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क्यों 'डॉन' जैसे लगने लगे हैं साउथ के ये सुपरस्टार...

    • विनीत कुमार
    • Updated: 26 अगस्त, 2016 08:16 PM
  • 26 अगस्त, 2016 08:16 PM
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हिंदू-मुस्लिम दंगा, जमीन-जायदाद की लड़ाई या फिर गर्लफ्रेंड के लिए ही दो दोस्तों की हाथापाई...ये सब तो खूब होता रहा है. लेकिन 'कौन सा फिल्मी स्टार बड़ा है'..इसे लेकर जब एक फैन दूसरे हीरो के फैन की चाकू मार कर हत्या कर दे तो क्या कहेंगे...

हाल ही में पूरी दुनिया ने भारत और खासकर दक्षिण भारत में फिल्म और फिल्म स्टार्स को लेकर दीवानगी का एक नमूना देखा. 22 जुलाई को रजनीकांत की फिल्म कबाली रिलीज हुई और क्या खूब हुई. सुबह चार बजे पहला शो! ये तो वो समय होता है जब मंदिरों के पट खोले जाते हैं. लेकिन 22 जुलाई को मंदिरों के साथ सिनेमाहॉल भी खुले. और क्यो न खुलें! एक 'भगवान' वहां भी तो थे. उस दिन भीड़ कहां ज्यादा हुई ये बता पाना मुश्किल है. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि पर्दे के स्टार मंदिर के भगवान को चुनौती देते रहे हैं.

साउथ इंडिया में फिल्मों और उनके स्टार्स को लेकर क्रेज से सब वाकिफ हैं. लेकिन अब सवाल उठने लगे हैं कि ये दीवानगी कहीं पागलपन की हद तो पार नहीं कर रहा. ये पूरी बहस इसलिए क्योंकि तेलुगू फिल्मों के बड़े स्टार जूनियर एनटीआर के एक फैन ने वहां के एक दूसरे स्टार पवन कल्याण के एक फैन की हत्या कर दी. बहस इस बात पर शुरू हुई कि कौन सा हीरो ज्यादा बड़ा है.

गौरतलब है कि जूनियर एनटीआर दिवंगत अभिनेता और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामा राव के पोते हैं. उनकी एक फिल्म 'जनता गैरेज' भी अगले ही हफ्ते रिलीज होने जा रही है. दूसरी ओर पवन कल्याण बेहद लोकप्रिय चिंरजीवी के भाई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबकि हाल के दिनों में ये ऐसी तीसरी घटना है.

 पवन कल्याण

इस पर भी दिलचस्प ये कि पवन कल्याण एक स्पेशल जेट से विशेष तौर पर मृतक के परिवार से मिलने पहुंचे. उन्होंने वहां पहुंचकर मीडिया के जरिए ये संदेश तो दिया कि फैनगीरी के नाम पर खून खराबा गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन सवाल फिर भी हैं कि पवन का वहां ऐसे पहुंचना क्या एक आम प्रतिक्रिया थी. या उन्होंने उसमें...

हाल ही में पूरी दुनिया ने भारत और खासकर दक्षिण भारत में फिल्म और फिल्म स्टार्स को लेकर दीवानगी का एक नमूना देखा. 22 जुलाई को रजनीकांत की फिल्म कबाली रिलीज हुई और क्या खूब हुई. सुबह चार बजे पहला शो! ये तो वो समय होता है जब मंदिरों के पट खोले जाते हैं. लेकिन 22 जुलाई को मंदिरों के साथ सिनेमाहॉल भी खुले. और क्यो न खुलें! एक 'भगवान' वहां भी तो थे. उस दिन भीड़ कहां ज्यादा हुई ये बता पाना मुश्किल है. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि पर्दे के स्टार मंदिर के भगवान को चुनौती देते रहे हैं.

साउथ इंडिया में फिल्मों और उनके स्टार्स को लेकर क्रेज से सब वाकिफ हैं. लेकिन अब सवाल उठने लगे हैं कि ये दीवानगी कहीं पागलपन की हद तो पार नहीं कर रहा. ये पूरी बहस इसलिए क्योंकि तेलुगू फिल्मों के बड़े स्टार जूनियर एनटीआर के एक फैन ने वहां के एक दूसरे स्टार पवन कल्याण के एक फैन की हत्या कर दी. बहस इस बात पर शुरू हुई कि कौन सा हीरो ज्यादा बड़ा है.

गौरतलब है कि जूनियर एनटीआर दिवंगत अभिनेता और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामा राव के पोते हैं. उनकी एक फिल्म 'जनता गैरेज' भी अगले ही हफ्ते रिलीज होने जा रही है. दूसरी ओर पवन कल्याण बेहद लोकप्रिय चिंरजीवी के भाई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबकि हाल के दिनों में ये ऐसी तीसरी घटना है.

 पवन कल्याण

इस पर भी दिलचस्प ये कि पवन कल्याण एक स्पेशल जेट से विशेष तौर पर मृतक के परिवार से मिलने पहुंचे. उन्होंने वहां पहुंचकर मीडिया के जरिए ये संदेश तो दिया कि फैनगीरी के नाम पर खून खराबा गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन सवाल फिर भी हैं कि पवन का वहां ऐसे पहुंचना क्या एक आम प्रतिक्रिया थी. या उन्होंने उसमें शामिल होकर फैंस की उसी गोलबंदी को और मजबूती दी?

साउथ इंडियन फिल्मों और टॉलीवुड में स्टार फैंस के बीच झगड़े की कहानी

दक्षिण भारत में सभी फिल्मी सितारों के अपने-अपने फैन क्लब होना कोई नई बात नहीं है. इसे आप ऐसे समझिए कि जैसे राजनीति में सभी पार्टियों के अपने वोटर होते हैं. उन प्रशंसकों का एक-दूसरे से भिड़ना, एक-दूसरे को मारना-पीटना..घायल होना..ये सब होता रहा है. खासकर, किसी फिल्म के रिलीज से पहले ऐसी घटनाएं खूब होती हैं. जिस फिल्मी सितारे की फिल्म रिलीज होने वाली होती है...उसका फैन क्लब ऐसा माहौल तैयार कर देता है कि जैसे अब तक कि सबसे बड़ी फिल्म रिलीज होने जा रही हो.

यह भी पढ़ें- जानिए रजनीकांत क्‍यों कला से बड़े कलाकार हैं

आप 60 या 70 के दशक को ही देख लीजिए. तब तेलुगू सिनेमा में कृष्णा और सोभन बाबू जैसे बड़े स्टार मौजूद थे. दोनों का अपना फैन क्लब. अक्सर एक स्टार का फैन क्लब दूसरे स्टार की नई रिलीज फिल्म को देखने सिनेमाहॉल में पहुंच जाता था. और फिर फिल्म के बीच में ही उसका मजाक उड़ाने या दूसरे व्यवधान डालने का सिलसिला चल पड़ता था. किसकी फिल्म कितने दिन चली, इसे लेकर दोनों खेमों में खूब बहस होती थी.

80 के दशक में रजनीकांत और कमल हासन के फैंस के बीच की प्रतिद्वंद्वीता की कहानी भी तब खूब सुर्खियों में होती थी.

 रजनीकांत और कमल हासन

धीरे-धीरे स्टार्स के फैंस के बीच की ये जंग पोस्टर वॉर तक पहुंची. मसलन, किस स्टार के फिल्म का पोस्टर कितना बड़ा है. यही नहीं, इसमें जाति और राजनीति ने भी अहम रोल निभाना शुरू कर दिया. लोगों ने हीरो की जाति से खुद को जोड़ना शुरू कर दिया. शायद, यही वजह भी है कि साउथ के फिल्मी स्टार्स ने जब-जब राजनीति का रूख किया, वे सफल रहे क्योंकि उनका अपना वोटर वर्ग तैयार होता चला गया. हीरो जिस जाति का है, तय मानिए कि उस जाति के दूसरे लोग उसके पीछे आंख मूंद के आएंगे. कहा भी जाता है कि जब एनटी. रामाराव ने 1982 में तेलुगू देशम पार्टी शुरू की तो कामा जाति के उनके प्रशंसकों ने राजनीति में भी दिल खोलकर उनको समर्थन दिया.

पवन कल्याण के फैंस के मर्डर और उनके वहां स्पेशल चार्टड प्लेन से पहुंचने की कहानी में भी राजनीतिक एंगल तो सामने आ ही रहा है. कहा जा रहा है कि विनोद कुमार नाम के जिस शख्स की हत्या हुई है वो पवन की एक राजनीतिक शाखा 'जन सेना' से जुड़ा हुआ था जिसे उन्होंने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2014 में लॉन्च किया था. और फिर आज के दौर में पवन कल्याण या जूनियर एनटीआर की ही बात क्यों करें. तमिल फिल्मों के स्टार अजित और विजय के प्रशंसकों द्वारा सोशल मीडिया पर एक-दूसरे का मजाक बनाने की कहानी भी भला किससे छिपी है.

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लेकिन इन सबसे इतर एक बात और साफ है कि इन तमाम फिल्मी स्टार्स ने भी कभी फैन क्लब को लेकर कोई खास आपत्ति नहीं जताई. कारण भी है. इसका फायदा उनकी फिल्मों को खूब मिलता है. फिर ये जहमत कौन उठाए और क्यों उठाए.

सोशल मीडिया पर 'फैंस' की जंग

टेक्नोलॉजी ने भी इस जंग को एक नया मैदान दिया है. बॉलीवुड को ही लीजिए तो यहां अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर या सलमान खान जैसे बड़े अभिनेता तो मौजूद हैं ही. इनकी अपनी फैन फलोइंग है. लेकिन किसकी कितनी बड़ी, इसे लेकर कभी कोई ठोस बात सामने आई नहीं. लेकिन सोशल मीडिया पर अब बहुत कुछ पानी की तरह साफ दिखने लगता है. बस, गनीमत है कि मामला खून खराबे तक नहीं पहुंचा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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