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काश 'अज़हर' की कहानी सच्ची होती!

    • ऋचा साकल्ले
    • Updated: 13 मई, 2016 09:54 PM
  • 13 मई, 2016 09:54 PM
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फिक्सिंग कांड का सच अज़हरुद्दीन के सिवाय कोई नहीं जानता है लेकिन फिल्म अजहर पूरी तरह अज़हरुद्दीन को भला, ईमानदार बताने पर आमादा है. पूरी फिल्म एकपक्षीय है.

क्रिकेट का खेल मुझे पूरी तरह जीवन की फिलॉसफी पर आधारित लगता है. कभी किसी का वक़्त आता है कभी किसी का. सब अपनी-अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं, अपनी बारी का मौक़ा मिल भी जाए तो ये ज़रूरी नहीं कि आप मौक़े को भुना पाओ क्योंकि मौक़ा नहीं भुनाया तो खेल से आउट और गर आपने मौक़ा भुना लिया तो आप बन जाते हैं मैन आफ द मैच. जीवन भी तो ऐसा ही है ना.

मेरे पसंदीदा क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरुद्दीन ऐसे ही खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी बारी आने पर जाने कितने मौक़े भुनाए और टीम इंडिया के उस वक़्त के सबसे सफलतम कप्तान बनने का गौरव उन्हें मिला. वो पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिसने टीम में जीतने की ज़िद डाली और जीत को परंपरा बनाया. उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने कई मैच जीते.

अजहर भारतीय टेस्ट टीम में 1990 से 99 तक कप्तान रहे. अजहर की कप्तानी में टीम इंडिया ने कुल 47 टेस्ट मैच खेले जिसमें 14 मैच में जीत और 14 मैचों में हार मिली. अजहर की कप्तानी में टीम इंडिया ने 174 वनडे मैच खेले. जिसमें 90 मैचों में जीत और 76 मैचों में हार मिली. अजहर को क्रिकेट की दुनिया में बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में जाना जाता है.

अजहर ने 99 टेस्ट मैच और 334 वनडे मैच खेले हैं. टेस्ट मैच में अजहर ने 22 शतक और 21 अर्धशतक के साथ 6,216 रन बनाये हैं, वहीं 334 वनडे में उन्होंने 7 शतक और 58 अर्धशतक के साथ 9,378 रन बनाकर नाम कमाया है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अजहर ने टेस्ट मैच में 105 और वनडे में 156 कैच लपके हैं.

लेकिन साल 2000 ने अज़हरुद्दीन के किए कराए पर पानी फेर दिया जब मैच फ़िक्सिंग के आरोपों ने उन्हें घेर लिया और बीसीसीआई ने उनके क्रिकेट खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया. अपने सौंवे टेस्ट खेलने का इंतज़ार कर रहे इस खिलाड़ी को वक़्त ने ऐसी पटखनी दी कि वो उठ नहीं पाया उल्टे फैंस की नज़रों से भी गिर गया.

क्रिकेट का खेल मुझे पूरी तरह जीवन की फिलॉसफी पर आधारित लगता है. कभी किसी का वक़्त आता है कभी किसी का. सब अपनी-अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं, अपनी बारी का मौक़ा मिल भी जाए तो ये ज़रूरी नहीं कि आप मौक़े को भुना पाओ क्योंकि मौक़ा नहीं भुनाया तो खेल से आउट और गर आपने मौक़ा भुना लिया तो आप बन जाते हैं मैन आफ द मैच. जीवन भी तो ऐसा ही है ना.

मेरे पसंदीदा क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरुद्दीन ऐसे ही खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी बारी आने पर जाने कितने मौक़े भुनाए और टीम इंडिया के उस वक़्त के सबसे सफलतम कप्तान बनने का गौरव उन्हें मिला. वो पहले ऐसे खिलाड़ी थे जिसने टीम में जीतने की ज़िद डाली और जीत को परंपरा बनाया. उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने कई मैच जीते.

अजहर भारतीय टेस्ट टीम में 1990 से 99 तक कप्तान रहे. अजहर की कप्तानी में टीम इंडिया ने कुल 47 टेस्ट मैच खेले जिसमें 14 मैच में जीत और 14 मैचों में हार मिली. अजहर की कप्तानी में टीम इंडिया ने 174 वनडे मैच खेले. जिसमें 90 मैचों में जीत और 76 मैचों में हार मिली. अजहर को क्रिकेट की दुनिया में बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में जाना जाता है.

अजहर ने 99 टेस्ट मैच और 334 वनडे मैच खेले हैं. टेस्ट मैच में अजहर ने 22 शतक और 21 अर्धशतक के साथ 6,216 रन बनाये हैं, वहीं 334 वनडे में उन्होंने 7 शतक और 58 अर्धशतक के साथ 9,378 रन बनाकर नाम कमाया है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अजहर ने टेस्ट मैच में 105 और वनडे में 156 कैच लपके हैं.

लेकिन साल 2000 ने अज़हरुद्दीन के किए कराए पर पानी फेर दिया जब मैच फ़िक्सिंग के आरोपों ने उन्हें घेर लिया और बीसीसीआई ने उनके क्रिकेट खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया. अपने सौंवे टेस्ट खेलने का इंतज़ार कर रहे इस खिलाड़ी को वक़्त ने ऐसी पटखनी दी कि वो उठ नहीं पाया उल्टे फैंस की नज़रों से भी गिर गया.

 भारतीय क्रिकेट के सफलतम कप्‍तानों में से एक अजहर पर बनी फिल्‍म उन्‍हें रॉक स्टार छवि देती है.

फिल्म अज़हर, मोहम्मद अज़हरुद्दीन के खेल जीवन के फ़िक्सिंग कांड और व्यक्तिगत जीवन के कुछ विवादित पन्नों को पलटती है. सच में क्या हुआ- बुकी से उन्होंने पैसा लिया, नहीं लिया, अज़हरुद्दीन के सिवाय ये कौन जानता है लेकिन फिल्म पूरी तरह अज़हरुद्दीन को भला, ईमानदार बताने पर आमादा है. पूरी फिल्म एकपक्षीय है.

फिल्म के एक सीन के मुताबिक़ तो अज़हर ने पैसे लिए लेकिन इंडिया को मैच जिता दिया और बाद में बुकी को पैसे लौटा दिए. फिल्म में उन्होंने अपने वक़ील को इसकी वजह बताते हुए सफ़ाई दी है कि अगर वो पैसे नहीं रखते तो बुकी दूसरे खिलाड़ी को संपर्क करता इसलिए पैसे लेकर उन्होंने बुकी के साथ ही खेल कर दिया. ये सिचुएशन बेहद फ़िल्मी है या फिर एकदम आदर्श. वरना इस बात पर भरोसा करना इतना आसान नहीं, कि एक करोड़ देखकर मन में लालच ना आया हो. क्रिकेटर को तो हम भगवान मानते हैं ना होता तो वो इंसान ही है. अच्छा होता निर्देशक टोनी डिसूज़ा इस बायोपिक को रियलिस्टिक बनाते.

फिल्म एकतरफ़ा होने की वजह से कई सवाल साफ़ नहीं करती है. माना कि राजसिंह डूंगरपुर ने कई सीनियर खिलाड़ियों को नज़रअंदाज़ कर अज़हर को कप्तान बनाया तो टीम में ईर्ष्या द्वेष का सामना अज़हर को करना पड़ा. लेकिन टीम में एक ऐसा शख़्स नहीं था जो अज़हरुद्दीन के लिए सामने आता.

मनोज प्रभाकर के स्टिंग में बोलते दिखे खिलाड़ी सामने क्यों नहीं आए. किसी को भी देश की परवाह नहीं थी. किसी को सौ करोड़ जनता की भावनाओं की क़द्र नहीं थी. ख़ुद अज़हर जो फिल्म में इतने पाक साफ़ दिखाए गए हैं वो आरोप लगने पर चुप क्यों रहे. करते एक प्रेस कांफ्रेंस और बताते आम लोगों को सच्ची बात.

फिल्म अज़हर की सिर्फ़ एक बात ने मुझे भावनात्मक स्तर पर जोड़ा वो ये कि अज़हरुद्दीन अपने नाना के लिए क्रिकेट खेलते रहे. वो सौ टेस्ट खेलने का उनका सपना पूरा करना चाहते थे लेकिन ये ख़्वाब अधूरा ही रह गया. अज़हरुद्दीन अगर आप ये पढ़ रहे हैं तो जान लीजिए ये सिर्फ़ आपके नाना, और आपका नहीं हिंदुस्तान में आपके सभी चाहने वालों का ख़्वाब था कि आप सौ टेस्ट खेलें, जो अधूरा रह गया. मुझे दुख है कि 8 नवंबर 2012 को जब आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने अजहर पर लगे आजीवन प्रतिबंध को खारिज कर दिया तब तक वो अपना क्रिकेट करियर ख़त्म कर चुके थे.

मैं ये मानती हूँ कि इमरान हाशमी को एक्टिंग नहीं आती, सच भी है.लेकिन पहली बार उनके लिए एक बात पॉज़ीटिव लगी कि वो किसी को कॉपी करने के हुनर को विकसित कर सकते हैं. अज़हर की कुछ मुद्राओं को उन्होंने काफ़ी हद तक अच्छा कॉपी किया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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