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Jehanabad Of Love and War Review: राजनीति और हिंसा के बीच पनपी एक खूबसूरत प्रेम कहानी

    • आईचौक
    • Updated: 05 फरवरी, 2023 06:46 PM
  • 05 फरवरी, 2023 06:46 PM
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सुधीर मिश्रा की वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम की जा रही है. इसमें ऋत्विक भौमिक और हर्षिता गौर लीड रोल में है. इस सीरीज में नक्सलवाद और जातीय हिंसा के बीच खूबसूरत प्यार को दिखाया गया है.

बिहार के जहानाबाद में 13 नवंबर 2005 की रात एक सनसनीखेज घटना घटी थी. उस वक्त जहानाबाद की जेल में 600 कैदी मौजूद थे. अचानक 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने जेल पर हमला कर दिया. वहां से 372 कैदियों को अपने साथ भगा ले गए. इसमें बड़ी तादाद में उनके नक्सल साथी भी थे. उस वक्त बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू था. चुनाव का समय था. आखिरी चरण का मतदान हो चुका था. जेल ब्रेक की इस घटना के वक्त नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों और अगणी जाति के कैदियों की हत्या भी कर दी थी. इसी घटना पर आधारित एक वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम की जा रही है.

सत्यांशु सिंह और राजीव बरनवाल के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' के क्रिएटर सुधीर मिश्रा है. इसमें ऋत्विक भौमिक, हर्षिता गौर, परमब्रत चट्टोपाध्याय, सत्यदीप मिश्रा, रजत कपूर, सुनील सिन्हा, राजेश जैस और सोनल झा जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. इस सीरीज में अराजकता, जातिगत राजनीति और नक्सलवाद के बीच एक खूबसूरत प्रेम कहानी को दिखाया गया है. इसके शुरूआती एपिसोड की रफ्तार बहुत धीमी है, कहानी भी अनुमानित लगती है, लेकिन पांचवें एपिसोड के बाद तेजी गति पकड़ती है. इसके बाद बॉलीवुड फिल्मों की तरह एक दिलचस्प क्लमैक्स के साथ सीरीज का नाटकीय अंत होता है.

वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम की जा रही है.

इस वेब सीरीज में ऋत्विक भौमिक और हर्षिता गौर ने लीड रोल किया है. दोनों ने अपने-अपने किरदारों में शानदार काम किया है. 'बंदिश बैंडिट्स' जैसी वेब सीरीज से मशहूर हुए ऋत्विक ने बहुत सधे हुए अंदाज में अभिनय किया है. एक बेटी और प्रेमिका के किरदार में हर्षिता गौर गजब की लगी है. उन्होंने 21वीं सदी के शुरुआती साल की बदलती मानसिकता वाली एक...

बिहार के जहानाबाद में 13 नवंबर 2005 की रात एक सनसनीखेज घटना घटी थी. उस वक्त जहानाबाद की जेल में 600 कैदी मौजूद थे. अचानक 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने जेल पर हमला कर दिया. वहां से 372 कैदियों को अपने साथ भगा ले गए. इसमें बड़ी तादाद में उनके नक्सल साथी भी थे. उस वक्त बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू था. चुनाव का समय था. आखिरी चरण का मतदान हो चुका था. जेल ब्रेक की इस घटना के वक्त नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों और अगणी जाति के कैदियों की हत्या भी कर दी थी. इसी घटना पर आधारित एक वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम की जा रही है.

सत्यांशु सिंह और राजीव बरनवाल के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' के क्रिएटर सुधीर मिश्रा है. इसमें ऋत्विक भौमिक, हर्षिता गौर, परमब्रत चट्टोपाध्याय, सत्यदीप मिश्रा, रजत कपूर, सुनील सिन्हा, राजेश जैस और सोनल झा जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. इस सीरीज में अराजकता, जातिगत राजनीति और नक्सलवाद के बीच एक खूबसूरत प्रेम कहानी को दिखाया गया है. इसके शुरूआती एपिसोड की रफ्तार बहुत धीमी है, कहानी भी अनुमानित लगती है, लेकिन पांचवें एपिसोड के बाद तेजी गति पकड़ती है. इसके बाद बॉलीवुड फिल्मों की तरह एक दिलचस्प क्लमैक्स के साथ सीरीज का नाटकीय अंत होता है.

वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर स्ट्रीम की जा रही है.

इस वेब सीरीज में ऋत्विक भौमिक और हर्षिता गौर ने लीड रोल किया है. दोनों ने अपने-अपने किरदारों में शानदार काम किया है. 'बंदिश बैंडिट्स' जैसी वेब सीरीज से मशहूर हुए ऋत्विक ने बहुत सधे हुए अंदाज में अभिनय किया है. एक बेटी और प्रेमिका के किरदार में हर्षिता गौर गजब की लगी है. उन्होंने 21वीं सदी के शुरुआती साल की बदलती मानसिकता वाली एक लड़की का किरदार शानदार तरीके से निभाया है. अपने ही कॉलेज में पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर के प्यार में कुछ भी कर गुजरने का जो जज्बा और जुनून उन्होंने अपने अभिनय के जरिए पेश किया है, वो काबिले तारीफ है. अन्य कलाकारों ने भी अपने-अपने हिस्सा के काम ईमानदारी से किया है.

वेब सीरीज 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' की कहानी के केंद्र में बिहार में होने वाली जातीय हिंसा, राजनीति और नक्सलवाद है. इसे एक लड़की कस्तूरी मिश्रा (हर्षिता गौर) के किरदार के जरिए दिखाया गया है. कस्तूरी कॉलेज में पढ़ती है. खुले विचार वाली है. अंग्रेजी फिल्में देखती है. मां से हर विषय पर खुलकर बातें करती है. पिता जेल में कैंटीन चलाते है. एक दोस्त की तरह बेटी का पूरी तरह समर्थन करते हुए साथ देते हैं. एक दिन कस्तूरी कॉलेज में एक नए लड़के को देखती है. वो उसे छात्र समझकर उसका इंट्रोडक्शन लेती है. लेकिन बाद में पता चलता है कि वो छात्र नहीं प्रोफेसर हैं, जिनका नाम अभिमन्यु है. कस्तूरी को अभिमन्यु पहली नजर में पसंद आ जाता है.

वो उससे प्यार करने लगती है. लेकिन घर में मां उसकी शादी के लिए लड़के देखती रहती है. इधर जहानाबाद शहर का माहौल धीरे-धीरे खराब होने लगता है. अगणों और पिछड़ों के बीच बंटे समाज में जातीय हिंसा बढ़ने लगती है. पिछड़े और दलित समाज के लोगों को लगता है कि अगणी जाति के लोग उनके साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं. इसलिए दलित समाज से बड़ी संख्या में लोग बागी हो जाते हैं. इसी बीच एक दलित छात्र नेता की हत्या हो जाती है. उसकी हत्या में शहर के एक ठाकुर नेता शिवानंद सिंह (रजत कपूर) के एक आदमी का हाथ होता है. उसे हत्या करते हुए अभिमन्यु और कस्तूरी देख लेते हैं. दोनों पुलिस के पास जाकर अपना बयान दर्ज करा देते हैं. लेकिन पुलिस शिवानंद के कहने पर हत्या के केस को आत्महत्या साबित कर देती है. इस सीरीज में समानांतर कई कहानियां चलती हैं, जो आखिर में जाकर एक जुड़ जाती हैं.

राजनेता शिवानंद सिंह का सबप्लॉट, जो दलित वोट हासिल करने और चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाता है, दिलचस्प है, लेकिन उसमें गहराई नहीं है. अन्य सबप्लॉट, जैसे कॉलेज में अलग-अलग जाति के छात्रों के बीच संघर्ष, जल्दबाजी में किया गया प्रतीत होता है. आखिरकार, ये प्लॉट केवल सभी किरदारों और उनकी कहानियों पर नज़र रखना मुश्किल बनाकर दर्शकों को भ्रमित करते हैं. हालांकि, सभी कलाकारों ने बिहारी पृष्ठभूमि पर पूरी तरह खरे उतरने की पुरजोर कोशिश की है. इसमें काफी हद सफल भी हुए हैं. ऋत्विक भौमिक एक कॉलेज के प्रोफेसर के किरदार में परफेक्ट नजर आ रहे हैं. 'मिर्जापुर' में डिंपी का किरदार निभाकर मशहूर हुई अभिनेत्री हर्षिता गौर कस्तूरी की भूमिका में अच्छी लगती हैं. इस तथ्य के बावजूद कि कहानी 2005 में सेट है, उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री 90 के दशक की एक रोमांटिक जोड़ी की याद दिलाती है.

इस वेब सीरीज में गाने भी बहुत अच्छे हैं. जैसे कि 'ओ पिया' मन को सुकून देने वाला गाना है, वहीं 'कहीं कुछ टूटा होगा' एक इमोशनल ट्रैक है. 'लाल सलाम' काफी उत्साहित करने वाले ट्रैक के साथ आकर्षित करता है. दो लोकगीत सीरीज के बिहारी सार को बरकरार रखते हैं. जहां तक निर्देशन की बात है तो निर्देशक द्वय सत्यांशु सिंह और राजीव बरनवाल कमाल नहीं दिखा पाए हैं. ये सीरीज जिस तरह के विषय पर बनी है, यदि इसमें एक साथ कई कहानियों को समाहित करने की कोशिश नहीं की गई होती, तो ये बेहतर बन सकती थी. लेकिन स्टोरी के कई सारे सबप्लाट्स इसे औसत श्रेणी में खड़ी कर देते हैं. कुल मिलाकर, 'जहानाबाद ऑफ लव एंड वॉर' औसत दर्जे की सीरीज कही जा सकती है. यदि शुरू के पांच एपिसोड आप किसी तरह से देख गए, तो समझिए बचे हुए पांच एपिसोड में आपको आनंद आने वाला है. एक मजेदार मनोरंजन होने वाला है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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