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Rajesh Khanna: हिंदी सिनेमा के पहले सुपर सितारे के 'गर्दिश' में जाने की दास्तान!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 29 दिसम्बर, 2022 03:10 PM
  • 29 दिसम्बर, 2022 03:10 PM
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हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना का एक जमाना था. उन्होंने स्टारडम का जो दौर देखा, वो बहुत कम एक्टर्स को नसीब होता है. उनकी दीवानगी ऐसी थी कि लड़कियां अपने खून से प्रेम पत्र लिखा करती थीं. लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में उनके सितारे गर्दिश में आ गए. गुमनामी के दौर में वो अक्सर साहिर लुधियानवी के लिखे एक गाने की पंक्तियां सुनाया करते थे. 'काका' की जिंदगी हमें कई सीख देती है.

''इज्ज़तें, शोहरतें, चाहतें, उल्फतें, कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं, आज मैं हूं जहां, कल कोई और था, ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था''...साल 1973 में रिलीज हुई फिल्म 'दाग' के इस गाने को साहिर लुधियानवी ने लिखा था, जिसे राजेश खन्ना अक्सर सुनाया करते थे. हिंदी सिनेमा के इस पहले सुपरस्टार ने स्टारडम का जो दौर देखा, वो बहुत कम सितारों को नसीब होता है. उनकी दीवानगी ऐसी थी कि लड़कियां अपने खून से प्रेम पत्र लिखा करती थीं. वो घर से बाहर निकलते तो सड़कों पर भीड़ लग जाती. उनके फैंस उनकी कार को किस करने लगते. कई बार तो उनकी सफेद चमचमाती कार पर लिपस्टिक के निशान से लाल हो जाती. 1969 से 1971 तक उन्होंने रिकॉर्ड 15 हिट फिल्में दी थीं.

राजेश खन्ना की शानदार कामयाबी का दौर 1969 में आई फिल्म 'आराधना' से शुरू हुआ, जो 1971 में फिल्म 'हाथी मेरे साथी' तक जारी रहा था. उनकी कामयाबी और जबर्दस्त फैन फॉलोइंग को देखते हुए बीबीसी ने साल 1974 में उन पर एक डॉक्यूमेंट्री 'बॉम्बे सुपरस्टार' बनाई थी. वो अपने जमाने में सबसे ज्यादा फीस लेने वाले सुपरस्टार थे. उनके घर के बाहर फिल्म मेकर्स की लाइन लगी रहती थी. उन्होंने करीब 20 वर्षों तक बॉलीवुड पर राज किया था. उनकी लोकप्रियता का दौर में कहा जाता था कि 'ऊपर आका और नीचे काका'. लोग प्यार से उनको 'काका' थे. लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में राजेश खन्ना के सितारे गर्दिश में आ गए थे. हालात ये थे कि अंतिम समय में उनको एकांत में अपना जीवन जीना पड़ा था.

सुपरस्टार राजेश खन्ना 29 दिसंबर 1942 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए थे.

29 दिसंबर 1942 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए जतिन खन्ना को उनके एक रिश्तेदार ने गोद ले लिया था. इसके बाद वो उनके साथ मुंबई चले आए. उनकी पढ़ाई लिखाई मुंबई में ही हुई है, लेकिन एक्टिंग का बीज स्कूल...

''इज्ज़तें, शोहरतें, चाहतें, उल्फतें, कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं, आज मैं हूं जहां, कल कोई और था, ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था''...साल 1973 में रिलीज हुई फिल्म 'दाग' के इस गाने को साहिर लुधियानवी ने लिखा था, जिसे राजेश खन्ना अक्सर सुनाया करते थे. हिंदी सिनेमा के इस पहले सुपरस्टार ने स्टारडम का जो दौर देखा, वो बहुत कम सितारों को नसीब होता है. उनकी दीवानगी ऐसी थी कि लड़कियां अपने खून से प्रेम पत्र लिखा करती थीं. वो घर से बाहर निकलते तो सड़कों पर भीड़ लग जाती. उनके फैंस उनकी कार को किस करने लगते. कई बार तो उनकी सफेद चमचमाती कार पर लिपस्टिक के निशान से लाल हो जाती. 1969 से 1971 तक उन्होंने रिकॉर्ड 15 हिट फिल्में दी थीं.

राजेश खन्ना की शानदार कामयाबी का दौर 1969 में आई फिल्म 'आराधना' से शुरू हुआ, जो 1971 में फिल्म 'हाथी मेरे साथी' तक जारी रहा था. उनकी कामयाबी और जबर्दस्त फैन फॉलोइंग को देखते हुए बीबीसी ने साल 1974 में उन पर एक डॉक्यूमेंट्री 'बॉम्बे सुपरस्टार' बनाई थी. वो अपने जमाने में सबसे ज्यादा फीस लेने वाले सुपरस्टार थे. उनके घर के बाहर फिल्म मेकर्स की लाइन लगी रहती थी. उन्होंने करीब 20 वर्षों तक बॉलीवुड पर राज किया था. उनकी लोकप्रियता का दौर में कहा जाता था कि 'ऊपर आका और नीचे काका'. लोग प्यार से उनको 'काका' थे. लेकिन जीवन के उत्तरार्ध में राजेश खन्ना के सितारे गर्दिश में आ गए थे. हालात ये थे कि अंतिम समय में उनको एकांत में अपना जीवन जीना पड़ा था.

सुपरस्टार राजेश खन्ना 29 दिसंबर 1942 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए थे.

29 दिसंबर 1942 में पंजाब के अमृतसर में पैदा हुए जतिन खन्ना को उनके एक रिश्तेदार ने गोद ले लिया था. इसके बाद वो उनके साथ मुंबई चले आए. उनकी पढ़ाई लिखाई मुंबई में ही हुई है, लेकिन एक्टिंग का बीज स्कूल में ही पड़ गया था. उन्होंने स्कूल में नाटकों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. रवि कपूर उनके बचपन के दोस्त हैं, जिनको फिल्मों में जितेंद्र के नाम से जाना गया. कॉलेज में आने के बाद जब उन्होंने फिल्मों में जाने का फैसला किया तो उनके चाचा केके तलवार ने उनका नाम बदलकर राजेश खन्ना कर दिया. साल 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूर्स और फिल्म फेयर द्वारा आयोजित ऑल इंडिया टैलेंट कॉन्टेस्ट की जीतने के बाद उनको दो फिल्मों 'आखिरी खत' और 'राज' में काम करने का ऑफर मिला.

इस तरह राजेश खन्ना ने साल 1966 में रिलीज हुई फिल्म 'आखिरी खत' से बॉलीवुड डेब्यू किया. इसके बाद बहारों के 'सपने', 'औरत', 'डोली' और 'इत्तेफाक' जैसी हिट फिल्में दीं. साल 1969 में रिलीज हुई फिल्म 'आराधना' ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया. इस फिल्म में उनके अपोजिट शर्मिला टैगोर थीं. इस फिल्म की सफलता के साथ गायक और अभिनेता किशोर कुमार के सितारे भी बुलंदियों पर चले गए. उनके गाए गाने को इतना पसंद किया गया कि वो धीरे-धीरे राजेश खन्ना की आवाज बनते गए. उन पर फिल्माए गए किशोर कुमार के गाने 'मेरे सपनों की रानी', 'रूप तेरा मस्ताना', 'कुछ तो लोग कहेंगे' और 'जय जय शिव शंकर' को खूब पसंद किया गया. इसके बाद तो राजेश खन्ना के सुनहरे दिन शुरू हो गए.

'आराधना' की सफलता के बाद साल 1971 में रिलीज हुई फिल्म 'हाथी मेरे साथी' बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इसे आज भी बॉलीवुड की बड़ी हिट फिल्म माना जाता है. इस तरह राजेश खन्ना 163 फिल्मों में नजर आए थे. इनमें 106 में उन्होंने सोलो हीरो के रूप में काम किया था, जबकि उनकी 22 फिल्मों में दो हीरो थे. उनके द्वारा बनाया गया सुपरहिट फिल्मों का रिकॉर्ड आज भी कोई एक्टर तोड़ नहीं सका है. उन्होंने अपनी फिल्मों में अलग-अलग तरह के किरदार भी किए हैं. फिल्म 'आनंद' में गंभीर रूप से पीड़िता मरीज का किरदार हो या फिर 'बावर्ची' में शेफ का किरदार, 'अमर प्रेम' में एक दुखी पति या फिर 'खामोशी' में मानसिक मरीज का किरदार, हर रोल में उन्होंने जान डाल दिया था.

शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच चुके राजेश खन्ना का स्टारडम 80 के दशक के बाद कम होने लगा. उनकी निजी जिंदगी भी अस्त-व्यस्त चल रही थी. वो पहले अभिनेत्री अंजू महेंद्रू के प्यार में पड़े, लेकिन सात साल तक डेटिंग के बाद दोनों ने ब्रेकअप कर लिया. इसी दौरान राजेश खन्ना नवोदित अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया के संपर्क में आए. उस समय डिंपल की उम्र बहुत कम थी, इसके बावजूद दोनों बहुत जल्द शादी कर ली. दोनों की दो बेटियां हुईं, लेकिन व्यक्तिगत जिंदगी में तूफान बना रहा है. दोनों में अक्सर झगड़ा होता था. यहां तक राजेश अपनी पत्नी को फिल्मों में काम भी नहीं करने दे रहे थे. इससे दुखी होकर शादी के 11 साल बाद ही डिंपल उनसे अलग हो गईं. लेकिन बेटियों की वजह से तलाक नहीं लिया.

इधर, राजेश खन्ना की फिल्में लगातार फ्लॉप होने लगीं. उस दौर में अमिताभ बच्चन एंग्री यंग मैन के रूप में उभर चुके थे. उनकी 'शोले', 'जंजीर' और 'दीवार' जैसी फिल्में मनोरंजन का एक नया स्वाद दे रही थीं. लोगों के सामने एक नया सुपर सितारा आ चुका था, जिसका सीधा असर राजेश खन्ना के स्टारडम पर पड़ना तय था. उनकी कुछ आदतों ने भी उनको आसमान से जमीन पर लाने का काम किया था. उनके बारे में मशहूर फिल्म क्रिटिक जय प्रकाश चौकसे ने लिखा है, ''राजेश खन्ना शूटिंग के लिए देर से पहुंचा करते थे. सुबह 9 बजे की शिफ्ट में दोपहर 1 बजे पहुंचते थे. देर से आना भले ही सितारा हैसियत का प्रतीक मान लिया गया था, लेकिन इसका असर उनके प्रोफेशनल करियर पर पड़ने लगा था. उनके साथ चमचों की टोली चलती थी. यहां तक कि शादी के बाद अपने हनीमून पर भी दर्जनभर चमचे साथ लेकर गए थे. लेकिन एक दौर ऐसा आया कि भीड़ से घिरे रहने वाले राजेश खन्ना अकेले हो गए. इस वजह से कई बार शाम को ही अपने बंगले की सारी लाइट्स बंद कर देते थे.'' राजेश खन्ना के ठीक उलट अमिताभ बच्चन समय के पाबंद और विशुद्ध प्रोफेशनल रहे हैं.

राजेश खन्ना की महफिलों के बारे में फिल्म मेकर अनीस बज्मी ने एक बार बताया था कि राजेश खन्ना को महफील जमाना बहुत पसंद था. हर शाम उनका एक अलग ही रूप देखने को मिलता था. वो अक्सर सिल्क वाली लुंगी और कुर्ते पहना करते थे. उस रूप में भी वो कमाल के लगते थे. उनका ऑरा बहुत बड़ा था. उनके नजदीक होकर आप ऐसा कभी फील नहीं कर सकते कि आप उन्हें टेकन फॉर ग्रांटेड ले लें. प्यार मोहब्बत हो जाने के बाद वो आप को अपना मानते थे. आप के कंधों पर हाथ रखकर हमेशा साथ खड़े रहते थे, लेकिन उतना खुलने के बाद भी आपके मन में उनके लिए काफी इज्जत रहती थी. उनकी आभा ही ऐसी थी. अनीस ने राजेश खन्ना की फिल्म 'स्वर्ग' की कहानी लिखी है. इसके नैरेशन के लिए दोनों कई बार साथ बैठे थे. सच कहा गया है कि वक्त एक जैसा नहीं होता. दिन के बाद रात और रात के बाद दिन का होना तय है. इसलिए अपने पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए.

देखिए सुपरस्टार राजेश खन्ना का आखिरी इंटरव्यू...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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