1) जिन्हें पॉलिटिकल ड्रामा देखने में मजा आता है महारानी उनके लिए देखने लायक शो है. इसे सुभाष कपूर ने क्रिएट किया है. उन्हें कुछ अच्छी सामाजिक-राजनीतिक कहानियों के लिए जाना जाता है. महारानी से पहले उन्होंने मैडम चीफ मिनिस्टर, फंस गए रे ओबामा, जॉली एलएलबी और जॉली एलएलबी 2 बनाया है.
2) जो महारानी को लालू और राबड़ी यादव की कहानी के तौर पर देखने की तैयारी में हैं उन्हें निराशा हाथ लग सकती है. निश्चित ही कुछ घटनातओं का घटनाओं का सन्दर्भ सीधे-सीधे लालू-राबड़ी से जुड़ता है मगर पूरी कहानी फिक्शनल है. मेकर्स ने डिस्क्लेमर लगाया है पहले से ही.
3) बिहारी उच्चारण को भुला दिया जाए तो महारानी का सबसे मजबूत पक्ष हुमा कुरैशी और सोहम शाह का मुख्य किरदार के रूप में अभिनय है. सोहम शाह ने पिछड़े वर्ग से आने वाली मुख्यमंत्री भीमा भारती का किरदार निभाया है. पार्टी के अंदर और बाहर अवसरवादी नेताओं से घिरे हैं. उनपर हमला होता है जिसके बाद सबको हैरान करते गंवई और घरबार संभालने वाली पत्नी रानी भारती को ही मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा देते हैं. अमित सियाल का भी अभिनय ठीक ठाक कह सकते हैं. उन्होंने नवीन कुमार की भूमिका निभाई है.
4) राजनीतिक कहानी बिहार से थी तो बहुत गुंजाइश थी. लेकिन कमजोर है. इसमें कई चीजों का जर्क नजर आता है. जैसे पॉलिटिकल कहानी में पक्ष-विपक्ष के नेता तो हैं, लेकिन राजनीति का सबसे अहम बिंदु पब्लिक ही गायब है.
5) बहुत डिटेल और गंभीर तो नहीं मगर सीरीज के कई प्लाट 90 के दशक में बिहार के जातीय संघर्षों पर भी हैं. भूपति सामंतों, जातीय सेनाओं और हथियारबंद वामपंथियों के बीच तनाव दिखता है. भ्रष्टाचार, हिंसा और बदहाल क़ानून व्यवस्था के साथ बिहार की राजनीति में वर्ग संघर्ष को समझने का एक संक्षिप्त जरिया है महारानी. संक्षिप्त ही. ठोस...
1) जिन्हें पॉलिटिकल ड्रामा देखने में मजा आता है महारानी उनके लिए देखने लायक शो है. इसे सुभाष कपूर ने क्रिएट किया है. उन्हें कुछ अच्छी सामाजिक-राजनीतिक कहानियों के लिए जाना जाता है. महारानी से पहले उन्होंने मैडम चीफ मिनिस्टर, फंस गए रे ओबामा, जॉली एलएलबी और जॉली एलएलबी 2 बनाया है.
2) जो महारानी को लालू और राबड़ी यादव की कहानी के तौर पर देखने की तैयारी में हैं उन्हें निराशा हाथ लग सकती है. निश्चित ही कुछ घटनातओं का घटनाओं का सन्दर्भ सीधे-सीधे लालू-राबड़ी से जुड़ता है मगर पूरी कहानी फिक्शनल है. मेकर्स ने डिस्क्लेमर लगाया है पहले से ही.
3) बिहारी उच्चारण को भुला दिया जाए तो महारानी का सबसे मजबूत पक्ष हुमा कुरैशी और सोहम शाह का मुख्य किरदार के रूप में अभिनय है. सोहम शाह ने पिछड़े वर्ग से आने वाली मुख्यमंत्री भीमा भारती का किरदार निभाया है. पार्टी के अंदर और बाहर अवसरवादी नेताओं से घिरे हैं. उनपर हमला होता है जिसके बाद सबको हैरान करते गंवई और घरबार संभालने वाली पत्नी रानी भारती को ही मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा देते हैं. अमित सियाल का भी अभिनय ठीक ठाक कह सकते हैं. उन्होंने नवीन कुमार की भूमिका निभाई है.
4) राजनीतिक कहानी बिहार से थी तो बहुत गुंजाइश थी. लेकिन कमजोर है. इसमें कई चीजों का जर्क नजर आता है. जैसे पॉलिटिकल कहानी में पक्ष-विपक्ष के नेता तो हैं, लेकिन राजनीति का सबसे अहम बिंदु पब्लिक ही गायब है.
5) बहुत डिटेल और गंभीर तो नहीं मगर सीरीज के कई प्लाट 90 के दशक में बिहार के जातीय संघर्षों पर भी हैं. भूपति सामंतों, जातीय सेनाओं और हथियारबंद वामपंथियों के बीच तनाव दिखता है. भ्रष्टाचार, हिंसा और बदहाल क़ानून व्यवस्था के साथ बिहार की राजनीति में वर्ग संघर्ष को समझने का एक संक्षिप्त जरिया है महारानी. संक्षिप्त ही. ठोस नहीं.
6) किसी कहानी में ड्रामेटिक एंट्रीज और वनलाइनर्स पसंद करने वालों के लिए भी महारानी बढ़िया सीरीज हो सकती है. इसके कुछ वनलाइनर्स वाकई लाजवाब बने हैं.
7) ओवरप्लाट और महारानी की कहानी में कुछ कैरेक्टर्स की कास्टिंग खटकती है. सीरीज के एपिसोड कहीं-कहीं जरूरत से ज्यादा लम्बे नजर आते हैं. जबकि कुछ प्लाट ऐसे थे जिन्हें विस्तार दिया जा सकता था पर जल्दबाजी में समेत दिया गया.
8) महारानी को सोनीलिव पर 28 मई यानी आज से ही स्ट्रीम किया गया है. इसमें कुल 10 एपिसोड हैं. निर्देशन करण शर्मा का है. हुमा, सोहम और अमित सियाल के अलावा कनी कस्तूरी, इनामुल हक़ और वीनित कुमार ने भी अहम भूमिकाएं निभाई हैं.
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