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Karan Johar ने जाह्नवी कपूर को गुंजन सक्सेना क्यों बनाया? फिर बात तो निकलेगी ही...

    • अनु रॉय
    • Updated: 03 अगस्त, 2020 01:11 PM
  • 03 अगस्त, 2020 01:11 PM
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गुंजन सक्सेना फिल्म के ट्रेलर (Gunjan Saxena movie trailer) यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म की समस्या कैसे कैसे फैसले लेने पर मजबूर करती है. नेटफ्लिक्स (Netflix) पर आने वाली करण जौहर के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म में जाह्नवी कपूर (Jahnvi Kapoor) बेहद औसत और बेदम नजर आ रही हैं.

'तुम से नहीं होगा गुंजन!' - वैसे ये डायलॉग है फ़िल्म #GunjanSaxena का मगर मैं ये बात कहना चाहती हूं #Janhvikapoor से जो Netflix पर आने वाली इस फ़िल्म की लीड ऐक्ट्रेस हैं. बाप रे इतनी ख़राब ऐक्टिंग कोई कैसे कर सकता है? मतलब श्री देवी की बेटी हैं तो क्या एक्सप्रेशन में ऐसी फ़्लैट रहेंगी फिर भी उनको फ़िल्में मिलेंगी? नहीं, क्या सोच कर बॉलीवुड के कर्त्ता-धर्ता, पालनहार, करण जौहर (Karan Johar) ने उनको गुंजन सक्सेना जैसी ब्रेव-हॉर्ट ऑफ़िसर के लिए चुना है ये बात मेरे समझ से परे की चीज़ है. क्या सिर्फ़ ख़ूबसूरत चेहरा और स्टार-किड होना काफ़ी है धर्मा प्रोडक्शन की फ़िल्में मिलने के लिए? कम से कम गुंजन सक्सेना का ट्रेलर देख कर तो मुझे ऐसा ही लग रहा है. जान्हवी कपूर डायलॉग्स ऐसे बोल रहीं हैं फ़िल्म में जैसे कॉन्स्टिपेशन से पीड़ित हैं. ऊपर से एक और चीज़ जो मैंने नोटिस किया है ट्रेलर देख कर वो ये कि, बजाय उनको डायलॉग देने के उनके फ़्लैट चेहरे को हर बार फूल स्क्रीन डायरेक्टर साहेब दिखा रहें हैं. उनको क्या लग रहा है कि टैलेंट विहीन, एक्सप्रेशन-विहीन सुंदर से मुखड़े को दिखा कर दर्शकों को रिझा लेंगे?

फिल्म गुंजन सक्सेना के एक सीन में एक्टर जाह्नवी कपूर

सॉरी बॉस, ये नहीं चलने वाला. ट्रेलर के आख़िरी दृश्य में जो जान्हवी ‘फ़ायर’ बोलती हैं न उसको देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा कि उनके अंदर रोष, ग़ुस्सा, आवेग जैसी कोई बात भरी है, क्योंकि वहां तक पहुंचने के लिए उनको जिस क़दर बुली किया गया है उसका आग हमें उस एक शब्द, ‘फ़ायर’ को सुन कर महसूस होना चाहिए था लेकिन वहां भी वो फ़्लैट ही रह गयी. और डायरेक्टर साहेब को लगा कि वाह, क्या नायाब शॉट दिया है मैडम ने तो इसे ही रख लेते...

'तुम से नहीं होगा गुंजन!' - वैसे ये डायलॉग है फ़िल्म #GunjanSaxena का मगर मैं ये बात कहना चाहती हूं #Janhvikapoor से जो Netflix पर आने वाली इस फ़िल्म की लीड ऐक्ट्रेस हैं. बाप रे इतनी ख़राब ऐक्टिंग कोई कैसे कर सकता है? मतलब श्री देवी की बेटी हैं तो क्या एक्सप्रेशन में ऐसी फ़्लैट रहेंगी फिर भी उनको फ़िल्में मिलेंगी? नहीं, क्या सोच कर बॉलीवुड के कर्त्ता-धर्ता, पालनहार, करण जौहर (Karan Johar) ने उनको गुंजन सक्सेना जैसी ब्रेव-हॉर्ट ऑफ़िसर के लिए चुना है ये बात मेरे समझ से परे की चीज़ है. क्या सिर्फ़ ख़ूबसूरत चेहरा और स्टार-किड होना काफ़ी है धर्मा प्रोडक्शन की फ़िल्में मिलने के लिए? कम से कम गुंजन सक्सेना का ट्रेलर देख कर तो मुझे ऐसा ही लग रहा है. जान्हवी कपूर डायलॉग्स ऐसे बोल रहीं हैं फ़िल्म में जैसे कॉन्स्टिपेशन से पीड़ित हैं. ऊपर से एक और चीज़ जो मैंने नोटिस किया है ट्रेलर देख कर वो ये कि, बजाय उनको डायलॉग देने के उनके फ़्लैट चेहरे को हर बार फूल स्क्रीन डायरेक्टर साहेब दिखा रहें हैं. उनको क्या लग रहा है कि टैलेंट विहीन, एक्सप्रेशन-विहीन सुंदर से मुखड़े को दिखा कर दर्शकों को रिझा लेंगे?

फिल्म गुंजन सक्सेना के एक सीन में एक्टर जाह्नवी कपूर

सॉरी बॉस, ये नहीं चलने वाला. ट्रेलर के आख़िरी दृश्य में जो जान्हवी ‘फ़ायर’ बोलती हैं न उसको देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा कि उनके अंदर रोष, ग़ुस्सा, आवेग जैसी कोई बात भरी है, क्योंकि वहां तक पहुंचने के लिए उनको जिस क़दर बुली किया गया है उसका आग हमें उस एक शब्द, ‘फ़ायर’ को सुन कर महसूस होना चाहिए था लेकिन वहां भी वो फ़्लैट ही रह गयी. और डायरेक्टर साहेब को लगा कि वाह, क्या नायाब शॉट दिया है मैडम ने तो इसे ही रख लेते हैं.

अरे बॉस, वॉर पर हां हज़ारों फ़िल्में बनी हैं, आप उनमें से कोई फ़िल्म इस स्टार-किड को होम-वर्क के लिए दिखा देते. मैं तो कहती हूं GI Jane जो 1997 में आयी थी, जिसमें डेमी मूर हैं वही करण जौहर ख़ुद और जान्हवी कपूर देख लेते तो समझ आ जाता कि ऐक्टिंग कैसे करनी है. GI Jane का एक दृश्य जो वॉर-फ़िल्मों के लिए कल्ट जैसा है, जिसमें डेमी को अपने बालों को ख़ुद ट्रिमर से शेव करते दिखाया गया है.

उस दृश्य में डेमी कुछ बोल नहीं रही हैं, सिर्फ़ उनकी आंखों को देख कर हम उनके अंदर उठ रहे तूफ़ान, ग़ुस्सा, लड़की होने की वजह से हो रही बुलीइंग के दर्द को महसूस कर लेते हैं. बॉस, ऐक्टिंग इसको कहते हैं न कि आपने जो बोनी कपूर से दोस्ती निभाने की ख़ातिर उनकी बेटी से इस फ़िल्म में करवा रहें हैं.

मेरे दिमाग़ में अब भी ये बात नहीं घुस रही कि क्यों उनको एयरफ़ोर्स के पायलट का रोल करने को मिला? वो फ़िल्म के हर सीन में कॉक्रोच से डर रही लड़की जैसी दिख रहीं हैं. वो मोम जैसा पीला उनका चेहरा जो धूप में पिघल जाएगा टाइप्स है. कौन ऑफ़िसर ऐसा पिल-पीला दिखता है. ‘धड़क’ फ़िल्म में अपने ऑन-स्क्रीन पिता आशुतोष राणा को देख कर जैसे डरने की बकवास ऐक्टिंग जान्हवी ने किया था उससे भी घटिया ऐक्टिंग इस फ़िल्म में किया है उन्होंने.

भक. सत्यानाश कर दिया गुंजन सक्सेना के रोल का. बाक़ी पंकज त्रिपाठी हैं और मुक्केबाज़ वाले अपने हीरो भी उनके लिए ये फ़िल्म देखी जा सकती है अगर फ़्री हैं तो. मेरा इरादा नहीं है ट्रेलर देखने के बाद इसे झेलने का और न ही हिम्मत. हो सकता है कि ये फ़िल्म हिट कर जाए क्योंकि इसमें देशभक्ति, राष्ट्र के लिए कुछ भी कर गुज़रने जैसी बातें हैं, जिससे आम हिंदुस्तानी तुरंत रिलेट कर लेता है मगर उससे जान्हवी कपूर की बिना दिल वाली ऐक्टिंग और करण जौहर का ये पाप नहीं धुलने वाला फ़िल्म के हिट हो जाने से.

बाक़ी वर्क-प्लेस में लड़कियों को ले कर जो राय मर्द रखते हैं वो पार्ट मुझे इस फ़िल्म की यूएसपी लग रहा है. जैसे कि एयर-फ़ोर्स में तब लड़कियों के लिए अलग वाशरूम का न होना, लड़की को पॉवरलेस समझना, लड़कियां वो नहीं कर सकती जो लड़के कर सकते हैं ऐसी कई अच्छी बातें हैं लेकिन इन सब अच्छी बात को ढक लेंगी जान्हवी कपूर अपनी घटिया ऐक्टिंग से. शाबाश ! नेपोटिज़म ज़िंदाबाद.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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