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'सात हिंदुस्तानी' से अमिताभ बच्चन की 'ऊंचाई' तक

    • कन्हैया कुमार
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2022 02:38 PM
  • 11 अक्टूबर, 2022 02:38 PM
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कक्षा दसवीं पास करने के बाद मैं झूमने लगा था क्योंकि मैंने अमिताभ बच्चन को बड़े परदे पर पहली बार देखा था और फिल्म थी 'झूम-बराबर-झूम'. इसके बाद तो मैंने उनकी कई फिल्में देखीं और हर बार मैं प्रभावित होता रहा उनकी कलात्मक ‘ऊंचाई’ से..

साल था 2007, हमने दसवीं की परीक्षा दी थी और पटना आ गए थे. पटना पहली बार आए थे और पहली बार हमने किसी शहर को देखा था. बहरहाल हम बात न पटना की करेंगे न ही दसवीं की परीक्षा की. एक और घटना हुई थी मेरे साथ उसी साल, जो पहली बार ही थी.हम पहली बार सिनेमा हॉल गए थे. फिल्म थी ‘झूम बराबर झूम’. हमने पहली बार अमिताभ बच्चन को बड़े पर्दे पर देखा था.

बॉबी देओल और अभिषेक बच्चन भी फिल्म में थे. चूकि हम बंटी और बबली देख चुके थे, और हर शनिवार को हिंदुस्तान अखाबर में आने वाले रंगोली को अक्सर पढ़ा करते थे. मुझे पता था कि शाद अली ने बंटी और बबली का निर्देशन किया है. सच पूछिए तो कमाल की फिल्म लगी थी मुझे तब, और वैसे भी पहली बार जब सिनेमा हॉल में फिल्म देखते हैं तो सिर्फ फिल्म ही नहीं देखते हैं. सिनेमा हॉल की कुर्सी देखते हैं, लाइट देखते हैं, शहर के उन लोगों को देखते हैं जो रंग बिरंगे कपड़े पहने चमक रहे होते हैं. मैंने भी ये सब देखा लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण अमिताभ बच्चन में ही था. खासकर उनकी नसीरउद्दीन शाह जैसी तिरछी टोपी मुझे ऐसे रिझा रही थी कि जैसे कोई पर्दे के अंदर जाए और बच्चन साहब से टोपी लेकर मुझे पहना दे.

11 अक्टूबर को अमिताभ बच्चन अपना 80वां जन्मदिन मना रहे हैं. इन 80 सालों हिंदुस्तान, न जाने कितने दौर से गुजरा है और सौभाग्य देखिए हर दौर ने अमिताभ बच्चन को देखा है, उन्हें जिया है, उनकी फिल्मों को देखकर बड़ा हुआ है. इतने सालों तक काम करना ही एक बड़ी उपल्बधि है. अमिताभ बच्चन ने क्या काम किया..? एक अभिनेता के तौर पर वो कितने सफल हुए..? सामाजिक मुद्दों पर अमिताभ बच्चन क्यों नहीं बोलते...?

इन सारी बातों पर बहस होनी चाहिए और होती भी हैं लेकिन इन सारी चीजों पर बहस करते हुए हम ये भूल जाते हैं कि अमिताभ बच्चन भी एक इंसान हैं हमारी तरह. जिस देश में 60 साल की उम्र में लोग अपना बोरिया बिस्तर बांधकर बुजुर्ग हो जाते हैं..तीर्थ के लिए निकल जाते हैं वहां एक 80 साल का बुजुर्ग लगातार काम किए जा रहा है.और हर काम एक नएपन के साथ कर रहा है,...

साल था 2007, हमने दसवीं की परीक्षा दी थी और पटना आ गए थे. पटना पहली बार आए थे और पहली बार हमने किसी शहर को देखा था. बहरहाल हम बात न पटना की करेंगे न ही दसवीं की परीक्षा की. एक और घटना हुई थी मेरे साथ उसी साल, जो पहली बार ही थी.हम पहली बार सिनेमा हॉल गए थे. फिल्म थी ‘झूम बराबर झूम’. हमने पहली बार अमिताभ बच्चन को बड़े पर्दे पर देखा था.

बॉबी देओल और अभिषेक बच्चन भी फिल्म में थे. चूकि हम बंटी और बबली देख चुके थे, और हर शनिवार को हिंदुस्तान अखाबर में आने वाले रंगोली को अक्सर पढ़ा करते थे. मुझे पता था कि शाद अली ने बंटी और बबली का निर्देशन किया है. सच पूछिए तो कमाल की फिल्म लगी थी मुझे तब, और वैसे भी पहली बार जब सिनेमा हॉल में फिल्म देखते हैं तो सिर्फ फिल्म ही नहीं देखते हैं. सिनेमा हॉल की कुर्सी देखते हैं, लाइट देखते हैं, शहर के उन लोगों को देखते हैं जो रंग बिरंगे कपड़े पहने चमक रहे होते हैं. मैंने भी ये सब देखा लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण अमिताभ बच्चन में ही था. खासकर उनकी नसीरउद्दीन शाह जैसी तिरछी टोपी मुझे ऐसे रिझा रही थी कि जैसे कोई पर्दे के अंदर जाए और बच्चन साहब से टोपी लेकर मुझे पहना दे.

11 अक्टूबर को अमिताभ बच्चन अपना 80वां जन्मदिन मना रहे हैं. इन 80 सालों हिंदुस्तान, न जाने कितने दौर से गुजरा है और सौभाग्य देखिए हर दौर ने अमिताभ बच्चन को देखा है, उन्हें जिया है, उनकी फिल्मों को देखकर बड़ा हुआ है. इतने सालों तक काम करना ही एक बड़ी उपल्बधि है. अमिताभ बच्चन ने क्या काम किया..? एक अभिनेता के तौर पर वो कितने सफल हुए..? सामाजिक मुद्दों पर अमिताभ बच्चन क्यों नहीं बोलते...?

इन सारी बातों पर बहस होनी चाहिए और होती भी हैं लेकिन इन सारी चीजों पर बहस करते हुए हम ये भूल जाते हैं कि अमिताभ बच्चन भी एक इंसान हैं हमारी तरह. जिस देश में 60 साल की उम्र में लोग अपना बोरिया बिस्तर बांधकर बुजुर्ग हो जाते हैं..तीर्थ के लिए निकल जाते हैं वहां एक 80 साल का बुजुर्ग लगातार काम किए जा रहा है.और हर काम एक नएपन के साथ कर रहा है, उनकी अभिनय लगातार निखरती जा रही है,जैसे कि सदी के महानायक ने समय को भी अपना मुरीद बना लिया हो.

अमिताभ बच्चन की अभी एक फिल्म रिलीज हुई है गुडबाय. अमिताभ बच्चन के अभिनय की तारीफ हो रही है. गुडबाय में वो इतने ऊम्दा लग रहे कि लगता नहीं कि अभी आनेवाले कई सालों तक वो फिल्मों को गुडबाय बोलेंगे.

अमिताभ बच्चन भारतीय हिन्दी सिनेमा के इकलौते मेगास्टार हैं. बिग बी, शहंशाह,सदी के महानायक जैसे नामों से मीडिया उन्हें बुलाती है. यूं तो ऐसे लोगों का कोई एक शहर नहीं होता फिर भी अमिताभ बच्चन की जिंदगी में इलाहाबाद का खासा महत्व है. पिता हरिवंश राय बच्चन नहीं चाहते थे कि उनका बेटा अभिनेता बने.लेकिन मां तेजी बच्चन को जैसे पहले ही ये आभास हो गया था कि उनका लाल एक दिन भारत का सबसे बड़ा स्टार बनेगा.

तेजी बच्चन को क्लासिकल फिल्में देखना पसंद था. धीरे-धीरे ये आदत अमिताभ को भी लग गया. तेजी बच्चन चाहती थीं कि उनका बेटा अभिनय की दुनिया में खूब नाम कमाए..हुआ भी ऐसा ही.. वो कहते हैं न, मां सब जानती है. शायद तेजी बच्चन को सब पहले से ही मालूम हो.

लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि मां ने चाहा और अमिताभ बच्चन को सबकुछ मिल गया. हरिवंश राय बच्चन का बेटा होना बड़ी बात है ऐसा तब लोग बोलते थे...लेकिन आज लोग कहते हैं अमिताभ बच्चन के पिता हैं हरिवंश राय बच्चन. आज हरिवंश राय बच्चन भी होते तो यही कहते कि उम्र में भले ये मेरे से छोटा हो लेकिन नाम कमाने में तो पूरे सौ बरस आगे निकल गया है.

अमिताभ बच्चन के पैदा होने पर हरिवंश राय बच्चन ने लिखा था-

फूल कमल,

गोद नवल,

मोद नवल,

गेहूं में विनोद नवल।

बाल नवल,

लाल नवल,

दीपक में ज्वाल नवल।

दूध नवल,

पूत नवल,

वंश में विभूति नवल।

नवल दृश्य,

नवल दृष्टि,

जीवन का नव भविष्य,

जीवन की नवल सृष्टि।।

अमिताभ बच्चन, अपने पिता की कविता से कहीं आगे निकल चुके हैं. एक अभिनेता से भी बहुत आगे निकल चुके हैं..और ये सब आसानी से नहीं हुआ. हैं तो वो भी इंसान ही.इस सफर में वो भी गिरे, कभी-कभी तो ऐसा लगा कि हरिवंश राय बच्चन ने कविता में जिस दृष्य की कल्पना की थी वो धुंधली होने लगी है. ‘सात हिंदुस्तानी’ अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म थी. कैसे मिली इसकी भी कई कहानियां हैं. ख्वाजा अहमद अब्बास, फिल्म के निर्देशक और सह-निर्माता थे.

कुछ कहानियों में ये कहा गया है कि ये फिल्म अमिताभ को उनकी भाई की वजह से मिली. कुछ कहानियों में कहा गया है कि अमिताभ की जगह इस फिल्म में पहले टीनू आनंद काम करने वाले थे. लेकिन उन्होंने सत्यजीत राय का असीस्टेंट बनना स्वीकार किया और उन्होंने ही अब्बास को अमिताभ की तस्वीर दिखाई थी. और भी कई बातें हैं लेकिन न हम उन बातों में उलझेंगे और न ही ज्यादा कहानियों में. हम यहां बस अमिताभ बच्चन पर फोकस करेंगे.. वैसे भी कहानी कोई भी हो किस्सों में तो अमिताभ बच्चन ही होंगे.

अमिताभ बच्चन को ब्रेक तो मिल गया लेकिन इसके बाद मुश्किलों का दौर शुरु हुआ..सात हिंदुस्तानी अमिताभ की इकलौती ब्लैक एण्ड वाइट फिल्म थी. ये फिल्म सुपर फ्लाप हुई थी. इसके बाद भी अमिताभ को फिल्में मिलती रहीं. अमिताभ की लगातार 12 फिल्में फ्लॉप साबित हुईं. वो टूट चुके थे और वापस आने का भी मन बना लिया था. लेकिन तभी उन्हें प्रकाश मेहरा की जंजीर मिली. इसके बाद अमिताभ बच्चन की गाड़ी चल निकली. देश में उनकी छवि एंग्री यंग मैन की बन गई और वो रातों रात जनता के चहेते स्टार बन गए थे.

एक वक्त ऐसा आया जब अमिताभ बच्चन दिवालियेपन की कगार पर पहुंच गए थे

कई लोग अमिताभ बच्चन की आज आलोचना भी करते हैं कि हरिवंश राय बच्चन के बेटे थे इसलिए लगातार फिल्में मिलती रही, मौका मिलता रहा.. उन लोगों को शायद ये नहीं मालूम की जंजीर भी पहले अमिताभ के हिस्से में नहीं आई थी. पहले ये फिल्म धर्मेन्द्र को ऑफर हुई..उसके बाद देव आनंद और राजकुमार जैसे दिग्गजों को और अंत में अमिताभ बच्चन को.

सलीम-जावेद की जोड़ी कलम से करामत करती और अमिताभ परदे पर जादू दिखाते. जंजीर में अमिताभ का नाम विजय था. और आगे करीब 22 फिल्मों में अमिताभ ने अपना नाम विजय ही रखा.

70 के दशक में देश में भी कई चीजे ऐसी थीं जो पहली बार हो रही थी. इंदिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल लागू किया गया. अशांति का माहौल था और बेरोजगारी तो थी ही. सलीम-जावेद की जोड़ी ने एक ऐसे नायक की रचना की जिसमें लोग खुद को देखते थे. चाहे वो मजदूर हो या भ्रष्टाचार से त्रस्त कोई आदमी, सबका नायक विजय बन चुका था. अमिताभ के निभाए किरदार बुराई के विरोध में खड़े एक इंसान की बनने लगी जिससे आम आदमी कनेक्ट हो रहा था. दीवार, अमर, अकबर और एंथेनी, शोले, नसीब और मर्द जैसी फिल्मों ने अमिताभ बच्चन को एक सुपर स्टार के तौर पर स्थापित कर दिया.

लेकिन कहते हैं न कि हम सब इंसान हैं और उतार-चढ़ाव जिंदगी में आते रहते हैं. बच्चन साब की जिंदगी में भी आया. 1980 के बाद उनके करियर पर जैसे किसी ने ब्रेक लगा दी हो.

लेकिन सदी के महानायक अब कहां रुकने वाले थे. खुद के साथ प्रयोग किया, दोबारा खुद को तराशा और मजबूत बने रहे. 1984 में दोस्त राजीव के कहने पर नेता बन गए. इलाहाबाद से चुनाव लड़ा और संसद भी बन गए. लेकिन अमिताभ बच्चन को ये अहसास हो चुका था कि राजनीति उनके बस की बात नहीं तीन साल में ही इस्तीफा दे दिया.

कुली फिल्म के एक सीन में उनका बुरी तरह घायल होना, अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन की स्थापना, ये सब उनके बुरे दौर की बातें हैं जब वक्त ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया था. एक वक्त तो ऐसा आया कि वो दिवालियेपन की कगार पर पहुंच गए.

लेकिन अमिताभ फिर भी हार नहीं माने और आ गए टीवी पर. कौन बनेगा करोड़पति नाम से शो लाए और ये शो ऐसा चला कि आज भी चल ही रहा है. कहते हैं हर किसी को दूसरा मौका जरूर मिलता है. कौन बनेगा करोड़पति अमिताभ बच्चन की जिंदगी में दूसरा मौका ही था जिसके बाद सदी के महानायक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

केबीसी की शुरुआत तब हुई थी जब बीग बी अपने सबसे मुश्किल समय को जी रहे थे. उनकी कंपनी एबीसीएल घाटे में थी, हाथ में फिल्म नहीं था. कर्जदार घर के बाहर लाइन लगाए रहते थे. साल 2000 में केबीसी ने टीवी की दुनिया ही बदलकर रख दी. अमिताभ ने एक बार कहा भी था-“ मेरे हालात बदलने में केबीसी का भी अहम रोल था. ये ऐसे वक्त में मेरे पास आया, जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी. यकीन मानिए, इसने सभी के पैसे चुकाने में मेरी बहुत मदद की. यह वह ऋण है, जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता.”

साल 1999 में बीबीसी ने अपने सर्वे में पिछले 100 सालों में सबसे लोकप्रिय कलाकार के लिए वोट करने को कहा था. सर्वे में अमिताभ बच्चन को सबसे ज्यादा लोगों ने पसंद किया. बीबीसी ने अमिताभ को स्टार ऑफ द मिलेनियम की उपाधी दी थी.

जब अमिताभ को एक कार्यक्रम में स्टार ऑफ मिलेनियम कहकर बुलाया गया तो उनका जवाब ऐसा था जिसने फिर एक बार ये साबित कर दिया कि वो सही मायनों में धरती के महानतम स्टार हैं.

अमिताभ ने कहा था-

“ऑनलाइन सर्वे होने के कारण, कुछ वोट मुझे ज्यादा मिल गए. मुझे लगता है कि ये कंप्यूटर की खामी है और इसके पीछे कोई सच्चाई नहीं है”

आम भारतीय के हिरो तो अमिताभ बच्चन बन ही चुके थे. उनके चाहने वालों में कई खास लोग भी शामिल हो चुके थे. ऐसे ही एक खास व्यक्ति थे फील्ड मार्शल मानेकशॉ.

संभवतः 2004 में अपने अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने अमिताभ के बारे में कहा था “हम दोनों ही शेरवुड कॉलेज, नैनीताल के पूर्व छात्र हैं और हम दोनों का पंजाब कनेक्शन भी है.” मानेकशॉ 1971 युद्ध के हिरो थे ये वो दौर था जब अमिताभ की पहली फिल्म तो रिलीज रहो चुकी थी लेकिन वो हिरो नहीं बने थे.

अमिताभ की लोकप्रियता भारत ही नहीं, नाइजीरिया, मिश्र, अफगानिस्तान, रूस और दुनिया के कई हिस्सों में है. बीबीसी के मुताबिक,उनकी लोकप्रियता का आलम ये है कि एक बार मिश्र की राजधानी में एक होटल को जल्दी खाली करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया क्योंकि उनके मिश्र के फैन्स एयरपोर्ट पर उन्हें देखने के लिए काफी उत्तेजित हो गए थे.

आज अमिताभ बच्चन के साथ काम करना हर किसी के लिए किसी सपने का सच होने जैसा है. सुभाष घई ने हिन्दी सिनेमा को एक से बढ़कर एक यादगार फिल्म दी है लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ काम नहीं करने का मलाल आज भी उन्हें है. दरअसल सुभाष और अमिताभ 80 के दशक में एक फिल्म पर काम कर रहे थे फिल्म का नाम था ‘देवा’ किसी कारण ये फिल्म नहीं बनी.. आज तक दोनों ने साथ काम नहीं किया है.

2005 में न्यूयार्क टाइम्स ने अमिताभ बच्चन पर एक आर्टिकल लिखा था जिसका शीर्षक था, ‘A Star the World Over but Almost nknown Here’…. माने कि अमिताभ बच्चन एक ऐसा अभिनेता जिसे पूरी दुनिया तो जानती है लेकिन अमेरिका में लोग न के बराबर जानते हैं.

न्यूयॉर्क टाइम्स के आर्टिकल से दो बातें निकलती हैं. पहली ये कि अमिताभ बच्चन एक ऐसे अभिनेता हैं जिसे पूरी दुनिया जानती है और दूसरी बात ये कि अमेरिका में उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. ये साल 2022 है, संभव है अमेरिका में अब सब बच्चन को जान गए होंगे..आंय..

कोई अमेरिकन को यही बता दे कि अमिताभ बच्चन ने 70 साल की उम्र में हॉलीवुड फिल्म दी ग्रेट गैट्सबी में डेब्यू किया था, उनके लिए अमिताभ के बारे में इतना जानना है बहुत है.

अमिताभ बच्चन ने जिदंगी में बहुत कुछ देखा है. कामयाबी, शोहरत, बुलंदी और नाकामी भी. इन सब से जूझने और जीतने के बाद पिछले कुछ दशकों में वो एक अच्छे इंसान भी बनकर उभरे हैं, खासकर 80 के दशक के बाद. एक इंसान के रूप में उनमें बड़ा बदलाव आया है. उनका बात करने का तरीका, लोगों से मिलने का तरीका, ऐसा लगता है कि इलाहाबाद का वह लड़का आज भी अपने पिता के संस्कारों और उनकी बातों को अपने साथ लिए चलता है.

अमिताभ बच्चन पर कितना भी लिख लो, जितना लिखो उससे कहीं ज्यादा हर बार छूट जाता है, ऐसा लगता है उनपर लिखा हर बार पढ़ने पर अधूरा ही लगता है. मालूम नहीं क्यों ऐसा लगता है कि उनके बारे में सबकुछ कोई लिख ही नहीं सकता...दुनिया उन्हें भले ही मेगा स्टार कहती है, स्टार कहती है पर अमिताभ बच्चन भारत की एक बड़ी आबादी के लिए किसी ‘जुगनू’ के जैसे हैं. हमारा जब मन हुआ हम छू लेते हैं, महसूस करते हैं या फिर दूर से ही टिमटिमाते हुए देखते रहते हैं.

दूर से टिमटिमाते जुगनू ऐसे लगते हैं जैसे हमारे गांव के पास किसी ने आसमान से तारे तोड़कर सजा दिए हों. अमिताभ बच्चन उन्हीं में से एक हैं....जो अपने से लगते हैं.. उनकी आने वाली फिल्म का पोस्टर रिलीज हो चुका है. सूरज बड़जात्या की फिल्म है नाम है 'ऊंचाई'..अमिताभ बच्चन अपने करियर में जिस ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं उस ऊंचाई को भले कोई छू ले लेकिन उसे सालों तक बरकररार रखने वाला कोई दूसरा, दूर तक नहीं दिखता...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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