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मोहम्मद रफी की चाहत का जुनून: ये बेडरूम है या रफी का मंदिर

    • गोपी मनियार
    • Updated: 31 जुलाई, 2019 11:11 AM
  • 31 जुलाई, 2019 11:11 AM
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अहमदाबाद में मोहम्मद रफी के एक चाहने वाले ने उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया है. उमेश अपने घर में ना सिर्फ रफी साहब के लिये एक पूरा कमरा बनाया है, बल्की उनका मंदिर भी बनाया है.

भारत के संगीत चमकते सितारे मोहम्मद रफी ने आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कहा था. रफी साहब एक ऐसे गायक थे, जिनके बिना आज भी संगीत की दुनिया अधुरी मानी जाती है. मोहम्मद रफी एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई न जानता हो. कई दशकों तक उन्होंने बेहतरीन फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाए. अहमदाबाद में उनके एक चाहने वाले उमेश मखीजा ने उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया है. उमेश अपने घर में ना सिर्फ रफी साहब के लिये एक पूरा कमरा बनाया है, बल्कि उनका मंदिर भी बनाया है. कपडे़ का व्यापार करने वाले मखीजा रफी साहब को भगवान की तरह मानते हैं.

उनके दीवानेपन की हद यह है कि अपने मकान का एक कमरा उन्होंने रफी के नाम पर रखा हैं. इस कमरे का दर्जा मंदिर का है और यहां पर हर चीज पर रफी साहब का नाम है. इस कमरे में एक घड़ी भी रखी गयी है, उस घड़ी की खास बात ये है कि ये घड़ी 10 बज कर 29 मिनट पर रुकी हुई है. ये वो वक्त था जब 31 जुलाई 1980 में रफी साहब ने अंतिम सांस ली थी. कमरे में रफी साहब की यादें सहेजती हुई 55 तस्वीरें लगायी गयी हैं. 55 तस्वीरें इसलिए क्योंकि रफी साहब की उम्र 55 साल की थी. कमरे के बेड पर बिछाई चादर पर रफी के गाने नगमों को प्रिन्ट किया गया है. इसी बेड पर दो तकियों पर रफी साहब के जन्म और मौत की तारीख लिखी हुई है.

चादर पर रफी के गाने नगमों को प्रिन्ट किया गया है

उनके मंदिर में रफी साहब की कब्र की मिट्टी और रफी साहब जिन चीजों का इस्तमाल किया करते थे वो सभी असल चीजें रफी साहब के परिवार वालों ने उमेश मखीजा को दी हैं.

रफी साहब का चश्मा

उमेश मखीजा का...

भारत के संगीत चमकते सितारे मोहम्मद रफी ने आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कहा था. रफी साहब एक ऐसे गायक थे, जिनके बिना आज भी संगीत की दुनिया अधुरी मानी जाती है. मोहम्मद रफी एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई न जानता हो. कई दशकों तक उन्होंने बेहतरीन फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाए. अहमदाबाद में उनके एक चाहने वाले उमेश मखीजा ने उन्हें भगवान का दर्जा दे दिया है. उमेश अपने घर में ना सिर्फ रफी साहब के लिये एक पूरा कमरा बनाया है, बल्कि उनका मंदिर भी बनाया है. कपडे़ का व्यापार करने वाले मखीजा रफी साहब को भगवान की तरह मानते हैं.

उनके दीवानेपन की हद यह है कि अपने मकान का एक कमरा उन्होंने रफी के नाम पर रखा हैं. इस कमरे का दर्जा मंदिर का है और यहां पर हर चीज पर रफी साहब का नाम है. इस कमरे में एक घड़ी भी रखी गयी है, उस घड़ी की खास बात ये है कि ये घड़ी 10 बज कर 29 मिनट पर रुकी हुई है. ये वो वक्त था जब 31 जुलाई 1980 में रफी साहब ने अंतिम सांस ली थी. कमरे में रफी साहब की यादें सहेजती हुई 55 तस्वीरें लगायी गयी हैं. 55 तस्वीरें इसलिए क्योंकि रफी साहब की उम्र 55 साल की थी. कमरे के बेड पर बिछाई चादर पर रफी के गाने नगमों को प्रिन्ट किया गया है. इसी बेड पर दो तकियों पर रफी साहब के जन्म और मौत की तारीख लिखी हुई है.

चादर पर रफी के गाने नगमों को प्रिन्ट किया गया है

उनके मंदिर में रफी साहब की कब्र की मिट्टी और रफी साहब जिन चीजों का इस्तमाल किया करते थे वो सभी असल चीजें रफी साहब के परिवार वालों ने उमेश मखीजा को दी हैं.

रफी साहब का चश्मा

उमेश मखीजा का कहना है कि रफी साहब को वो पहले से इतना नहीं चाहते थे, लेकिन पहली बार जब उनका गाना सुना था, तब पता नहीं क्या हुआ था, मैं बस रफी साहब की ओर खिंचता चला गया. आज उमेश मखीजा के पास रफी साहब के 4000 से ज्यादा गानों का संग्राहलय है. यही नहीं उमेश मखीजा को लोग रफी साहब के भक्त के तौर पर जानते हैं. जो भी किताब रफी साहब के जीवन पर लिखी जाती है उसे उमेश मखीजा के जरिए बनाए गए रफी साहब के कमरे में पहले रखा जाता है.

उमेश मखीजा के पास रफी साहब के 4000 से ज्यादा गानों का संग्राहलय है

दिलचस्प बात तो ये है कि रफी साहब के लिये उनके घर में बने इस खास कमरे को देखने के लिए रफी साहब के चाहने वाले यहां अक्सर आया करते हैं. इस कमरे में 365 दिन 24 घंटे रफी साहब के ही गाने बजाए जाते हैं. मखीजा के पास मोहम्मद रफी द्वारा गाए चार हजार से ज्यादा गीतों का भंडार हैं. इनमें कुछ गाने तो ऐसे हैं जिनका और कहीं मिलना बहुत मुश्किल है. ये गाने हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती और देश की अन्य भषाओ में हैं. यहां तक कि दो गीत तो अंग्रेजी में भी गाए हुए हैं.

रफी साहब के चाहने वाले यहां दूर दूर से आते हैं.

उमेश मखीजा की दीवानगी इस हद तक है कि वो रवीवार को रफीवार के तौर पर मनाते हैं. इस दिन दोपहर 12 से लेकर शाम 5 बजे तक जो भी रफी साहब को चहता है वो यहां पर आकर रफी साहब के गानों का लुफ्त उठा सकता है. रफी साहब के चाहने वाले यहां दूर दूर से आते हैं.

रफी साहब के ही एक गाने के लफ्ज यहां लिखे हैं, महकी महकी फ़िजा ये कहती है, तु कहीं आस पास है दोस्त....ये लफ्ज़ और यही रुह इस कमरे में जिंदा लगती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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