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Kajal Raghwani ने जातिवाद का हवाला देकर भोजपुरी सिनेमा में बवाल मचा दिया!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2021 03:25 PM
  • 21 दिसम्बर, 2021 03:25 PM
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Pawan Singh vs Khesari Lal Yadav: भोजपुरी सिनेमा की मशहूर अदाकारा काजल राघवानी ने अपनी फिल्म इंडस्ट्री में जातिवाद की बात उजागर करके तहलका मचा दिया है. बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद यानी नेपोटिज्म की बातें तो खूब होती रही हैं.

हिंदुस्तान में जातिवाद की जड़ें बहुत ज्यादा गहरी हैं. समाज और सियासत तक इसका प्रभाव खूब देखने को मिलता है. जाति का सीधा अर्थ समूह, विशेषता या गुण से होता है. इंसानों की तरह इसी अर्थ में फूल, पशु, पक्षी, अनाज, फल और सब्जी आदि की जाति जानी और पहचानी जाती है. जाति एक तरह की भेदक विशेषता का बोधक है. कहा गया है कि प्राचीन व्यवस्था में जाति को कर्मों के आधार पर बांटा गया. लेकिन जैसे-जैसे समाज प्रगति करता गया, इंसानों में चेतना बढ़ती गई, जाति राजनीति का हथियार बनती गई. कुछ स्वार्थी लोग अपने सियासी हित के लिए जाति को राजनीति की गोद में बिठाकर समाज को बांटना शुरू कर दिया. यही वजह है कि 21वीं सदी में भी जाति जहर बन चुका है, जिसका विस्तार समाज, सियासत होते हुए अब सिनेमा तक हो चुका है.

समाज और सियासत की तरह सिनेमा में जातिवाद की बात हम यूं नहीं कह रहे हैं. भोजपुरी सिनेमा की मशहूर अदाकारा काजल राघवानी ने अपनी फिल्म इंडस्ट्री में जातिवाद की बात उजागर करके तहलका मचा दिया है. बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद यानी नेपोटिज्म की बातें तो खूब होती रही हैं. कभी कभार मजहब के आधार पर भी इंडस्ट्री को बांटने की बात सामने आई, लेकिन जाति की बात यहां कभी नहीं सुनी गई. ऐसे में भोजपुरी सिनेमा में जातिवाद की इतनी गहरी जड़ों के बारे में जानने के बाद हर कोई हैरान है. काजल राघवानी का कहना है कि भोजपुरी इंडस्ट्री में जाति भयंकर है. किसी फिल्म या सॉन्ग में एक जाति के साथ काम करो तो दूसरे जाति के कलाकार नाराज हो जाते हैं. भोजपुरी फिल्म-म्युजिक इंडस्ट्री में सिंह जी के साथ काम करो तो यादव जी नाराज और पांडेय जी के साथ काम करो तो सिंह जी नाराज हो जाते हैं. मैन डॉमिनेटिंग इस फिल्म इंडस्ट्री में इसका सबसे अधिक खामियाजा यहां की एक्ट्रेस को भुगतना पड़ता है.

पवन सिंह और खेसारी लाल यादव...

हिंदुस्तान में जातिवाद की जड़ें बहुत ज्यादा गहरी हैं. समाज और सियासत तक इसका प्रभाव खूब देखने को मिलता है. जाति का सीधा अर्थ समूह, विशेषता या गुण से होता है. इंसानों की तरह इसी अर्थ में फूल, पशु, पक्षी, अनाज, फल और सब्जी आदि की जाति जानी और पहचानी जाती है. जाति एक तरह की भेदक विशेषता का बोधक है. कहा गया है कि प्राचीन व्यवस्था में जाति को कर्मों के आधार पर बांटा गया. लेकिन जैसे-जैसे समाज प्रगति करता गया, इंसानों में चेतना बढ़ती गई, जाति राजनीति का हथियार बनती गई. कुछ स्वार्थी लोग अपने सियासी हित के लिए जाति को राजनीति की गोद में बिठाकर समाज को बांटना शुरू कर दिया. यही वजह है कि 21वीं सदी में भी जाति जहर बन चुका है, जिसका विस्तार समाज, सियासत होते हुए अब सिनेमा तक हो चुका है.

समाज और सियासत की तरह सिनेमा में जातिवाद की बात हम यूं नहीं कह रहे हैं. भोजपुरी सिनेमा की मशहूर अदाकारा काजल राघवानी ने अपनी फिल्म इंडस्ट्री में जातिवाद की बात उजागर करके तहलका मचा दिया है. बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद यानी नेपोटिज्म की बातें तो खूब होती रही हैं. कभी कभार मजहब के आधार पर भी इंडस्ट्री को बांटने की बात सामने आई, लेकिन जाति की बात यहां कभी नहीं सुनी गई. ऐसे में भोजपुरी सिनेमा में जातिवाद की इतनी गहरी जड़ों के बारे में जानने के बाद हर कोई हैरान है. काजल राघवानी का कहना है कि भोजपुरी इंडस्ट्री में जाति भयंकर है. किसी फिल्म या सॉन्ग में एक जाति के साथ काम करो तो दूसरे जाति के कलाकार नाराज हो जाते हैं. भोजपुरी फिल्म-म्युजिक इंडस्ट्री में सिंह जी के साथ काम करो तो यादव जी नाराज और पांडेय जी के साथ काम करो तो सिंह जी नाराज हो जाते हैं. मैन डॉमिनेटिंग इस फिल्म इंडस्ट्री में इसका सबसे अधिक खामियाजा यहां की एक्ट्रेस को भुगतना पड़ता है.

पवन सिंह और खेसारी लाल यादव के विवाद के बीच काजल राघवानी ने एक नया राग छेड़ दिया है.

इतना ही नहीं काजल राघवानी का तो यहां तक कहना है कि वो भोजपुरी के साथ गुजरात फिल्म इंडस्ट्री में भी काम करती हैं, लेकिन वहां उनको ऐसी किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. काजल कहती हैं, ''मैंने भोजपुरी के साथ गुजराती फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक काम किया है. अभी भी कर रही हूं. मैंने अभी तक 30 से अधिक गुजराती फिल्में की है. लेकिन मुझे वहां कभी भी जाति वाली फीलिंग नहीं आई. न ही वहां के किसी प्रोड्यूसर, डायरेक्टर या एक्टर को देखकर ऐसी कोई फीलिंग समझ में आती है.'' भोजपुरी की मशहूर एक्ट्रेस और बिग बॉस फेम अक्षरा सिंह का भी मानना है कि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में जातिवाद बहुत गहरा है. यहां पुराने से लेकर नए कलाकार तक जातियों में विभाजित हैं. ये लोग भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का हित देखने की बजाए अपना हित देखते हैं. नए कलाकारों ने तो जातिवाद को और ज्यादा बढ़ावा दिया है. उनका कहना है, ''हम कलाकार हैं. हमारे लिए हर जाति-धर्म बराबार हैं. हमारी कोई जाति नहीं है.''

भोजपुरी सिनेमा में एक्टर और एक्ट्रेस की स्थिति

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में केवल जातिवाद ही नासूर नहीं है, बल्कि यहां महिला कलाकारों के साथ व्यवहार भी ठीक नहीं किया जाता. उनको कभी बराबरी का हक नहीं मिलता. एक्टर ही सबकुछ होता है. उनकी उंगलियों पर प्रोड्यूसर, डायरेक्टर से लेकर एक्ट्रेस तक नाचती हैं. इस बारे में काजल राघवानी कहती है कि भोजपुरी फिल्‍मों के एक्टर और प्रोड्यूसर्स एक्ट्रेस के साथ गलत बर्ताव करते हैं. इस इंडस्‍ट्री में पूरी तरह मर्दों का वर्चस्‍व है. बिना उनकी मर्जी के कोई भी एक्ट्रेस एक कदम आगे नहीं बढ़ा सकती है. ऐसे में भोजपुरी सिनेमा को अश्लीलता से मुक्त करना महिलाओं के हाथ में नहीं है, बल्कि पुरुष एक्टर और प्रोड्यूसर ही इसे खत्म कर सकते हैं. फिल्मों में एक्ट्रेस की फीस भी बहुत कम होती है. यहां शुरू से एक्टर्स को ज्यादा फीस मिलती रही है. एक्ट्रेस तो आधे से कम पर काम करती हैं. इतना ही नहीं भोजपुरी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में कास्‍ट‍िंग काउच की बात तो बहुत पहले से उठती रही है. यहां एक्टर अपनी सुविधानुसार एक्ट्रेस का हर तरह से इस्‍तेमाल करते हैं.

क्या सच में भोजपुरी सिनेमा में है जातिवाद?

भोजपुरी फिल्म-म्युजिक इंडस्ट्री में काम करने वाले कलाकारों पर यदि नजर डाली जाए, तो अधिकतर सिंगर-एक्टर-एक्ट्रेस ठाकुर, ब्राह्मण और यादव जाति से आते हैं. मनोज तिवारी, रवि किशन शुक्ला, पवन सिंह, प्रदीप पांडे चिंटू, अरविंद अकेला 'कल्लू' (चौबे), रितेश पांडे, राकेश मिश्रा, विनय आनंद, मनोज सिंह टाइगर से लेकर दिनेश लाल यादव निरहुआ, परवेश लाल यादव और खेसारी लाल यादव तक, इन सभी कलाकारों के नाम उठाकर देख लीजिए इनकी जाति समझ में आ जाएगी. ये सभी कलाकार गायक होने के साथ अभिनेता भी हैं. जाहिर सी बात है कि सिनेमा और म्युजिक इंडस्ट्री पर इनका ही वर्चस्व होगा. चूंकि ये सभी कलाकार यूपी और बिहार से आते हैं, जहां पर समाज में जातिवाद का जहर किस कदर फैला हुआ है, ये सभी जानते हैं. ऐसे में काजल राघवानी की बातों को बल मिलता है कि यहां जाति देखकर कलाकारों को काम दिया जाता है. हर जाति का अपना एक गुट है. यदि कोई कलाकार इस इंडस्ट्री में आगे बढ़ना चाहता है, तो उसे गुट में शामिल होना होगा.

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की एक्ट्रेस की समस्या

जैसा कि पहले ही बताया भोजपुरी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में मेल स्‍टार ज्‍यादातर भोजपुरी भाषी क्षेत्र के नामचीन सिंगर हैं, जिन्‍होंने गाने के जरिए अपनी पहचान बनाई और बाद में वे फिल्‍में करने लगे. इसके विपरीत भोजपुरी की ज्यादातर एक्ट्रेस भोजपुरी भाषी इलाकों से बाहर की हैं. अक्षरा सिंह, श्वेता तिवारी और शुभि शर्मा जैसी कुछ एक्ट्रेस को अपवाद मानकर छोड़ दें, तो रानी चटर्जी, मोनालिसा, आम्रपाली दुबे और काजल राघवानी यूपी और बिहार से बाहर की हैं. यहां तक कि कई एक्ट्रेस का नाम भी असली नहीं है. उन्होंने स्क्रीन नाम से शोहरत हासिल की है. वो भी अपने फिल्मों के एक्टर्स की बदौलत. ऐसे में सिनेमा-म्युजिक इंडस्ट्री में लगातार काम पाने और टिके रहने के लिए इनको मेल स्‍टार्स की हर मांग पूरी करनी पड़ती है. निरहुआ-आम्रपाली दुबे, खेसारी लाल यादव-काजल राघवानी, पवन सिंह-अक्षरा सिंह, मनोज तिवारी-रानी चटर्जी की जोड़ी भोजपुरी सिनेमा में हमेशा से हिट रही है. इनमें ज्यादातर जोड़ी को आपने कई फिल्मों और गानों में एक साथ कई बार देखा होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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