• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

बॉलीवुड के लिए खतरे की घंटी, सिनेमाघरों के लिए हिंदी में डब की जा रही पुरानी फ़िल्में!

    • आईचौक
    • Updated: 24 जनवरी, 2022 09:27 PM
  • 24 जनवरी, 2022 09:07 PM
offline
दक्षिण के फिल्म उद्योग ने बॉलीवुड को चौतरफा घेर लिया है. आइए जानते हैं कैसे हिंदी के बाजार पर दक्षिण ने हिस्सेदारी के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं. इस कवायद के नफे नुकसान क्या हैं?

दक्षिण में चार भाषाओं तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्म उद्योग का दबदबा है. मगर कुछ साल पहले तक बहुत कम मौकों पर दक्षिण की किसी एक भाषा की फिल्म दक्षिण में ही दूसरी भाषा में नजर आती थी. हालांकि अब ज्यादातर फ़िल्में दक्षिण की सभी भाषाओं में रिलीज होने के साथ-साथ हिंदी में भी पैन इंडिया आ रही हैं. फ़िल्में जबरदस्त कामयाब भी हो रही हैं. वह भी उस स्थिति में जब दक्षिण के सितारों की हिंदी बेल्ट में कोई ख़ास फैन फॉलोइंग नहीं है. बाहुबली के दोनों पार्ट, काला, काबाली, रोबोट, केजीएफ, जयभीम और पुष्पा द राइज जैसी फिल्मों ने तो हिंदी क्षेत्रों में तहलका ही मचा दिया.

सिनेमाघरों में आई फिल्मों ने जमकर कारोबार किया. कहना नहीं कि साउथ के निर्माताओं की नजर में अब हिंदी एक बड़े बाजार के रूप में है. हिंदी के मास सर्किट दर्शकों की जरूरतों को भी पूरा कर रही है. पैन इंडिया रिलीज इसी का नतीजा है. साउथ के निर्माताओं का उत्साह इस बात से भी समझा जा सकाता है कि अब उन फिल्मों को भी हिंदी में डब करके लाया जा रहा जो काफी पहले अपनी अपनी भाषाओं में रिलीज हो चुकी हैं. इस वक्त साउथ की कई फिल्मों की हिंदी डबिंग का काम हो रहा है और उसके हिंदी वर्जन को नए सिरे से सिनेमाघरों में रिलीज करने की कोशिश नजर आ रही है.

रामचरण और विजय की दो पुरानी फ़िल्में हिंदी में आने वाली हैं.

हिंदी में डब कर इन फिल्मों को फिर से रिलीज करने की तैयारी है

जिन फिल्मों की डबिंग हो रही हैं उसमें- राम चरण की रंगस्थलम (2018), थलपति विजय की मर्सल (2017) और मास्टर (2021) और श्री की मनगरम (2017) जैसी फ़िल्में शामिल हैं. सभी फ़िल्में पहले ही सिनेमाघरों में आ चुकी हैं. टिकट खिड़की पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई हैं. ऐसा नहीं है कि हिंदी में डबिंग अभी शुरू की गई है. काफी वक्त से तमिल तेलुगु...

दक्षिण में चार भाषाओं तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्म उद्योग का दबदबा है. मगर कुछ साल पहले तक बहुत कम मौकों पर दक्षिण की किसी एक भाषा की फिल्म दक्षिण में ही दूसरी भाषा में नजर आती थी. हालांकि अब ज्यादातर फ़िल्में दक्षिण की सभी भाषाओं में रिलीज होने के साथ-साथ हिंदी में भी पैन इंडिया आ रही हैं. फ़िल्में जबरदस्त कामयाब भी हो रही हैं. वह भी उस स्थिति में जब दक्षिण के सितारों की हिंदी बेल्ट में कोई ख़ास फैन फॉलोइंग नहीं है. बाहुबली के दोनों पार्ट, काला, काबाली, रोबोट, केजीएफ, जयभीम और पुष्पा द राइज जैसी फिल्मों ने तो हिंदी क्षेत्रों में तहलका ही मचा दिया.

सिनेमाघरों में आई फिल्मों ने जमकर कारोबार किया. कहना नहीं कि साउथ के निर्माताओं की नजर में अब हिंदी एक बड़े बाजार के रूप में है. हिंदी के मास सर्किट दर्शकों की जरूरतों को भी पूरा कर रही है. पैन इंडिया रिलीज इसी का नतीजा है. साउथ के निर्माताओं का उत्साह इस बात से भी समझा जा सकाता है कि अब उन फिल्मों को भी हिंदी में डब करके लाया जा रहा जो काफी पहले अपनी अपनी भाषाओं में रिलीज हो चुकी हैं. इस वक्त साउथ की कई फिल्मों की हिंदी डबिंग का काम हो रहा है और उसके हिंदी वर्जन को नए सिरे से सिनेमाघरों में रिलीज करने की कोशिश नजर आ रही है.

रामचरण और विजय की दो पुरानी फ़िल्में हिंदी में आने वाली हैं.

हिंदी में डब कर इन फिल्मों को फिर से रिलीज करने की तैयारी है

जिन फिल्मों की डबिंग हो रही हैं उसमें- राम चरण की रंगस्थलम (2018), थलपति विजय की मर्सल (2017) और मास्टर (2021) और श्री की मनगरम (2017) जैसी फ़िल्में शामिल हैं. सभी फ़िल्में पहले ही सिनेमाघरों में आ चुकी हैं. टिकट खिड़की पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई हैं. ऐसा नहीं है कि हिंदी में डबिंग अभी शुरू की गई है. काफी वक्त से तमिल तेलुगु और मलयालम की ब्लॉकबस्टर फिल्मों को हिंदी में डब किया जाता था. हालांकि तब इनके सैटेलाइट और डिजिटल राइट बेचे जाते थे. टीवी चैनलों के साथ यूट्यूब पर नजर आने वाली साउथ की तमाम ऐसी हिंदी फ़िल्में इसी प्रक्रिया के तहत आती हैं. साउथ की कई डब फिल्मों ने टीवी प्रीमियर में रिकॉर्ड बनाया है.

ये फ़िल्में सिनेमाघरों की बजाय टीवी प्रीमियर के लिए होती थीं. इसके अलावा साउथ के निर्माता एक तय मुनाफा लेकर बॉलीवुड को रीमेक बनाने का राइट बेच देते थे. पर अब निर्माता राइट बेचने की बजाय उन्हें सीधे सिनेमाघर में रिलीज कर मुनाफा कमाना चाहते हैं. ऊपर की जो फ़िल्में बताओ गई हैं उनके बॉलीवुड रीमेक की चर्चाएं थीं. हिंदी में रिलीज करने से समझा जा सकता है कि निर्माता राइट बेचने की बजाय सीधे सिनेमाघरों से पैसा कमाने के बारे में सोच रहे हैं. विजय सेतुपति की फिल्म को लेकर सलमान खान ने रीमेक बनाने की इच्छा जताई थी. हिंदी में डबिंग से साफ़ है कि राइट बेचने की बजाय उसे अपने स्तर पर हिंदी में लॉन्च किया जा रहा है. अभी तक विजय जैसे सितारों की कोई फिल्म हिंदी के सिनेमाघरों तक नहीं पहुंची है.  

बॉलीवुड के लिए क्यों चुनौती है डब फ़िल्में  यह बॉलीवुड के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है. पुष्पा की सफलता ने साउथ के भरोसे को एक बार फिर मजबूत कर दिया है कि कंटेंट में दम है तो बिना हिंदी चेहरे के भी फ़िल्में बेची जा सकती है. हाल ही में अल्लू अर्जुन की भी तेलुगु में रिलीज हो चुकी फिल्म अला वैकुंठपुरमलू  (Ala Vaikunthapurramuloo) को भी हिंदी में डब कर सिनेमाघरों में लाने की तैयारी थी. हालांकि फिल्म का बॉलीवुड रीमेक कार्तिक आर्यन को लेकर बन रही है. इस वजह से इसे थियेटर में रिलीज से टाल दिया गया. लेकिन अब यह पूरी तरह साफ़ हो गया कि जब पुरानी फिल्मों को सिनेमाघरों में लाया जा रहा तो भविष्य में साउथ की फ़िल्में सीधे शायद हिंदी में ना आए. यानी बॉलीवुड के मार्केट पर दक्षिण के सितारों का दबदबा बढ़ेगा. इससे बॉलीवुड का रीमेक फ़ॉर्मूला पूरी तरह से ख़त्म होता नजर आ रहा है.

ट्रेंड का नफा नुकसान क्या है ?

वैसे भी बोनी कपूर जैसे बॉलीवुड के कई दिग्गज निर्माता पहले से ही दक्षिण की फिल्मों में पैसा लगा रहे हैं. किसी क्षेत्रीय भाषा में बन रही फिल्म का हिंदी में भी रिलीज होना उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगी. यह भारतीय सिनेमा के लिए अच्छी खबर है, बावजूद कि कवायद में हिंदी के बाजार में बॉलीवुड का जो एकाधिकार नजर आता है वह ख़त्म हो जाएगा. स्टार पावर की परिभाषा भी बदल जाएगी. दक्षिण के सितारों का स्टारडम बॉलीवुड के लिए तगड़ी चुनौती बन जाएगा. शाहरुख, सलमान, आमिर अक्षय आदि सितारों को दक्षिण के सितारों के साथ अपना फैन बेस साझा करना पड़ेगा. वैसे इसमें अलग-अलग क्षेत्रों का सिनेमा एक-दूसरे के ज्यादा करीब आएगा और लोगों के लिए भी काम के मौके बढ़ेंगे. वैसे भी साउथ की पैन इंडिया फिल्मों में हिंदी की जरूरतों के मद्देनजर अब बॉलीवुड सितारों की कास्टिंग भी बड़े पैमाने पर होने लगी है.

आरआरआर, केजीएफ़, विक्रांत रोना जैसी फिल्मों में जहां दक्षिण के सितारे हैं वहीं अतरंगी रे और ब्रह्मस्त्र जैसी पैन इंडिया फिल्मों में भी साउथ के सितारे नजर आने लगे हैं. लेकिन इस पूरी कवायद में बॉलीवुड की तुलना में दक्षिण अगुआ की भूमिका निभाते नजर आ रहा है. साफ़ इशारा है कि भविष्य में शायद ही साउथ की फिल्म का बॉलीवुड रीमेक नजर आए. कम से कम बड़े स्केल की फ़िल्में तो रीमेक के रूप में नहीं बनेंगी इतना तय है.

क्या मास सर्किट की अनदेखी की वजह से ऐसा हो रहा है

बॉलीवुड ने फ़िल्में तो बनाई लेकिन अगर पिछले कुछ सालों का ट्रेंड देखें तो सिनेमा ज्यादा प्रायोगिक, बौद्धिक और तार्किक नजर आता है मगर मास सर्किट की मनोरंजक फिल्मों के बनने का सिलसिला कमजोर पड़ा है. पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड ने जो थीम आधारित फ़िल्में बनाई हैं वह एक ख़ास दर्शक वर्ग के साथ ही संवाद करने में सक्षम नजर आती हैं. जबकि मास सर्किट के लिए बॉलीवुड में बहुत कम फ़िल्में बन रही हैं. इस वैक्यूम ने दक्षिण को हिंदी क्षेत्रों में बेहतर मौका प्रदान कर दिया. साला 2000 से पहले तक मास सर्किट के लिए बॉलीवुड में खूब फ़िल्में बनती थीं. हो सकता है कि दक्षिण के दबाव के बाद बॉलीवुड में भी मास सर्किट की फिल्मों का सिलसिला बढ़े.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲