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PS-1 को हल्के में लेते रहिए, जिसने पहले दिन एडवांस में ही 15 CR कमा लिए- बॉलीवुड देखेगा उसकी ताकत!

    • आईचौक
    • Updated: 29 सितम्बर, 2022 10:35 PM
  • 29 सितम्बर, 2022 10:35 PM
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मणिरत्नम के निर्देशन में बनी पोन्नियिन सेलवन I रिलीज के लिए तैयार है. यह फिल्म चोल साम्राज्य की जिस महान कहानी को दिखाने वाली है दर्शकों में उसका जबरदस्त क्रेज है. फिल्म की एडवांस बुकिंग रिपोर्ट तो यही कहती है.

मणिरत्नम के निर्देशन में बनी पोन्नियिन सेलवन I (PS-1) का ट्रेलर जबसे आया है- चोल साम्राज्य की कहानी देखने के लिए भारतीय दर्शक व्याकुल हैं. PS-1 उस साम्राज्य की दास्ताल है जो भारत के भूगोल से तीन गुना ज्यादा बड़े क्षेत्रफल तक फैला था और उनकी नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में शामिल थी. फिल्म के लिएदर्शकों की व्याकुलता एडवांस बुकिंग रिपोर्ट्स से भी समझी जा सकती है. फिल्म 30 सितंबर को पैन इंडिया रिलीज होगी. रिलीज से पहले बुधवार तक PS-1 के रिकॉर्डतोड़ टिकट बिक रहे हैं. करीब 11 करोड़ रुपये के टिकट बुधवार तक ही बिक चुके हैं. ट्रेड सर्किल में माना जा रहा है कि शुक्रवार को रिलीज तक यह आंकड़ा 15 करोड़ या उससे भी कहीं ज्यादा हो सकता है. हालांकि एडवांस बुकिंग में तमिल का दबदबा है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ तेलुगु, हिंदी और मलयालय वर्जन का कंट्रीब्यूशन करीब 1 करोड़ (कुल 11 करोड़ में) से ज्यादा है. कुछ लोगों को ऐसा भी लग रहा कि हिंदी बेल्ट में फिल्म की अपेक्षित चर्चा नहीं हो रही और इसकी वजह विक्रम वेधा को माना जा रहा. असल में विक्रम वेधा को PS-1 के साथ रिलीज किया जा रहा है. और एक तरह से हिंदी बेल्ट में दोनों फिल्मों के बीच क्लैश है. PS-1 की कहानी अपने आप में यूनिक सब्जेक्ट पर है. एक ऐसा विषय जिसमें भारतीयों की स्वाभाविक दिलचस्पी रहती है. सोशल मीडिया पर फिल्म की वजह से इतिहास के एक बड़े हिस्से पर बातचीत भी हो रही. मगर मीडिया इस पर कोई डिबेट बनाने में क्यों खामोश है- कुछ कहा नहीं जा सकता. जबकि फिल्म के बहाने चोलों के इतिहास पर बात करने का यह एक बहुत बढ़िया वक्त हो सकता था.

जयराम रवि, विक्रम और कार्ति.

एडवांस बुकिंग में ही मणिरत्नम की फिल्म ने दिखा दी है अपनी ताकत

हो सकता है कि हिंदी बेल्ट में मीडिया...

मणिरत्नम के निर्देशन में बनी पोन्नियिन सेलवन I (PS-1) का ट्रेलर जबसे आया है- चोल साम्राज्य की कहानी देखने के लिए भारतीय दर्शक व्याकुल हैं. PS-1 उस साम्राज्य की दास्ताल है जो भारत के भूगोल से तीन गुना ज्यादा बड़े क्षेत्रफल तक फैला था और उनकी नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में शामिल थी. फिल्म के लिएदर्शकों की व्याकुलता एडवांस बुकिंग रिपोर्ट्स से भी समझी जा सकती है. फिल्म 30 सितंबर को पैन इंडिया रिलीज होगी. रिलीज से पहले बुधवार तक PS-1 के रिकॉर्डतोड़ टिकट बिक रहे हैं. करीब 11 करोड़ रुपये के टिकट बुधवार तक ही बिक चुके हैं. ट्रेड सर्किल में माना जा रहा है कि शुक्रवार को रिलीज तक यह आंकड़ा 15 करोड़ या उससे भी कहीं ज्यादा हो सकता है. हालांकि एडवांस बुकिंग में तमिल का दबदबा है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ तेलुगु, हिंदी और मलयालय वर्जन का कंट्रीब्यूशन करीब 1 करोड़ (कुल 11 करोड़ में) से ज्यादा है. कुछ लोगों को ऐसा भी लग रहा कि हिंदी बेल्ट में फिल्म की अपेक्षित चर्चा नहीं हो रही और इसकी वजह विक्रम वेधा को माना जा रहा. असल में विक्रम वेधा को PS-1 के साथ रिलीज किया जा रहा है. और एक तरह से हिंदी बेल्ट में दोनों फिल्मों के बीच क्लैश है. PS-1 की कहानी अपने आप में यूनिक सब्जेक्ट पर है. एक ऐसा विषय जिसमें भारतीयों की स्वाभाविक दिलचस्पी रहती है. सोशल मीडिया पर फिल्म की वजह से इतिहास के एक बड़े हिस्से पर बातचीत भी हो रही. मगर मीडिया इस पर कोई डिबेट बनाने में क्यों खामोश है- कुछ कहा नहीं जा सकता. जबकि फिल्म के बहाने चोलों के इतिहास पर बात करने का यह एक बहुत बढ़िया वक्त हो सकता था.

जयराम रवि, विक्रम और कार्ति.

एडवांस बुकिंग में ही मणिरत्नम की फिल्म ने दिखा दी है अपनी ताकत

हो सकता है कि हिंदी बेल्ट में मीडिया का एक धड़ा PS-1 की ताकत को भांप नहीं पा रहा या वह किसी संकोच में है. या फिर वह चार साल बाद आ रही तमिल के ही बॉलीवुड रीमेक विक्रम वेधा के दबाव में हो. बावजूद मणिरत्नम की फिल्म की रिलीज से पहले ही यह साफ़ हो चुका है कि जो फिल्म एडवांस बुकिंग में ही 15 करोड़ से ज्यादा कमाते दिख रही है उसका आगाज बॉक्स ऑफिस पर कितना बड़ा हो सकता है? बुधवार तक विक्रम वेधा ने 6 करोड़ रुपये एडवांस के टिकट से निकाले थे. यह 8 करोड़ तक हो सकता है. एडवांस बुकिंग से दोनों फिल्मों को लेकर दर्शकों की रुचि का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं.

चोलों को क्यों महान कहा जाता है और भारत के इतिहास में उनके साम्राज्य की क्या अहमियत है- दक्षिण से बाहर के एक बड़े दर्शक वर्ग (जिन्होंने इतिहास नहीं पढ़ा है) पहली बार जानने का मौका मिलेगा. असल में चोलों की कहानी पर फिल्म बनने के बाद उसके किस्सों पर हिंदी बेल्ट में भी चर्चा देखने को मिल रही है. तमाम लोग तो आश्चर्य जताते हुए बात कर रहे कि जब हमारे पास चोलों की महान प्रेरणा देने वाली चोलों की कहानी मौजूद रही भला उसके महिमागान में इतना संकोच क्यों किया गया. मुगलों पर दर्जनों फिल्म बनाने वाला भारत चोलों को लेकर चुपचाप क्यों बैठा रहा?

इतिहास में चोलों का महान कल्याण तंत्र आखिर क्यों मुगलों के लूटतंत्र के आगे कमजोर है?

चोलों का महान इतिहास करीब-करीब 1900 साल का है. उनके पांच सौ साल तो 'स्वर्णकाल' हैं. दुनिया के इतिहास में इतना लंबा साम्राज्य किसी का नजर नहीं आता. भारत में मुग़ल हों, अंग्रेज हों या दूसरे आक्रमणकारी- किसी का भी शासन काल 400 वर्षों से भी ज्यादा नहीं दिखता. किसी के भी शासन काल में जनता के कल्याण की वैसी भावनाएं नहीं दिखती जो अपनी प्रजा के लिए चोलों ने प्रयोग में लाया. वो चाहे उनके बनाए हजारों बांध हों, ऋण देने की व्यवस्था हो, शिव-विष्णु-बौद्ध-जैन जैसे धर्मों दर्शनों को प्रश्रय हो, सत्ता की विकेंद्रीकरण सोच हो या फिर गांवों में पंचायत के गठन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान, निर्माण और अंतरदेशीय व्यापार हो. चोलों की व्यवस्था के आगे कोई साम्राज्य नहीं ठहरता.

यह शर्मनाक है कि भारत में जनता से निचोड़-निचोड़ कर वसूले गए टैक्स से मुगल बादशाह और उनके रिश्तेदार अय्याशियाँ करते रहें और उनके ही इतिहास को महान बताया जाता है. उदाहरण के किए आगरा में मुगलों के महल चले जाइए. उसकी बुनावट, रोशनी के इंतजाम, सुरक्षा के इंतजाम और महल को गर्म रखने के अमानवीय तरीकों को देखेंगे तो समझ आएगा कि असल में मुगलों की बादशाही का लूटतंत्र कैसा रहा होगा? जनकल्याण के लिए बादशाहों के काम की निशानियां बहुत खोजने पर नजर आती हैं. लेकिन इतिहास में उनकी अय्याशियों पर परदा डाला गया है और उन्हें महिमामंडित किया गया है. समझ नहीं आता कि कोई देश अपनी ही महान थाती पर चर्चा से आखिर क्यों परहेज करते रहा?

जो भी हो. मगर पहली बार भारत का बच्चा बच्चा चोलों के की बहादुरी की हैरान कर देने वाले महान किस्सों से रूबरू होगा. फिल्म में विक्रम, जयराम रवि, कार्ति, ऐश्वर्या रॉय, प्रकाश राज और तृषा कृष्णन अहम भूमिकाओं में हैं. फिल्म की कहानी कल्कि कृष्णमूर्ति के उपन्यास पर आधारित है जो छह दशक पहले सेम टाइटल से तमिल में प्रकाशित हुई थी. तमिल साहित्य में पोन्नियिन सेलवन मील के पत्थर की तरह दिखती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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