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रियलटी शो के पर्दे के पीछे की सच्चाई क्या इतनी क्रूर है?

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 25 अगस्त, 2018 06:53 PM
  • 25 अगस्त, 2018 06:53 PM
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दुनिया की कोई भी परीक्षा बिना पसीना बहाए तो पास नहीं की जा सकती. ये UPSC की परीक्षा जैसा ही है, जिसमें भाग तो लाखों लोग लेते हैं लेकिन सलेक्ट केवल कुछ ही होते हैं. लेकिन परीक्षा में सलेक्ट न होने के लिए कोई उसके मुश्किल पैटर्न को दोष नहीं देता और न ही उसे संचालित करने वालों को भला बुरा कहता है.

बात 2012 की है. रियलिटी शो इंडियन आयडल में भाग लेने वाला एक प्रतियोगी उसके तीन राउंड तक तो पहुंचा लेकिन सलेक्ट नहीं हो सका. अब संगीत छोड़ वो किताबें लिखता है, गायक की जगह लेखक बन गया है. तो सोचा कि अपने ऑडीशन के अनुभवों को भी लिख डाला जाए. ये हैं निशांत कौशिक जिन्होंने 'इंडियन आयडल' के ऑडिशन की कड़वी सच्चाई सबके सामने लाने की कोशिश की है. जो इस शो की चकाचौंध को थोड़ी देर के लिए धुंधला सकती है.

ट्विटर पर निशांत का ये थ्रेड काफी वायरल हो रहा है.

निशांत का कहना है-

'' लोगों की धारणा है कि इंडियन आयडल का मंच टैलेंट को बढ़ावा देता है लेकिन असल में ये आपके सपनों को तोड़ने वाला मंच है. मुंबई में हुए ऑडिशन में मैं 2 किलोमीटर लंबी कतार में शामिल हुआ. वहां आया हर शख्स जोश से भरा था. वो सब अपने दम पर वहां आए थे. कुछ अपनी मां के साथ थे, जो अपने हाथ में प्रसाद रखे हुई थीं तो कुछ ऐसे भी थे जो रिबेल थे, और परेशानियों से लड़ते हुए अकेले ही चले आए थे.

सुबह 7 बजे मैं लाइन में लग गया था. लोग तो 5 बजे ही वहां आ गए थे. कई तो रात भर से वहीं थे. 'जो पहले आएगा उसका ऑडिशन पहले होगा' ये बात गलत साबित हुई. क्योंकि क्रू से कोई भी वहीं पर नहीं था, गेट दोपहर 1 बजे खुला. कई घंटे इंतजार के बाद वहां न खाने-पीने की कोई खास व्यवस्था थी और न ही टॉयलेट जाने का इंतजाम था. अगर आप कुछ खोजने बाहर जाते हैं तो आप लाइन में अपनी जगह खो बैठते हैं. आपको फिर से लाइन में लगना पड़ता. खैर, दोपहर 1 बजे भी इंतजार खत्म नहीं हुआ.

इंडियन आयडल के ऑडिशन्स के लिए हजारों लोग किसमत आजमाने आते हैं

1 बजे हम सबको झुंड...

बात 2012 की है. रियलिटी शो इंडियन आयडल में भाग लेने वाला एक प्रतियोगी उसके तीन राउंड तक तो पहुंचा लेकिन सलेक्ट नहीं हो सका. अब संगीत छोड़ वो किताबें लिखता है, गायक की जगह लेखक बन गया है. तो सोचा कि अपने ऑडीशन के अनुभवों को भी लिख डाला जाए. ये हैं निशांत कौशिक जिन्होंने 'इंडियन आयडल' के ऑडिशन की कड़वी सच्चाई सबके सामने लाने की कोशिश की है. जो इस शो की चकाचौंध को थोड़ी देर के लिए धुंधला सकती है.

ट्विटर पर निशांत का ये थ्रेड काफी वायरल हो रहा है.

निशांत का कहना है-

'' लोगों की धारणा है कि इंडियन आयडल का मंच टैलेंट को बढ़ावा देता है लेकिन असल में ये आपके सपनों को तोड़ने वाला मंच है. मुंबई में हुए ऑडिशन में मैं 2 किलोमीटर लंबी कतार में शामिल हुआ. वहां आया हर शख्स जोश से भरा था. वो सब अपने दम पर वहां आए थे. कुछ अपनी मां के साथ थे, जो अपने हाथ में प्रसाद रखे हुई थीं तो कुछ ऐसे भी थे जो रिबेल थे, और परेशानियों से लड़ते हुए अकेले ही चले आए थे.

सुबह 7 बजे मैं लाइन में लग गया था. लोग तो 5 बजे ही वहां आ गए थे. कई तो रात भर से वहीं थे. 'जो पहले आएगा उसका ऑडिशन पहले होगा' ये बात गलत साबित हुई. क्योंकि क्रू से कोई भी वहीं पर नहीं था, गेट दोपहर 1 बजे खुला. कई घंटे इंतजार के बाद वहां न खाने-पीने की कोई खास व्यवस्था थी और न ही टॉयलेट जाने का इंतजाम था. अगर आप कुछ खोजने बाहर जाते हैं तो आप लाइन में अपनी जगह खो बैठते हैं. आपको फिर से लाइन में लगना पड़ता. खैर, दोपहर 1 बजे भी इंतजार खत्म नहीं हुआ.

इंडियन आयडल के ऑडिशन्स के लिए हजारों लोग किसमत आजमाने आते हैं

1 बजे हम सबको झुंड की तरह ग्राउंड में बने स्टेज के पास भेजा गया, जहां पिछले साल का विनर श्रीराम 'देसी ब्वॉयज' गाने पर लिपसिंक कर रहा था. एक वालंटियर हमारे बीच से निकला और श्रीराम के पैरों में गिर गया और जोर-जोर से 'मुझे भी इंडियन आयडल बनना है' चिल्लाने लगा. उसे लगा उसका ऑडिशन जल्दी हो जाएगा. डायरेक्टर के कहने पर उस वालंटियर ने श्रीराम के पैरों में गिरने के कई बार रीटेक लिए. लेकिन जब उसने कहा कि वह और रीटेक नहीं कर सकता तो सेट पर मौजूद अस्स्टेंट्स ने उसे गालियां दीं. और बात नहीं मानने पर ऑडिशन से बाहर निकालने की धमकी भी दी गई. उसने बात मान ली.

शाम 5 बजे तक यही सब चलता रहा. जिस जगह करीब 10 हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे, वहां मैदान के बीच में स्टील के एक ग्लास के साथ पानी का एक कनस्तर था और एक ही टॉयलेट का इंतजाम किया गया था. जब हमने क्रू से लंच और पानी के लिए बाहर जाने के लिए पूछा तो उन्होंने कहा- आप अपने रिस्क पर जाएं. क्योंकि ऑडिशन किसी भी समय शुरू हो जाएगा. जो प्रतियोगी उसने सवाल जवाब कर रहे थे उनको या तो इग्नोर किया गया या फिर गालियां दी गईं.

इसी बीच मैं दो दिलचस्प प्रतियोगियों से मिला- एक किसी गांव से था जिसके पैर में फटी हुई स्लीपर थी और एक जो दोनों आंखों से देख नहीं सकता था. और उन दोनों के लिए क्रू खाना लेकर आया था. फिर वो लोग कैमरे लेकर नेत्रहीन के पास आए और उससे अपने नेत्रहीन होने पर कुछ बोलन के लिए कहा गया. वो जवाब नहीं दे पा रहा था तो उसके लिए जवाब भी वही बना रहे थे.

कई घंटे बीत जाने के बाद रात करीब 8 बजे हमें बैज दिए गए और अंदर एंट्री मिली. अभी भी ऑडिशन शुरू नहीं हुए थे. हमें बास्केटबॉल कोर्ट में ले जाया गया जहां हमें 'वी लव इंडियन आयडल' चिल्लाने को कहा गया. यह सब उस मौके से पहले हुआ, जब हमें अपनी आवाज का टेस्ट देना था. इस बीच एक प्रतियोगी का सब्र टूट गया और वो खड़ा होकर कहने लगा कि ऑजिशन कहां हो रहा है, जज किधर हैं. एक क्रू मेंबर ने आकर हजारों लोगों के बीच उसे थप्पड़ मार दिया. दूसरे क्रू मेंबर्स ने उस प्रतियोगी को घसीटते हुए बाहर कर दिया. देर रात फाइनली हम उस कॉरिडोर में पहुंचे, जहां कतार से ऑडिशन रूम बने हुए थे.

रियलिटी शो सफलता पाने का एक शॉर्टकट है

पहले राउंड के ऑडिशन तक आनेके लिए हम में से कई 24 घंटे तक खड़े रहे. कुछ क्रू मेंबर्स हमारे पास आते और किसी को खड़ा कर कुछ लाइन गाने को कहते थे. कॉरिडोर में जहां जज भी मौजूद नहीं थे. ऐसा इसलिए कि वो पहले से ही लोगोंको फिल्टर कर लें. जो लोग बहुत बेसुरा गा रहे थे उन्हें एक कमरे में भेजा गया जहां कैमरा था और बाकियों को बिना कैमरे वाले कमरे में.

उधर उस गांव से आए व्यक्ति का ऑडिशन हो रहा था. वाह वाह हो रही थी. जज उसे ऊंचा और तेज गाने को कहते रहे जब तक उसकी आवाज फट नहीं गई, उसपर ठहाके लगे. और वो रोता हुआ बाहर आया. उधर कॉरिडोर से प्रतियोगियों के बेहोश होने की भी खबरें आ रही थीं.

आधी रात मैं तीसरे राउंड तक पहुंच गया. और जब वो हुआ तो मुझे संतोष हुआ. मैं इस संतुष्टी के साथ घर वापस आय़ा कि मैंने टीवी पर आने वाले इस शो को इतने करीब से जाना. हालांकि असलियत हैरान करने वाली थी. अंत में मैं इतना ही कह सकता हूं कि इंडियन आयडल में हर साल पहचान मुश्किल से 10 लोगों को मिलती है लेकिन ये हजारों लोगों के दिलों को तोड़ता है. ''

लेकिन निशांत कौशिक की बातों में कितनी रियलिटी है-

निशांत ने जो कुछ भी लिखा वो किसी भी प्रतियोगी के उस सफर के बारे में था जो सलेक्शन से पहले का होता है. अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं कह सकती हूं कि मैंने भी ऑडीशन्स दिए हैं, और इसी तरह दिए. घंटों लाइन में खड़ी तो मैं भी हुई. कुछ में सलेक्ट हुई कुछ में नहीं. लेकिन सलेक्ट न होने पर मैंने कभी उस मंच के बारे में गलत नहीं बोला. क्योंकि वो मेरे लिए एक मौका था. वो संगीत को वो मंच था, जिसका सपना मेरी आंखों ने भी देखा था. पर आश्चर्य होता है कि जिस प्रतियोगिता में सलेक्ट होने का सपना वो खुद देख रहे थे उसके बारे में उन्होंने क्या कुछ नहीं कह दिया. कमाल तो ये है कि निशांत को ऑडिशन के पूरे प्रोसेस में कुछ भी ऐसा नजर नहीं आया जो उन्हें अच्छा लगा हो. रियलिटी शो की जो रियलिटी उन्होंने बताई उसमें थोड़ा सच तो है लेकिन वही पूरा सच है...ऐसा नहीं है.

मेरी समझ से तो अगर कोई शो, जो आपको इतना बड़ा मंच देता है- जहां आप अपनी प्रतिभा को पूरी दुनिया के सामने रख पाते हैं, तो उस मंच तक पहुंचना आसान तो नहीं होगा. हम इसे इस तरह क्यों नहीं लेते कि दुनिया की कोई भी परीक्षा बिना पसीना बहाए तो पास नहीं की जा सकती. ये PSC की परीक्षा जैसा ही है, जिसमें भाग तो लाखों लोग लेते हैं लेकिन सलेक्ट केवल कुछ ही होते हैं. इंडियन आयडल का ऑडिशन भी लाखों लोगों ने दिया होगा. जो कुछ आप ने देखा या सहा, उसे सहने वाले आप जैसे लाखों रहे होंगे. लेकिन PSC की परीक्षा में सलेक्ट न होने के लिए कोई उसके मुश्किल पैटर्न को दोष नहीं देता और न ही उसे संचालित करने वालों को भला बुरा कहता है.

मैं ये नहीं कहती कि आपने परीक्षा के लिए मेहनत नहीं की होगी लेकिन ये जरूर कहूंगी कि हो सकता है कि दूसरों ने आपसे कुछ ज्यादा अच्छा किया हो.

इंडियन आयडल ने हमें बेहतरीन टेलेंटेड सिगर्स दिए हैं

रियलिटी शो सफलता का एक शॉर्टकट है

सपनों की नगरी मुंबई में हर रोज हजारों लोग आते हैं अपने अपने ख्वाब लिए, उन्हें पूरा करने के लिए किस तरह रहते हैं, किस तरह खाते हैं, कैसे दिन गुजारते हैं, ये वही बता सकते हैं. और वो सफल हो ही जाएं उसकी कोई गारंटी नहीं होती, कुछ मायूस होकर लौट आते हैं कुछ डटे रहते हैं और सालों स्ट्रगल करते हैं. एक मौके की क्या कीमत होती है इन स्ट्रगलर्स से पूछना चाहिए. टीवी पर आने वाले ये रियलिटी शो लोगों को वही एक मौका देते हैं. इसके लिए उन्हें सालों इंतजार नहीं करना होता. ये बस एक शॉर्टकट है. किस्मत के दरवाजे के बाहर अगर कुछ घंटे खड़े रह भी गए तो भी उम्मीद तो होती है कि शायद हमारी किस्मत बदल जाए. पर हां, उसके लिए लंबा इतजार करना, काफी थका देने वाला होता है. पर इंतजार कहा नहीं होता. अगर निशांत सलेक्ट हो गए होते तो ये बातें उन्होंने कब की भुला दी होतीं.

रियलिटी शो की सच्चाई -

रियलिटी शो कोई भी हो उसमें आप वही देखते हैं जो आपको दिखाया जाता है. यानी शो बनाने वाले रियलिटी के नाम पर एक अधूरा सच आपके सामने रखते हैं. पूरा कैसे रख सकते हैं?? वो शो है जिसका एक निर्धारित समय होता है. अमूमन एक घंटा. उस एक घंटे में उन्हें शो को इस लायक बनाना होता है कि वो प्रसारित हो सके. और लोगों के देखने लायक बने. जिसमें टीआरपी का खासा ध्यान रखा जाता है. क्योंकि अगर टीआरपी न रही, तो ऐसे शो टीवी पर दिखाए ही नहीं जाएंगे.

रियलिटी शो बेशक रियल न लगें, थोड़ी स्क्रिप्टिंग भी होती है थोड़े इमोशन्स का तड़का भी होता है, क्योंकि दर्शकों को यही चाहिए भी होता है. एक शॉट को परफैक्ट बनाने के लिए बार-बार रीटेक भी देने पड़ते हैं. वैसे ही जैसा फिल्मों में होता है. टीवी का बिज़नेस ऐसे ही चलता है. ये भी एक रियलिटी है.

मिनी माथुर ने भी इस मामले पर यही कहा है कि 'हां. कुछ इमोशन्स फेक होते हैं. जो उन्हें भी पसंद नहीं. लेकिन क्रू के हर मेंबर के पास अपना अपना काम होता है. उन्होंने भी ऐसी किसी जगह पर किसी को हाथ उठाते या अपशब्द कहते नहीं सुना. हां, लंबा इंतजार करना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है.'

लोगों को स्टेज पर शानदार कपड़े पहने हुए प्रतियोगी दिखाई देते हैं. बॉलीवुड के बेहतरीन सिंगर्स उनकी गायकी पर वाह-वाह करते हैं, उनके साथ सुर से सुर मिलाते हैं. लोग इन्हीं को देखकर अपने सपनों को नए नए आकार देते हैं. और उन्हें पूरा करने के लिए आगे बढ़ने की हिम्मत भी. अगर रियलिटी शो भूखे-प्यासे और बेहोश होते प्रतियोगियों को स्क्रीन पर दिखाएंगे तो लाखों सपनों को तो वहीं का वहीं खत्म कर देंगे. कुछ सच्चाई कड़वी होती हैं, जो किसी को अच्छी नहीं लगतीं.

ट्विटर पर एक तरफ लोग निशांत को ब्रेव कह रहे हैं, उन्हें सच्चाई सामने लाने के लिए धन्यवाद दे रहे हैं लेकिन कुछ लोगों को लगता है कि ये सब निशांत की फ्रस्ट्रेशन है जिसे उन्होंने इस तरह निकाला है. सवाल उनके इतने सालों तक चुप रहने पर भी किए जा रहे हैं. लोगों का ये भी कहना है कि वो सलेक्ट नहीं हो सके इसलिए अब शो की बुराई कर रहे हैं. खैर अपने गाने से न सही लेकिन अपने लेखन से तो निशांत को पॉपुलरिटी मिल ही गई.

निशांत ने रियलिटी शो में सलेक्शन से पहले की परेशानियों पर इतना कुछ लिख डाला. मेरे पास सलेक्शन से पहले और शो के जीतने तक की पूरी कहानी है. परेशानियां हर जगह होती हैं, ये हमपर निर्भर करता है कि हम कौन सी राह चुनते हैं. ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए हर किसी को बाधाएं तो पार करनी ही होती हैं. अगर हर जगह आराम और सुविधाओं की उम्मीद लगाएंगे तो नुकसान आपका ही है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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