• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

रितिक-सैफ की विक्रम वेधा से लोहा लेने आ रही PS 1 किस महान साम्राज्य की सच्ची कहानी है?

    • आईचौक
    • Updated: 26 सितम्बर, 2022 10:14 PM
  • 26 सितम्बर, 2022 10:13 PM
offline
मणिरत्नम की PS 1 में भारत के प्राचीन इतिहास की एक ऐसी कहानी दिखने वाली है जो दर्शकों को लाजवाब कर सकती है. एक ऐसा साम्राज्य जिसने पांच सौ साल राज किया और उस दौर को इतिहास में स्वर्णिम काल माना गया.

भारत का इतिहास अय्याश सुल्तानों बादशाहों का इतिहासभर नहीं है. अय्याशों की महान विरासत या तो उनके इस्तेमाल वाले महलों में दिखती है या मकबरों में. लेकिन भारत के भूपतियों का इतिहास हजारों साल बीत जाने के बावजूद सार्वजनिक इस्तेमाल की तमाम चीजों में आज भी नजर आ जाती हैं. यह भारत का दुर्भाग्य है कि उत्तर में उसके अतीत का खंडहर भी नजर नहीं आता. जो दिख जाता है वह छिपा था और उसे अंग्रेजों ने खोजा. शायद इसी वजह से वह बचा रह गया उत्तर में. मगर समूचा दक्षिण आज भी उस विरासत से भरा पड़ा है- जिसके एक हिस्से को पहली बार व्यापक रूप से दिखाने का जिम्मा भारतीय सिनेमा के दिग्गज फिल्मकार मणिरत्नम ने उठाया है. फ़िल्म का नाम है पोन्नियिन सेलवन 1. यानी PS-1.

यह चोल साम्राज्य की महागाथा है. एक ऐसी महागाथा जिसका गौरव इतिहास में करीब 500 साल तक सूरज की तरह दमकता नजर आता है. और इसी वजह से चोलों के दौर को तमिल साहित्य ने 'स्वर्ण काल' कहा. एक ऐसा साम्राज्य जिसने असंभव सफलताएं हासिल कीं. एक ऐसा साम्राज्य जिसके दौर में कला, साहित्य, धर्म, व्यापार, कृषि और अनुसंधान जैसी तमाम चीजें अपने शीर्ष पर रहीं. जिसके शासन में गांवों की भी अपनी ऑटोनोमी व्यवस्था थी और मंदिर-मठ धर्म का केंद्र होने के साथ-साथ शिक्षा का केंद्र थे. व्यापार की धुरी थे. भारत की दिक्कत यह है कि उसे अपने इतिहास के उस हिस्से की भी जानकारी नहीं है जो बिल्कुल साफ़ और स्पष्ट दिखता है. ऐसे में इतिहास के उस हिस्से को जानना या उसपर भरोसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है- जिस पर दुनियाभर के गुबार को उड़ेल दिया गया हो.

PS 1 में दिखेगी चोल साम्राज्य की महान गाथा.

PS-1 उस चोल राज्य और उसके महान योद्धाओं की कहानी है जिसकी स्थापना विजयालय ने आठवीं शताब्दी में पल्लवों को हराकर तंजौर पर अधिकार के साथ...

भारत का इतिहास अय्याश सुल्तानों बादशाहों का इतिहासभर नहीं है. अय्याशों की महान विरासत या तो उनके इस्तेमाल वाले महलों में दिखती है या मकबरों में. लेकिन भारत के भूपतियों का इतिहास हजारों साल बीत जाने के बावजूद सार्वजनिक इस्तेमाल की तमाम चीजों में आज भी नजर आ जाती हैं. यह भारत का दुर्भाग्य है कि उत्तर में उसके अतीत का खंडहर भी नजर नहीं आता. जो दिख जाता है वह छिपा था और उसे अंग्रेजों ने खोजा. शायद इसी वजह से वह बचा रह गया उत्तर में. मगर समूचा दक्षिण आज भी उस विरासत से भरा पड़ा है- जिसके एक हिस्से को पहली बार व्यापक रूप से दिखाने का जिम्मा भारतीय सिनेमा के दिग्गज फिल्मकार मणिरत्नम ने उठाया है. फ़िल्म का नाम है पोन्नियिन सेलवन 1. यानी PS-1.

यह चोल साम्राज्य की महागाथा है. एक ऐसी महागाथा जिसका गौरव इतिहास में करीब 500 साल तक सूरज की तरह दमकता नजर आता है. और इसी वजह से चोलों के दौर को तमिल साहित्य ने 'स्वर्ण काल' कहा. एक ऐसा साम्राज्य जिसने असंभव सफलताएं हासिल कीं. एक ऐसा साम्राज्य जिसके दौर में कला, साहित्य, धर्म, व्यापार, कृषि और अनुसंधान जैसी तमाम चीजें अपने शीर्ष पर रहीं. जिसके शासन में गांवों की भी अपनी ऑटोनोमी व्यवस्था थी और मंदिर-मठ धर्म का केंद्र होने के साथ-साथ शिक्षा का केंद्र थे. व्यापार की धुरी थे. भारत की दिक्कत यह है कि उसे अपने इतिहास के उस हिस्से की भी जानकारी नहीं है जो बिल्कुल साफ़ और स्पष्ट दिखता है. ऐसे में इतिहास के उस हिस्से को जानना या उसपर भरोसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है- जिस पर दुनियाभर के गुबार को उड़ेल दिया गया हो.

PS 1 में दिखेगी चोल साम्राज्य की महान गाथा.

PS-1 उस चोल राज्य और उसके महान योद्धाओं की कहानी है जिसकी स्थापना विजयालय ने आठवीं शताब्दी में पल्लवों को हराकर तंजौर पर अधिकार के साथ किया था. फिल्म की कहानी कल्कि कृष्णमूर्ति के कालजयी उपन्यास 'पोन्नियिन सेलवन' पर आधारित है. फिल्म को कई हिस्सों में बनाया जा रहा है और फिलहाल पहला पार्ट 30 सितंबर को रिलीज किया जाएगा. रितिक रोशन-सैफ अली खान स्टारर विक्रम वेधा के सामने PS-1 का हिंदी वर्जन भी रिलीज होगा. हिंदी दर्शक इतिहास की एक सबसे अद्भुत कहानी का शिद्दत से इंतज़ार कर रहे हैं.

फिल्म की कहानी असली है

हालांकि PS-1 में चोल सम्राट अदिता कलिकरण, अरुलमोजी वर्मन (राज राजा चोल) और वल्लवराइयन वंथीयथेवन की कहानी नजर आएगी. तमिलनाडु की वन्नार जाति वल्लवराइयन वंथीयथेवन के ही वंशज माने जाते हैं. चोलों के शासन के दौरान लगभग समूचा दक्षिणी क्षेत्र एक शासक के नियंत्रण में रहा. और लगभग पांच शताब्दियों तक रहा. यह अपने आप में अद्भुत बात है. इतना लंबा शासन किसी भी विदेशी आक्रमणकारी ने दिल्ली के तख़्त पर भी नहीं किया. मुगलों ने भी नहीं. चोलों के साम्राज्य में सत्ता का बंटवारा नीचे से ऊपर तक तमाम लोगों के बीच था. कई राज्य बनाए गए थे और उसके सरदार हुआ करते थे. गांवों की के भी अपनी सत्ता थी. शाही अफसर भी थे. बस सर्वोच्च शक्ति सम्राट के पास रहा करती थी जो समूचे साम्राज्य को एक ईकाई के रूप में चलाते थे. आप इसे कुछ कुछ लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में भी देख सकते हैं.

चोल मूलत: शैव उपासक थे. लेकिन हिंदू धर्म के दूसरे सम्प्रदायों में भी उनकी बराबर आस्था थी. वैष्णव सम्प्रदाय को भी बराबर पूजते थे और अनेकों मंदिर बनवाए. राज राजा के समय ही शैव ग्रंथों को संकलित करने का कार्य हुआ. वैष्णव ग्रंथों के लिए ऐसा ही कार्य होने की बात सामने आती है. चोलों ने बौद्धों और जैनों को भी आश्रय दिया और दक्षिण में इसके सबूत नजर आते हैं. चोलों के समय मंदिरों की व्यवस्था में बहुत से सुधार भी किए जाने का उल्लेख मिलता है. चोलों के दौरान शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त अलग-अलग पद्धतियों वाले कुछ संप्रदाय जैसे पाशुपत, कापालिक और कालामुख भी थे जो स्त्रीत्व की आराधना करते थे. तमिलनाडु की कुछ पुरानी जातियों में आज भी चोलों के समय की तमाम परंपराएं दिख जाएंगी. चोलों के साम्राज्य में महिलाओं को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता थी. उन्हें संपत्ति का अधिकार तो था ही तमाम नागरिक व्यवस्थाओं में भी उनके विचार की अहमियत थी. हालांकि देवदासी प्रथा भी थी.

फिल्म का ट्रेलर यहां देख सकते हैं:-

आज भी नजर आता है चोल साम्राज्य का गौरव

चोलों की वास्तुकला का कोई जवाब नहीं. इसके अद्भुत उदाहरण उनके दौर के स्थापत्य में साफ़ नजर आता है. तांडव मुद्रा में शिव की कांसे की नटराज मूर्ति असल में चोलों की मूर्तिकला का सबसे जीता जागता सबूत है. इतिहास में मूर्तिकला का सबसे बेहतरीन दौर चोलों के समय ही नजर आता है. उन्होंने अपने शासनकाल में अनेकों मंदिरों, विशाल बांधों, नहरों को जोड़ने का कार्य किया. बृहदेश्वर मंदिर, राजराजेश्वर मंदिर, गंगईकोंड और चोलपुरम मंदिर आज भी लोग एकटक देखते रहते हैं.

चोल जमीन के साथ ही समुद्र में भी ताकतवर थे. भारत के इतिहास में उनसे बेहतर और मजबूत नौसिनिक ताकत किसी और साम्राज्य में नहीं दिखती है. नौसिनिक ताकत की वजह से ही चोलों ने श्रीलंका पर नियंत्रण स्थापित किया. इसके अलावा जावा, सुमात्रा  मलय आदि क्षेत्रों पर भी नौसेना की वजह से ही नियंत्रण पाया. भारत के भी तमाम तटीय इलाकों में चोलों के अभियान को नौसैनिक ताकत ने ही सफल बनाया.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲