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दिलीप कुमार-राज कपूर की 'जिगरी' दोस्ती, जिसमें खटास पड़ गई

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 07 जुलाई, 2021 05:39 PM
  • 07 जुलाई, 2021 05:39 PM
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पेशावर की किस्सागो गली के दो मकानों में महज दो साल के फासले से पैदा हुए दो दिग्गज कलाकारों की किस्सागोई जमाने ने बड़े चाव से सुनी है. एक 'Positively Not The End' कहते हुए दुनिया से पहले ही रुखसत हो गया था. दूसरा अपनी लिखी याददाश्त की अलसभोर में फंसे हुए किरदार जीते हुए अब अलविदा कह गया.

बॉलीवुड के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार 98 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए. साल 1944 में फिल्म 'ज्वार भाटा' से अपना बॉलीवुड करियर शुरू करने वाले दिलीप साहब साल 1947 में फिल्म 'जुगनू' से चर्चित हुए थे. उन्होंने 'शहीद', 'अंदाज', 'दाग', 'दीदार', 'मधुमति', 'देवदास', 'मुसाफिर', 'नया दौर', 'आन', 'आजाद' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया. अपने 5 दशक के लंबे करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में देने वाले दिलीप कुमार अपनी बेहतरनी अदाकारी के साथ अपने मिलनसार स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे. फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन राज कपूर के साथ उनकी दोस्ती सबसे मजबूत रिश्तों में मानी जाती थी. दोनों दोस्त दुनिया को भले ही अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके दोस्ती और अदावत के किस्से आज भी चर्चित हैं.

दिलीप कुमार और राज कपूर का एक-दूसरे जुड़ाव 'जड़' से है. फिल्म इंडस्ट्री के इन दिग्गज कलाकरों की जड़ पाकिस्तान में है. इनका जन्म पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (पेशावर, ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था. अब इत्तफाक देखिए कि पेशावर की किस्सागो गली में दो पड़ोसी मकानों में महज दो साल के फासले से दोनों सितारों का जन्म हुआ और उनकी किस्सागोई जमाने ने बड़े चाव से सुनी. एक 'Positively Not The End' कहते-कहते इस दुनिया से रुखसत हो गया. दूसरा अपनी लिखी याददाश्त की अलसभोर में फंसे हुए मनगढ़ंत किरदार को बड़े पुरजोर ढंग से निभाते हुए अलविदा कह गया. दोनों के बीच खूब दोस्ती थी, जिसे शद्दत से निभाना चाहते थे, लेकिन होनी को कौन टाल सकता, मतभेद जब दुश्मनी में बदला, तो उसे भी बड़ी शिद्दत से निभाया.

दिलीप कुमार ने राज कपूर की फिल्म 'संगम' में एक साथ काम करने से इंकार कर दिया था.

इन दो दोस्तों में समानताएं कम हैं, लेकिन मिजाज से निहायत जुदा होने के बाद भी उनके बीच प्रेम में कभी कमी नहीं हुई....

बॉलीवुड के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार 98 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए. साल 1944 में फिल्म 'ज्वार भाटा' से अपना बॉलीवुड करियर शुरू करने वाले दिलीप साहब साल 1947 में फिल्म 'जुगनू' से चर्चित हुए थे. उन्होंने 'शहीद', 'अंदाज', 'दाग', 'दीदार', 'मधुमति', 'देवदास', 'मुसाफिर', 'नया दौर', 'आन', 'आजाद' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया. अपने 5 दशक के लंबे करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में देने वाले दिलीप कुमार अपनी बेहतरनी अदाकारी के साथ अपने मिलनसार स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे. फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन राज कपूर के साथ उनकी दोस्ती सबसे मजबूत रिश्तों में मानी जाती थी. दोनों दोस्त दुनिया को भले ही अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके दोस्ती और अदावत के किस्से आज भी चर्चित हैं.

दिलीप कुमार और राज कपूर का एक-दूसरे जुड़ाव 'जड़' से है. फिल्म इंडस्ट्री के इन दिग्गज कलाकरों की जड़ पाकिस्तान में है. इनका जन्म पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (पेशावर, ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था. अब इत्तफाक देखिए कि पेशावर की किस्सागो गली में दो पड़ोसी मकानों में महज दो साल के फासले से दोनों सितारों का जन्म हुआ और उनकी किस्सागोई जमाने ने बड़े चाव से सुनी. एक 'Positively Not The End' कहते-कहते इस दुनिया से रुखसत हो गया. दूसरा अपनी लिखी याददाश्त की अलसभोर में फंसे हुए मनगढ़ंत किरदार को बड़े पुरजोर ढंग से निभाते हुए अलविदा कह गया. दोनों के बीच खूब दोस्ती थी, जिसे शद्दत से निभाना चाहते थे, लेकिन होनी को कौन टाल सकता, मतभेद जब दुश्मनी में बदला, तो उसे भी बड़ी शिद्दत से निभाया.

दिलीप कुमार ने राज कपूर की फिल्म 'संगम' में एक साथ काम करने से इंकार कर दिया था.

इन दो दोस्तों में समानताएं कम हैं, लेकिन मिजाज से निहायत जुदा होने के बाद भी उनके बीच प्रेम में कभी कमी नहीं हुई. वे एक-दूसरे के जबरदस्त प्रतिद्वंद्वी रहे. जब दुश्मनी हुई तो उसे भी सलीके से निभाते गए. यहां तक कि दोनों इश्क भी एक से कर बैठे. दो बार लव ट्रायंगल में फंसे. लेकिन उस प्यार को खोकर जब भी एक-दूसरे से मिले तो ठहाकों में उस गम को गलत किया. मशहूर निर्माता-निर्देशक महबूब खान की फिल्म 'अंदाज' लव ट्रायंगल पर ही आधारित थी. दोनों दोस्तों ने इस फिल्म में काम किया था. लेकिन ये उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई. इसके बाद दोनों के बीच दूरियां इस कदर बढ़ती गई कि फिल्म 'संगम' में काम करने के लिए राज कपूर के प्रपोजल को दिलीप साहब ने ठुकरा दिया. इसकी 'वजह' उनके बीच फासला बढ़ा गई.

पिता ने कहा- 'कैसा पठान है, जो भांडों का काम करता है'

दिलीप कुमार का असली नाम मुहम्मद युसुफ खान है. उनके पिता लाला गुलाम सरवर और राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर एक-दूसरे के पड़ोसी हुआ करते थे. उन दोनों के बीच भी बहुत अच्छी दोस्ती थी. दिलीप साहब के जमींदार पिता कभी नहीं चाहते थे उनका बेटा फिल्मों में जाए. अपने मित्र पृथ्वीराज कपूर से कहते थे, 'तू कैसा पठान है, जो भांडों का काम करता है.' विभाजन के दौरान दोनों का परिवार भारत आ गया. पृथ्वीराज कपूर ने मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री के लिए काम करना शुरू कर दिया. राज कपूर पढ़ाई के साथ फिल्म प्रोडक्शन में पिता की मदद भी किया करते थे. उन्होंने दिलीप साहब से भी कहा, 'तुम भी फिल्मों में आ जाओ'. लेकिन तब उन्होंने मना कर दिया और कहा, 'तुम जाओ, तुम्हारे अब्बा भी कर रहे हैं, तुम भी जाओगे'.

राज और दिलीप साहब का ऐसे शुरू हुआ फिल्मी करियर

पिता की मनाही और खुद भी न चाहते हुए भी दिलीप कुमार को फिल्म इंडस्ट्री ने अपनी ओर खींच लिया. उनकी मुलाकात अपने जमाने की बोल्ड एंड ब्यूटीफुल एक्ट्रेस देविकारानी से हुई, तो उन्होंने फिल्मों में काम करने का न्योता दिया. इस तरह साल 1944 में सबसे पहले बॉम्बे टॉकीज की देविकारानी ने युसुफ खान को दिलीप कुमार के नाम से फिल्म 'ज्वारभाटा' में पेश किया. उधर, राज कपूर ने साल 1943 में आई फिल्म 'गौरी' से अपने फिल्मी करियर की शुरूआत कर चुके थे. हालांकि, साल 1935 में फिल्म इंकलाब में उन्होंने एक बाल किरदार भी निभाया था. इस तरह महज दो साल के अंतर में पैदा हुए दोनों दिग्गज कलाकारों ने महज एक साल के अंतर में अपने फिल्मी करियर की शुरूआत कर दी थी. लेकिन साथ आने में 5 साल लग गए.

फिल्म 'अंदाज' में पहली और आखिरी बार साथ दिखे

साल 1949 में निर्माता-निर्देशक महबूब खान ने एक फिल्म शुरू की, जिसका नाम 'अंदाज' था. ये फिल्म लव ट्रायंगल पर आधारित थी. इसमें एक्ट्रेस नर्गिस के साथ दिलीप कुमार और राज कपूर को कास्ट किया गया. यह पहली फिल्म थी, जिसमें दोनों दिग्गज कलाकार एक साथ नजर आए. लेकिन अफसोस ये उनकी आखिरी फिल्म भी साबित हुई. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक सीन का शूट था, जिसमें राजकपूर को दिलीप कुमार को एक रैकेट से हल्का सा मारना था. लेकिन राज ने दिलीप को ऐसा मारा कि उनके शरीर पर गहरे नील के निशान पड़ गए. दौड़े-दौड़े महबूब खान आए, लेकिन दिलीप कुमार चुप रहे. इसके बाद अगले दिन के अखबारों में छपा कि राज ने जानबूझकर दिलीप को मारा है. दो जिगरी दोस्ती के बीच जानी दुश्मनी की दास्तान खूब पढ़ी गई.

राहें जुदा हुईं तो एक 'शोमैन' बना, दूजा 'ट्रेजेडी किंग'

इस घटना के बहुत दिनों बाद दिलीप साहब ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है. लेकिन राज कपूर की तरफ से कोई सफाई नहीं आई. अब इसका मतलब कोई कुछ भी समझे, लेकिन दोनों के बीच बातचीत कम होती गई. इतनी कम कि बाद के दिनों में लगभग बंद हो गई. दोनों अपनी-अपनी राह पर आगे बढ़ने लगे. अपना-अपना मुकाम हासिल किया. दोनों फिल्मी दुनिया के लैजेंड हो गए. राज कपूर फिल्म इंडस्ड्री के शोमैन बने, तो दिलीप कुमार बॉलीवुड के ट्रेजेडी किंग. ये वो दौर था जब फिल्मी सितारों के बीच अहम के टकराव होने लगे थे. वे एक-साथ फिल्में करने से कतराने लगे. लेकिन इसी दौर में राज कपूर ने एक अच्छी कोशिश की थी. फिल्म अंदाज के करीब 15 साल बाद राज कपूर अपने बैनर तले फिल्म 'संगम' बना रहे थे. इसमें दो हीरो थे. राज ने दिलीप को एक रोल ऑफर किया.

करियर के शीर्ष पर चरम तक पहुंची आपसी लड़ाई

दिलीप कुमार ने राज कपूर की फिल्म 'संगम' में काम करने से इंकार कर दिया. इसके बाद राज कपूर ने इस रोल को राजेंद्र कुमार को दे दिया. ये फिल्म सुपर हिट साबित हुई. इस फिल्म ने राजेंद्र के करियर में बहुत फायदा दिया. फिल्म संगम के बहाने राज अपने दोस्त युसूफ से एक बार फिर मिलन करना चाहते थे, लेकिन वो नहीं माने, शायद उनको 'अंदाज' के वक्त का अपमान भूला नहीं था. उस अपमान ने दोस्तों के बीच दुश्मनी का ऐसा बीज बो दिया था, जिसे दोनों कभी दूर नहीं कर पाए. 50 और 60 का दशक दो महानतम कलाकारों की प्रतिद्वंद्विता का गवाह बना. इस दौर में हर किसी की नजर राज कपूर और दिलीप कुमार पर ही थी. दोनों अपने करियर के शीर्ष पर थे, तो उनके बीच लड़ाई भी चरम पर थी. हालांकि, बाद के वर्षों में बतौर एक्टर दिलीप राज से आगे निकल गए.

'जानी दुश्मनों' की 'जिगरी दोस्ती' की ऐसी दास्तान

एक आखिरी किस्सा, जो जानी दुश्मनों की जिगरी दोस्ती की भावुक कर देने वाली दास्तान है. अपने जीवन के आखिरी वक्त में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन से पहले राज कपूर कोमा में चले गए थे. उस वक्त दिलीप कुमार एक कार्यक्रम के लिए पाकिस्तान गए थे. वहां से लौटते ही जब उनको राज साहब के तबियत के बारे में पता चला तो सीधे अस्पताल पहुंचे. उन्होंने देखा कि राज बेड पर बेहोश पड़े हैं. उन्होंने राज कपूर का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, 'वो लाले दी जान आज भी मैं देर से आया, मुझे माफ कर दे यारा'. बचपन से दिलीप साहब राज कपूर को प्यार से लाले दी जान कहकर संबोधित करते थे. उन्होंने बचपन की सारी यादें बेहोश राज को कह सुनाई. पेशावर के बाजार से लेकर कबाब की खुशबू तक याद दिलाई. लेकिन राज साहब नहीं उठे. बॉलीवुड का शौमैन हमेशा के लिए 'Positively Not The End' बोल चुका था. मानो ऐसा लग रहा था कि वो बस अपने दोस्त युसूफ का इंतजार कर रहा था.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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