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इस ऑस्कर में क्या मिला भारत और पाकिस्तान को

    • आईचौक
    • Updated: 29 फरवरी, 2016 01:31 PM
  • 29 फरवरी, 2016 01:31 PM
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वैसे तो इस वर्ष के ऑस्कर पुरस्कारों की दौड़ में भारत और पाकिस्तान की कोई फिल्म नॉमिनेट नहीं थी लेकिन इसके बावजूद भारत और पाकिस्तान के दो फिल्मकारों ने ऑस्कर जीतते हुए इन दोनों देशों के लोगोें के चेहरों पर बिखेरी मुस्कान.

भले ही 88वें ऑस्कर अवॉर्ड्स की दौड़ में कोई भारतीय फिल्म शामिल नहीं थी लेकिन भारतीय मूल के फिल्म मेकर्स ने उम्मीदें जरूर जगाई थीं और उसे सच भी साबित कर दिखाया. हालांकि ऐनिमेशन (शॉर्ट फिल्म) की श्रेणी में नॉमिनेटेड होने के बावजूद भारतीय मूल के फिल्मकार संजय पटेल की फिल्म sanjays-super-team ऑस्कर जीतने से चूक गई लेकिन एक और भारतीय मूल के फिल्मकार आसिफ कपाड़िया ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री ऑस्कर जीतकर भारतीयों को चेहरे पर मुस्कान ला दी.

कुछ ऐसा ही पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भी हुआ और पाकिस्तानी मूल की कनाडाई फिल्ममेकर शरमीन आबिद-चिनाय ने बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर जीता. आइए जानें भारत और पाकिस्तान को ऑस्कर में क्या मिला.

आसिफ कपाड़िया ने जीता ऑस्करः

भारतीय मूल के ब्रिटिश फिल्ममेकर आसिफ कपाड़िया को सिंगर एमी वाइनहाउस के जीवन पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'एमी' के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर दिया गया. इस डॉक्यूमेंट्री के लिए कपाड़िया पहले ही गोल्डन ग्लोब और बाफ्टा पुरस्कार जीत चुके हैं. कपाड़िया की यह डॉक्यूमेंट्री फेमस सिंगर रही एमी वाइनहाउस की जिंदगी पर आधारित है और उन्हें श्रद्धांजलि है. बेहद प्रतिभाशाली सिंगर रही एमी वाइनहाउस की 2011 में महज 27 वर्ष की उम्र में ड्रग और ऐल्कोहल से जूझते हुए मौत हो गई थी.

देखेंः आसिफ कपाड़िया की डॉक्यूमेंट्री 'एमी' का ट्रेलरः

 

44 वर्षीय आसिफ कपाड़िया इससे पहले 2012 में आई फिल्म सेन्ना और 2013 में आई इरफान खान स्टारर द वॉरियर का निर्देशन कर चुके हैं. भारत के एक मु्स्लिम परिवार से आने वाले कपाड़िया का जन्म लंदन में हुआ था.

शरमीन लाईं पाक के चेहरे पर खुशीः

पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए भी ऑस्कर में तब खुशी के पल आए जब शरमीन आबिद-चिनॉय को उनकी डॉक्यूमेंट्री 'अ गर्ल इन द रिवर: द प्राइज ऑफ फॉरगिवनेस' के लिए बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री का अवॉर्ड दिया गया. शरमीन का यह दूसरा ऑस्कर अवॉर्ड है....

भले ही 88वें ऑस्कर अवॉर्ड्स की दौड़ में कोई भारतीय फिल्म शामिल नहीं थी लेकिन भारतीय मूल के फिल्म मेकर्स ने उम्मीदें जरूर जगाई थीं और उसे सच भी साबित कर दिखाया. हालांकि ऐनिमेशन (शॉर्ट फिल्म) की श्रेणी में नॉमिनेटेड होने के बावजूद भारतीय मूल के फिल्मकार संजय पटेल की फिल्म sanjays-super-team ऑस्कर जीतने से चूक गई लेकिन एक और भारतीय मूल के फिल्मकार आसिफ कपाड़िया ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री ऑस्कर जीतकर भारतीयों को चेहरे पर मुस्कान ला दी.

कुछ ऐसा ही पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भी हुआ और पाकिस्तानी मूल की कनाडाई फिल्ममेकर शरमीन आबिद-चिनाय ने बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर जीता. आइए जानें भारत और पाकिस्तान को ऑस्कर में क्या मिला.

आसिफ कपाड़िया ने जीता ऑस्करः

भारतीय मूल के ब्रिटिश फिल्ममेकर आसिफ कपाड़िया को सिंगर एमी वाइनहाउस के जीवन पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'एमी' के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर दिया गया. इस डॉक्यूमेंट्री के लिए कपाड़िया पहले ही गोल्डन ग्लोब और बाफ्टा पुरस्कार जीत चुके हैं. कपाड़िया की यह डॉक्यूमेंट्री फेमस सिंगर रही एमी वाइनहाउस की जिंदगी पर आधारित है और उन्हें श्रद्धांजलि है. बेहद प्रतिभाशाली सिंगर रही एमी वाइनहाउस की 2011 में महज 27 वर्ष की उम्र में ड्रग और ऐल्कोहल से जूझते हुए मौत हो गई थी.

देखेंः आसिफ कपाड़िया की डॉक्यूमेंट्री 'एमी' का ट्रेलरः

 

44 वर्षीय आसिफ कपाड़िया इससे पहले 2012 में आई फिल्म सेन्ना और 2013 में आई इरफान खान स्टारर द वॉरियर का निर्देशन कर चुके हैं. भारत के एक मु्स्लिम परिवार से आने वाले कपाड़िया का जन्म लंदन में हुआ था.

शरमीन लाईं पाक के चेहरे पर खुशीः

पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए भी ऑस्कर में तब खुशी के पल आए जब शरमीन आबिद-चिनॉय को उनकी डॉक्यूमेंट्री 'अ गर्ल इन द रिवर: द प्राइज ऑफ फॉरगिवनेस' के लिए बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री का अवॉर्ड दिया गया. शरमीन का यह दूसरा ऑस्कर अवॉर्ड है. इससे पहले वह 2012 में ऐसिड हमलों पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'सेविंग फेस' के लिए भी ऑस्कर जीत चुकी हैं. शरमीन ऑस्कर जीतने वाली पाकिस्तान की पहली फिल्ममेकर हैं. उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध में हुआ था.

देखें: शरमीन की डॉक्यूमेंट्री 'अ गर्ल इन द रिवर' का ट्रेलर

'अ गर्ल इन द रिवर' ऑनर किलिंग के नाम पर अपने पिता और चाचा के घातक हमले से बचने वाली एक 18 वर्षीय पाकिस्तानी लड़की की कहानी है. पाकिस्तानी मूल की शरमीन फिल्ममेकर होने के साथ-साथ पत्रकार और सोशल ऐक्टिविस्ट भी हैं.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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