• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

स्वरा भास्कर की फिल्म जहां चार यार: क्या गाली देना, सेक्स का जिक्र करना ही महिला सशक्तिकरण है?

    • अनु रॉय
    • Updated: 24 अगस्त, 2022 06:53 PM
  • 24 अगस्त, 2022 05:48 PM
offline
एक्टर स्वरा भास्कर एक बार फिर चर्चा में हैं. कारण है उनकी आने वाली फिल्म जहां चार यार. फिल्म का ट्रेलर आ गया है. ट्रेलर से साफ़ है कि, इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसे देखकर कहा जाए कि ये फिल्म महिलाओं को, और उनके सशक्तिकरण को समर्पित है.

बॉलीवुड की फ़िल्म इसलिए फ़्लॉप नहीं हो रहीं क्योंकि लोग बॉयकाट कर रहे. बॉयकाट एक वजह है. लेकिन दूसरी सबसे बड़ी और सबसे अहम वजह है फिल्मों में न तो कहानी है और न ही एक्टिंग. सिर्फ़ नाम पर कब तक दर्शक मूर्ख बन कर फ़िल्म देखता रहेगा? मैंने हाल-फ़िलहाल में कोई ऐसी हिंदी फ़िल्म नहीं देखी जिसे देख कर ये लगा हो कि, 'Wow! What a film!!' कल स्वरा भास्कर की आने वाली फ़िल्म  जहां चार यार का ट्रेलर देखा. भाई साहब, इसी टॉपिक से मिलती जुलती लेकिन थोड़े महंगे सेटअप के साथ आयी फ़िल्म 'वीरे दी वेडिंग' देख रखी है. ऐसी ही टॉपिक पर 'लिपस्टिक अण्डर माई बुर्क़ा' भी देख रखी है. इन सारी फ़िल्मों में एक ही कहानी है. औरतों को कैसे सप्रेस किया जाता है.

चलिए ये बिलकुल सच है कि भारत एक पेट्रीआर्कल देश है. यहां अभी भी ग़रीबी बहुत ज़्यादा है, अशिक्षा उससे भी ज़्यादा. अब जहां अशिक्षा होगी वहां की स्त्रियां या लड़कियां कितनी आत्मनिर्भर होंगी. जब स्त्रियां आत्मनिर्भर ही नहीं हैं. उन्हें आर्थिक आज़ादी ही हासिल नहीं है तो वो ज़िंदगी कैसे अपनी शर्तों पर जीएंगी सोचिए.

स्वरा की अपकमिंग फिल्म जहां चार यार में ऐसा कुछ नहीं है जिसे नया कहा जाए

तो जब फ़ेमिनिस्ट अप्रोच के साथ कोई फ़िल्म बनाई जाती है तो कहानी का अप्रोच कुछ ऐसा हो कि वो औरतें जो आपकी टार्गेट ऑडियंस है जब उस फ़िल्म को देख कर निकले तो कुछ सीख कर निकले. चलिए आप कह सकते हैं कि फ़िल्म मनोरंजन के लिए बनती हैं तो फिर उसके प्रमोशन को औरतों के लिए क्रांति बताने की हिम्मत आपकी कैसे होती है? आप कहिए कि आप औरतों की तकलीफ़ को बेचने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ भी नहीं.

जहां चार यार के एक दृश्य में फ़िल्म की एक अभिनेत्री ज़ोर से पहाड़ की चोटी पर खड़ी हो कर 'मादर...' कहती हैं. ये आपका...

बॉलीवुड की फ़िल्म इसलिए फ़्लॉप नहीं हो रहीं क्योंकि लोग बॉयकाट कर रहे. बॉयकाट एक वजह है. लेकिन दूसरी सबसे बड़ी और सबसे अहम वजह है फिल्मों में न तो कहानी है और न ही एक्टिंग. सिर्फ़ नाम पर कब तक दर्शक मूर्ख बन कर फ़िल्म देखता रहेगा? मैंने हाल-फ़िलहाल में कोई ऐसी हिंदी फ़िल्म नहीं देखी जिसे देख कर ये लगा हो कि, 'Wow! What a film!!' कल स्वरा भास्कर की आने वाली फ़िल्म  जहां चार यार का ट्रेलर देखा. भाई साहब, इसी टॉपिक से मिलती जुलती लेकिन थोड़े महंगे सेटअप के साथ आयी फ़िल्म 'वीरे दी वेडिंग' देख रखी है. ऐसी ही टॉपिक पर 'लिपस्टिक अण्डर माई बुर्क़ा' भी देख रखी है. इन सारी फ़िल्मों में एक ही कहानी है. औरतों को कैसे सप्रेस किया जाता है.

चलिए ये बिलकुल सच है कि भारत एक पेट्रीआर्कल देश है. यहां अभी भी ग़रीबी बहुत ज़्यादा है, अशिक्षा उससे भी ज़्यादा. अब जहां अशिक्षा होगी वहां की स्त्रियां या लड़कियां कितनी आत्मनिर्भर होंगी. जब स्त्रियां आत्मनिर्भर ही नहीं हैं. उन्हें आर्थिक आज़ादी ही हासिल नहीं है तो वो ज़िंदगी कैसे अपनी शर्तों पर जीएंगी सोचिए.

स्वरा की अपकमिंग फिल्म जहां चार यार में ऐसा कुछ नहीं है जिसे नया कहा जाए

तो जब फ़ेमिनिस्ट अप्रोच के साथ कोई फ़िल्म बनाई जाती है तो कहानी का अप्रोच कुछ ऐसा हो कि वो औरतें जो आपकी टार्गेट ऑडियंस है जब उस फ़िल्म को देख कर निकले तो कुछ सीख कर निकले. चलिए आप कह सकते हैं कि फ़िल्म मनोरंजन के लिए बनती हैं तो फिर उसके प्रमोशन को औरतों के लिए क्रांति बताने की हिम्मत आपकी कैसे होती है? आप कहिए कि आप औरतों की तकलीफ़ को बेचने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ भी नहीं.

जहां चार यार के एक दृश्य में फ़िल्म की एक अभिनेत्री ज़ोर से पहाड़ की चोटी पर खड़ी हो कर 'मादर...' कहती हैं. ये आपका एम्पावरमेंट है. फ़िल्म के डायरेक्टर या फ़ेक फ़ेमिनिस्ट स्वरा भास्कर को लग सकता है कि ये गाली दे कर उन्होंने क्रांति कर ली क्योंकि उनको हक़ीक़त से कोई लेना-देना ही नहीं है. शहरी लड़कियों को छोड़िए और गांव में जाइए. ग़ुस्से में आ कर गांव की औरतें किस आवाज़ में और कितनी गालियां  दे देती हैं इसका आपको अंदाज़ा नहीं है. सिर्फ़ 'मादर...' बोलने के लिए उनको पहाड़ या गोवा जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. ठीक न.

अच्छा, ये सच है कि अब भी सभी औरतों को आज़ादी नहीं है कि वो अपनी मर्ज़ी से जी सकें. खा सकें, पहन सकें, गोवा तो छोड़िए ससुराल वाले हां न करें तो मायका भी नहीं जा सकती. कुछ ख़रीदना है तो सौ बार पति के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है तब भी जो चाहिए वो मिल जाए ज़रूरी नहीं. घूमने के नाम पर ही पति ऐसे बिदकता है जैसे किसी में बिच्छू की दुम पर पैर रख दिया हो.

सेक्स के बारे में पति से सवाल करना यानी चरित्रहीन होने का प्रमाण दे देना है खुद से खुद को. ये सब और भी बहुत समस्या है लेकिन इन सबका समाधान गोवा जाना, शराब पीना, गाली देना बिलकुल नहीं है. ऐसी औरतें जो ज़िंदगी में ये सब झेल रही हैं उनके लिए सबसे ज़रूरी है आत्मनिर्भर होना, दो पैसे कमाना, खुद के लिए स्टैंड लेना. फ़िल्म में जो आप दिखाते हो उसका वास्तविकता से कोई लेना देना ही नहीं है तो इसे सिर्फ़ मनोरंजन के लिए बनाई है कह कर प्रमोट करिए.

अब जब आपने फ़िल्म मनोरंजन के लिए बनाई है तो फिर दर्शक को देख कर एंटरटेन फ़ील होना चाहिए. फ़िल्म में न तो स्टोरी नई होगी, न ट्रीटमेंट नया होगा तो कोई आपकी फ़िल्म क्यों देखेगा? फिर कहिएगा कि बॉयकॉट किया जा रहा. अरे, बॉस पहले अपनी गलती तो सुधारिए.

कहानी, स्क्रिप्ट, ऐक्टिंग, एडिटिंग सब पर काम करिए फिर अगर फ़िल्म फ़्लॉप हो तब कहिए कि कैन्सल कल्चर की वजह से फ़िल्म फ़्लॉप हो रही है. नहीं तो ज़िंदगी भर ऐसी ही बकवास फ़िल्म बनाइए, अपना बेड़ा गर्क कीजिए और इंडस्ट्री का भी. फिर अर्जुन कपूर जैसे लोग हैं जो दर्शक को ही धमकी देते हैं तो अनुराग कश्यप जैसे लोग दर्शक को भिखारी कहते हैं.

अब ऐसे काम थोड़े ही चलेगा. मुझे तो आने वाले महीनों में भी ऐसी कोई फ़िल्म आती नहीं दिख रही जो हिट हो. ब्रह्मासत्र भी फ़्लॉप ही करेगी क्योंकि वो हॉलीवुड के सुपर हीरो की कॉपी लग रही मुझे. फिर सब रोना ले कर बैठेंगे कि बॉयकॉट कर दिया रे!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲