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'इंडिया लॉकडाउन' बायकॉट बॉलीवुड के इस दौर में मधुर के लिए परीक्षा थी, उन्होंने Top किया!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 दिसम्बर, 2022 08:54 PM
  • 02 दिसम्बर, 2022 08:54 PM
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India Lockdown Review: फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' और इसके निर्देशक मधुर भंडारकर दोनों ही अपने मकसद में कामयाब हुए और यदि फिल्म की तारीफ हो रही है तो हमें प्रतीक बब्बर और सई ताम्हणकर को जरूर अच्छे काम के लिए बधाई देनी चाहिए.

बॉलीवुड में फ़िल्में हर दूसरा निर्देशक बना रहा है. लेकिन दर्शकों को मजा तब आता है जब कोई मुद्दों को उठाए और लाइट, कैमरा एक्शन कहते हुए फिल्म बना दे. फिल्म रिकॉर्ड तोड़ कमाई करे और हिट हो जाए. मधुर भंडारकर का शुमार ऐसे ही निर्देशकों में है. मधुर की ये खासियत है कि जब वो किसी मुद्दे को पकड़ते हैं तो उनका ट्रीटमेंट कुछ ऐसा होता है कि साधारण सी चीज भी खास नजर आती है. लेकिन क्या हर बार ये ट्रीटमेंट कामयाब होता है? जवाब हमें तब मिलता जब हम कोरोना वायरस के दौर में लगे लॉक डाउन पर बनी मधुर भंडारकर की हालिया रिलीज फिल्म India Lockdown को देखते हैं. कह सकते हैं कि 'इंडिया लॉकडाउन' बायकॉट बॉलीवुड के इस दौर में निर्देशक मधुर भंडारकर के लिए परीक्षा जैसी थी. निर्धारित दिन पर एग्जाम हुआ और जो रिजल्ट आया है जनता ने बता दिया कि पप्पू न केवल पास हुआ बल्कि वो एक बार फिर इतिहास को लिखने में कामयाब हुआ है. फिल्म हमें उस दौर में ले जाती है जब सरकारी आदेश के बाद मार्च 2020 में कोविड 19 की चुनौतियों से निपटने के लिए लॉक डाउन की घोषणा की गयी थी.

इंडिया लॉकडाउन के जरिये एक बार फिर मधुर भंडारकर अपने मकसद में कामयाब दिखाई देते हैं

ध्यान रहे कोरोना काल में देश में लगा लॉकडाउन एक ऐसी घटना है जिसे शायद ही आज लोग याद करना चाहें। उस वक़्त चाहे देश का अमीर या गरीब आदमी हो या फिर मिडिल क्लास प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी ने लॉकडाउन का दंश झेला। आप किसी भी व्यक्ति से उस वक़्त को याद करते हुए बात कीजिये शायद ही आपको कोई सीधे मुंह जवाब दे. चाहे वो अपनों की मौत हो या फिर लोगों की नौकरी का जाना सैलरी कट होना एक टीस आज भी लोगों की बातों में जाहिर हो जाती है.

तब उस वक़्त लोग बेघर हुए, हफ़्तों तक भूखे रहे, कई कई दिनों तक मीलों पैदल चले. साफ़ है कि देश का...

बॉलीवुड में फ़िल्में हर दूसरा निर्देशक बना रहा है. लेकिन दर्शकों को मजा तब आता है जब कोई मुद्दों को उठाए और लाइट, कैमरा एक्शन कहते हुए फिल्म बना दे. फिल्म रिकॉर्ड तोड़ कमाई करे और हिट हो जाए. मधुर भंडारकर का शुमार ऐसे ही निर्देशकों में है. मधुर की ये खासियत है कि जब वो किसी मुद्दे को पकड़ते हैं तो उनका ट्रीटमेंट कुछ ऐसा होता है कि साधारण सी चीज भी खास नजर आती है. लेकिन क्या हर बार ये ट्रीटमेंट कामयाब होता है? जवाब हमें तब मिलता जब हम कोरोना वायरस के दौर में लगे लॉक डाउन पर बनी मधुर भंडारकर की हालिया रिलीज फिल्म India Lockdown को देखते हैं. कह सकते हैं कि 'इंडिया लॉकडाउन' बायकॉट बॉलीवुड के इस दौर में निर्देशक मधुर भंडारकर के लिए परीक्षा जैसी थी. निर्धारित दिन पर एग्जाम हुआ और जो रिजल्ट आया है जनता ने बता दिया कि पप्पू न केवल पास हुआ बल्कि वो एक बार फिर इतिहास को लिखने में कामयाब हुआ है. फिल्म हमें उस दौर में ले जाती है जब सरकारी आदेश के बाद मार्च 2020 में कोविड 19 की चुनौतियों से निपटने के लिए लॉक डाउन की घोषणा की गयी थी.

इंडिया लॉकडाउन के जरिये एक बार फिर मधुर भंडारकर अपने मकसद में कामयाब दिखाई देते हैं

ध्यान रहे कोरोना काल में देश में लगा लॉकडाउन एक ऐसी घटना है जिसे शायद ही आज लोग याद करना चाहें। उस वक़्त चाहे देश का अमीर या गरीब आदमी हो या फिर मिडिल क्लास प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी ने लॉकडाउन का दंश झेला। आप किसी भी व्यक्ति से उस वक़्त को याद करते हुए बात कीजिये शायद ही आपको कोई सीधे मुंह जवाब दे. चाहे वो अपनों की मौत हो या फिर लोगों की नौकरी का जाना सैलरी कट होना एक टीस आज भी लोगों की बातों में जाहिर हो जाती है.

तब उस वक़्त लोग बेघर हुए, हफ़्तों तक भूखे रहे, कई कई दिनों तक मीलों पैदल चले. साफ़ है कि देश का कोई भी नागरिक हो सबके पास लॉक डाउन को लेकर अपनी एक अलग कहानी है. जिक्र मधुर की फिल्म इंडिया लॉक डाउन का हुआ है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि इस फिल्म को बनाते वक़्त मधुर ने दिल की जगह दिमाग का प्रयोग किया। मधुर ने ये फिल्म बनाई लेकिन बीमारी, उसके प्रचार प्रसार पर नहीं बनाई बल्कि उन्होंने उन चुनौतियों को पकड़ा जिनका सामना देश के आम से लेकर खास लोगों को करना पड़ा.

अपनी इस फिल्म के लिए मधुर ने 5 अलग अलग लोगों को चुना और दिखाया कि कैसे समाज के हर तबके के लॉक डाउन को लेकर अपने चैलेन्ज थे. मधुर ने फिल्म की थीम के रूप में मुंबई को चुना है और हमें रू-ब-रू कराया है मेहरु से, माधव और फूलमती से, नागेश्वर राव और देव और पलक से. क्योंकि फिल्म उस मूमेंट को ध्यान में रखकर बनी है जब देश में लॉक डाउन लगने वाला था इसलिए फिल्म में हम देख सकते हैं माधव को रोजी रोटी के लिए लड़ते हुए वहीं मेहरु जो की एक वेश्या है और धोखे से जिस्म फरोशी के धंधे में डाली गयी थी उसके पास भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं.

नागेश्वर राव बने प्रकाश बेलावडी की समस्या अलग है. उसकी पत्नी मर चुकी है. वो अकेला है और उसकी बेटी हैदराबाद में है जो कि गर्भवती है और उसे किसी भी सूरत में अपनी बेटी के पास हैदराबाद पहुंचना है. लेकिन तभी लॉक डाउन लग जाता है और अफरा तफरी मच जाती है.

जैसा कि हम ऊपर ही इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि फिल्म लॉक डाउन को ध्यान में रखकर बनाई गयी है और अलग अलग लोगों को जोड़ती है इसलिए सवाल है कि क्या मधुर बतौर निर्देशक अपनी इस कोशिश में कामयाब हुए हैं? जेहन में सवाल कई आ सकते हैं जिनके जवाब के लिए हमें फिल्म देखनी होगी। और फिल्म को लेकर दिलचस्प ये कि फिल्म दर्शकों को पसंद आ रही है.

सोशल मीडिया पर जैसी दशकों की प्रतिक्रिया है इतना तो साफ़ है कि फिल्म, उसका कंटेंट और लॉक डाउन जैसी चुनौती को जैसा ट्रीटमेंट मधुर ने दिया है सब दर्शकों को पसंद आया है. वहीं बात अगर इस फिल्म की हो तो जिस पक्ष पर बात होनी चाहिए वो है माधव बने प्रतीक बब्बर और फिल्म में फूलमती का किरदार निभाने वाली सई ताम्हणकर। जैसी एक्टिंग इन दोनों ही एक्टर्स ने की है, इन्होने दर्शकों को बांधे रखा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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