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बॉलीवुड के नए अमोल पालेकर बनते आयुष्मान खुराना

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 22 अक्टूबर, 2018 07:24 PM
  • 22 अक्टूबर, 2018 07:24 PM
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70- 80 के दशक की फिल्मों में मध्यमवर्गीय परिवारों की तमाम दुष्वारियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर निर्देशकों की पहली पसंद हुआ करते थे. और वर्तमान में आयुष्मान खुराना उसी छवि को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं.

बॉलीवुड सिनेमा का एक दौर था जब मध्यम वर्ग की तमाम परेशानियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर का चुनाव किया जाता था. 70 और 80 के दशक की ऐसी कई फिल्में हैं जिन्हें अमोल पालेकर ने अपने शानदार अभिनय, सहज संवाद अदायगी और अपने व्यक्तित्व की वजह से यादगार बना दिया था. अमोल पालेकर के व्यक्तित्व की जो सबसे अच्छी बात थी वो यह कि भारत का हर मध्यमवर्गीय शख्स उनमें खुद को ढूंढ सकता था.

हर व्यक्ति खुद को अमोल पालेकर से रिलेट कर लेता था

70 और 80 का वो पूरा दशक ही ऐसी कई फिल्मों का गवाह बना जहां अमोल पालेकर बिना किसी परिश्रम के अपने किरदारों में इस कदर ढल गए कि एक पल के लिए भी यह भान नहीं हुआ कि पालेकर की जिंदगी इन किरदारों से अलग है. चाहे वो यादगार फ़िल्म गोलमाल का ‘बेटा रामप्रसाद’ हो या फिर फ़िल्म 'छोटी सी बात' का अरुण प्रदीप हो. उस पूरे दशक में मध्यमवर्गीय परिवारों की तमाम दुष्वारियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर निर्देशकों की पहली पसंद हुआ करते थे. उस दौर में अमोल पालेकर ने गोलमाल, चितचोर, बातों बातों में, घरौंदा, मेरी बीबी की शादी जैसे कई यादगार फिल्में दीं.

वर्तमान में आयुष्मान खुराना भी उसी छवि को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं. उस दौर के अमोल पालेकर की तरह वर्तमान दौर में आयुष्मान भी मध्यमवर्गीय भारतीय के किरदार में बिल्कुल फिट बैठते दिख रहे हैं. अभी हाल में रिलीज फ़िल्म ‘बधाई हो’ में आयुष्मान एक ऐसे बेटे के किरदार में है जिसमें अधेड़ उम्र में उनकी मां गर्भवती हो जाती है, और इस खबर के बाद किस तरह पूरे परिवार और आस पड़ोस का कैसा रिएक्शन होता है उसी की कहानी है ‘बधाई हो’. इस फ़िल्म में एक बार फिर आयुष्मान ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करते हैं.

बॉलीवुड सिनेमा का एक दौर था जब मध्यम वर्ग की तमाम परेशानियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर का चुनाव किया जाता था. 70 और 80 के दशक की ऐसी कई फिल्में हैं जिन्हें अमोल पालेकर ने अपने शानदार अभिनय, सहज संवाद अदायगी और अपने व्यक्तित्व की वजह से यादगार बना दिया था. अमोल पालेकर के व्यक्तित्व की जो सबसे अच्छी बात थी वो यह कि भारत का हर मध्यमवर्गीय शख्स उनमें खुद को ढूंढ सकता था.

हर व्यक्ति खुद को अमोल पालेकर से रिलेट कर लेता था

70 और 80 का वो पूरा दशक ही ऐसी कई फिल्मों का गवाह बना जहां अमोल पालेकर बिना किसी परिश्रम के अपने किरदारों में इस कदर ढल गए कि एक पल के लिए भी यह भान नहीं हुआ कि पालेकर की जिंदगी इन किरदारों से अलग है. चाहे वो यादगार फ़िल्म गोलमाल का ‘बेटा रामप्रसाद’ हो या फिर फ़िल्म 'छोटी सी बात' का अरुण प्रदीप हो. उस पूरे दशक में मध्यमवर्गीय परिवारों की तमाम दुष्वारियों को दिखाने के लिए अमोल पालेकर निर्देशकों की पहली पसंद हुआ करते थे. उस दौर में अमोल पालेकर ने गोलमाल, चितचोर, बातों बातों में, घरौंदा, मेरी बीबी की शादी जैसे कई यादगार फिल्में दीं.

वर्तमान में आयुष्मान खुराना भी उसी छवि को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं. उस दौर के अमोल पालेकर की तरह वर्तमान दौर में आयुष्मान भी मध्यमवर्गीय भारतीय के किरदार में बिल्कुल फिट बैठते दिख रहे हैं. अभी हाल में रिलीज फ़िल्म ‘बधाई हो’ में आयुष्मान एक ऐसे बेटे के किरदार में है जिसमें अधेड़ उम्र में उनकी मां गर्भवती हो जाती है, और इस खबर के बाद किस तरह पूरे परिवार और आस पड़ोस का कैसा रिएक्शन होता है उसी की कहानी है ‘बधाई हो’. इस फ़िल्म में एक बार फिर आयुष्मान ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करते हैं.

फिल्म 'बधाई हो' में आयुष्मान के काम की काफी तारीफ हो रही है

इससे पहले भी आयुष्मान ने 'बरेली की बर्फी', 'दम लगा के हईशा', 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फिल्मों में मध्यमवर्गीय भारतीय का द्वंद बड़ी ही खूबसूरती से पर्दे पर उकेरने में सफलता पाई है. चाहे वो अपने प्रेम को पाने के लिए संघर्ष करता चिराग दुबे हो या फिर अपनी मनचाही पत्नी ना मिल पाने के बाद खुद से द्वंद करता दम लगा के हईशा का प्रेम प्रकाश तिवारी.

'दम लगा के हईशा' में आयुष्मान और भूमि पेडनेकर

आयुष्मान अपनी हर फिल्म के साथ निखर रहें हैं. 2012 में 'विक्की डोनर' से अपने करियर की शुरुआत करने वाले आयुष्मान अब तक करीब 10 फिल्में कर चुके हैं और आयुष्मान हर फिल्म में अलग-अलग तरह के किरदार में खुद को ढालते नजर आए हैं. बधाई हो के पहले आयी फ़िल्म अंधाधुंध में भी आयुष्मान के काम को जबरदस्त तारीफ मिली है. और अब अगर आयुष्मान की तुलना अमोल पालेकर से हो रही है तो यह आयुष्मान की अभिनय क्षमता को प्रमाणित करने सरीखा भी है. 10 फिल्मों में ही बॉलीवुड के दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ने वाले आयुष्मान से उम्मीद है कि आने वाले समय मे वो अपनी फिल्मों से इसी तरह दर्शकों का मनोरंजन करते रहेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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