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टॉयलेट एक प्रेम कथा- एक अच्‍छी फिल्म, जिसे सरकारी घोषणा-पत्र बनाकर बर्बाद कर दिया

    • सिद्धार्थ हुसैन
    • Updated: 11 अगस्त, 2017 05:05 PM
  • 11 अगस्त, 2017 05:05 PM
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टॉयलेट एक प्रेम कथा देखकर निकले तो बदहजमी हो गई. अच्छी कहानी और शानदार एक्टिंग फिल्म की जान है लेकिन सरकारी घोषणापत्र बनाकर बर्बाद कर डाला.

फिल्म देखने के लिये मैं क्यों उत्सुक था?

1) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित हो कर बनी है फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा.

2) अक्षय कुमार सामाजिक विषय से जुड़ी फिल्में ज्यादा कर रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है चाहे जॉली एलएलबी 2 हो या रुस्तम, एयरलिफ़्ट, बेबी. सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस के साथ-साथ दर्शकों और क्रिटिक्स की तारीफ हासिल करने में कामयाब रहीं.

3) अक्षय का कॉमेडी में बोलबाला रहा है. तो उम्मीद है कि व्यंग में भी एंटरटेनमेंट का तड़का लगा पायेंगे.

4) अक्षय कुमार और भूमी पेडनेकर की जोड़ी. अक्षय की ख़ासियत बनती जा रही है कि वो हर बार नयी हीरोइन के साथ काम कर रहे हैं. जोड़ी से ज्यादा वो किरदार को एहमियत दे रहे हैं.

5) "टॉयलेट एक प्रेम कथा" फिल्म के टाइटल से कहानी के मुद्दे का अंदाज़ा हो जाता है. आज भी हमारे देश में शौचालय एक ज़रूरी विषय है.

कहानी को कब्ज क्यों हुआ?

अब बात कहानी की

फिल्म की कहानी बेहद सरल है. अक्षय कुमार को भूमी पेडनेकर से पहली नज़र में प्यार हो जाता है. उम्र में बड़े अक्षय किसी तरह से खुद से ज्यादा पढी-लिखी लड़की को शादी करने के लिये मना लेते हैं. मगर शादी के बाद, हैप्पी एंडिंग के बजाय परेशानियों का पहाड़ खड़ा हो जाता है. जब लड़की को पता चलता है कि घर में शौचालय नहीं है और शौच करने के लिये गांव की औरतों के साथ खेत में जाना पड़ेगा. तो वो इंकार करती है और फिर शुरू होती है सारी महाभारत.

समाज के घिसी-पिटे रिवाजों को तोड़ने के लिये वो लड़की कैसे अपने पति को समझाती है. और आखिरकार पति यानि अक्षय कुमार गांव की सोच और ढीले सरकारी रवैये में बदलाव ला पाता है या नहीं. कमजोर स्क्रीनप्ले फिल्म की कहानी दिलचस्प...

फिल्म देखने के लिये मैं क्यों उत्सुक था?

1) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित हो कर बनी है फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा.

2) अक्षय कुमार सामाजिक विषय से जुड़ी फिल्में ज्यादा कर रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है चाहे जॉली एलएलबी 2 हो या रुस्तम, एयरलिफ़्ट, बेबी. सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस के साथ-साथ दर्शकों और क्रिटिक्स की तारीफ हासिल करने में कामयाब रहीं.

3) अक्षय का कॉमेडी में बोलबाला रहा है. तो उम्मीद है कि व्यंग में भी एंटरटेनमेंट का तड़का लगा पायेंगे.

4) अक्षय कुमार और भूमी पेडनेकर की जोड़ी. अक्षय की ख़ासियत बनती जा रही है कि वो हर बार नयी हीरोइन के साथ काम कर रहे हैं. जोड़ी से ज्यादा वो किरदार को एहमियत दे रहे हैं.

5) "टॉयलेट एक प्रेम कथा" फिल्म के टाइटल से कहानी के मुद्दे का अंदाज़ा हो जाता है. आज भी हमारे देश में शौचालय एक ज़रूरी विषय है.

कहानी को कब्ज क्यों हुआ?

अब बात कहानी की

फिल्म की कहानी बेहद सरल है. अक्षय कुमार को भूमी पेडनेकर से पहली नज़र में प्यार हो जाता है. उम्र में बड़े अक्षय किसी तरह से खुद से ज्यादा पढी-लिखी लड़की को शादी करने के लिये मना लेते हैं. मगर शादी के बाद, हैप्पी एंडिंग के बजाय परेशानियों का पहाड़ खड़ा हो जाता है. जब लड़की को पता चलता है कि घर में शौचालय नहीं है और शौच करने के लिये गांव की औरतों के साथ खेत में जाना पड़ेगा. तो वो इंकार करती है और फिर शुरू होती है सारी महाभारत.

समाज के घिसी-पिटे रिवाजों को तोड़ने के लिये वो लड़की कैसे अपने पति को समझाती है. और आखिरकार पति यानि अक्षय कुमार गांव की सोच और ढीले सरकारी रवैये में बदलाव ला पाता है या नहीं. कमजोर स्क्रीनप्ले फिल्म की कहानी दिलचस्प है. लेकिन स्क्रीनप्ले पूरी तरह से बांधने में कामयाब नहीं होता. फिल्म का पहला हाफ प्रेम कहानी में ही निकल जाता है. विषय सही मायने में इंटरवल के बाद शुरू होता है.

हालांकि प्रेम कहानी रोमांचक है. लेकिन कहानी आगे नहीं बढ़ती और सीन रिपीट होने लगते हैं. साथ ही मुद्दे तक पहुंचते हुए बहुत देर हो जाती है. साथ ही जब विषय शुरू होता है तो व्यंग से ज्यादा भाषण लगता है. सरकार और प्रधानमंत्री की तारीफ से लेकर सरकारी दफ़्तरों में किस तरह से लापरवाही से काम होता है तक. और कैसे सरकार इन सब परेशानियों को ठीक करती है ये सब दिखाया है.

इससे फिल्म टैक्स फ़्री तो हो सकती है. लेकिन दर्शकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से कामयाब नहीं होती. वैसे उत्तर प्रदेश में फिल्म रिलीज़ के पहले ही टैक्स फ़्री घोषित कर दी गयी थी. फिल्म को नुकसान होने के आसार कम हैं. लेकिन दर्शक थोड़ा निराश महसूस कर सकते हैं. फिल्म के लेखक सिद्धार्थ सिंह और गरिमा वाहल ने मुद्दा तो सही उठाया. लेकिन उसे कहानी का जामा सही तरीके से पहना नहीं पाये.

कहानी को भाषण खा गया

कुछ डायलॉग्स अच्छे हैं और ख़ासकर इंटरवल से पहले चेहरे पर मुस्कान लाने में कामयाब होते हैं. एक्टिंग के डिपार्टमेंट में अक्षय कुमार और भूमी पेडनेकर ने बेहद ईमानदारी से अपने किरदारों को निभाया है. अक्षय के पिता के रोल में सुधीर पांडे भी अपनी छाप छोड़ते हैं. देवेंदू और अनुपम खेर औसत हैं. भूमी के पिता के किरदार में अतुल श्रीवास्तव उभर के आते हैं. अंशुमन महाले की सिनेमेटोग्राफ़ी छोटे शहर के मूड को सही तरीके से क़ैद करती है.

निर्देशक श्री नारायण सिंह ने फिल्म की एडिटिंग भी की है. अगर वो फिल्म की एडिटिंग पर ध्यान देते तो ये फिल्म और बेहतर बन सकती थी. फिल्म का संगीत भी बहुत साधारण है और फिल्म की लय को तोड़ता है. लंबी होने की वजह से फिल्म सुस्त हो जाती है. एक बेहतरीन विषय और सुपर स्टार अक्षय कुमार की वजह से लोग हॉल में जरूर पहुंचेंगे और सभी को फिल्म का मुद्दा अच्छा लगेगा. लेकिन ओवर ऑल फिल्म पसंद आयेगी ये कहना थोड़ा मुश्किल है.

इस वक्त अक्षय कुमार के सितारे बुलंद हैं. इसलिये शायद फ्लॉप का तमगा ना लगे और टैक्स फ़्री का फ़ायदा भी मिल सकता है. लेकिन टिकट खरीदनेवाले दर्शकों को हलके में नहीं लेना चाहिये. क्योंकि पैसे पूरे दिये हैं तो फिर एंटरटेनमेंट टुकड़ों में क्यों? हाल ही में सलमान खान (ट्यूबलाइट), रणबीर कपूर (जग्गा जासूस) और शाहरुख (हैरी मेट सेजल), सबकी फिल्मों को जवाब मिल चुका है. देखते हैं अक्षय कुमार को दर्शक क्या जवाब देते हैं. दो स्टार के लायक है टॉयलेट एक प्रेम कथा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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