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नववर्ष हमारा नहीं है, फिर हम किस बात का जश्न मना रहे हैं?

    • गोविंद पाटीदार
    • Updated: 01 जनवरी, 2023 10:20 PM
  • 01 जनवरी, 2023 10:20 PM
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नमस्कार इस लेख में आपका स्वागत है और साथ ही एक वैधानिक चेतावनी भी. चेतावनी यह कि सत्य और तर्क सुनने की क्षमता हो तो ही यह लेख पढ़े. दुनिया भर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. आप भी मनाइए, खुशियां मनाइएं, मिठाइयां बांटिए. लेकिन...

आपने कई लोगों के स्टेटस और संदेश देखें होंगे कि हमें नववर्ष की बधाई ना दे हम यह नहीं मनाते. हमारा नववर्ष दूसरा आता है. क्या सोचा फिर आपने? यही ना कि कितनी पिछड़ी सोच वाले हैं. जो दुनिया मना रही है उसमें भी इनको हिंदू ईसाई और न जाने क्या क्या सूझ रहा है. नमस्कार इस लेख में आपका स्वागत है और साथ ही एक वैधानिक चेतावनी भी. चेतावनी यह कि सत्य और तर्क सुनने की क्षमता हो तो ही यह लेख पढ़े. दुनिया भर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. आप भी मनाइए, खुशियां मनाइएं, मिठाइयां बांटिए. लेकिन जो नहीं मना रहे, जो कह रहे हैं कि हमें बधाई ना दें.

उन पर टिप्पणी करने से बचिए. अब मैं आपको कुछ तथ्यपूर्ण बातें बताता हूं. दुनियां का सबसे बड़ा धर्म ईसाई धर्म जिसकी भाषा अंग्रेज़ी और नववर्ष 1 जनवरी को. उसके बाद दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा धर्म इस्लाम..जिसकी आधिकारिक भाषा उर्दू और नववर्ष 29 जुलाई 2023 मुहर्रम .तीसरा सबसे बड़ा धर्म सनातन यानि हिंदू धर्म. भाषा संस्कृत और हिंदी और इनका नववर्ष 22 मार्च 2023. एक है यहूदी धर्म जिसके अनुयायी कम है लेकिन विख्यात है.

इनका नववर्ष 15 सितंबर को मनाया जाएगा.जिस तरह से हिंदू अपना नव वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाते हैं, उसी तरह भारत में रहने वाले अन्य धर्मों के लोग भी अपने अपने हिसाब से अपना नववर्ष मनाते हैं. पंजाबियों के लिए नए वर्ष की शुरुआत बैसाखी के दिन होती है, जो साल 2023 में 13 अप्रैल को पड़ेगा. हालांकि, नानकशाही कैलेंडर के हिसाब से देखें तो इनके लिए होला मोहल्ला नया साल होता है और यह 14 मार्च को पड़ेगा.

कश्मीरी पंडित नवरेह के दिन अपना नववर्ष मानते हैं साल 2023 में यह 19 मार्च को पड़ेगा. मारवाड़ी अपना नव वर्ष दीपावली के दिन मनाते हैं, जबकि गुजरात के लोग अपना नव वर्ष दीपावली के दूसरे दिन मनाते हैं. बंगाली...

आपने कई लोगों के स्टेटस और संदेश देखें होंगे कि हमें नववर्ष की बधाई ना दे हम यह नहीं मनाते. हमारा नववर्ष दूसरा आता है. क्या सोचा फिर आपने? यही ना कि कितनी पिछड़ी सोच वाले हैं. जो दुनिया मना रही है उसमें भी इनको हिंदू ईसाई और न जाने क्या क्या सूझ रहा है. नमस्कार इस लेख में आपका स्वागत है और साथ ही एक वैधानिक चेतावनी भी. चेतावनी यह कि सत्य और तर्क सुनने की क्षमता हो तो ही यह लेख पढ़े. दुनिया भर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. आप भी मनाइए, खुशियां मनाइएं, मिठाइयां बांटिए. लेकिन जो नहीं मना रहे, जो कह रहे हैं कि हमें बधाई ना दें.

उन पर टिप्पणी करने से बचिए. अब मैं आपको कुछ तथ्यपूर्ण बातें बताता हूं. दुनियां का सबसे बड़ा धर्म ईसाई धर्म जिसकी भाषा अंग्रेज़ी और नववर्ष 1 जनवरी को. उसके बाद दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा धर्म इस्लाम..जिसकी आधिकारिक भाषा उर्दू और नववर्ष 29 जुलाई 2023 मुहर्रम .तीसरा सबसे बड़ा धर्म सनातन यानि हिंदू धर्म. भाषा संस्कृत और हिंदी और इनका नववर्ष 22 मार्च 2023. एक है यहूदी धर्म जिसके अनुयायी कम है लेकिन विख्यात है.

इनका नववर्ष 15 सितंबर को मनाया जाएगा.जिस तरह से हिंदू अपना नव वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाते हैं, उसी तरह भारत में रहने वाले अन्य धर्मों के लोग भी अपने अपने हिसाब से अपना नववर्ष मनाते हैं. पंजाबियों के लिए नए वर्ष की शुरुआत बैसाखी के दिन होती है, जो साल 2023 में 13 अप्रैल को पड़ेगा. हालांकि, नानकशाही कैलेंडर के हिसाब से देखें तो इनके लिए होला मोहल्ला नया साल होता है और यह 14 मार्च को पड़ेगा.

कश्मीरी पंडित नवरेह के दिन अपना नववर्ष मानते हैं साल 2023 में यह 19 मार्च को पड़ेगा. मारवाड़ी अपना नव वर्ष दीपावली के दिन मनाते हैं, जबकि गुजरात के लोग अपना नव वर्ष दीपावली के दूसरे दिन मनाते हैं. बंगाली लोग पोहेला बैसाखी के दिन से अपना नया वर्ष मानते हैं. वहीं मराठी लोग गुड़ी पड़वा के दिन से अपना नया वर्ष मनाते हैं. यानी कि दुनियां के सभी छोटे से छोटे धर्म और वर्ग अपने नववर्ष को अपने तरीके से मनाते हैं. तो फिर हिंदू अगर अपना नववर्ष 1 जनवरी को नहीं मानता तो वह पिछड़ी सोच का कैसे हुआ? मुस्लिम मोहर्रम को अपना पवित्र और पहला महीना मानता है तो वह पिछड़ा कैसे हुआ? और आधुनिक कौन हुआ जो अपना अस्तित्व अपनी संस्कृति को भूलकर अंग्रेजी सभ्यता को अपना चुका है. बेशक हर धर्म पवित्र है, हर भाषा अच्छी है. लेकिन अगर हमारे पास सबसे अच्छा है तो हम क्यों किसी और कि संस्कृति को अपनाएं. हम क्यों अपना अस्तित्व भूलते जाएं. रामधारी सिंह दिनकर ने इस पर कविता लिखी थी कि है अपना यह त्योहार नहीं, ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं. आप सभी को अगर अंग्रेज़ी नववर्ष मनाना है तो मनाइए अच्छी बात है. लेकिन जो नहीं मनाते उन पर टिप्पणी करने से बचिए. चीन इतना बड़ा देश है.

दुनियां का सबसे बड़ा देश है वह अपने हिसाब से अपना नववर्ष मनाता है (20 जनवरी से 20 फरवरी के बीच ) चंद्रमा को देखकर ) फिर आप अपने आप को अपने धर्म को अपनी भाषा को अपनी संस्कृति को मानने से पीछे क्यों हट जाते हैं? एक समय आएगा जब लोग आपसे हंसकर पूछेंगे कि तुम्हारा अपना क्या है? और तब तक आप लोग अपनी भाषा, संस्कृति, नववर्ष, सबकुछ भूल चुके होंगे. सार्वजनिक तौर पर किसी अंग्रेज़ ने आपको पूछ लिया कि "तुम्हारा अपना क्या है यह तो ईसाई कैलेंडर के हिसाब से हैं?"

क्या जवाब देंगे आप और यही अगर किसी ऐसे सनातनी या ऐसे इस्लामिक व्यक्ति से पूछ लिया जो अपनी संस्कृति मानता है. वह अपने धर्म की पवित्रता और उसकी उच्चता भी सर उठाकर बताएगा. बरहाल आप जिस लोकतंत्र की दुहाई देकर कहते हैं कि यहां सभी धर्म सभी भाषा और कुछ भी करने की स्वतंत्रता है. वही लोकतंत्र कहता है कि आप समर्थन और विरोध कर सकते हैं. अंग्रेज़ी नववर्ष की अंग्रेजी संस्कृति मानने वालों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ईश्वर का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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