सुपरहिट, सियासत में फ्लॉप क्यों हुए सुपरस्टार रजनीकांत

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 12 दिसम्बर, 2021 09:10 PM
  • 12 दिसम्बर, 2021 09:10 PM
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तमिल, हिंदी, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु और बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले सुपरस्टार रजनीकांत 71 साल के हो गए हैं. पिछले 40 साल से सिनेमा में सक्रिय थलाइवी ने साल 2017 में सियासी पारी शुरू की थी, लेकिन महज चार साल में ही उनको अपना फैसला वापस लेना पड़ा.

एक वक्त था जब वो बस में बैठकर टिकट काटा करते थे, लेकिन आज उनकी फिल्में देखने के लिए टिकट काउंटर पर बवाल मच जाता है. एक वक्त था जब उनको एक प्रोड्यूसर ने बिना पैसे दिए काम करवाना चाहा, उनके मना करने पर बेइज्जत करके फिल्म स्टूडियो से बाहर कर दिया, लेकिन आज प्रोड्यूसर उनको साइन करने के लिए उनके घर के सामने लाइन लगाकर खड़े रहते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड से लेकर कॉलीवुड तक मशहूर साउथ सुपरस्टार रजनीकांत के बारे में, जिनको उनके फैंस प्यार से 'थलाइवा' के नाम से पुकारते हैं. भारत सरकार रजनीकांत को कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित कर चुकी है.

सुपरस्टार रजनीकांत को उनके फैंस प्यार से 'थलाइवा' के नाम से पुकारते हैं.

पिछले 40 साल से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय सुपरस्टार रजनीकांत की पॉपुलैरिटी किसी से छुपी नहीं है. साल 1975 में फिल्म 'कथा संगम' से डेब्यू करने वाले रजनी को उनके फैंस भगवान की तरह पूजते हैं. फिल्मों में आने से पहले उन्होंने अभिनय की शुरुआत कन्नड़ नाटकों से की थी. इसमें इन्होंने दुर्योधन की भूमिका निभाई थी, जिससे बहुत पॉपुलर हुए थे. एक्टर ने 1973 में एक्टिंग में डिप्लोमा करने के लिए मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया था. इसके बाद उन्हें तमिल फिल्म में ब्रेक मिला था. उन्होंने पहली बार तमिल फिल्मों में एनिमेशन इंट्रोड्यूस किया था. 'राजा चायना रोजा' पहली फिल्म थी, जिसमें एनिमेशन शामिल किया गया था.

समाज में सियासत और सिनेमा का संबंध बहुत गहरा है. सिनेमा और सियासत में ग्लैमर है. पॉवर है. पैसा है. फैन फॉलोइंग है. इसलिए सियासत और सिनेमा के बीच बहुत महीन रेखा मानी जाती है. अक्सर सिनेमाई शख्सियत को सियासी गलियारे में सफलता का स्वाद चखते देखा गया है. कई बार कुछ सियासी...

एक वक्त था जब वो बस में बैठकर टिकट काटा करते थे, लेकिन आज उनकी फिल्में देखने के लिए टिकट काउंटर पर बवाल मच जाता है. एक वक्त था जब उनको एक प्रोड्यूसर ने बिना पैसे दिए काम करवाना चाहा, उनके मना करने पर बेइज्जत करके फिल्म स्टूडियो से बाहर कर दिया, लेकिन आज प्रोड्यूसर उनको साइन करने के लिए उनके घर के सामने लाइन लगाकर खड़े रहते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड से लेकर कॉलीवुड तक मशहूर साउथ सुपरस्टार रजनीकांत के बारे में, जिनको उनके फैंस प्यार से 'थलाइवा' के नाम से पुकारते हैं. भारत सरकार रजनीकांत को कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित कर चुकी है.

सुपरस्टार रजनीकांत को उनके फैंस प्यार से 'थलाइवा' के नाम से पुकारते हैं.

पिछले 40 साल से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय सुपरस्टार रजनीकांत की पॉपुलैरिटी किसी से छुपी नहीं है. साल 1975 में फिल्म 'कथा संगम' से डेब्यू करने वाले रजनी को उनके फैंस भगवान की तरह पूजते हैं. फिल्मों में आने से पहले उन्होंने अभिनय की शुरुआत कन्नड़ नाटकों से की थी. इसमें इन्होंने दुर्योधन की भूमिका निभाई थी, जिससे बहुत पॉपुलर हुए थे. एक्टर ने 1973 में एक्टिंग में डिप्लोमा करने के लिए मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया था. इसके बाद उन्हें तमिल फिल्म में ब्रेक मिला था. उन्होंने पहली बार तमिल फिल्मों में एनिमेशन इंट्रोड्यूस किया था. 'राजा चायना रोजा' पहली फिल्म थी, जिसमें एनिमेशन शामिल किया गया था.

समाज में सियासत और सिनेमा का संबंध बहुत गहरा है. सिनेमा और सियासत में ग्लैमर है. पॉवर है. पैसा है. फैन फॉलोइंग है. इसलिए सियासत और सिनेमा के बीच बहुत महीन रेखा मानी जाती है. अक्सर सिनेमाई शख्सियत को सियासी गलियारे में सफलता का स्वाद चखते देखा गया है. कई बार कुछ सियासी हस्तियों ने भी सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाई है, हालांकि उनको सफलता बहुत कम मिली है. बॉलीवुड के मुकाबले साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सियासत में दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही रही है. साउथ में कई ऐसे फिल्मी सितारे हुए हैं, जिन्होंने सियासत में बड़ा नाम कमाया है. राजनीति में नया अध्याय जोड़ा है. लेकिन उनमें कई असफल भी रहे हैं.

सिनेमा से आकर सियासत में असफल रहने वालों अभिनेताओं की फेहरिस्त में सुपरस्टार रजनीकांत का नाम भी शामिल है. महज चार साल पहले साल 2017 में सिनेमा से सियासत में एंट्री करने वाले थलाइवी ने ऐलान किया था कि वो साल 2021 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए बाकयदा उन्होंने एक राजनीतिक दल की भी घोषणा की थी, जिसका नाम रजनी मक्कल मंदरम (RMM) रखा गया था. उन्होंने तमिलनाडु की जनता से यह भी वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद यदि वो और उनका दल लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाएगा, तो तीन साल के अंदर सभी पदाधिकारी अपने पद से इस्तीफा दे देंगे.

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव होने से पहले ही रजनीकांत की तबियत नासाज रहने लगी. उधर उनके राजनीतिक दल का भी लोगों के ऊपर कोई खास प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा था. इन दोनों वजहों से रजनीकांत ने इसी साल जुलाई में अपने राजनीतिक संगठन रजनी मक्कल मंदरम को भंग कर दिया. इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में फिर राजनीति में आने की उनकी कोई योजना नहीं है. इस तरह से देखें तो सिनेमा में सुपरहिट रहे सुपरस्टार रजनीकांत का सियासी सफर असफल साबित हुआ. उन्होंने चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही अपनी हार मान ली, क्योंकि उनको राजनीतिक भविष्य नजर आने लगा था. हालांकि, स्वास्थ्य भी एक कारण था.

राजनीति के मैदान में रजनीकांत की असफलता की वजह समझनी हो तो एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर का कथन याद करना होगा. हालांकि, उन्होंने ये बातें रजनीकांत और कमल हासन पर तंज कसते कही थीं, लेकिन उनकी बातों में बहुत दम नजर आता है. अय्यर ने कहा था पुराने दिनों की बात अलग थी, जब एमजीआर, शिवाजी गणेशन और जयललिता जैसे लोग एक क्रांतिकारी सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों में शामिल रहे थे. लेकिन रजनीकांत और हासन ने सिनेमा को कभी भी राजनीतिक संदेश के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया, वे दूसरे लोकप्रिय फिल्मी सितारों जैसे ही हैं, लेकिन वे राजनीतिक दृष्टि से अपनी राय तो सबकी राय बनाने के लिए आकर्षित नहीं कर सकते. इतना ही नहीं राजनीतिक तरीके से लोगों को अपनी बातों से नहीं लुभा सकते हैं.

वैसे ये बात भी सही है कि एमजीआर, शिवाजी गणेशन और जयललिता के दौर में सिनेमा का प्रभाव समाज पर अलग ही था. उस दौर की फिल्में भी सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई होती थीं. लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम थीं. इतना ही नहीं उस दौर के कलाकार सामाजिक मुद्दों से सीधे तौर पर जुड़े होते थे. सामाजिक कार्य किया करते थे. इसलिए लोग उनसे सीधे जुड़ जाते थे. आज के दौर का सिनेमा भी बदल चुका है और समाज भी. अब सिनेमा में भले ही ग्लैमर है, लेकिन लोग कलाकारों के लिए उतने क्रेजी नहीं है. शायद यही वजह है कि रजनीकांत सियासत छोड़ गए और कमल हासन सियासी जमीन जमाने की जंग कर रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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