• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

मुमताज़ तुम्हें किसी और दुनिया में मुहब्बत ही मुहब्बत मिले

    • अनु रॉय
    • Updated: 14 फरवरी, 2019 01:02 PM
  • 14 फरवरी, 2019 01:02 PM
offline
86वीं जयंती पर मधुबाला को याद कीजिए जो फिल्मी पर्दे पर तो हंसती मुस्कुराती दिखती थीं, लेकिन असल जिंदगी में अपने बदरंग नसीब के कारण परेशान रहती थीं. मधुबाला जो हिंदुस्तान की धड़कन थीं, लेकिन उनके दिल की धड़कन ही धोखेबाज़ निकली.

"इंसान किसी से दुनिया में, एक बार मुहब्बत करता है इस दर्द को ले कर जीता है, इस दर्द को ले कर मरता है."

ईश्वर जिन्हें ख़ूबसूरती से नवाज़ता है उनकी तक़दीर में न जाने क्यों बेइंतहा दुख भी लिख देता है. क्यों नहीं ख़ूबसूरत इंसानों के हिस्से में मुकम्मल प्रेम-कहानियां आती है. अधूरापन ही क्यों नियति बन जाती है उनकी. जो ख़ूबूसरत हैं उन्हें भी हासिल होनी चाहिए उनकी मुहब्बत. दिल में किसी की आरज़ू लिए कोई जब इस दुनिया से जाता है तो दर्द भी उसके साथ जाता है न. फिर ऐसे जाने से मुक्ति मिल पाती होगी क्या?

आज चौदह फ़रवरी यानि इश्क़-वालों का दिन. आज ही के दिन ईश्वर ने अपनी सबसे खूबसूरत कृति को इस दुनिया में भेजा था. हां ये और बात है कि उसे सिरजते हुए वो इस क़दर खो गया था कि लड़की के दिल में मुहब्बत भरने के बाद, दिल के दरवाज़े को बंद करना भूल गया. ईश्वर की गलती से उस लड़की के दिल में एक सुराख़ रह गया. लड़की जब पैदा हुई तो उसका सारा बदन नीले कमल के सरीखा नीला था. लड़की बीमार थी मगर मौत को उसने अस्पताल में हरा दिया था. वो खुश होती हुई अपनी अम्मी की गोद में बैठ घर आ गयी लेकिन वो कहां जानती थी कि ज़िंदगी तमाम दुश्वारियों के साथ बाहें फैलाये उसका इंतज़ार कर रही है.

ईश्वर ने मधुबाला के चेहरे को फुर्सत में बनाया पर दिल की खुशी नसीब में लिखना भूल गया.

मुमताज़ अपने ग्यारह भाई-बहनों के साथ बड़ी हो ही रही थी, कि उन्हीं दिनों उसके अब्बू की नौकरी चली गयी. अब्बू-जान जब नौकरी की तलाश में निकलते तो साथ में नौ साल की बिटिया मुमताज़ को भी लिए चलते. उन्हें लगता कि शायद उसकी खूबसूरती देख उसे कोई फिल्मों में छोटा-मोटा रोले दे दे. और हुआ भी ऐसा. मुमताज़ को छोटे-छोटे रोल मिलने लगे. घर में पैसे की आमद होने लगी. अब्बू का लालच बढ़ाता गया....

"इंसान किसी से दुनिया में, एक बार मुहब्बत करता है इस दर्द को ले कर जीता है, इस दर्द को ले कर मरता है."

ईश्वर जिन्हें ख़ूबसूरती से नवाज़ता है उनकी तक़दीर में न जाने क्यों बेइंतहा दुख भी लिख देता है. क्यों नहीं ख़ूबसूरत इंसानों के हिस्से में मुकम्मल प्रेम-कहानियां आती है. अधूरापन ही क्यों नियति बन जाती है उनकी. जो ख़ूबूसरत हैं उन्हें भी हासिल होनी चाहिए उनकी मुहब्बत. दिल में किसी की आरज़ू लिए कोई जब इस दुनिया से जाता है तो दर्द भी उसके साथ जाता है न. फिर ऐसे जाने से मुक्ति मिल पाती होगी क्या?

आज चौदह फ़रवरी यानि इश्क़-वालों का दिन. आज ही के दिन ईश्वर ने अपनी सबसे खूबसूरत कृति को इस दुनिया में भेजा था. हां ये और बात है कि उसे सिरजते हुए वो इस क़दर खो गया था कि लड़की के दिल में मुहब्बत भरने के बाद, दिल के दरवाज़े को बंद करना भूल गया. ईश्वर की गलती से उस लड़की के दिल में एक सुराख़ रह गया. लड़की जब पैदा हुई तो उसका सारा बदन नीले कमल के सरीखा नीला था. लड़की बीमार थी मगर मौत को उसने अस्पताल में हरा दिया था. वो खुश होती हुई अपनी अम्मी की गोद में बैठ घर आ गयी लेकिन वो कहां जानती थी कि ज़िंदगी तमाम दुश्वारियों के साथ बाहें फैलाये उसका इंतज़ार कर रही है.

ईश्वर ने मधुबाला के चेहरे को फुर्सत में बनाया पर दिल की खुशी नसीब में लिखना भूल गया.

मुमताज़ अपने ग्यारह भाई-बहनों के साथ बड़ी हो ही रही थी, कि उन्हीं दिनों उसके अब्बू की नौकरी चली गयी. अब्बू-जान जब नौकरी की तलाश में निकलते तो साथ में नौ साल की बिटिया मुमताज़ को भी लिए चलते. उन्हें लगता कि शायद उसकी खूबसूरती देख उसे कोई फिल्मों में छोटा-मोटा रोले दे दे. और हुआ भी ऐसा. मुमताज़ को छोटे-छोटे रोल मिलने लगे. घर में पैसे की आमद होने लगी. अब्बू का लालच बढ़ाता गया. अब वो मुमताज़ को बिटिया कम और पैसे कमाने की मशीन ज्यादा समझने लगे. मुमताज़ का बचपन इसी में खोता चला गया.

वक़्त गुजरता गया. 1933 में जन्मी मुमताज़ जब चौदह साल की हुई तो उसे पहला बड़ा-ब्रेक राजकपूर के साथ मिला. फिल्म थी नील-कमल. उसके बाद 1949 उसकी दूसरी फिल्म 'महल' आयी कमाल अमरोही के डायरेक्शन में बनी. इस फिल्म ने मुमताज़ को मुमताज़ से मधुबाला बना दिया. अब वो हिंदुस्तान की मल्लिका बन चुकी थीं. वो हमारी अपनी मर्लिन थी. हमारी अपनी वीनस यानि हमारी मधुबाला.

इस फिल्म के बाद मधुबाला के लिए सब कुछ बदल गया था. गरीबी और मुफ़लिसी के दिन जा चुके थे. वो स्टार बन चुकी थी. एक के बाद एक उनकी हिट फ़िल्में, चलती का नाम गाड़ी, बरसात की एक रात, हावड़ा ब्रीज़ और हंसते आंसू, आती गयी. और फिर 1960 में आयी वो फिल्म जिसने भारतीय सिनेमा का इतिहास बदल कर रख दिया. मधुबाला को स्टार से स्थापित अभिनेत्री बना दिया. फिल्म थी मुग़ल-ए-आज़म.

जहां एक तरफ़ मधुबाला का कैरियर सफ़लता की तमाम ऊंचाइयों को नापने में मशरूफ था वहीं निजी ज़िंदगी में वो अकेली थीं. एक्टर प्रेमनाथ के साथ उनका संबंध कुछ छे-सात महीने का रहा. धर्म इस रिश्ते के रास्ते में आ खड़ा हुआ था. उनका साथ छूटने के मधुबाला ने अपनी तन्हा ज़िंदगी में युसूफ खान यानि दिलीप कुमार को जगह दी. उनसे बेपनाह मुहब्बत करने लगी. उन्हें लगा अब उनकी ज़िंदगी खुशियों से भरने वाली है. दिल में ही नहीं ज़बान पर भी हर वक़्त युसूफ साहेब रहने लगे. उनकी सपनीली आंखें शादी के सपने संजोने लगी. युसूफ साहेब भी अपनी जान छिड़कते थे. बकौल मधुबाला की बहन मधुर की मानें तो दोनों ने अंगूठियां तक बदल ली थी. दोनों सिर तक इश्क़ में डूबे थे. मधुबाला बचपन से लेकर अब तक के मिले जख्मों को भूलने लगी थीं. वो तो ये भी सोचने लगी थीं कि शायद उनकी बीमारी भी ठीक होने लगी है. लेकिन जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हर बार हो ये मुमकिन कहां होता है.

क़िस्मत ने तो कुछ और ही सोच रखा था उसके लिए. नया दौर की शूटिंग के दौरान बी आर चोपड़ा और मधुबाला के पिता में किसी बात को ले कर ठन गयी. ऐसे में कोर्ट में दिलीप साहेब ने बी आर चोपड़ा की तरफ से गवाही दे दी. इसके बाद मधुबाला के पिता ने तय कर लिया कि चाहे जो हो जाये वो मधुबाला और दिलीप साहेब को एक नहीं होने देंगे. सतही तौर पर तो इसे ही वज़ह कहते हैं मगर इंडस्ट्री वाले मानते हैं कि उनके पिता को लगा था कि अगर बेटी शादी करके चली जाएगी तो आमदनी कहां से होगी. अपने मतलब के लिए उन्होंने अपनी बेटी की खुशियां कुर्बान कर दीं.

एक प्रेम कहानी जो मुकम्मल होने ही वाली थी उसे उजाड़ दिया उन्होंने. लेकिन सिर्फ प्रेम-कहानी नहीं उजड़ी थी मधुबाला की दुनिया भी दिलीप साहेब के जाने के साथ ही उजाड़ हो गयी थी. टूटे दिल पर बीमारी ने पुरजोर तरीके से हमला बोला. मधुबाला फिर से खून की उल्टियां करने लगी. थोड़े इलाज के बाद ठीक हुई और काम पर लौट आयी. उन्हीं दिनों वो किशोर कुमार से मिली. मुहब्बत हुई और शादी भी मगर वो दिल एक बार किसी से सच में इश्क़ कर बैठा हो, उसके लिए कहां मुमकिन होता है दुबारा से उस इश्क को जीना. वक़्त गुजर रहा था मधुबाला दिन-ब-दिन बीमार होती जा रही थी. किशोर कुमार उन्हें इलाज के लिए लंदन ले गए मगर डॉक्टर ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया.

लंदन से लौटने के बाद किशोर कुमार मधुबाला को उनके पिता के घर पर पहुंचा गए. उनकी अपनी व्यस्ताएं थीं. मधुबाला फिर एक बार अकेली हो गयी थी. वो आंखें जिनके सपने सारा हिंदुस्तान देखा करता था अब हर गुज़रते दिन के साथ अपनी मौत का इंतज़ार करने लगी. उनके होंठों से वो ग़ुलाब जैसी हंसी गायब होने लगी. जिस्म सिर्फ हड्डियों का ढांचा बन कर रह गया. मुहब्बत के लिए बनीं मुमताज़ मुहब्बत के लिए ही तरसती इस दुनिया से रुख़सत हो गयी.

आज अगर होती तो अपना 86 वां जन्मदिन मना रही होतीं. मगर क़िस्मत के लिखे के आगे कहां किसी का चल पाया है जो उनका चलता.

उनके जन्मदिन पर उनके लिए बस यही ख़्वाहिश की जा सकती है कि,

"मुमताज़ तुम जिस भी दुनिया में हो तुम्हें सिर्फ और सिर्फ मुहब्बत मिले."

ये भी पढ़ें-

...जब मधुबाला और सत्यजीत रे ने खिंचवाई सेल्फी

'मधुबाला' बन रेखा ने साबित कर दिया कि वो एवरग्रीन हैं..

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲