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आर्यन खान ड्रग केस में नवाब मालिक और शाहरुख के दोस्तों ने अजीब सवाल खड़ा कर दिया!

    • आईचौक
    • Updated: 24 अक्टूबर, 2021 11:17 AM
  • 09 अक्टूबर, 2021 07:21 PM
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आर्यन खान ड्रग केस (Aryan Khan Drug Case) में शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) के बेटे के लिए भी कोर्ट से बाहर ट्रायल चल रहा है. इतनी कहानियां गढ़ी जा रही हैं कि सच शायद संदिग्ध नजर आने लगे. राजनीतिक आरोप भी सामने आने लगे हैं.

शायद अब सभी चीजों को राजनीतिक चश्मे से देखने का ट्रेंड ही बन चुका है. पार्टी पॉलिटिक्स इस कदर हावी है कि तमाम व्यवस्थाओं का वजूद संदेहास्पद नजर आने लगा है. किसी चीज में सच या झूठ का पता लगाना मुश्किल है. बस सच और झूठ से जुड़ी कई कहानियां हैं. कहानियों का मकड़जाल इतना गहरा है कि तथ्य संदेहास्पद बन जा रहे हैं. ड्रग केस में भी तथ्य संदेहास्पद बनाए जा रहे हैं और लखीमपुर खीरी मामले में भी. लखीमपुर में अंधा भी बता सकता है कि बीजेपी नेताओं के काफिले की गाड़ियों ने शांतिपूर्ण तरीके से जा रहे किसानों को सड़क पर रौंदा. गाड़ियों में कौन बैठा था इससे क्या फर्क पड़ता है. थेथरई नहीं तो और क्या है कि सबकुछ साफ होने के बावजूद मंत्री जी (अजय मिश्रा टेनी) कुर्सी पर बने हुए हैं और उनका बेटा जेल से बाहर है. विपक्ष भी मौलिक दबाव बनाने की बजाय यूपी चुनावों में बढ़त ही हासिल करने के लिए दांवपेंच लगा रहा है.

यह तथ्यों को संदिग्ध बनाना, निजी फायदे के लिए कहानियां गढ़ना और लोगों को बरगलाना नहीं तो और क्या है? लखीमपुर खीरी में किसानों के लिए छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री धरने पर बैठ जाता है, लाखों रुपये का मुआवजा घोषित करता है और ठीक उसी वक्त उसके अपने राज्य में गरीब आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं. लंबा मार्च निकाल रहे हैं. न्याय की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का ध्यान वहां नहीं जाता. उनके लिए लखीमपुर ज्यादा महत्वपूर्ण है. बीजेपी नेता भी कांग्रेसी राज्यों में उत्पीडन की घटनाओं को सामने लाकर लखीमपुर खीरी पर शर्मनाक तरीके से पर्दा डालने की कोशिश में लगे हैं. राजनीति का यह शायद सबसे घटिया दौर है.

आर्यन केस में तथ्य यह है कि विवादित क्रूज पर एनसीबी ने छापा मारा, रेव पार्टी के आरोप हैं. एनसीबी ने सबूत के तौर पर ड्रग्स और चैट बरामद किए हैं. तथ्य यह भी है कि बीजेपी नेता एनसीबी के दफ्तर में देखे गए. इन दोनों चीजों के बीच एक और तथ्य है कि जब आर्यन को पकड़ा गया था, उनका नाम तुरंत सामने नहीं आया. घंटों ऐसी खबरें चलीं कि किसी बड़े सेलिब्रिटी का बेटा पकड़ा गया है....

शायद अब सभी चीजों को राजनीतिक चश्मे से देखने का ट्रेंड ही बन चुका है. पार्टी पॉलिटिक्स इस कदर हावी है कि तमाम व्यवस्थाओं का वजूद संदेहास्पद नजर आने लगा है. किसी चीज में सच या झूठ का पता लगाना मुश्किल है. बस सच और झूठ से जुड़ी कई कहानियां हैं. कहानियों का मकड़जाल इतना गहरा है कि तथ्य संदेहास्पद बन जा रहे हैं. ड्रग केस में भी तथ्य संदेहास्पद बनाए जा रहे हैं और लखीमपुर खीरी मामले में भी. लखीमपुर में अंधा भी बता सकता है कि बीजेपी नेताओं के काफिले की गाड़ियों ने शांतिपूर्ण तरीके से जा रहे किसानों को सड़क पर रौंदा. गाड़ियों में कौन बैठा था इससे क्या फर्क पड़ता है. थेथरई नहीं तो और क्या है कि सबकुछ साफ होने के बावजूद मंत्री जी (अजय मिश्रा टेनी) कुर्सी पर बने हुए हैं और उनका बेटा जेल से बाहर है. विपक्ष भी मौलिक दबाव बनाने की बजाय यूपी चुनावों में बढ़त ही हासिल करने के लिए दांवपेंच लगा रहा है.

यह तथ्यों को संदिग्ध बनाना, निजी फायदे के लिए कहानियां गढ़ना और लोगों को बरगलाना नहीं तो और क्या है? लखीमपुर खीरी में किसानों के लिए छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री धरने पर बैठ जाता है, लाखों रुपये का मुआवजा घोषित करता है और ठीक उसी वक्त उसके अपने राज्य में गरीब आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं. लंबा मार्च निकाल रहे हैं. न्याय की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का ध्यान वहां नहीं जाता. उनके लिए लखीमपुर ज्यादा महत्वपूर्ण है. बीजेपी नेता भी कांग्रेसी राज्यों में उत्पीडन की घटनाओं को सामने लाकर लखीमपुर खीरी पर शर्मनाक तरीके से पर्दा डालने की कोशिश में लगे हैं. राजनीति का यह शायद सबसे घटिया दौर है.

आर्यन केस में तथ्य यह है कि विवादित क्रूज पर एनसीबी ने छापा मारा, रेव पार्टी के आरोप हैं. एनसीबी ने सबूत के तौर पर ड्रग्स और चैट बरामद किए हैं. तथ्य यह भी है कि बीजेपी नेता एनसीबी के दफ्तर में देखे गए. इन दोनों चीजों के बीच एक और तथ्य है कि जब आर्यन को पकड़ा गया था, उनका नाम तुरंत सामने नहीं आया. घंटों ऐसी खबरें चलीं कि किसी बड़े सेलिब्रिटी का बेटा पकड़ा गया है. अगले दिन दोपहर में साफ़ हुआ- बड़े सेलिब्रिटी का बेटा आर्यन खान हैं. घंटों आर्यन का नाम क्यों छिपाया गया? सुशांत सिंह राजपूत केस में मिले लीड के बाद एनसीबी पिछले डेढ़ साल से एक पर एक कार्रवाइयां कर रहा है. कई ड्रग पैडलर्स पकड़े गए. सितारों की संलिप्तता के विवादित सबूत और चैट भी सामने आए हैं. कई बड़ी सेलिब्रिटीज से पूछताछ और कुछ गिरफ्तारियां तक हुईं. मगर ऐसे सवाल नहीं उठाए गए. मामला भी हिंदू मुस्लिम नहीं बना. जैसा अब लगातार देखने को मिल रहा है. ठीक है. आर्यन केस में एनसीबी ने आरोप लगाए हैं. वकील बचाव में तर्क रख रहे हैं. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी हैं. अगर कोर्ट ने आर्यन को जमानत नहीं दी तो संभवत: कुछ ना कुछ तो होगा.

आर्यन पर कौन फैसला करे: मीडिया, पब्लिक, कोर्ट या बॉलीवुड?

मगर यह कहना कि एजेंसी सरकार की है, कोर्ट पर सरकार की तानाशाही है, क्या पूरी तरह से सही होगा? कोई आर्यन खान को सिर्फ इसलिए इसलिए बेगुनाह बता रहा है क्योंकि उनकी उम्र मात्र 23 साल है. कोई उनके मुसलमान होने का मुद्दा उठा रहा है. हद तो यह भी है कि कुछ लोग रेड में बरामद ड्रग की मामूली क्वान्टिटी पर ही सवाल उठा रहे हैं. ईमानदारी के लिए मशहूर एक अफसर का सोशल मीडिया में चरित्र हनन भी हो रहा है. अफसर की पत्नी का पक्ष जानें तो पता चलता है कि कैसे हाई प्रोफाइल केस की वजह से उनका परिवार दबाव महसूस कर रहा है. आर्यन के पक्ष में लोगों के बयान और तर्क साफ़ इशारा है अफसर की पत्नी का डर नाजायज नहीं. मुश्किल यह है कि शाहरुख के दोस्तों की तरह ओपन प्लेटफॉर्म पर अपनी बात भी नहीं रख सकते. सही और गलत का फैसला तो कोर्ट को करना है. आर्यन बेगुनाह हो सकते हैं भला इस बात से कौन इनकार करता है. मगर यह फैसला करने का अधिकार किसको है? शशि थरूर, नवाब मालिक या फिल्म उद्योग में मौजूद शाहरुख के दोस्तों को जो सोशल मीडिया में किंग खान के बेटे के पक्ष में माहौल बना रहे हैं. अब सही गलत साबित करने का फैसला तो कोर्ट का है.

लोग यह क्यों भूल जा रहे हैं कि एनसीबी की कार्रवाई से कोई शहर बदनाम नहीं हो रहा. क्या यह छुपी बात है कि बॉलीवुड में ड्रग्स की पहुंच नहीं है? कई आरोप सिद्ध हो चुके हैं. यह भी छुपी बात नहीं कि ड्रग्स का रैकेट गली मोहल्ले का कोई टपोरी नहीं चला रहा होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर का काला धंधा है जिसे कोई ऐरा गैरा नहीं रसूखदार, सफ़ेदपोश शख्स ही ऑपरेट कर सकता है. पूरे खेल में क्रेता-विक्रेत वही लोग हैं. शशि थरूर जो आर्यन की 23 साल की उम्र पर रहम करने की अपील कर रहे हैं वो शायद भूल रहे हैं कि निर्भया का रेप करने वालों में एक नाबालिग भी था जिसपर सबसे ज्यादा अमानवीयता का आरोप लगा था. आर्यन निर्दोष हो सकते हैं, मगर उनके धर्म और उनकी उम्र के तर्क का हवाला देकर पक्ष में माहौल बनाना घातक है. रसूखदार परिवार और कम उम्र के होने से किसी पर लगे आरोप कम नहीं हो जाते. थरूर साहब- क़ानून के शब्दकोष में रहम नाम की चीज है ही नहीं है. क़ानून तो सबके लिए बराबर ही है. शाहरुख का बेटा किसी दूसरे ग्रह से नहीं आया जो उसके लिए क़ानून अलग तरीके से कम करेगा.

नवाब मालिक के सवाल से क्यों परेशान होना चाहिए?

नवाब मालिक के आरोपों पर क्या ही कहा जाए? जिनकी पार्टी का गृहमंत्री वसूली के लिए पुलिस सिंडिकेट चलाने के आरोप में कुर्सी गंवा चुका हो, जिनकी सरकार में दागी पुलिसकर्मी की बहाली होती हैं और एक मामूली इंस्पेक्टर आईपीएस से भी ताकतवर दिखता है, उसी सरकार का नेता बता रहा है कि आर्यन के मामले में कार्रवाई राजनीतिक है. भला क्यों राजनीतिक कार्रवाई की जरूरत पड़ी? क्या शाहरुख बीजेपी सरकार का विरोध कर रहे हैं. सरकार के खिलाफ ट्वीट कर रहे हैं. भाजपा की सरकारों को गिराने के लिए पार्टियों को चंदा दे रहे हैं. किसी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं. शाहरुख़ ने तो लंबे समय से राजनीतिक दूरी बनाई हुई है. घटिया राजनीतिक मकसद के लिए ऐसे बंटवारे भविष्य के लिहाज से घातक हैं. मुंबई में ड्रग रैकेट का होना सच्चाई है. रैकेट किन लोगों के लिए है इसे बताने की भी जरूरत नहीं. आम मुंबईकर की औकात ही नहीं कि ऐसे महंगे शौक पाले. नवाब साहेब, आर्यन खान के साथ और उनसे पहले कुछ और लोग भी पकड़े गए हैं. खैर उनके पास तो विक्टिम कार्ड खेलने का विकल्प भी नहीं था जैसा कि मुसलमान होने की वजह से शाहरुख के नाम पर आप चलाना चाह रहे हैं.

असल में आर्यन के लिए क्या बेहतर कर सकते हैं शुभचिंतक

आर्यन खान की मदद करने वालों को चाहिए कि वो सही तरीके से सवाल उठाए. हो सकता है कि सरकार के इशारे पर ही कार्रवाई हुई हो. नवाब मालिक सक्षम है कि उन वीडियोज को सामने लाए जो क्रूज पर लोगों के सवार होने के दौरान के हैं. क्रूज पर भी सीसीटीवी होंगे ही. उन्हें भी सामने लाना चाहिए. बड़ी लीड के आधार पर छापा डाला गया, ये मामूली ऑपरेशन नहीं था. गुंजाइश है कि ऐसे ऑपरेशन की वीडियोग्राफी भी कराई गई हो. एनसीबी वाट्सएप चैट मिलने का दावा भी कर रही है. यह लगभग साफ है कि मुखबिरों में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनपर बीजेपी से जुड़े होने के आरोप लग रहे हैं. राजनीतिक साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता. एनसीपी को चाहिए कि आर्यन की बेगुनाही के ऐसे सबूतों को भी पब्लिक डोमेन में लेकर आए जैसे उन्होंने बीजेपी नेताओं के वीडियो जारी किए हैं.

सिर्फ इस बिना पर सवाल उठाना जायज नहीं कि सरकार केंद्रीय एजेंसी के अधीन है इसलिए उसके दबाव में ही काम कर रही है. डर इस बात का है कि कोई नवाब मलिक या शशि थरूर कश्मीर के ताजा हालात के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ना ठहरा दे कि यह सबकुछ लखीमपुर खीरी से ध्यान हटाने के लिए करवाया गया है. पुलवामा की आतंकी घटना को लेकर दबी जुबान यही सब कहा गया. पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक हुई तो नेताओं ने सेना से सबूत मांग लिए.

बंद करिए ये सब. हर चीज को हिंदू-मुस्लिम और सरकार बनाम विपक्ष की शक्ल देना ठीक नहीं. गंदी राजनीति तो हर जगह दिख रही है. मामले पर ट्रायल जब पब्लिक कोर्ट में करना है तो नवाब मालिक को चाहिए कि नेताओं की संलिप्तता की कहानियों की बजाय आर्यन की बेगुनाही के सबूत भी पब्लिक डोमेन में लेकर आए. सांच को आंच क्या. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. फ़िल्मी सितारों को भी पब्लिक ट्रायल बंद करना चाहिए, जिनकी नजर में आर्यन खान पहले से ही निर्दोष साबित हो चुके हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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