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10 फिल्में, जिनकी एक झलक समलैंगिकों के प्रति आपका नजरिया बदल देंगी

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 06 सितम्बर, 2018 04:04 PM
  • 06 सितम्बर, 2018 04:04 PM
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यूं तो समलैंगिक रिश्तों पर कई फिल्में बनी हैं. जिन्हें दर्शक भी कम ही मिले हैं. लेकिन जो फिल्में बेहद खास रहीं हैं और लोगों के दिलों पर छाप छोड़ पाईं, उनके बारे में अब सभी लोगों को जान लेना चाहिए.

समलैंगिकता अब अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सेक्शन 377 को रद्द कर दिया है. ये खबर LGBTQ समाज के लिए सकून देने वाली है. मानो वो जगह जहां उनका दम घुटता था, वहां अब ये लोग खुल कर सांस ले पाएंगे.  

सुप्रीम कोर्ट को इस समाज के लोगों को समझने में भले ही वक्त लगा हो, लेकिन बॉलीवुड ने हमेशा ही समलैंगिकों की इस दुनिया को सबके सामने लाने का प्रयास किया है. वो बात और है कि जब-जब ये प्रयास किए गए, तब-तब उसका विरोध हुआ, खूब हल्ला हुआ. कई फिल्में ऐसी रहीं जिसमें समलैंगिक रिश्तों को बहुत खुलकर दिखाया गया, किसी में उन रिश्तों का अहसास कराया गया, किसी में उनके संघर्षों के दिखाया गया, लेकिन मकसद हमेशा यही रहा कि समाज इन रिशतों को स्वीकार करे.

यूं तो समलैंगिक रिश्तों पर कई फिल्में बनी हैं. जिन्हें दर्शक भी कम ही मिले हैं. लेकिन जो फिल्में बेहद खास रहीं हैं और लोगों के दिलों पर छाप छोड़ पाईं, उनके बारे में अब सभी लोगों को जान लेना चाहिए-

1. फायर-

1996 में बनी ये फिल्म वो फिल्म थी जिसमें समलैंगिकता को शायद पहली बार बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्म में दिखाया गया था. दीपा मेहता की इस फिल्म में लेस्बियन रिश्ते दिखाए गए थे. और मुख्य भूमिकाओं में थीं शबाना आजमी और नंदिता दास. 90 के दशक में इस तरह की फिल्म का आना बहुत मायने रखता था, लिहाजा फिल्म ने बहुत आलोचनाएं झेली थीं.

2. तमन्ना-

फिल्म में परेश रावल का अभिनय यादगार है

1997 में महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म तमन्ना में परेश रावल ने एक किन्नर का रोल निभाया था. फिल्म में परेश रावल एक बच्ची को पालते हैं जिसका किरदार पूजा भट्ट ने निभाया था. कहानी मूल रूप से थर्ड जेंड के प्रति समाज के...

समलैंगिकता अब अपराध नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सेक्शन 377 को रद्द कर दिया है. ये खबर LGBTQ समाज के लिए सकून देने वाली है. मानो वो जगह जहां उनका दम घुटता था, वहां अब ये लोग खुल कर सांस ले पाएंगे.  

सुप्रीम कोर्ट को इस समाज के लोगों को समझने में भले ही वक्त लगा हो, लेकिन बॉलीवुड ने हमेशा ही समलैंगिकों की इस दुनिया को सबके सामने लाने का प्रयास किया है. वो बात और है कि जब-जब ये प्रयास किए गए, तब-तब उसका विरोध हुआ, खूब हल्ला हुआ. कई फिल्में ऐसी रहीं जिसमें समलैंगिक रिश्तों को बहुत खुलकर दिखाया गया, किसी में उन रिश्तों का अहसास कराया गया, किसी में उनके संघर्षों के दिखाया गया, लेकिन मकसद हमेशा यही रहा कि समाज इन रिशतों को स्वीकार करे.

यूं तो समलैंगिक रिश्तों पर कई फिल्में बनी हैं. जिन्हें दर्शक भी कम ही मिले हैं. लेकिन जो फिल्में बेहद खास रहीं हैं और लोगों के दिलों पर छाप छोड़ पाईं, उनके बारे में अब सभी लोगों को जान लेना चाहिए-

1. फायर-

1996 में बनी ये फिल्म वो फिल्म थी जिसमें समलैंगिकता को शायद पहली बार बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्म में दिखाया गया था. दीपा मेहता की इस फिल्म में लेस्बियन रिश्ते दिखाए गए थे. और मुख्य भूमिकाओं में थीं शबाना आजमी और नंदिता दास. 90 के दशक में इस तरह की फिल्म का आना बहुत मायने रखता था, लिहाजा फिल्म ने बहुत आलोचनाएं झेली थीं.

2. तमन्ना-

फिल्म में परेश रावल का अभिनय यादगार है

1997 में महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म तमन्ना में परेश रावल ने एक किन्नर का रोल निभाया था. फिल्म में परेश रावल एक बच्ची को पालते हैं जिसका किरदार पूजा भट्ट ने निभाया था. कहानी मूल रूप से थर्ड जेंड के प्रति समाज के नकारात्मक रवैये पर आधारित थी. इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था. इसी से मिलता जुलता किरदार फिल्म सड़क में सदाशिव अमरापुरकर ने निभाया था, लेकिन वो किरदार एक अलग रंग लिए हुए था. महारानी के रूप में सदाशिव फिल्म के विलेन थे.

3. दरमियां-

1997 में कल्पना लाजिमी ने दरमियां- in between बनाई थी. ये फिल्म एक फिल्म एकट्रेस और उसके किन्नर बेटे की कहानी थी. जिसमें किरण खेर और आरिफ जकारिया मुख्य भूमिका में थे. इस फिल्म के जरिए भी ट्रांसजेंडर के दर्द और उनके जीवन के संघर्षों को दिखाया गया था.

4. दायरा-

इस फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सरहाना मिली

1997 में ही अमोल पालेकर के निर्देशन में बनी फिल्म दायरा (The Square Circle) बनी थी. इस फिल्म की कहानी भी एकदम अलग थी. ये एक थिएटर एक्टर और गांव की एक लड़की के जीवन संघर्ष को दिखाती है. थिएटर एक्टर जो महिला किरदार निभाता था और लड़की जिसे पुरुष बनने पर मजबूर थी. क्रॉस ड्रेसिंग के प्रति समाज किस तरह सोचता है ये सब आप इस फिल्म में देख सकते हैं. फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं निर्मल पांडे और सोनाली कुलकर्णी ने.

5. My Brother Nikhil-

2005 में ओनीर के निर्देशन में बनी थी फिल्म My Brother Nikhil जिसमें समलैंगिकता और HIV को बहुत ही परिपक्वता और भावनात्मक तरीके से फिल्माया गया था. फिल्म में जूही चावला और संजय सूरी मुख्य भूमिकाओं में थे.

6. I Am-

My Brother Nikhil के बाद ओनीर ने 2010 में फिल्म I Am बनाई. ये समलैंगिक रिश्तों पर बनी पहली फिल्म थी जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया. कहा जा सकता है इस फिल्म के बाद लोगों ने समलैंगिक रिश्तों के प्रति अपना नजरिया बदलना शुरू किया. फिल्म में चार कहानियां थीं जो देखने लायक हैं.

 

7. Bombay Talkies

2013 में आई Bombay Talkies में भी 4 कहानियां थीं. जिसे करण जौहर, अनुराग कश्यप, जोया अख्तर और दिबाकर बनर्जी ने निर्देशित किया था. एक कहानी एक गे कपल पर फोकस्ड थी, जिसे रणदीप हुडा और सकीब सलीम ने निभाया था. इन दोनों का लिप लॉक सीन बेहद चर्चित रहा था.

 

8. Margarita With A Straw-

2015 की ये एक बेहद खूबसूरत फिल्म थी जिसमें कल्की कोचलिन सेरीब्रल पाल्सी से पीड़ित हैं. ये उनके और उनकी नेत्रहीन दोस्त के बीच के समलैंगिक रिश्तों पर आधारित फिल्म है. फिल्म में विकलांगों की यौन जरूरतों और समाज में उसके प्रति नकारात्मक रवैये को दिखाया गया है. ये देखने लायक फिल्म है.

9. अलीगढ़-

2016 में मनोज वाजपेयी की फिल्म अलीगढ़ ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. क्योंकि एक ये सच्ची घटना पर आधारित फिल्म थी. ये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक गे प्रोफेसर राम चंद्र सिरस की कहानी है, जिनके एक लड़के के साथ यौन संबंधों का वीडियो वायरल हो गया था. हंसल मेहता ने बेहद खूबसूरती के साथ इस फिल्म को बनाया है. फिल्म में बताया गया है कि कैसे रूढ़ीवादी लोग लोगों के जीवन पर नकारात्मक असर करते हैं कि लोग अपनी जान तक ले लेते हैं.

10. कपूर एंड सन्स

2016 में आई ये फिल्म एक फैमिली ड्रामा थी जिसमें फवाद खान परिवार के सबसे बड़े बेटे बने हैं जो गे हैं. फिल्म में रूढ़ीवाद न दिखाते हुए उसके जीवन की सच्चाई को दिखाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि गे होना कोई अपराध नहीं है.

समलैंगिकता वो विषय जिसपर लोग बात नहीं करना चाहते. वो विषय जो बहुत सारे लोगों के लिए बहुत गंभीर है. इस गंभीरता को बॉलीवुड ने इन्हीं फिल्मोंके साथ सामने लागने की कोशिश की है, जिससे लोग समाज के इस वर्ग को भी बराबर समझ सके, उन्हें भी स्वीकार कर सके, लेकिन इस लड़ाई में आज ये लोग जीत गए हैं. उम्मीद है कि समाज भी अब अपना नजरिया बदलेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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