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जब इम्तियाज़ 'मेट' ढिनचैक पूजा

    • प्रज्ञा तिवारी
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2017 06:40 PM
  • 27 अक्टूबर, 2017 06:40 PM
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इम्तियाज़ अली की बनाई मशहूर फिल्म जब वी मेट को रिलीज हुए दस साल बीत गए हैं. ऐसे में जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो आने वाले इम्तियाज़ की शक्ल दिखाई देती है.

क्या होता अगर फ़िल्म निर्देशक इम्तियाज़ अली मिलते, इंटरनेट की कुख्यात वायरल सनसनी ढिनचैक पूजा से? अगर वाकई ये दोनों कभी मिले होते तो इम्तियाज़ वो मुलाक़ात कभी भुला नहीं पाते. क्योंकि उनके सामने बैठी पूजा ऐसा आइना होती जिसमें इम्तियाज़ अपना वो अक़्स देखते जो शक़्ल से तो कोई और लगता, मगर अंदर से कहीं उनके जैसा ही दिखता. बिग बॉस के नए सीज़न की इस वाइल्ड कार्ड एन्ट्री में ऐसा कुछ तो ज़रूर है, जो हर इंसान के अंदर छुपे रॉक-स्टार को झकझोर दे. ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझा जाए.

बॉलीवुड में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे इम्तियाज़ की काबिलियत पर शक हो

इम्तियाज़ से कामयाबी की पहली मुलाक़ात कराई उनकी दूसरी फ़िल्म 'जब वी मेट' ने. ये फ़िल्म इम्तियाज़ के लिए कभी 'सोचा ना था' जैसा लम्हा थी. क्योंकि उन्हें ये सफलता तब मिली जब वो इसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर रहे थे. और अब.10 साल बाद जब किंग ख़ान के साथ उन्होंने अपना अचूक दांव खेला, तो सेजल, हैरी का दिल तोड़ गई. अपने सच की तलाश में ज़िंदगी के 'हाइवे' पर निकले, तारीफ़ों से ऊबे इम्तियाज़ चाहते हैं कि कोई उन्हें टोके, बताए कि वो कहां ग़लत हैं.उनसे बात करते हुए तो मुझे ऐसा ही महसूस हुआ.

एक तरफ इम्तियाज़ हैं तो दूसरी तरफ़,अपने दिल की अजब क्रिएटिव भड़ास इंटरनेट पर निकाल कर, तथाकथित हाइ-सोसायटी की हिकारत भरी नज़रों के ठीक सामने,पूरे आत्म-सम्मान से तनी खड़ी पूजा का टेक? 'जो चाहा सो किया. मेरी इज़्ज़त, तुम्हारी बेइज़्ज़ती की ग़ुलाम नहीं! मैं जैसी हूं, वैसी हूं'. होता है ज़िंदगी में, चलता है, अच्छे से अच्छा साज़ भी ट्यून करते वक़्त सुर-ताल से भटक ही जाता है.

क्या होता अगर फ़िल्म निर्देशक इम्तियाज़ अली मिलते, इंटरनेट की कुख्यात वायरल सनसनी ढिनचैक पूजा से? अगर वाकई ये दोनों कभी मिले होते तो इम्तियाज़ वो मुलाक़ात कभी भुला नहीं पाते. क्योंकि उनके सामने बैठी पूजा ऐसा आइना होती जिसमें इम्तियाज़ अपना वो अक़्स देखते जो शक़्ल से तो कोई और लगता, मगर अंदर से कहीं उनके जैसा ही दिखता. बिग बॉस के नए सीज़न की इस वाइल्ड कार्ड एन्ट्री में ऐसा कुछ तो ज़रूर है, जो हर इंसान के अंदर छुपे रॉक-स्टार को झकझोर दे. ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझा जाए.

बॉलीवुड में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे इम्तियाज़ की काबिलियत पर शक हो

इम्तियाज़ से कामयाबी की पहली मुलाक़ात कराई उनकी दूसरी फ़िल्म 'जब वी मेट' ने. ये फ़िल्म इम्तियाज़ के लिए कभी 'सोचा ना था' जैसा लम्हा थी. क्योंकि उन्हें ये सफलता तब मिली जब वो इसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर रहे थे. और अब.10 साल बाद जब किंग ख़ान के साथ उन्होंने अपना अचूक दांव खेला, तो सेजल, हैरी का दिल तोड़ गई. अपने सच की तलाश में ज़िंदगी के 'हाइवे' पर निकले, तारीफ़ों से ऊबे इम्तियाज़ चाहते हैं कि कोई उन्हें टोके, बताए कि वो कहां ग़लत हैं.उनसे बात करते हुए तो मुझे ऐसा ही महसूस हुआ.

एक तरफ इम्तियाज़ हैं तो दूसरी तरफ़,अपने दिल की अजब क्रिएटिव भड़ास इंटरनेट पर निकाल कर, तथाकथित हाइ-सोसायटी की हिकारत भरी नज़रों के ठीक सामने,पूरे आत्म-सम्मान से तनी खड़ी पूजा का टेक? 'जो चाहा सो किया. मेरी इज़्ज़त, तुम्हारी बेइज़्ज़ती की ग़ुलाम नहीं! मैं जैसी हूं, वैसी हूं'. होता है ज़िंदगी में, चलता है, अच्छे से अच्छा साज़ भी ट्यून करते वक़्त सुर-ताल से भटक ही जाता है.

अगर पूजा और इम्तियाज़ को देखें तो लगता है दोनों में काफी समानताएं हैं

सुर-ताल के तराज़ू पर तौलें तो पूजा शायद उतनी ढिनचैक ना निकले, मगर पूजा किसी और की कसौटी पर ख़ुद को कसने की कोई गुंजाइश नहीं देती. वो किसी दूसरे की राय पर, अपनी ज़िंदगी जीने को कतई तैयार नहीं दिखती. हां, अगर किसी भी 'महान' राय के चलते वो 'सही-ग़लत' के फेर में फंस गई होती, तो आज वो 'कुख्यात पॉप सेलेब्रिटी' ना होकर देश के लाखों बेसुरों में शुमार होती. पूजा को विख्यात या कुख्यात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. तभी तो यूट्यूब पर किसी आंधी की तरह छाई पूजा के हिट्स सलमान ख़ान जैसे सितारों के कई गानों को मुंह चिढ़ाते हैं.

उसे ना तो बॉलीवुड के किंग या क्वीन डराते हैं और ना ही उस पर बॉलीवुड का कोई कोड लागू होता है. अपनी रौ में वो बिंदास चीख़ती है, 'जो दिखता है, वो बिकता है'. ज़िंदगी एक तरीक़े से जीना सही है या बिंदास. पूजा ऐसी किसी शाश्वत बहस में नहीं उलझती. तो क्या ज़िंदगी का अनाड़ीपन कहीं जीने का बेहतर रास्ता तो नहीं?

जब हम तय करते हैं कि हमारे फ़ैसले क्या होंगे, तो फिर वही फ़ैसले दरअसल ये तय करते हैं कि हम कौन हैं. ढिनचैक पूजा के वायरल हिट्स ज़हन पर किसी आतंकी हमले से कम नहीं. जबकि सोशल मीडिया से पूरी तरह कतराने वाले इम्तियाज़ के बारे में कहा जाता है कि उनकी फ़िल्में, इंसानी वजूद के पसोपेश और अंतर्द्व्दं का आइना हैं. ग़नीमत है दोनों ने ज़माने की नहीं सुनी. अगर सुनी होती तो ना इम्तियाज़ इतने "इम्तियाज़" होते, और ना पूजा ही इतनी 'ढिनचैक'.

वक़्त की टाइमिंग देखिए कि अभी जब मैं ये लिख रही हूं, मेरे ठीक सामने हाइवे पर एक साइनबोर्ड दिख रहा है जिस पर लिखा है- 'लाइफ़ में रीसेट बटन नहीं होता!' सफ़र आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर बढ़ता है. अचानक एक और साइनबोर्ड सामने आता है, जो वाकई ज़िंदगी के आइने जैसा लगता है- 'ये ट्रायल रन है...धन्यवाद!"

सबसे अच्छी बात ये है कि इम्तियाज़ अपनी ग़लतियों के साथ ख़ुश हैं, क्या हुआ जो ज़िंदगी में रीसेट बटन ना हुआ, हर सॉफ़्टवेयर... हर ऐप का अपग्रेड तो वक़्त के साथ सामने आ ही जाता है. जो गुज़र गया, वो गुज़र गया, उसे गुज़र जाने दीजिए. नए रास्ते भी तो हैं, और पलटने चाहें तो पुरानी गलियां भी बंद नहीं. बस नए दरवाज़ों पर दस्तक देने की दरकार है. हर पल अंत की तरफ़ बढ़ती ज़िंदगी, एक नई शुरूआत की यात्रा भी तो है! मगर नई शुरूआत है क्या? इसे कौन तय करेगा. इसका सही समय क्या होगा? ये जंग है बड़े नाम, बड़ी गाड़ी, बड़ी कुर्सी और हमारे सपनों के बीच. सवाल अब भी वही. क्या दिल जो कहे वो किया जाए? तभी. मेरे कानों में "जब वी मेट" की "गीत" बेफ़िक्री से कहती है- " हू केयर्स...की फ़रक़ पैंदा है?

इम्तियाज़ के दिल की बात :

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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