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'मॉम' रिव्यू: फिल्मों की ट्रिपल सेंचुरी पूरी करने का ये है श्रीदेवी स्टाइल

    • सिद्धार्थ हुसैन
    • Updated: 06 जुलाई, 2017 09:45 AM
  • 06 जुलाई, 2017 09:45 AM
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श्रीदेवी कमाल हैं. ये 'मॉम' देखने के बाद वाली प्रतिक्रिया नहीं है. बल्कि ये उनकी काबिलियत को सलाम है जो एक साधारण किरदार में असाधारण जान डालने की ताकत रखता है.

श्रीदेवी का नाम जुबान पर आते ही ना जाने कितनी फिल्में आंखों के सामने आ जाती हैं- मिस्टर इंडिया, सदमा, चालबाज़, लम्हें, चांदनी, तोहफा, लिस्ट खत्म नहीं होगी. 80 और 90 के दशक में राज करने वाली इस कमाल की अभिनेत्री की जितनी भी तारीफ की जाए कम है. और वो सिर्फ इसलिये नहीं की वो अपने वक्त की नंबर 1 हीरोइन थीं, बल्कि श्रीदेवी की सबसे अहम खूबी है कि समय के साथ उन्होंने बदलाव में खुद को बखूबी ढाला. चुलबुलापन हो या ग्लैमरस अंदाज, हर किरदार के जज़्बातों को उन्होंने बेहद खूबसूरती से फिल्मी परदे पर उजागर किया.

श्रीदेवी यकीनन औरों से अलग हैं. जब उन्होंने 'इंग्लिश विंगलिश' में हलके-फुल्के अंदाज में आम ज़िंदगी से जुड़ी आम परेशानी को दिखाया तो दर्शकों ने उन्हें अपना मान लिया. लोगों को लगा श्रीदेवी उन्हीं में से एक हैं जो अंग्रेज़ी की परेशानी से जूझ रही हैं और एक डी ग्लैमरस रोल में भी श्रीदेवी के अभिनय को सरहाया गया. जबरदस्ती का मेकअप किये बगैर उन्होंने अपनी ही उम्र के किरदार को चुना, नतीजा 'इंग्लिश विंगलिश' सुपर हिट रही.

और अब, अपनी अगली फिल्म 'मॉम' में भी उन्होंने खुद को दोहराया नहीं, इस बार भी फिल्मी पर्दे पर वो दो बच्चों की मां के किरदार में हैं लेकिन फिल्म का विषय बेहद संजीदा है. फिल्म 'मॉम' एक रिवेंज ड्रामा है, दिल्ली शहर में श्रीदेवी एक बड़े स्कूल में टीचर हैं और अपने परिवार के साथ खुशनुमा जीवन गुजार रही हैं. घर में छुटपुट परेशानियां हैं क्योंकि उनकी बड़ी बेटी सौतेली है जो श्री को अपनी मां की जगह नहीं दे पाती, लेकिन इस परिवार के लिये मुसीबतों का पहाड़ तब टूटता है जब कुछ रईसज़ादे बड़ी बेटी को किडनैप कर उसके साथ बलात्कार करते हैं और फिर एक माँ कैसे उन चार दरिंदों से बदला लेती है.

श्रीदेवी का नाम जुबान पर आते ही ना जाने कितनी फिल्में आंखों के सामने आ जाती हैं- मिस्टर इंडिया, सदमा, चालबाज़, लम्हें, चांदनी, तोहफा, लिस्ट खत्म नहीं होगी. 80 और 90 के दशक में राज करने वाली इस कमाल की अभिनेत्री की जितनी भी तारीफ की जाए कम है. और वो सिर्फ इसलिये नहीं की वो अपने वक्त की नंबर 1 हीरोइन थीं, बल्कि श्रीदेवी की सबसे अहम खूबी है कि समय के साथ उन्होंने बदलाव में खुद को बखूबी ढाला. चुलबुलापन हो या ग्लैमरस अंदाज, हर किरदार के जज़्बातों को उन्होंने बेहद खूबसूरती से फिल्मी परदे पर उजागर किया.

श्रीदेवी यकीनन औरों से अलग हैं. जब उन्होंने 'इंग्लिश विंगलिश' में हलके-फुल्के अंदाज में आम ज़िंदगी से जुड़ी आम परेशानी को दिखाया तो दर्शकों ने उन्हें अपना मान लिया. लोगों को लगा श्रीदेवी उन्हीं में से एक हैं जो अंग्रेज़ी की परेशानी से जूझ रही हैं और एक डी ग्लैमरस रोल में भी श्रीदेवी के अभिनय को सरहाया गया. जबरदस्ती का मेकअप किये बगैर उन्होंने अपनी ही उम्र के किरदार को चुना, नतीजा 'इंग्लिश विंगलिश' सुपर हिट रही.

और अब, अपनी अगली फिल्म 'मॉम' में भी उन्होंने खुद को दोहराया नहीं, इस बार भी फिल्मी पर्दे पर वो दो बच्चों की मां के किरदार में हैं लेकिन फिल्म का विषय बेहद संजीदा है. फिल्म 'मॉम' एक रिवेंज ड्रामा है, दिल्ली शहर में श्रीदेवी एक बड़े स्कूल में टीचर हैं और अपने परिवार के साथ खुशनुमा जीवन गुजार रही हैं. घर में छुटपुट परेशानियां हैं क्योंकि उनकी बड़ी बेटी सौतेली है जो श्री को अपनी मां की जगह नहीं दे पाती, लेकिन इस परिवार के लिये मुसीबतों का पहाड़ तब टूटता है जब कुछ रईसज़ादे बड़ी बेटी को किडनैप कर उसके साथ बलात्कार करते हैं और फिर एक माँ कैसे उन चार दरिंदों से बदला लेती है.

'मॉम' में श्रीदेवी ने निभाया है टाइटल रोल, फिल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, श्रीदेवी के दर्द और एक मां की पीड़ा, से दर्शक भाव विभोर हो जायेंगे, खासतौर से उस सीन में जब श्रीदेवी पहली बार अस्पताल में ज़ख़्मी हालत में अपनी बेटी को देखती हैं, उनका ग़म देख किसी का भी दिल दहल जायेगा.

हालांकि फिल्म की पठकथा इंटरवल के बाद थोड़ी ओवर दा टॉप हो जाती है और कुछ सीन्स खासतौर पर खलनायकों से अलग-अलग तरीके से बदला लेने वाले थोड़े फ़िल्मी या कहें नकली जरूर लगते हैं, लेकिन श्रीदेवी के अभिनय और फर्स्ट हाफ का इमोशनल ड्रामा खामियों को छिपाने में कामयाब रहता है.

एक्टिंग के डिपार्टमेंट में ये फिल्म पूरी तरह से श्रीदेवी की है और उन्होंने अपने किरदार को सिर्फ निभाया ही नहीं बल्कि पूरी तरह से जिया है. लेकिन श्रीदेवी को पूरी कास्ट से जबरदस्त सपोर्ट भी मिला है, उनकी बड़ी बेटी के किरदार में पाकिस्तानी एक्ट्रेस सजल अली और पति के रोल में पाकिस्तानी एक्टर अदनान सिद्दीक़ी ने भी लाजवाब अभिनय किया है. अक्षय खन्ना भी पुलिस ऑफ़िसर के किरदार में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहते हैं.

स्पोशल रोल में हैं नवाजुद्दीन

और आखिर में नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी जो इस फिल्म में स्पेशल रोल में दिखेंगे, उन्होंने साबित कर दिया है कि एक्टर को अपना टेलेंट दिखाने के लिये लंबे रोल की जरूरत नहीं होती, छोटे रोल में भी नवाज़ ने दमदार अभिनय किया है और दर्शकों को हंसाने और भावुक करने में वो कामयाब होते हैं. अभिमन्यु सिंह खलनायक के तौर पर घिनौने और डरावने लगते हैं, जो ज़ाहिर करता है कि उन्होंने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है.

'मॉम' में गानों का कोई स्कोप नहीं है, फिरभी ए आर रहमान का म्यूजिक फिल्म की लय के साथ जाता है. निर्देशक रवि उदयावर की ये पहली फिल्म है और काफ़ी हद तक वो पूरी फिल्म को बांध कर रखते हैं लड़कियों के साथ आज भी समाज में किस तरह से अत्याचार होता है और कैसे जागरुकता होनी चाहिये, ऐसे अहम विषय की गरिमा को उन्होंने हल्का नहीं होने दिया. फिल्म की कहानी है रवि उदयावर, गिरीश कोहली और वेकंट राव की, स्क्रीनप्ले है गिरीश कोहली का. अनय गोस्वामी की सिनेमेटोग्राफ़ी फिल्म के मूड को इमानदारी से दिखाती है.

मॉम में कुछ जगह ड्रामे का ओवरडोज़ भी होता है लेकिन श्रीदेवी के चाहनेवाले इस फिल्म को जरूर देखें, अपने पति बोनी कपूर की फिल्म के साथ श्रीदेवी ने 300 फिल्मों का आंकड़ा पार कर लिया है, जो बिलकुल भी मामूली बात नहीं है.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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