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काश ! निहलानी जैसे और होते तो देश यूं असंस्कारी न हुआ होता

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 25 फरवरी, 2017 03:52 PM
  • 25 फरवरी, 2017 03:52 PM
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भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की फंतासियां दिखाना कोई अच्छी बात है क्या? मगर अब प्रकाश झा को कौन बताये की उनकी फिल्म भारत के जनमानस को किस कदर 'असंस्कारी' कर सकता है.

आज फिर से पहलाज निहलानी ने देश की संस्कृति को बचाने के खातिर प्रकाश झा प्रोडक्शन की नई फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुरखा’को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. प्रकाश झा अपनी फिल्म के माध्यम से महिलाओं के सपने और फंतासियों को दिखाने की फ़िराक में थे, वो तो भला हो निहलानी का जिन्होंने समय रहते प्रकाश झा की इस कारस्तानी को पकड़ लिया वरना देश में गजब हो जाता. भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की फंतासियां दिखाना कोई अच्छी बात है क्या? मगर अब प्रकाश झा को कौन बताये की उनकी फिल्म भारत के जनमानस को किस कदर 'असंस्कारी' कर सकता है.

पहलाज निहलानी जिस प्रकार वर्तमान दौर में भारत की संस्कृति बचाने को लेकर प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं, वो वाकई काबिलेतारीफ है. निहलानी अपने कर्तव्यों को लेकर कितने सजग रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विदेशी जेम्स बांड को भी किस करने से रोक लिया, वो अलग बात है कि उनसे नजर बचा कर कई भारतीय कलाकार पर्दे पर किस कर बैठे. अब बेचारे निहलानी अकेले करें तो क्या करें, मगर निहलानी ने अपने कार्यकाल में इस बात का पूरा ख्याल रखा है कोई भी फिल्मों में कुछ ऐसा न कर बैठे जो भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंचाता हो.

ऐसा नहीं है इस दौरान निहलानी को परेशान करने की कोशिश नहीं की गयी, आये दिन मीडिया ने तरह तरह के सवाल पूछ कर उन्हें परेशान करने कि कोशिश की, कोर्ट ने भी निहलानी को असंस्कारी होने को कहा मगर तमाम दुश्वारियों के बावजूद निहलानी ने अपने कर्तव्यों से कभी समझौता नहीं किया, शायद यही वजह है आज मेरी तरह तमाम देशभक्त उन्हें किसी क्रान्तिकारी के रूप में...

आज फिर से पहलाज निहलानी ने देश की संस्कृति को बचाने के खातिर प्रकाश झा प्रोडक्शन की नई फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुरखा’को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. प्रकाश झा अपनी फिल्म के माध्यम से महिलाओं के सपने और फंतासियों को दिखाने की फ़िराक में थे, वो तो भला हो निहलानी का जिन्होंने समय रहते प्रकाश झा की इस कारस्तानी को पकड़ लिया वरना देश में गजब हो जाता. भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की फंतासियां दिखाना कोई अच्छी बात है क्या? मगर अब प्रकाश झा को कौन बताये की उनकी फिल्म भारत के जनमानस को किस कदर 'असंस्कारी' कर सकता है.

पहलाज निहलानी जिस प्रकार वर्तमान दौर में भारत की संस्कृति बचाने को लेकर प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं, वो वाकई काबिलेतारीफ है. निहलानी अपने कर्तव्यों को लेकर कितने सजग रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने विदेशी जेम्स बांड को भी किस करने से रोक लिया, वो अलग बात है कि उनसे नजर बचा कर कई भारतीय कलाकार पर्दे पर किस कर बैठे. अब बेचारे निहलानी अकेले करें तो क्या करें, मगर निहलानी ने अपने कार्यकाल में इस बात का पूरा ख्याल रखा है कोई भी फिल्मों में कुछ ऐसा न कर बैठे जो भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंचाता हो.

ऐसा नहीं है इस दौरान निहलानी को परेशान करने की कोशिश नहीं की गयी, आये दिन मीडिया ने तरह तरह के सवाल पूछ कर उन्हें परेशान करने कि कोशिश की, कोर्ट ने भी निहलानी को असंस्कारी होने को कहा मगर तमाम दुश्वारियों के बावजूद निहलानी ने अपने कर्तव्यों से कभी समझौता नहीं किया, शायद यही वजह है आज मेरी तरह तमाम देशभक्त उन्हें किसी क्रान्तिकारी के रूप में देखते हैं.

वर्तमान दौर में तो पहलाज निहलानी की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है, आज जिस प्रकार चुनावी रैलियों में नेता एक दूसरे को कभी गधा तो कभी चूहा कहने से भी गुरेज नहीं कर रहें है, आये दिन संसद और राज्यों के विधानसभा में 'एक्शन से भरपूर ड्रामा' हो रहा है. वैसे में हर बार मन में एक ही ख्याल आता है कि 'काश! निहलानी जैसे और लोग होते तो देश यूँ असंस्कारी न हुआ होता'.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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