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Doctor G की तरह बॉलीवुड की ये फिल्में भी समाज की धारणा के विपरीत लेकिन मनोरंजक हैं!

    • आईचौक
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2022 03:33 PM
  • 15 अक्टूबर, 2022 09:38 PM
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हिंदी सिनेमा ने अक्सर सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का काम किया है. हमारे समाज में कई तरह की गलत अवधारणाएं हैं, जो हमें अंदर से खोखला किए जा रहे हैं. समय समय पर सिनेमा के माध्यम से फिल्मकारों ने इन पर पर प्रकाश डालते हुए लोगों को आगाह किया है. आइए इन फिल्मों के बारे में जानते हैं.

मशहूर लेखक और न्यूरोसाइंटिस्ट अभिजीत नस्कर ने कहा है, ''सिर्फ लोगों का मनोरंजन करने की बजाए, फिल्मों का निर्माण एक बड़े उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए. कोई भी फिल्म मेकर अपनी फिल्मों से पूरी दुनिया को जगा सकता है. उस समाज और वर्ग में चेतना ला सकता है, जो लंबे समय से बौद्धिक रूप से सो रहे हैं. ऐसे लोगों को चीरनिंद्रा से जगाने का कार्य सिनेमा ही कर सकता है.'' वैसे इसमें कोई दो राय नहीं है कि सिनेमा ने समय-समय पर समाज को नई राह दिखाई है.

समाज में जो कुछ घटित होता है, सिनेमा में उसे उसी रूप में पेश किया जाता है. समाज में बदलाव लाने में सिनेमा सशक्त भूमिका निभा सकता है. इसलिए सिनेमा को समाज का आईना भी कहा जाता है. फिल्मों में वो ताकत होती है कि वो समाज को प्रभावित करने के साथ ही लोगों के सोचने और समझने के नजरिए को बदल दे. ये प्रभाव पॉजिटिव भी हो सकता है और नेगेटिव भी. यदि हम हिंदी फिल्मों के इतिहास को देखें तो हर दौर में कुछ ऐसी फिल्में बनी हैं जो लीक से हटकर थीं.

ये फिल्में ऐसी थीं जिन्होंने लीक से हटकर कुछ करने की कोशिश की जो उस दौर की अन्य फिल्में नहीं कर पाई थीं. इसीलिए इन फिल्मों को इतना सराहा गया. भले ही कई बार ऑडियंस ने इन फिल्मों को नहीं स्वीकारा लेकिन इसकी वजह इन फिल्मों की खामी नहीं बल्कि कुछ ऐसा कहने की कोशिश करना था जिसके लिए दर्शक उस वक्त तैयार नहीं थे. हालही में एक फिल्म 'डॉक्टर जी' सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. आयुष्मान खुराना की ये फिल्म सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का काम करती है.

आइए उन फिल्मों के बारे में जानते हैं, जो सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने के साथ ही मजबूत संदेश देती हैं...

1. फिल्म- मिमी

विषय- सरोगेसी

स्टारकास्ट- कृति सैनन, पंकज त्रिपाठी, साई तम्हणकर, मनोज पाहवा...

मशहूर लेखक और न्यूरोसाइंटिस्ट अभिजीत नस्कर ने कहा है, ''सिर्फ लोगों का मनोरंजन करने की बजाए, फिल्मों का निर्माण एक बड़े उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए. कोई भी फिल्म मेकर अपनी फिल्मों से पूरी दुनिया को जगा सकता है. उस समाज और वर्ग में चेतना ला सकता है, जो लंबे समय से बौद्धिक रूप से सो रहे हैं. ऐसे लोगों को चीरनिंद्रा से जगाने का कार्य सिनेमा ही कर सकता है.'' वैसे इसमें कोई दो राय नहीं है कि सिनेमा ने समय-समय पर समाज को नई राह दिखाई है.

समाज में जो कुछ घटित होता है, सिनेमा में उसे उसी रूप में पेश किया जाता है. समाज में बदलाव लाने में सिनेमा सशक्त भूमिका निभा सकता है. इसलिए सिनेमा को समाज का आईना भी कहा जाता है. फिल्मों में वो ताकत होती है कि वो समाज को प्रभावित करने के साथ ही लोगों के सोचने और समझने के नजरिए को बदल दे. ये प्रभाव पॉजिटिव भी हो सकता है और नेगेटिव भी. यदि हम हिंदी फिल्मों के इतिहास को देखें तो हर दौर में कुछ ऐसी फिल्में बनी हैं जो लीक से हटकर थीं.

ये फिल्में ऐसी थीं जिन्होंने लीक से हटकर कुछ करने की कोशिश की जो उस दौर की अन्य फिल्में नहीं कर पाई थीं. इसीलिए इन फिल्मों को इतना सराहा गया. भले ही कई बार ऑडियंस ने इन फिल्मों को नहीं स्वीकारा लेकिन इसकी वजह इन फिल्मों की खामी नहीं बल्कि कुछ ऐसा कहने की कोशिश करना था जिसके लिए दर्शक उस वक्त तैयार नहीं थे. हालही में एक फिल्म 'डॉक्टर जी' सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. आयुष्मान खुराना की ये फिल्म सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने का काम करती है.

आइए उन फिल्मों के बारे में जानते हैं, जो सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने के साथ ही मजबूत संदेश देती हैं...

1. फिल्म- मिमी

विषय- सरोगेसी

स्टारकास्ट- कृति सैनन, पंकज त्रिपाठी, साई तम्हणकर, मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक

डायरेक्टर- लक्ष्मण उतेकर

ओटीटी- नेटफ्लिक्स

सरोगेसी को 'किराए की कोख' भी कहा जाता है. जब कोई कपल मां-बाप नहीं बन पाता है, तो वो किसी दूसरी महिला की कोख का सहारा लाता है. समृद्धि पोरे की मराठी फिल्म 'मला आई व्हायचय' पर आधारित कृति सैनन और पंकज त्रिपाठी की फिल्म 'मिमी' इस विषय पर बनी है. इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक अमेरिकी कपल अपने बच्चे के लिए एक राजस्थानी लड़की मिमी की कोख किराए पर लेता है. लेकिन कुछ महीनों बाद जब उनको ये पता चलता है कि बच्चा मानसिक रूप से ठीक नहीं है, तो वो उसे छोड़कर अपने देश चले जाते हैं. इसके बाद मिमी सिंगल मदर बनकर बच्ची को पैदा करती है. उसका पालन-पोषण करती है. इसी बीच विदेशी वापस आकर अपने बच्चे की मांग करने लगते हैं. फिल्म में कई दिलचस्प ट्वीस्ट एंड टर्न के बीच कॉमेडी का जबरदस्त तड़का लगाया गया है. फिल्म सरोगेसी के पॉजिटिव और निगेटिव दोनों पहलू पर प्रकाश डालती है.

2. फिल्म- क्‍वीन

विषय- महिला सशक्तिकरण

स्टारकास्ट- कंगना रनौत, राजकुमार राव

डायरेक्टर- विकास बहल

ओटीटी- अमेजन प्राइम वीडियो

हिन्दी सिनेमा में पहले पुरुषों के नजरिए से ही महिलाओं के पात्र गढ़े जाते थे. हीरोइनों की भूमिकाओं में अक्सर पुरुष के मिथ्या अहंकार का असर स्पष्ट नजर आता था. साल 2014 में आई फिल्म 'क्‍वीन' ने तमाम मान्यताओं को धाराशाई कर दिया. फिल्म में आधुनिक जमाने की एक सीधी लड़की की एक कहानी रोचक है, जो माता-पिता की मर्जी से शादी करना और पति की मर्जी से जीवन के फैसले लेने को ही अपना धर्म मानती है. फिल्म में मजेदार ट्वीस्ट तब आता है, जब लड़का शादी करने के लिए मना कर देता है. वो लड़की अकेले हनीमून पर निकल जाती है. फिल्म में कंगना रनौत और राजकुमार राव मुख्य भूमिका थे. रानी (कंगना रनौत) 24 साल की पंजाबी लड़की है, जो दिल्‍ली में रहती है. रानी की जिंदगी में तब तूफान आ जाता है, जब उसका मंगेतर (राजकुमार राव) उससे अपनी सगाई तोड़ देता है. वह परेशान हो जाती है, लेकिन इन परिस्‍थितियों में विलाप करने की बजाए जिंदगी में आगे बढ़ने का निर्णय लेती है. एम्स्टर्डम से पेरिस तक हनीमून यात्रा के दौरान उसे जिंदगी की कई नई सीख मिलती है, जो एक महिला के जीवन के मायने बदल देती है.

3. फिल्म- बधाई हो

विषय- लेट प्रेग्नेंसी

स्टारकास्ट- आयुष्मान खुराना, सान्या मल्होत्रा, गजराज राव, नीना गुप्ता और सुरेखा सीकरी

डायरेक्टर- अमित रविंद्रनाथ शर्मा

ओटीटी- डिज्नी प्लस हॉटस्टार

2018 में रिलीज हुई फैमिली कॉमेडी ड्रामा फिल्म 'बधाई हो' का निर्देशन अमित रविंद्रनाथ शर्मा ने किया है. इसमें आयुष्मान खुराना, सान्या मल्होत्रा, गजराज राव, नीना गुप्ता और सुरेखा सीकरी लीड रोल में हैं. हमारे समाज में अधेड़़ उम्र की कोई महिला यदि प्रेग्नेंट हो जाए, बच्चे को जन्म दे दे, तो सभी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. यही वजह है कि 40 के बाद की उम्र की महिलाएं मां बनने से परहेज करती हैं. लेकिन इस फिल्म में हीरो की मां ही प्रेग्नेंट हो जाती है. इसकी वजह से सभी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. यहां तक कि उसकी गर्लफ्रेंड के घरवाले भी इसकी वजह से उनके रिश्ते को मान्यता देने में आनाकानी करने लगते हैं. ऐसे में कुछ घटनाओं के बाद पूरा परिवार एक साथ आता है. मां की मदद करता है. इसके बाद पूरी कहानी बदल जाती है. इस फिल्म को नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला है. इस फिल्म ने गजराज राव और नीना गुप्ता की किस्मत बदल दी थी.

4. फिल्म- शुभ मंगल ज्यादा सावधान

विषय- समलैंगिकता

स्टारकास्ट- आयुष्मान खुराना, जितेंद्र कुमार, गजराज राव, नीना गुप्ता, मनु ऋषि चड्ढा

डायरेक्टर- हितेश केवल्या

ओटीटी- अमेजन प्राइम वीडियो

2020 में रिलीज हुई कॉमेडी फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' का निर्देशन हितेश केवल्या ने किया है. इसमें आयुष्मान खुराना, जितेंद्र कुमार, गजराज राव, नीना गुप्ता, मनु ऋषि चड्ढा, सुनीता, मानवी और पंखुड़ी जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. इसमें आयुष्मान खुराना और जितेंद्र कुमार ने समलैंगिक का किरदार निभाया है. हिंदी सिनेमा में समलैंगिक रिश्तों पर 'फायर', 'कपूर एंड संस', 'माई ब्रदर निखिल', 'अलीगढ़' और 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' जैसी फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. लेकिन इन फिल्मों से 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' जरा हटके हैं. इसमें समलैंगिक किरदारों को किसी तरह के अपराधबोध से ग्रसित नहीं दिखाया गया है. फिल्म हास्य से ज्यादा व्यंग्य परोसती है. ये व्यंग्य मुख्य कलाकारों को साथी कलाकारों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से उपजता है. एक फैमिली ड्रामा और कॉमेडी के बीच हितेश ने अपनी फिल्म के जरिए मजबूत सामाजिक संदेश दिया है.

5. फिल्म- मदर इंडिया

विषय- महिला सशक्तिकरण

स्टारकास्ट- नरगिस, राज कुमार, राजेंद्र कुमार और संजय दत्त

डायरेक्टर- महबूब खान

ओटीटी- जियो टीवी

'पति नहीं है तो क्या मैं तो हूं, बच्चों के सिर पर पिता का साया नहीं है तो क्या मां तो है, हालात साथ नहीं हैं तो क्या हौसला तो है'...साल 1957 में आई फिल्म मदर इंडिया का ये डायलॉग उस दौर में महिला सशक्तिकरण का सशक्त संदेश देता है. एक महिला अपने पिता के बिना भी अपने बच्चों की परवरिश कर सकती है, पहले भारतीय समाज में ऐसी सोच नहीं थी. पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष ही परिवार की परवरिश करता था. लेकिन मदर इंडिया ने इस मिथक को तोड़ा. महिलाओं को एक नए रूप में समाज के सामने पेश किया. यही वजह है कि ये फिल्म सबसे ज्यादा चर्चित रही है. फिल्म 'मदर इंडिया' की कहानी राधा (नरगिस) की है, जो नवविवाहिता के रूप में गांव आती है. घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियां उठाने में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलाती है. उसका पति श्यामू (राज कुमार) असमय उसका साथ छोड़ जाता है. इसके बाद उसकी जिंदगी की कहानी सबके लिए प्रेरणादाई है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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