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'शहीद' से 'रंग दे बसंती' तक, भगत सिंह की जिंदगी की दास्तां बयां करती 5 बॉलीवुड फिल्में

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 27 सितम्बर, 2021 08:42 PM
  • 27 सितम्बर, 2021 08:42 PM
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Movies Based on the life of Bhagat Singh: आजाद हिंदुस्तान के लिए शहीद-ए-आजम भगत सिंह के बलिदान को बॉलीवुड ने भी हमेशा अलग अंदाज में पेश किया है. उनकी देशभक्ति की भावना, क्रांतिकारी विचार, कम उम्र में बड़ी सोच और जोश-जुनून-जज्बे को फिल्मों के जरिए हमेशा सलाम किया है.

'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा''...शहादत और शहीद की बात आते ही बरबस सरदार भगत सिंह की याद आ ही जाती है. महज 24 की उम्र में अपने देश के लिए प्राण की आहूति देने वाली इस शहीद क्रांतिकरी की छोटी सी जिंदगी कौतहूल और उत्साह से भरी हुई है. तभी तो बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स की नजर उनकी जिंदगी की कहानी पर बहुत पहले ही पड़ गई थी. वैसे देश के लिए आजादी के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया है. लेकिन भगत सिंह की बात ही कुछ अलग थी. उनके साथ फांसी के फंदे को हंसते चुमने वाले साथी राजगुरू और सुखदेव भी कुछ कम न थे. यही वजह है कि जहां भी भगत सिंह का जिक्र आता है, इन दोनों का नाम खुद-ब-खुद जुड़ जाता है. यूं कहें कि तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं.

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह उस वक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले रहे थे. दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे. भगत सिंह पर भी करतार सिंह सराभा का गहरा प्रभाव था. 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग कांड ने उनको झकझोर दिया था. बचपन में वो गांधी जी से बहुत प्रभावित थे. लेकिन साल 1921 में हुए चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद जब गांधीजी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो उनसे नाराज हो गए. इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित गदर दल के सदस्य बन गए. यहां उनकी मुलाकात रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर, सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों से हुई.

साल 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ जुलूस के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो गई. पंजाब में लाला जी का खासा प्रभाव था. उनकी मौत ने भगत सिंह को झकझोर दिया. उन्होंने शिवराम राजगुरु, सुखदेव ठाकुर और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले जेपी सांडर्स को गोली मार दी. इसके बाद...

'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा''...शहादत और शहीद की बात आते ही बरबस सरदार भगत सिंह की याद आ ही जाती है. महज 24 की उम्र में अपने देश के लिए प्राण की आहूति देने वाली इस शहीद क्रांतिकरी की छोटी सी जिंदगी कौतहूल और उत्साह से भरी हुई है. तभी तो बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स की नजर उनकी जिंदगी की कहानी पर बहुत पहले ही पड़ गई थी. वैसे देश के लिए आजादी के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया है. लेकिन भगत सिंह की बात ही कुछ अलग थी. उनके साथ फांसी के फंदे को हंसते चुमने वाले साथी राजगुरू और सुखदेव भी कुछ कम न थे. यही वजह है कि जहां भी भगत सिंह का जिक्र आता है, इन दोनों का नाम खुद-ब-खुद जुड़ जाता है. यूं कहें कि तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं.

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह उस वक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा ले रहे थे. दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे. भगत सिंह पर भी करतार सिंह सराभा का गहरा प्रभाव था. 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग कांड ने उनको झकझोर दिया था. बचपन में वो गांधी जी से बहुत प्रभावित थे. लेकिन साल 1921 में हुए चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद जब गांधीजी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो उनसे नाराज हो गए. इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित गदर दल के सदस्य बन गए. यहां उनकी मुलाकात रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर, सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों से हुई.

साल 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ जुलूस के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो गई. पंजाब में लाला जी का खासा प्रभाव था. उनकी मौत ने भगत सिंह को झकझोर दिया. उन्होंने शिवराम राजगुरु, सुखदेव ठाकुर और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले जेपी सांडर्स को गोली मार दी. इसके बाद ट्रेड डिस्प्यूट कानून के खिलाफ विरोध दिखाने के लिए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में ऐसे स्थान पर बम फेंक दिया. यहीं भगत सिंह और सुखदेव को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह को उनके साथियों के साथ फांसी की सजा सुनाई गई. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया. तीनों क्रांतिकारियों के शहीद होने के बाद पूरे देश में इंकलाब गूंज उठा.

भगत सिंह की जिंदगी की दास्तां बयां करती 5 हिंदी फिल्में...

साल 2002 में शहीद भगत सिंह के जीवन पर एक ही साथ तीन फिल्में रिलीज हुई थीं.

1. फिल्म- शहीद-ए-आजाद भगत सिंह

कब रिलीज हुई- 1954

स्टारकास्ट- प्रेम आबिद, जयराज, स्मृति विश्वास और आशिता मजूमदार

डायरेक्टर- जगदीश गौतम

2. फिल्म- शहीद भगत सिंह

कब रिलीज हुई- 1963

स्टारकास्ट- शम्मी कपूर, शकीला, प्रेमनाथ, उल्हास और अचला सचदेव

डायरेक्टर- केएन बंसल

3. फिल्म- शहीद

कब रिलीज हुई- 1965

स्टारकास्ट- मनोज कुमार, प्राण, प्रेम चोपड़ा और कामिनी कौशल

डायरेक्टर- एस राम शर्मा

4. फिल्म- शहीद-ए-आजम

कब रिलीज हुई- 2002

स्टारकास्ट- सोनू सूद, मानव विज और रजिंदर गुप्ता

डायरेक्टर- सुकुमार नैयर

5. फिल्म- 23 मार्च 1931: शहीद

कब रिलीज हुई- 2002

स्टारकास्ट- बॉबी देओल, सनी देओल, राहुल देव और अमृता सिंह

डायरेक्टर- गुड्डु धनोवा

6. फिल्म- द लीजेंड ऑफ भगत सिंह

कब रिलीज हुई- 2002

स्टारकास्ट- अजय देवगन, सुशांत सिंह, अखिलेंद्र मिश्रा, राज बब्बर, सुनील ग्रोवर और फरीदा जलाल

डायरेक्टर- राजकुमार संतोषी

7. फिल्म- रंग दे बसंती

कब रिलीज हुई- 2006

स्टारकास्ट- आमिर खान, शर्मन जोशी और कुणाल कपूर

डायरेक्टर- राकेश ओमप्रकाश मेहरा


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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