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Dybbuk Movie Review: इमरान हाशमी की फिल्म 'डिब्बुक' देखना समय की बर्बादी है!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 01 नवम्बर, 2021 05:29 PM
  • 30 अक्टूबर, 2021 11:16 PM
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ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर इमरान हाशमी (Emraan Hashmi) और निकिता दत्ता की फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' (Dybbuk Movie Review in Hindi) स्ट्रीम हो रही है. इस हॉरर-ड्रामा फिल्म में मानव कौल, इमाद शाह, डेंजिल स्मिथ, अनिल जॉर्ज और गौरव शर्मा भी अहम भूमिकाओं में हैं.

करीब चार साल पहले साल 2017 में एक मलयालम फिल्म रिलीज हुई थी, जिसका नाम 'एजरा' है. यह फिल्म साउथ के मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन की हिट फिल्मों में शुमार है, जो केरल की सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है. फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' इसी मलयालम फिल्म की हिंदी रीमेक है. लेकिन इस फिल्म के शीर्षक से लेकर कहानी तक विदेशी पृष्ठभूमि पर आधारित है. सबसे ज्यादा अटपटा तो इसका शीर्षक ही लगता है. हिंदी भाषी दर्शकों के नजरिए से यदि देखें तो कितने लोगों को 'डिब्बुक' का मतलब पता होगा. कई लोग तो इसका उच्चारण भी ठीक से नहीं कर पाएंगे. शीर्षक की तरह फिल्म भी है. इसे बनाने की जरूरत ही क्या थी, ये बात समझ नहीं आ रही है. हॉरर ड्रामा फिल्म के नाम पर दर्शकों के साथ कॉमेडी कर दी गई है. फिल्म देखना पूरी तरह समय की बर्बादी है.

फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर 29 अक्टूबर से स्ट्रीम हो रही है. इसमें इमरान हाशमी, निकिता दत्ता, मानव कौल, इमाद शाह, डेंजिल स्मिथ, अनिल जॉर्ज और गौरव शर्मा जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में हैं. इस फिल्म के निर्माता भूषण कुमार और कुमार मंगत पाठक हैं, तो निर्देशन जय के ने किया है. इस फिल्म की कहानी और पटकथा जय के, मनु वारियर और चिंतन गांधी ने लिखी है. लेकिन अपनी दोनों ही भूमिकाओं में जय के न्याय नहीं कर पाए हैं. वो न तो कहानी अच्छी लिख पाए, न ही फिल्म का निर्देशन ठीक से कर पाए. बॉलीवुड की कुछ पुरानी भूतहा फिल्मों की तरह 'डिब्बुक' को भी हॉरर बनाने की असफल कोशिश की गई. ड्रामा अच्छा रचा गया है, लेकिन हॉरर सीन देखकर कॉमेडी याद आ जाती है. इससे अच्छी फिल्म तो भट्ट कैंप में बनती हैं.

फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' में इमरान हाशमी और निकिता दत्ता लीड रोल में...

करीब चार साल पहले साल 2017 में एक मलयालम फिल्म रिलीज हुई थी, जिसका नाम 'एजरा' है. यह फिल्म साउथ के मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन की हिट फिल्मों में शुमार है, जो केरल की सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है. फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' इसी मलयालम फिल्म की हिंदी रीमेक है. लेकिन इस फिल्म के शीर्षक से लेकर कहानी तक विदेशी पृष्ठभूमि पर आधारित है. सबसे ज्यादा अटपटा तो इसका शीर्षक ही लगता है. हिंदी भाषी दर्शकों के नजरिए से यदि देखें तो कितने लोगों को 'डिब्बुक' का मतलब पता होगा. कई लोग तो इसका उच्चारण भी ठीक से नहीं कर पाएंगे. शीर्षक की तरह फिल्म भी है. इसे बनाने की जरूरत ही क्या थी, ये बात समझ नहीं आ रही है. हॉरर ड्रामा फिल्म के नाम पर दर्शकों के साथ कॉमेडी कर दी गई है. फिल्म देखना पूरी तरह समय की बर्बादी है.

फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर 29 अक्टूबर से स्ट्रीम हो रही है. इसमें इमरान हाशमी, निकिता दत्ता, मानव कौल, इमाद शाह, डेंजिल स्मिथ, अनिल जॉर्ज और गौरव शर्मा जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में हैं. इस फिल्म के निर्माता भूषण कुमार और कुमार मंगत पाठक हैं, तो निर्देशन जय के ने किया है. इस फिल्म की कहानी और पटकथा जय के, मनु वारियर और चिंतन गांधी ने लिखी है. लेकिन अपनी दोनों ही भूमिकाओं में जय के न्याय नहीं कर पाए हैं. वो न तो कहानी अच्छी लिख पाए, न ही फिल्म का निर्देशन ठीक से कर पाए. बॉलीवुड की कुछ पुरानी भूतहा फिल्मों की तरह 'डिब्बुक' को भी हॉरर बनाने की असफल कोशिश की गई. ड्रामा अच्छा रचा गया है, लेकिन हॉरर सीन देखकर कॉमेडी याद आ जाती है. इससे अच्छी फिल्म तो भट्ट कैंप में बनती हैं.

फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' में इमरान हाशमी और निकिता दत्ता लीड रोल में हैं.

बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का भी एक मैनुअल बनता जा रहा है, ज्यादातर फिल्में उसी को फॉलो करके बनाई जाती हैं. जैसे कि सन्नाटे में दरवाजा खुलने की आवाज, आत्मा ग्रसित शख्स का उल्टे पैर चलना, अंधेरी रात में सूनसान सड़कों पर चलना, कुत्तों का आत्मा की पहचान कर लेना और आत्मा के आते ही शीशे का चटक जाना. विक्रम भट्ट की हॉरर फिल्मों में आपने ऐसे सीन खूब देखे होंगे. फिल्म 'डिब्बुक: द कर्स इज रीयल' देखकर ऐसा लगता है कि निर्देशक जय के ने भट्ट कैंप से ही ट्रेनिंग ली है. वरना वही सूनसान बंग्ला, एक जोड़े का रहना, उनका आत्मा से ग्रसित होना, किसी पादरी या धार्मिक गुरू का उनका बचाव करना, सबकुछ वैसा ही कैसे दिखता.

Dybbuk Movie की कहानी

फिल्म 'डिब्बुक' की कहानी मुंबई में रह रहे एक कपल सैम आइजैक (इमरान हाशमी) और माही (निकिता दत्ता) के आसपास घूमती है. फिल्म की शुरूआत में दिखाया जाता है कि मॉरीशस में एक यहूदी शख्स की मौत हो जाती है. उसके बाद एक एंटिक चीजों के शोरूम में रखे लकड़ी के एक बॉक्स से आत्मा निकलती है और उसके कर्मचारी की हत्या कर देती है. इधर, एक स्पेशल असाइनमेंट पर सैम आइजैक अपनी पत्नी माही के साथ मुंबई से मॉरीशस शिफ्ट होता है. दोनों वहां एक पुराना महलनुमा बंग्ला किराए पर लेते हैं. माही को एंटिक चीजों को घर में सजाने का शौक होता है. वो उस शापित एंटिक शॉप से लकड़ी का वो बॉक्स अपने घर ले आती है.

माही उस बॉक्स को जैसे ही खोलती है उसमें से एक आत्मा निकलकर उसके शरीर में घुस जाती है. इसके बाद माही और सैम के साथ अजीब-अजीब घटनाएं होने लगती हैं. इसी दौरान सैम का एक संबंधी पादरी उसके घर आता है. वो बताता है कि इस घर में एक शक्तिशाली आत्मा का वास है. उसे हटाना इतना आसान नहीं है. पादरी के एक दोस्त की सलाह पर सैम इस समस्या के हल के लिए इजरायल जाता है. वहां उसकी मुलाकात रबाई बेन्यामिन (अनिल जॉर्ज) और उसके बेटे मार्कस (मानव कौल) से होती है. उन्हीं से पता चलता है कि उसके घर में रखा लकड़ी का बॉक्स एक 'डिब्बुक' है, जिसमें एजरा (इमाद शाह) की आत्मा बंद थी, जो अब माही के शरीर में आ गई है और अपने पिछले जन्म का बदला लेना चाहती है. एजरा एक ईसाई लड़की से प्रेम करता था, लेकिन पिता के विरोध करने पर वो उसे छोड़ देता है.

इससे दुखी होकर एजरा की प्रेमिका खुदकुशी कर लेती है. इससे नाराज उस लड़की के गांव वाले एजरा की बुरी तरह पिटाई कर देते हैं. वो अधमरा हो जाता है. इसलिए उसका पिता उसकी हत्या करके तंत्र-मंत्र से उसकी आत्मा डिब्बुक में बंद कर देता है. ताकि वो लोगों से बदला ले सके. यही आत्मा अब माही और सैम के जीवन को बर्बाद करने लगती है. लेकिन मार्कस, पादरी और एक पुलिसवाले की मदद से उस आत्मा को मुक्ति दे दी जाती है. इसके बाद माही और सैम की जिंदगी पहले जैसी सामान्य हो जाती है. 16वीं सदी में यहूदी लोग एक अनुष्ठान करते थे, जिसमें असंतुष्ट या असहनीय शारीरिक पीड़ा झेल रहे लोगों की आत्माओं को उनके शरीर से अलग करके एक बॉक्स में बंद कर दिया जाता था. इसी बॉक्स को डिब्बुक कहते हैं. डिब्बुक जेविश मैथोलॉजी से जुड़ा शब्द है, जो पहली बार 16वीं सदी में अस्तित्व में आया.

Dybbuk Movie की समीक्षा

बेहद सीधी-सपाट कहानी पर आधारित फिल्म 'डिब्बुक' में न कोई रहस्य है, न कोई रोमांच. यहां तक कि इमरान खान के होने के बावजूद फिल्म से रोमांस भी नदारद है. वरना सीरियल किसर की इमेज वाले इमरान खान के फैंस उनकी फिल्मों को बोल्डनेस की वजह से भी देखते रहे हैं. इस फिल्म को देखकर उनके डाई हार्ट फैंस भी बहुत निराश होंगे. इमरान खान अभिनय के स्तर पर एक अच्छे अभिनेता माने जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त उनके फिल्मों का चयन सही नहीं दिख रहा है. इमरान खान, निकिता दत्ता, मानव कौल, इमाद शाह, डेंजिल स्मिथ, अनिल जॉर्ज और गौरव शर्मा सहित सभी कलाकारों की परफॉर्मेंस औसत दर्जे की दिखाई देती है.

यदि तकनीकी रूप से भी देखा जाए तो फिल्म बहुत कमजोर नजर आती है. सिनेमैटोग्राफी से लेकर एडिटिंग तक किसी भी डिपार्टमेंट ने जोखिम उठाकर बेहतर करने की कोशिश नहीं की है. सत्या पोनमार की सिनेमैटोग्राफी बहुत ही स्लो है. यहां तक कि कैमरा मूवमेंट भी नहीं दिखता है. संदीप फ्रांसिस ने भी एडिटिंग के दौरान बहुत ज्यादा कैंची नहीं चलाई है, वरना 112 मिनट की फिल्म को कम समय में समेटा जा सकता था. गौरव दासगुप्ता और अमर मोहिले का संगीत औसत दर्जे का है. कुल मिलाकर, यह कह सकते हैं कि फिल्म 'डिब्बुक' जिस तरह से बिना शोर के आई, उसी तरह बिना शोर किए चली जाएगी. इसे देखना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 1 स्टार


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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