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लड़‍कियां मर्दों की चड्ढी की पट्टी देख या उनके डिओ सूंघकर फिदा हो जाती हैं, पक्का?

    • आशुतोष अस्थाना
    • Updated: 30 सितम्बर, 2021 08:03 PM
  • 30 सितम्बर, 2021 08:03 PM
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सरदार उधम‍ मूवी का ट्रेलर देख विकी कौशल की अदाकारी का कायल हुए ही जा रहे थे, कि तभी एक नजर अभिनेत्री रश्मिका मंदाना के साथ वाले उनके एक अंडरवियर एड पर पड़ी. इस एड में लड़की, लड़के के अंडरवियर की पट्टी देखने के लिए बेताब है. ये विज्ञापन की दुनिया वाले हमसे क्‍या स्‍वीकार करवाना चाहते हैं?

पूरी की पूरी विज्ञापन इंडस्ट्री हमें ये समझाने पर तुली हुई है कि एक औरत 150 रुपये की चड्ढी देखकर मचल जाने को तैयार रहती है. डीओ छिड़कने वाले मर्द को देखकर वो अपने पार्टनर को भी छोड़कर भाग सकती है और लाल रंग का मंजन रगड़ने वाले अनजान आदमी को भी वो सड़क चलते चूमने के लिए तैयार होती है. एक तरफ कंपनियां अपना नाम तक बदल रही हैं क्योंकि उन्हें ये समझ आ रहा है कि अब भारतीय समाज सिर्फ गोरे रंग पर मोहित नहीं होता. कुछ कंपनियों ने किरदारों को पलट कर औरत को मैदान में बल्ला पकड़ा दिया तो दाढ़ी वाले मर्द को पवेलियन में बैठे चॉकलेट खाते दिखा दिया मगर इन सबके बावजूद अंडरगारमेंट्स और परफ्यूम बेचने वाली कंपनियों और उनका विज्ञापन बनाने वाली फर्म्स के दिमाग की सड़ांध खत्म नहीं हई.

औरतें अधिकारी बन रही हैं, ओलिम्पिक में पदक जीत रही हैं, कंपनियों की मालकिन बन रही हैं, गृहणी बनकर अपने परिवार का भविष्य सुधार रही हैं मगर विज्ञापनों की मानें तो वो सिर्फ छत पर छुप-छुप कर पड़ोस वाले लड़के को अंडरवियर पहन घूमते देखने की शौकीन हैं. भले ही ये विज्ञापन मनोरंजन के लिए बनाए जाते हैं मगर 10-15 साल के लड़के-लड़कियों पर ये बेहद बुरा असर डालने वाले हैं.

आज के जैसे विज्ञापन हैं बच्चों को उनसे दूर रखे और हो सके तो खुद भी उनसे दूर रहें

ये सीधे तौर पर लड़कों को ये सिखा रहे हैं कि पढ़ाई, शिष्टाचार गया तेल लेने, तुम बस कच्छे बदलो और लड़कियां तुम्हारे इर्द गिर्द नाचेंगी. ये उन्हें सिखा रहे हैं कि शरीर की बदबू दूर करने के लिए डीओ मत लगाओ, लड़की पटाने के लिए उसका इस्तेमाल करो. ये सिर्फ आज के नौजवानों को नहीं, अगली पीढ़ी को भी बरगला रहे हैं और उन्हें औरत को सिर्फ इसी लायक समझने की शिक्षा दे रहे हैं.

लड़कियों की मानसिकता पर होने वाले प्रभाव तो लड़कों से भी...

पूरी की पूरी विज्ञापन इंडस्ट्री हमें ये समझाने पर तुली हुई है कि एक औरत 150 रुपये की चड्ढी देखकर मचल जाने को तैयार रहती है. डीओ छिड़कने वाले मर्द को देखकर वो अपने पार्टनर को भी छोड़कर भाग सकती है और लाल रंग का मंजन रगड़ने वाले अनजान आदमी को भी वो सड़क चलते चूमने के लिए तैयार होती है. एक तरफ कंपनियां अपना नाम तक बदल रही हैं क्योंकि उन्हें ये समझ आ रहा है कि अब भारतीय समाज सिर्फ गोरे रंग पर मोहित नहीं होता. कुछ कंपनियों ने किरदारों को पलट कर औरत को मैदान में बल्ला पकड़ा दिया तो दाढ़ी वाले मर्द को पवेलियन में बैठे चॉकलेट खाते दिखा दिया मगर इन सबके बावजूद अंडरगारमेंट्स और परफ्यूम बेचने वाली कंपनियों और उनका विज्ञापन बनाने वाली फर्म्स के दिमाग की सड़ांध खत्म नहीं हई.

औरतें अधिकारी बन रही हैं, ओलिम्पिक में पदक जीत रही हैं, कंपनियों की मालकिन बन रही हैं, गृहणी बनकर अपने परिवार का भविष्य सुधार रही हैं मगर विज्ञापनों की मानें तो वो सिर्फ छत पर छुप-छुप कर पड़ोस वाले लड़के को अंडरवियर पहन घूमते देखने की शौकीन हैं. भले ही ये विज्ञापन मनोरंजन के लिए बनाए जाते हैं मगर 10-15 साल के लड़के-लड़कियों पर ये बेहद बुरा असर डालने वाले हैं.

आज के जैसे विज्ञापन हैं बच्चों को उनसे दूर रखे और हो सके तो खुद भी उनसे दूर रहें

ये सीधे तौर पर लड़कों को ये सिखा रहे हैं कि पढ़ाई, शिष्टाचार गया तेल लेने, तुम बस कच्छे बदलो और लड़कियां तुम्हारे इर्द गिर्द नाचेंगी. ये उन्हें सिखा रहे हैं कि शरीर की बदबू दूर करने के लिए डीओ मत लगाओ, लड़की पटाने के लिए उसका इस्तेमाल करो. ये सिर्फ आज के नौजवानों को नहीं, अगली पीढ़ी को भी बरगला रहे हैं और उन्हें औरत को सिर्फ इसी लायक समझने की शिक्षा दे रहे हैं.

लड़कियों की मानसिकता पर होने वाले प्रभाव तो लड़कों से भी ज़्यादा विषैले हैं. ये विज्ञापन लड़कियों को प्रत्यक्ष रूप से ये समझा रहे हैं कि उन्हें लड़कों के लिए सजना संवरना है और हर वक़्त उनकी ज़रूरतों के लिए हाज़िर रहना है. उन्हें ये विज्ञापन बड़े होकर सेल्फ डाउट और इनसिक्योरिटी में रहना सिखा रहे हैं. विज्ञापन कंपनियों ने कॉन्डोम के विज्ञापन के साथ जो किया वही अब अन्य विज्ञापनों के साथ कर रहे हैं.

इन्होंने आज तक दर्शकों को ये नहीं बताया कि कॉन्डोम का इस्तेमाल किये बिना STI, STD जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं जो जानलेवा होती हैं. इन्होंने दर्शकों को कभी ये नहीं बताया कि अनचाही प्रेग्नेंसी के बाद स्त्री और पुरुष किस मानसिक उथलपुथल से गुज़रते हैं, इसलिए निरोध कर इस्तेमाल ज़रूरी है.

इन्होंने कभी निरोध का इस्तेमाल देश की बढ़ती आबादी के खतरे से जोड़कर नहीं दिखाया. इन्होंने सिर्फ ये किया कि एक शारीरिक क्रिया में काम आने वाली चीज़ को रोमैनटिसाइज़ कर दिया जिससे लोगों के मन में उत्तेजन ज़्यादा पैदा हुई मगर उस वस्तु को खरीदना क्यों आवश्यक है उसकी समझ नहीं विकसित हो पायी.

इन विज्ञापनों से बच्चों को दूर रखें, और मुमकिन हो तो खुद को भी दूर रखें. अंडरवियर वो पहनें जो आपको पसंद हो, परफ्यूम वो लगाएं जो आपको पसंद हो, टूथपेस्ट वो इस्तेमाल करें जो आपको पसंद हो...मगर ये हमेशा ध्यान रखें कि कोई भी महिला इन्हें देखकर आकर्षित नहीं होगी फिर चाहे आप वरुण धवन या विकी कौशल ही क्यों ना हों क्योंकि वास्तविकता में आपकी गंदी चड्ढी में किसी भी लड़की को कोई इंट्रेस्ट नहीं होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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