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एक वर्दी की नीलामी पर सैनिक आहत हो रहे हैं बाजार में जिसे 500 रुपए में बेचा जा रहा है

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 02 मई, 2018 07:25 PM
  • 02 मई, 2018 07:22 PM
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अक्षय कुमार ने फिल्म रुस्तम की कॉस्ट्यूम को वर्दी क्या कह दिया हंगामा मच गया. लेकिन वही वर्दी पठानकोट हमलों के कुछ दिनों पहले तक सड़कों पर बिका करती थी. भावनाएं किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के साथ ही क्यों जुड़ती हैं?

2016 में आई फिल्म रुस्तम में अभिनेता अक्षय कुमार ने एक नेवी ऑफिसर की भूमिका निभाई थी. पुशओं के लिए पैसे इकट्ठा करने के उद्देश्य से अक्षय कुमार ने इस फिल्म में पहने नेवी की ड्रेस को नीलाम करने की घोषणा की. वैसे तो अक्षय का इरादा सही था लेकिन एक छोटी सी चूक ने उनके इस भले उद्देश्य को बहस का मुद्दा बना दिया.

इस घोषणा में अक्षय की गलती ये है कि फिल्म की अपनी पोशाक को वो वर्दी कहकर संबोधित कर रहे हैं. लेकिन उनकी यही गलती कई सेवानिवृत सैनिकों सहित सेना के जवानों को बुरी लग गई. उनका कहना था कि सेना की वर्दी पाने के लिए सैनिक पसीना बहाते हैं, खून बहाते हैं, अपना जीवन लगा देते हैं. सेना में भर्ती होने के बाद उन्हें सालों के कड़े प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है. और रैंक पाने के लिए तो इससे भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. सेना के जवान वर्दी की रक्षा में अपनी जान तक गंवाने के लिए तैयार रहते हैं. शहीद सैनिकों के घरवाले अपने प्रियजन की याद में एक वर्दी सहेज कर रखते हैं. तो कुछ लोग रिटायर होने के बाद अपनी वर्दी को नष्ट कर देतें हैं.

ऐसे में अक्षय कुमार, अपने एक फिल्म के कॉस्ट्यूम को वर्दी कहकर नीलामी के लिए रख रहे हैं. वो भी इसलिए क्योंकि उन्होंने उस फिल्म में जो किरदार निभाया था वो एक नौसेनिक ऑफिसर था. ये उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. सेवानिवृत से लेकर कमीशन्ड सैनिकों को ये बात इतनी नागवार गुजरी की सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. सैनिकों ने गुस्से में चिट्ठियां लिख डाली. उनकी मांग है कि अक्षय कुमार अपने कॉस्ट्यूम को नीलाम करें लेकिन उसे वर्दी न बोलें. सैनिकों ने खून पसीने से अपनी वर्दी को सींचा होता है. उसका इस कदर अपमान न किया जाए.

एक पक्ष ये भी-

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सैनिकों को अपनी वर्दी से भावनात्मक लगाव होगा. वर्दी पहनना, सीने पर मेडल लगाना, लुक लगभग हर...

2016 में आई फिल्म रुस्तम में अभिनेता अक्षय कुमार ने एक नेवी ऑफिसर की भूमिका निभाई थी. पुशओं के लिए पैसे इकट्ठा करने के उद्देश्य से अक्षय कुमार ने इस फिल्म में पहने नेवी की ड्रेस को नीलाम करने की घोषणा की. वैसे तो अक्षय का इरादा सही था लेकिन एक छोटी सी चूक ने उनके इस भले उद्देश्य को बहस का मुद्दा बना दिया.

इस घोषणा में अक्षय की गलती ये है कि फिल्म की अपनी पोशाक को वो वर्दी कहकर संबोधित कर रहे हैं. लेकिन उनकी यही गलती कई सेवानिवृत सैनिकों सहित सेना के जवानों को बुरी लग गई. उनका कहना था कि सेना की वर्दी पाने के लिए सैनिक पसीना बहाते हैं, खून बहाते हैं, अपना जीवन लगा देते हैं. सेना में भर्ती होने के बाद उन्हें सालों के कड़े प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है. और रैंक पाने के लिए तो इससे भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. सेना के जवान वर्दी की रक्षा में अपनी जान तक गंवाने के लिए तैयार रहते हैं. शहीद सैनिकों के घरवाले अपने प्रियजन की याद में एक वर्दी सहेज कर रखते हैं. तो कुछ लोग रिटायर होने के बाद अपनी वर्दी को नष्ट कर देतें हैं.

ऐसे में अक्षय कुमार, अपने एक फिल्म के कॉस्ट्यूम को वर्दी कहकर नीलामी के लिए रख रहे हैं. वो भी इसलिए क्योंकि उन्होंने उस फिल्म में जो किरदार निभाया था वो एक नौसेनिक ऑफिसर था. ये उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. सेवानिवृत से लेकर कमीशन्ड सैनिकों को ये बात इतनी नागवार गुजरी की सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. सैनिकों ने गुस्से में चिट्ठियां लिख डाली. उनकी मांग है कि अक्षय कुमार अपने कॉस्ट्यूम को नीलाम करें लेकिन उसे वर्दी न बोलें. सैनिकों ने खून पसीने से अपनी वर्दी को सींचा होता है. उसका इस कदर अपमान न किया जाए.

एक पक्ष ये भी-

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सैनिकों को अपनी वर्दी से भावनात्मक लगाव होगा. वर्दी पहनना, सीने पर मेडल लगाना, लुक लगभग हर भारतीय को अपनी ओर आकर्षित करता है. देशप्रेम से सराबोर युवा सेना को सम्मान की नजरों से देखते हैं. लेकिन एक असलियत ये भी है कि ये सम्मान भाव सेना में भर्ती होने के लिए नहीं होता. वो सिर्फ बाहर से सेना का गुणगान करते हैं.

अक्षय कुमार ने एक फिल्म में सैनिक की भूमिका निभा कर कितने युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया इस बात की तरफ किसी का ध्यान गया? सेना में  लगभग साठ हजार सैनिकों की कमी है. और सेना के कठिन परिस्थितियों के कारण युवाओं के लिए अब ये पसंदीदा नौकरी नहीं रह गई है. लेकिन अक्षय कुमार की एक फिल्म से प्रेरित होकर कई युवा सेना के प्रति फिर से आकर्षित होते हैं.

नागरिकों को सेना मानद उपाधि देती रही है

यही कारण है कि खिलाड़ियों और जाने माने युवाओं को सेना मानद रैंक देती है. फिर चाहे धोनी हों, सचिन, अभिनव बिन्द्रा या फिर सचिन पायलट. ये कुछ ऐसे बड़े नाम हैं जिन्हें सेना ने मानद रैंक प्रदान किया है ताकि इनसे प्रेरित युवा सेना आने के लिए प्रेरित हों.

दूसरी बात ये कि 2016 में पठानकोट हमलों और ऐसे कई हमलों में देखा गया कि हमलावरों ने सेना जैसे कपड़े पहन रखे थे. इसका सीधा सा अर्थ ये है कि सेना से मिलते जुलते या फिर सेना की वर्दी खुलेआम दुकानों में बिक रही होगी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जम्मू हो या पठानकोट कई जगहों पर सेना की वर्दी सिर्फ 500 रुपए में खुलेआम बिकती है.

अखबार में बताया गया था कि दुकानों पर मिलने वाली वर्दियां रिटायर्ड सैनिक या वर्तमान सैनिकों बेचकर जाते हैं. ऐसे में मुद्दे की बात ये है कि फिर सैनिकों के भावनाओं का क्या होता है? इन दुकानों से वर्दियां खरीदकर आतंकवादी गलत इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के गलत प्रथा को रोकने के लिए भी सैनिकों को आगे आना चाहिए.

तीसरी बात ये कि गणमान्य व्यक्तियों जैसे कपिल देव, धोनी, सचिन तेंदुलकर इत्यादि को सेना मानद रैंक इसलिए देती है ताकि उनसे युवा प्रेरित हो सकें. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि खुद ये प्रतिनिधि ही सेना के प्रति समर्पित नहीं हैं. धोनी और सचिन का एयरफोर्स और आर्मी के सलाना जलसे में न जाना लोगों को बुरा लगा. नतीजतन नेवी ने फैसला किया कि अब किसी भी नागरिक को सेना की मानद उपाधि नहीं दी जाएगी. यहां तक की एयरफोर्स ने सचिन को अपने अंबेसेडर पद से भी मुक्त कर दिया क्योंकि जिस उम्मीद से सचिन को एयरफोर्स का चेहरा बनाया गया था वो पूरा नहीं हुआ.

इस तरह अगर देखें तो ये बात सही है कि अक्षय कुमार ने फिल्म में पहने अपने कॉस्ट्यूम को वर्दी कहकर गलती की है. लेकिन कहीं न कहीं अक्षय और ट्विंकल सेना की मदद ही कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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