हॉलीवुड की बेहतरीन फिल्म फ्रेंचाइजी 'हैरी पॉटर' के 20 साल पूरे हो चुके हैं. साल 2001 में फिल्म 'हैरी पॉटर एंड फिलॉसफर स्टोन' (Harry Potter and thePhilosopher's Stone) के साथ शुरू हुआ इसका सफर साल 2011 में रिलीज हुई 'हैरी पॉटर एंड द डेथली हैलोज पार्ट 2' (Harry Potter and theDeathly Hallows – Part 2) तक पहुंचा है. इस दौरान 10 वर्षों में इस फिल्म फ्रेंचाइजी की 8 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं, जिनमें हैरी पॉटर का जादू हर किसी के सिर चढ़कर बोलता रहा है. इस सीरीज की फिल्में पूरी दुनिया में हर उम्र के लोगों को पसंद आई हैं. इसी क्रम में हैरी पॉटर के 20 साल पूरे होने की खुशी में एक शो किया गया है, जिसमें इसकी पूरी यात्रा को याद किया जा रहा है. फिल्म से जुड़े सभी कलाकार, क्रू मेंबर्स, डायरेक्टर्स आदि ने अपने अनुभव साझा किए हैं.
हॉलीवुड की बेहतरीन फिल्म फ्रेंचाइजी 'हैरी पॉटर' के 20 साल पूरे हो चुके हैं. साल 2001 में फिल्म 'हैरी पॉटर एंड फिलॉसफर स्टोन' (Harry Potter and thePhilosopher's Stone) के साथ शुरू हुआ इसका सफर साल 2011 में रिलीज हुई 'हैरी पॉटर एंड द डेथली हैलोज पार्ट 2' (Harry Potter and theDeathly Hallows – Part 2) तक पहुंचा है. इस दौरान 10 वर्षों में इस फिल्म फ्रेंचाइजी की 8 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं, जिनमें हैरी पॉटर का जादू हर किसी के सिर चढ़कर बोलता रहा है. इस सीरीज की फिल्में पूरी दुनिया में हर उम्र के लोगों को पसंद आई हैं. इसी क्रम में हैरी पॉटर के 20 साल पूरे होने की खुशी में एक शो किया गया है, जिसमें इसकी पूरी यात्रा को याद किया जा रहा है. फिल्म से जुड़े सभी कलाकार, क्रू मेंबर्स, डायरेक्टर्स आदि ने अपने अनुभव साझा किए हैं.
फॉर्मूला बेस्ड फिल्में बनाने में यकीन रखने वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री यानी बॉलीवुड में कलाकार हीरो होता है, जबकि हॉलीवुड फिल्मों में कहानी हीरो होती है. हॉलीवुड कहानी किसी कलाकार को हीरो बनाती है, जबकि बॉलीवुड में हीरो को देखकर कहानी लिखी जाती है. फिल्म मेकर्स मूवी बनाने से पहले कलाकारों का चयन करते हैं. पहले हीरो और हिरोइन तय किए जाते हैं. उसके बाद उनपर फिट बैठने वाली कहानी तैयार की जाती है. स्क्रिप्ट राइटर भी फॉर्मूले के आधार पर कहानी लिख देता है. इसमें रोमांस, म्युजिक, कॉमेडी, ट्रेजेडी और एक्शन को जरूरत के हिसाब से डालकर हैप्पी एंडिंग कर दी जाती है. लीक से हटकर फिल्में बनाने का रिस्क बहुत कम ही मेकर्स ले पाते हैं, क्योंकि उन्हें अंजाम पता होता है. भारतीय दर्शक बॉलीवुड से सिर्फ अपने चहेते स्टार की फिल्में देखने में ही यकीन करता है.
एक दशक पहले तो इससे भी ज्यादा बुरा हाल था. उस वक्त फिल्म मेकर्स सिर्फ स्टार केंद्रित फिल्में बनाते थे. दर्शक भी अपने स्टार की ही फिल्में देखना पसंद करते थे. जैसे कि जिसे शाहरुख खान पसंद है, वो सिर्फ उनकी ही फिल्में देखते, जिनको सलमान खान पसंद है, वो उनकी फिल्में देखते. यदि फिल्म में शाहरुख, सलमान, आमिर, रितिक, अजय देवगन या अमिताभ बच्चन हैं, तो समझिए फिल्म हिट है. इसलिए फिल्म की सारी योजना इन्हीं सितारों के इर्द-गिर्द बनती थी. हालांकि, बाद के समय में दर्शकों ने इसे नकारना शुरू कर दिया. खासकर के डिजिटल युग के प्रवेश करने के बाद जब ओटीटी का जमाना आया, तो कंटेंट किंग बनने लगा. कहानियों के आधार पर कलाकार हीरो बनने लगे. वरना पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, आशुतोष राणा और सुष्मिता सेन जैसे कलाकार पहले की ही तरह नेपथ्य में पड़े होते.
फिल्म का डायरेक्टर एक बेहतरीन फिल्म बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. एसएस राजामौली से पहले किसी डायरेक्टर ने 'बाहुबली' जैसी फिल्म बनाने के बारे में नहीं सोचा था. इस फिल्म ने बॉलीवुड से लेकर कॉलीवुड तक मूवी कल्चर में आमूल-चूल परिवर्तन किए हैं. पहली बार पैन इंडिया मूवी का कॉन्सेप्ट देने वाली फिल्म के मेकर राजामौली ही हैं. उन्होंने ब़ॉलीवुड को सिखाया है कि कैसे भव्य फिल्में बनती हैं. संजय लीला भंसाली जैसा भव्य सेट बना लेने भर से फिल्मों में भव्यता नहीं आती, उसके लिए कई पैमाने पर फिल्म को कसना होता है, जिसमें कहानी से लेकर निर्देशन तक शामिल है. पिछले पांच वर्षों में फिल्म इंडस्ट्री के नजरिए में बहुत बड़ा बदलाव आया है. इसी का परिणाम है कि आरआरआर, पृथ्वीराज और ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्मों का निर्माण हो रहा है, जिसमें कहानी से लेकर तकनीक तक अलग है.
फिल्मों में तकनीक का इस्तेमाल भी एक अहम रोल निभाता है. फिल्मों से संबंधित तकनीकी विकास के चलते आज फिल्में बनाना, दिखाना आसान हो गया है. फिल्म निर्माण के दौरान किस तरह का कैमरा इस्तेमाल किया जा हैं या विजुअल इफेक्ट्स वीएफएक्स का इस्तेमाल, फिल्म को बेहतरीन बनाता है. इसी तरह एडिटिंग टूल भी फिल्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. पहले इन सभी स्तरों पर बॉलीवुड फिल्में बहुत कमजोर हुआ करती थीं, लेकिन उच्च-स्तरीय तकनीक के साथ फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है. जरूरत पड़ने पर हॉलीवुड के तकनीशियन का भी सहारा लिया जाता है. एक्शन फिल्मों के लिए एक्शन डायरेक्टर्स हॉलीवुड से हायर किए जाते हैं. कुल मिलाकार, पिछले 20 वर्षों के दौरान बॉलीवुड ने तेजी से विकास किया है. अब बॉलीवुड में भी हॉलीवुड के स्तर की फिल्में बननी लगी हैं. लेकिन इस पर अभी और ज्यादा काम किया जाना चाहिए. क्योंकि हॉलीवुड अब बहुत आगे निकल चुका है. उनसे कदम ताल के लिए भारतीय फिल्म मेकर्स को खुद को आगे ले जाना होगा.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.