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Chapak का ट्रेलर देखकर क्या ये बातें गौर कीं आपने?

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 10 दिसम्बर, 2019 04:42 PM
  • 10 दिसम्बर, 2019 04:42 PM
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Deepika Padukone की फिल्म छपाक का ट्रेलर ( Chhapaak Trailer) कई सवाल करता है. खूबसूरती और बदसूरती एक साथ महसूस करने वाली महिलाओं का जीवन कैसा होता होगा, क्या एक आम इंसान कल्पना कर सकता है?

'अब लड़ना है' #AbLadnaHai. वाक्य भले ही छोटा है लेकिन संदेश इतना गहरा है कि आप कल्पना नहीं कर सकते. ये संदेश दे रही है मेघना गुलजार (Meghna Gulzar) की आने वाली फिल्म छपाक(Chhapaak). जिसमें दीपिका पादुकोण(Deepika Padukone) ने अपने करियर का सबसे चैलेंजिंग रोल अदा किया है. छपाक का ट्रेलर(Chhapaak Trailer) आया और समाज को सोचने के लिए मजबूर कर गया.

छपाक यानी वो आवाज जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगी बदसूरत कर दी. छपाक यानी वो आवाज जिसने एक स्त्री का चेहरा ही खराब नहीं किया बल्कि अंदर तक उसे जलाकर रख दिया. छपाक यानी वो खौफ जिसके डर में आज भी कई महिलाएं जीती हैं और कुछ तो इसके छींटे अपने चेहरे पर लिए जिंदगी से लड़ रही हैं. ये लड़ाई है एक acid attack victim की जिसका किरदार निभा रही हैं दीपिका पादुकोण.

फिल्म chhapaak फिल्म acid attack victim लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है

ट्रेलर देखकर कुछ बातें घर कर गईं

- एक acid attack victim का जीवन बिलकुल उसी तरह बदल जाता है जैसा बदलाव आप बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस के बिगड़े हुए चेहरे को देखकर महसूस करते हैं. खूबसूरती और बदसूरती एक साथ महसूस करने वाली महिलाओं का जीवन कैसा होता होगा, क्या एक आम इंसान कल्पना कर सकता है?

- शुरुआत होती है निर्भया केस के दौरान होने वाले आक्रेश से, जब पूरा देश निर्भया को न्याय दिलाने के लिए खड़ा हो गया था. लोगों के जज्बातों को देखकर ही ये तय किया गया कि एसिड एटैक विक्टिम मालती के लिए भी आवाज उठाना जरूरी है. जरा सोचिए रेप के बाद मार दी गई पाड़िताओं के साथ कितने लोग खड़े होते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं. लेकिन एसिड अटैक के बाद इन लड़कियों के जीवन का अंधेरा किसी को दिखाई नहीं...

'अब लड़ना है' #AbLadnaHai. वाक्य भले ही छोटा है लेकिन संदेश इतना गहरा है कि आप कल्पना नहीं कर सकते. ये संदेश दे रही है मेघना गुलजार (Meghna Gulzar) की आने वाली फिल्म छपाक(Chhapaak). जिसमें दीपिका पादुकोण(Deepika Padukone) ने अपने करियर का सबसे चैलेंजिंग रोल अदा किया है. छपाक का ट्रेलर(Chhapaak Trailer) आया और समाज को सोचने के लिए मजबूर कर गया.

छपाक यानी वो आवाज जिसने तमाम महिलाओं की जिंदगी बदसूरत कर दी. छपाक यानी वो आवाज जिसने एक स्त्री का चेहरा ही खराब नहीं किया बल्कि अंदर तक उसे जलाकर रख दिया. छपाक यानी वो खौफ जिसके डर में आज भी कई महिलाएं जीती हैं और कुछ तो इसके छींटे अपने चेहरे पर लिए जिंदगी से लड़ रही हैं. ये लड़ाई है एक acid attack victim की जिसका किरदार निभा रही हैं दीपिका पादुकोण.

फिल्म chhapaak फिल्म acid attack victim लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है

ट्रेलर देखकर कुछ बातें घर कर गईं

- एक acid attack victim का जीवन बिलकुल उसी तरह बदल जाता है जैसा बदलाव आप बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस के बिगड़े हुए चेहरे को देखकर महसूस करते हैं. खूबसूरती और बदसूरती एक साथ महसूस करने वाली महिलाओं का जीवन कैसा होता होगा, क्या एक आम इंसान कल्पना कर सकता है?

- शुरुआत होती है निर्भया केस के दौरान होने वाले आक्रेश से, जब पूरा देश निर्भया को न्याय दिलाने के लिए खड़ा हो गया था. लोगों के जज्बातों को देखकर ही ये तय किया गया कि एसिड एटैक विक्टिम मालती के लिए भी आवाज उठाना जरूरी है. जरा सोचिए रेप के बाद मार दी गई पाड़िताओं के साथ कितने लोग खड़े होते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं. लेकिन एसिड अटैक के बाद इन लड़कियों के जीवन का अंधेरा किसी को दिखाई नहीं देता.

कुछ सीन सोचने पर मजबूर करते हैं

- इससे पहले कभी ये नहीं सोचा था कि एक Acid attack victim सर्जरी के बाद जब पहली बार अपना चेहरा देखती होगी तो वो भी डर जाती होगी. कितना मुश्किल होता होगा उनके लिए ये स्वीकार कर पाना कि वो डरावनी दिखाई देती हैं. खुद को तो किसी तरह समझा लेंती होंगी, लेकिन दुनिया को डर जाने से कैसे रोकेंगी. एक सीन में दिखाया गया है कि कैसे पहली बार अपने चेहरे को देखकर दीपिका पादुकोण चीखती हैं और किस तरह पार्क में खेलता एक बच्चा उनके चेहरे को देखकर चिल्ला पड़ता है. इस सीन को देखकर मैं हिल गई थी.

- 'नाक नहीं है कान नहीं हैं झुमके कहां लटकाउंगी' ये डायलॉग अंदर तक चीर देता है. जरा सोचिए एक लड़की हर रोज खुद को आईने में देखकर किस तरह दिलासे देती होगी. शायद आईना देखने का मन भी नहीं करता होगा.

कैसे खुद को आईने में देख पाती होंगी

- 'बाहर आओगी..लड़ना है? इस सवाल का जवाब शायद कई acid attack victim 'हां' में नहीं दे पातीं. एक लड़की की ऐसी हालत कर देने के बाद उसे अपने लिए खड़ा होने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है. क्योंकि घाव शरीर पर ही नहीं हैं बल्कि मन पर भी होते हैं. फिल्म का डायलॉग- 'सेशन्स कोर्ट के बाद हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट, बहुत साल चलने वाला है ये केस...शोर की आदत डाल लो.' ही बता रहा है कि कानूनी लड़ाइयों से जूझने की हिम्मत हर लड़की नहीं जुटा पाती. उसे सहारे की जरूरत होती है जो उसके अपने ही देते हैं.

- और फिर वो बात जो हर acid attack victim के दिल से निकली. 'कितना अच्छा होता अगर ऐसिड बिकता ही नहीं, मिलता ही नहीं तो फिंकता भी नहीं'. एक लड़की की पूरी जिंदगी खराब कर देने की कीमत 10 रुपए की एसिड बोतल, जिसकी बिक्री पर कोई रोक नहीं थी. और एसिड बैन करने की लड़ाई जो एक एसिड विक्टिम ने ही लड़ी. क्योंकि एसिड की जलन एक acid attack victim ही समझ सकती थी. बता दें कि ये फिल्म acid attack victim लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है जिन्होंने अपने लिए तो लड़ाई लड़ी ही साथी ही एसिड बैन की लड़ाई जीती भी.

- ट्रेलर में अगर दुख दिखाई दिए तो ट्रेलर एक उम्मीद भी देता है कि जीवन फिर से सामान्य होगा. खुशियां फिर से आएंगी. acid attack victim के जीवन में भी प्यार आ सकता है. वो भी फिर से खिलखिला सकती है. मुस्कुराते चेहरे बेहद खूबसूरत लगते हैं चाहे वो acid attack victim के ही क्यों न हो.

ये देखकर सबसे ज्यादा खुशी होती है

- और ट्रेलर का आखिरी सीन जिसमें दीपिका अपने चेहरे से दुपट्टा हटाती हुई कहती हैं कि- 'उन्होंने मेरी सूरत बदली है, मेरा मन नहीं' यही वो हिम्मत है जो ये ट्रेलर शायद हर लड़की के मन में भर देता है. वो उसे खुद को स्वीकारने की और समाज से लड़ने की हिम्मत देता है. तो क्या हुआ कि चेहरा बदल गया, इरादे कैसे बदल सकते हो...

ये सिर्फ Meghna Gulzar ही कर सकती थीं

राजी और तलवार जैसी फिल्में देने वाली मेघना गुलजार से ऐसी ही फिल्मों की उम्मीद की जा सकती है. मेघना गुलजार ने जो किया है उसे करने की हिम्मत आज तक कोई फिल्मकार नहीं जुटा पाया था. इसके लिए मेघना गुल्जार के लिए तालियां. फख्र होता है मेघना पर और साथ ही दीपिका पादुकोण पर भी कि उन्होंने एक ऐसी लड़की के जीवन को पर्दे पर लेकर आईं जिसके लिए शायद कोई और हीरोइन राजी नहीं होती. वो बात और है कि छपाक के एसिड में पानी काफी मिलाया गया है. यानी ये ट्रेलर बहुत सरल लगता है. जबकि एसिड अटैक विक्टिम का जीवन इतना एसिडिक है कि उसे झेल पाना समाज के लिए बेहद मुश्किल होगा.

लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन को पर्दे पर लाने की हिम्मत सिर्फ मेघना गुलजार ही कर सकती थीं

जितने संघर्ष लक्ष्मी अग्रवाल और एसिड अटैक विक्टिम अपने जीवन में कर रही हैं, उनको फिल्म के माध्यम से समाज के सामने लाकर एक सवाल करने की कोशिश की गई है, जिसका जवाब हमारा समाज दे नहीं पाएगा. लेकिन हां सोचेगा जरूर कि आखिर इनकी क्या गलती थी?. एक भी इंसान के दिल में अगर इस 'छपाक' की जलन महसूस हुई तो समझिएगा कि ये फिल्म सफल हुई. उम्मीद है कि हमेशा बहिष्कृत होने वाली इन सर्वाइवर्स की जिंदगी को भी समाज गंभीरता से लेगा और उन्हें भी एक नॉर्मल जिंदगी जीने के लिए मौके देगा. फिल्म 10 जनवरी 2019 को रिलीज हो रही है. एक बेहतरीन फिल्म समाज को दिखाने के लिए मेघना गुलजार का शुक्रिया तो बनता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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