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Choked Movie Review: जो न विपक्ष ने सोचा, न पीएम मोदी ने, वो अनुराग ने कर दिखाया!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 07 जून, 2020 01:58 PM
  • 05 जून, 2020 10:37 PM
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लंबे इंतजार के बाद आख़िरकार अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap ) की फिल्म चोक्ड : पैसा बोलता है (Choked : Paisa Bolta Hai ) रिलीज हो गई. फिल्म उन चुनौतियों की कहानी है जिनका सामना इस देश के करोड़ों आम आदमियों को पीएम मोदी (PM Modi) की नोटबंदी (Demonetisation) की घोषणा के बाद करना पड़ा.

नेटफ्लिक्स (Netflix) पर अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की फिल्म चोक्ड : पैसा बोलता है (Choked: Paisa Bolta Hai) रिलीज हो गयी है. फिल्म का बैकड्राप क्या है? इसके लिए हमें अतीत में झांकना होगा और 2016 की यात्रा करनी होगी. 2016 यूं तो एक बेहतरीन साल था मगर नवंबर महीने की 8 तारीख को ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने ज़िंदगी बदल दी, जज़्बात बदल दिए. जीने के मिजाज और अंदाज बदल दिए. उन दिनों मैं बैंगलोर में था. मुझे अच्छे से याद है जिस वक्त ये 8 नवंबर की घटना घटी, मैं अपने एक मित्र के साथ शहर के कोरमंगला एरिया में शॉपिंग कर रहा था. अच्छा क्योंकि उन दिनों पीएम मोदी (PM Modi) को लेकर जनता में खूब उत्साह था इसलिए स्टोर में टीवी चल रहा था और न्यूज़ चैनल पर पीएम मोदी देश से संबोधित थे. उस दिन उन्होंने तमाम बातें की. कालेधन (Black Money) का जिक्र हुआ. महंगाई और भ्रष्टाचार का जिक्र हुआ फिर पीएम ने ये कहकर देश को सकते में डाल दिया कि 'मित्रों आज रात 12 बजे से 1000 और 500 के नोट नहीं चलेंगे. पीएम अपनी बात कहकर जा चुके थे. सारे देश में अफरा तफरी मच गई. 8 नवंबर 2016 की उस रात, मैं खुद कई घंटे लाइन में लगा था और कैश निकाला था. अगले दिन क्या बैंक, क्या एटीएम हर जगह कतारें थीं लोग अपना पैसा निकाल रहे थे और बड़े नोट बैंकों में चेंज करा रहे थे. लाख परेशानियां हुईं और उसी दिन दिल ने इस बात पर यक़ीन कर लिया था कि आज नहीं तो कल इस गंभीर विषय पर फ़िल्म बनेगी और आज उस घटना के 3 साल 7 महीने बाद निर्देशक अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की मोस्ट अवेटिंग फ़िल्म Choked: Paisa Bolta Hai हमारे सामने हैं. फ़िल्म उन चुनौतियों की कहानी है जिनका सामना देश के कई परिवारों ने किया.

अनुराग की फिल्म चोक्ड में ऐसा बहुत कुछ यही जिसे देखकर इस देश का आम आदमी उसे अपने से रिलेट कर लेगा...

नेटफ्लिक्स (Netflix) पर अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की फिल्म चोक्ड : पैसा बोलता है (Choked: Paisa Bolta Hai) रिलीज हो गयी है. फिल्म का बैकड्राप क्या है? इसके लिए हमें अतीत में झांकना होगा और 2016 की यात्रा करनी होगी. 2016 यूं तो एक बेहतरीन साल था मगर नवंबर महीने की 8 तारीख को ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने ज़िंदगी बदल दी, जज़्बात बदल दिए. जीने के मिजाज और अंदाज बदल दिए. उन दिनों मैं बैंगलोर में था. मुझे अच्छे से याद है जिस वक्त ये 8 नवंबर की घटना घटी, मैं अपने एक मित्र के साथ शहर के कोरमंगला एरिया में शॉपिंग कर रहा था. अच्छा क्योंकि उन दिनों पीएम मोदी (PM Modi) को लेकर जनता में खूब उत्साह था इसलिए स्टोर में टीवी चल रहा था और न्यूज़ चैनल पर पीएम मोदी देश से संबोधित थे. उस दिन उन्होंने तमाम बातें की. कालेधन (Black Money) का जिक्र हुआ. महंगाई और भ्रष्टाचार का जिक्र हुआ फिर पीएम ने ये कहकर देश को सकते में डाल दिया कि 'मित्रों आज रात 12 बजे से 1000 और 500 के नोट नहीं चलेंगे. पीएम अपनी बात कहकर जा चुके थे. सारे देश में अफरा तफरी मच गई. 8 नवंबर 2016 की उस रात, मैं खुद कई घंटे लाइन में लगा था और कैश निकाला था. अगले दिन क्या बैंक, क्या एटीएम हर जगह कतारें थीं लोग अपना पैसा निकाल रहे थे और बड़े नोट बैंकों में चेंज करा रहे थे. लाख परेशानियां हुईं और उसी दिन दिल ने इस बात पर यक़ीन कर लिया था कि आज नहीं तो कल इस गंभीर विषय पर फ़िल्म बनेगी और आज उस घटना के 3 साल 7 महीने बाद निर्देशक अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की मोस्ट अवेटिंग फ़िल्म Choked: Paisa Bolta Hai हमारे सामने हैं. फ़िल्म उन चुनौतियों की कहानी है जिनका सामना देश के कई परिवारों ने किया.

अनुराग की फिल्म चोक्ड में ऐसा बहुत कुछ यही जिसे देखकर इस देश का आम आदमी उसे अपने से रिलेट कर लेगा

ध्यान रहे कि 8 नवंबर 2016 को हुई उस 'नोटबंदी' की लाखों लोगों ने तारीफ की. तो वहीं ऐसे लोगों की भी भरमार थी जिन्होंने इसे तुगलकी फैसला बताया. कहा गया कि यदि देश के प्रधानमंत्री ऐसा कुछ करने वाले थे तो उन्हें देश की जनता को थोड़ा समय देना चाहिए था.

चोक्ड- पैसा बोलता है” क्या बताती है कहानी?

चूंकि Choked Paisa Bolta Hai एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है जिसमें एक पति-पत्नी और उनके संघर्ष को दिखाया गया. फ़िल्म में सैयामी खेर हैं. जिन्होंने सरिता पिल्लई की भूमिका निभा रही हैं. उनके पति बने हैं रोशन मैथ्यू जो कि फिल्म में सुशांत पिल्लई की भूमिका निभा रहे हैं. सरिता फिल्म में एक बैंक कैशियर है, जबकि सुशांत को फिल्म में स्ट्रगल करते हुए एक संगीतकार के रूप में दिखाया गया है. सुशांत अपने नाम के लिए और काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई इस फ़िल्म में सरिता को अकेले ही घर संभालते हुए दिखाया गया है और बताया गया है कि कैसे ज्यादा पैसा और लालच इंसान की हंसती खेलती ज़िंदगी को बर्बाद कर देता है.

सरिता एक बहुत छोटे से घर में रहती है. घर कुछ कुछ वैसा ही है जैसा छोटे शहरों में लोवर मिडिल क्लास का होता है. घर में दीवारों पर सीलन है. घर में लगे पाइपों से भांति भांति की आवाज आती है और सीवर बजबजाता है. एक रात स्थिति बिगड़ती है और सरिता के किचन के सिंक का पानी बाहर आ जाता है. सरिता इसे सही करने के लिए उठती है और फिर वहां ऐसा बहुत कुछ होता है जिस पर शायद ही कोई यकीन करें.

उसे उस जगह से एक प्लास्टिक बैग मिलता है जिसमें कैश है और जिन्हें रोल बनाकर रखा गया है. इसके बाद से उसका भाग्य पलट जाता है मगर यहीं से आती हैं उसके जीवन में चुनौतियां. तो क्या सरिता उन चुनौतियों का सामना कर पाएगी? वो पैसा जो उसे मिला है उसका कुछ हला भला हो पाएगा? कहीं उसका वैवाहिक जीवन इन पैसों की भेंट तो नहीं चढ़ जाएगा? इन तमाम सवालों के जवाब हमें तब मिलेंगे जब हम फ़िल्म देखेंगे.

क्या अपनी एक्टिंग से अनुराग का साथ दे पाएं हैं एक्टर्स

एक निर्देशक के रूप में ये अनुराग कश्यप की खासियत है कि वो इस बात से वाकिफ हैं कि उन्हें अपने कलाकारों से कैसे काम लेना है. चाहे सैयामी खेर रही हों या फिर रौशन मैथ्यू दोनों ही कलाकारों ने अपना 100 परसेंट दिया है. फ़िल्म में कई मौके ऐसे आएंगे जिसमें सैयामी खेर ने अपने हाव भाव से एक्टिंग की है जिसे देखकर आपको यही महसूस होगा कि ये घटना हमारे आस पास घट रही है.

वहीं बात अगर रौशन की हो तो एक 'बेफिक्र पति' के रूप में जो रोल उन्होंने किया है वो भी कई मायनों में शानदार है. फ़िल्म में आप कई जगहों पर रौशन को बिल्कुल बेफिक्र देखेंगे जो आपको खीझ देगा और ये सोचने पर मजबूर करेगा कि कोई आदमी इतना बेपरवाह कैसे हो सकता है.

फ़िल्म में अमृता सुभाष को इनकी पड़ोसी के रूप में दिखाया गया है. ये करैक्टर भी ऐसा है जिसे आप आसानी से अपने आपसे रिलेट कर लेंगे. आप इन्हें देखते हुए यही कहेंगे कि हां ऐसे पड़ोसी तो हमारे आस पास भी होते हैं.

तो क्या अपने को साबित कर पाए अनुराग कश्यप

अनुराग कश्यप का शुमार बॉलीवुड के उन निर्देशकों में है जो रेगुलर से इतर काम करते हैं और अपने काम में नए प्रयोगों को जगह देते हैं. Choked के लिए अगर किसी की सही मायनों में तारीफ होनी चाहिए तो वो शायद अनुराग कश्यप के अलावा और कोई हो ही नहीं सकता. फ़िल्म में अपने पैने निर्देशन के जरिये जहां अनुराग ने 'नोटबंदी' के दौरान एक आम आदमी को हुए दर्द को पर्दे पर बयां किया है. तो वहीं उन्होंने ये भी दिखाया कि कैसे नोटबंदी ने कालाबाजारियों को फायदा पहुंचाया.

फ़िल्म बिल्कुल कसी हुई है और इसे देखते हुए इस बात का एहसास बखूबी होगा कि इसमें कहीं से भी कोई लाघ लपेट नहीं की गयी है. पूर्व में जो हुआ है उसे उसी अंदाज में पर्दे पर उकेरा गया है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अनुराग ने एक ऐसे विषय को क्रिस्प और टाइट रखा जिसपर काम करना किसी भी निर्देशक के लिए आसान नहीं है.

चूंकि फ़िल्म एक लोवर मिडिल क्लास के संघर्षों और उनके पास अचानक आए पैसों और फिर नोट बंदी पर केंद्रित है तो जैसे जैसे आप फ़िल्म देखेंगे आपको यही महसूस होगा कि निर्देशक ने हर उस बारीक से बारीक चीज का ख्याल रखा जो किसी भी फ़िल्म को हिट या फिर फ्लॉप करती है.

फ़िल्म का म्यूज़िक, टेक्निकल पक्ष और एडिटिंग ही इसकी जान है.

फ़िल्म की स्क्रिप्ट, अभिनय और निर्देशन कितना भी अच्छा क्यों न हो जबतक सही म्यूजिक न हो. ठीक एडिटिंग न हुई हो, कैमरे से समां न बांधा गया हो कोई फ़िल्म हिट हो ही नहीं सकती.

Choked का भी मामला कुछ कुछ ऐसा ही है चाहे कैमरा वर्क हो या फिर एडिटिंग और संगीत इन सभी एलिमेंट्स ने फ़िल्म में जान डाल दी है. मेहनत किस हद तक हुई है इसे हम उस सीन से भी समझ सकते हैं जब सरिता के घर के सीन से पानी लीक होता है और उसे नोटों की गड्डी मिलती है. जिस तरह का संस्पेंस इस सीन के लिए पैदा किया गया वो मन मोह लेने वाला है.

तो क्या कहता है फाइनल वर्डिक्ट

लॉक डाउन के इस दौर में जब सिनेमाघर बंद हों तो बस इंटरनेट और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का सहारा है. ऐसे में इसपर भी ऐसे मौके कम ही आते हैं जब आप कुछ अच्छा देखें. अब वो मौका आ गया है. अगर आपको वाक़ई अच्छी फिल्में भांति हैं और आपको कुछ अलग और रचनात्मक देखने का शौक है तो आपको अनुराग कश्यप की फ़िल्म "Choked : Paisa Bolta Hai ज़रूर देखनी चाहिए.

आपको खूब मनोरंजन मिलेगा और हमारा भी दावा है कि आप जितनी देर भी फ़िल्म देखेंगे ये फ़िल्म आपको बांधे रहेगी और शायद ही कोई ऐसा मौका आए जब आपको बोरियत का एहसास हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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